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पृथ्वी की घूर्णन गतिकी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • 14 Aug 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पृथ्वी की धुरी में परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, लीप सेकंड, पुरस्सरण, ग्रीष्मकालीन संक्रांति, शीतकालीन संक्रांति, वसंत विषुव

मेन्स के लिये:

पृथ्वी का घूर्णन और जलवायु परिवर्तन, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल के शोध में यह बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय बर्फ पिघलने से पृथ्वी की गति धीमी हो रही है, जिसके कारण दिन की अवधि में सूक्ष्म परिवर्तन हो रहा है।

  • यद्यपि यह घटना दैनिक जीवन में तुरंत ध्यान देने योग्य नहीं है, लेकिन सटीक समय-निर्धारण पर निर्भर प्रौद्योगिकी के लिये इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के घूर्णन को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

  • पिघलती बर्फ की चोटियाँ: ध्रुवीय बर्फ की चादरों के पिघलने से पानी भूमध्य रेखा की ओर बहने लगता है, जिससे पृथ्वी की चपटी अवस्था और जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में पृथ्वी का घूर्णन प्रति शताब्दी लगभग 1.3 मिलीसेकंड धीमा हो गया है।
      • कोणीय संवेग का सिद्धांत इस प्रभाव की व्याख्या करता है। जैसे ही ध्रुवीय बर्फ पिघलती है और भूमध्य रेखा की ओर बढ़ती है, पृथ्वी का जड़त्व आघूर्ण (भूमध्य रेखा के पास द्रव्यमान वितरण) बढ़ जाता है, जिससे कोणीय संवेग को संरक्षित करने के लिये इसकी घूर्णन गति (वेग) कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप इसकी घूर्णन गति धीमी हो जाती है।
    • अनुमानों से पता चलता है कि यदि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य ज़ारी रहता है, तो यह दर बढ़कर 2.6 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी हो सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की घूर्णन गति धीमी होने में एक प्रमुख कारक बन जाएगा।
  • अक्षीय बदलाव: पिघलती बर्फ पृथ्वी के घूर्णन अक्ष को भी प्रभावित करती है, जिससे एक मामूली लेकिन मापनीय बदलाव होता है। यह बदलाव हालाँकि छोटा है, लेकिन यह इस बात का एक और संकेतक है कि जलवायु परिवर्तन किस तरह से पृथ्वी की मूलभूत प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है।
    • पृथ्वी की घूर्णन धुरी अपनी भौगोलिक धुरी के सापेक्ष झुकी हुई है। यह झुकाव चैंडलर वॉबल नामक घटना का कारण बनता है, जो घूर्णन समय और स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।

पृथ्वी की घूर्णन गति को प्रभावित करने वाले अन्य कारक

  • भूजल का ह्रास: भूजल की हानि द्रव्यमान वितरण को बदल सकती है, जिससे घूर्णन गतिशीलता में परिवर्तन आ सकता है।
  • टॉर्शनल वेव्स: पृथ्वी के बाहरी कोर में संवहन धाराएँ टॉर्शनल वेव्स उत्पन्न करती हैं जो ग्रह के घूर्णन को प्रभावित करती हैं। ये तरंगें पृथ्वी के माध्यम से दोलन करती हैं और एक दिन की अवधि में परिवर्तन के साथ सहसंबंधित हो सकती हैं। 
    • टॉर्शनल वेव्स पृथ्वी के बाहरी कोर के भीतर दोलनशील गतियाँ हैं जो पृथ्वी की धुरी के चारों ओर मुड़ती या घूमती हैं, जिससे ग्रह की घूर्णन गति प्रभावित होती है। 
  • आकाशीय पिंडों का प्रभाव: पृथ्वी का घूर्णन चंद्रमा और अन्य आकाशीय पिंडों से प्रभावित होता है। लगभग 1.4 बिलियन वर्ष पहले, चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब था, जिसके परिणामस्वरूप दिन काफी छोटे होते थे, जो केवल 18 घंटे और 41 मिनट के होते थे। आज एक दिन 24 घंटे का होता है, और चंद्रमा की क्रमिक दूरी के कारण यह बढ़ता रहता है। 
    • चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव ज्वारीय बल बनाता है जो पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित कर सकता है। ये ज्वारीय प्रभाव आमतौर पर समय के साथ ग्रह के घूर्णन को धीरे-धीरे धीमा करने में योगदान करते हैं। 
  • पृथ्वी की आंतरिक गतिशीलता: पृथ्वी के मेंटल और कोर के भीतर की हलचलें घूर्णन गति को प्रभावित कर सकती हैं। इनमें आंतरिक कोर के झुकाव में परिवर्तन या कोर घनत्व में उतार-चढ़ाव शामिल हैं।

पृथ्वी के घूर्णन की गति धीमी होने के क्या निहितार्थ हैं?

  • लीप सेकंड: पृथ्वी का घूर्णन परमाणु घड़ियों को सौर समय के साथ सिंक्रनाइज़ करने के लिये लीप सेकंड की आवश्यकता को प्रभावित करता है।
    • घूर्णन में मंदी के कारण लीप सेकंड को जोड़ना आवश्यक हो सकता है, जो सटीक समय-निर्धारण पर निर्भर प्रणालियों को प्रभावित करता है।
    • यह समायोजन प्रौद्योगिकी में समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जैसे नेटवर्क आउटेज या डेटा टाइमस्टैम्प में विसंगतियाँ।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS): GPS उपग्रह सटीक समय माप पर निर्भर करते हैं। पृथ्वी के घूमने में बदलाव GPS सिस्टम की सटीकता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे नेविगेशन और स्थान सेवाओं में संभावित रूप से छोटी-मोटी त्रुटियाँ हो सकती हैं।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि: ध्रुवीय हिम के पिघलने से द्रव्यमान का पुनर्वितरण समुद्र के स्तर में परिवर्तन में योगदान देता है। पृथ्वी के घूर्णन में मंदी से महासागरीय धाराएँ प्रभावित हो सकती हैं, जिसमें ग्लोबल मीन ओशन सर्कुलेशन (GMOC) भी शामिल है, जो संभावित रूप से क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर सकता है और समुद्र के स्तर में वृद्धि से संबंधित मुद्दों को बढ़ा सकता है।
    • GMOC एक बड़े पैमाने की प्रणाली है जो विश्व के महासागरों में जल, गर्मी और पोषक तत्त्वों को ले जाती है। यह क्षेत्रों के बीच गर्मी को पुनर्वितरित करके वैश्विक जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से द्रव्यमान का पुनर्वितरण समुद्र के स्तर में परिवर्तन में योगदान देता है। पृथ्वी के घूर्णन में मंदी समुद्री धाराओं को प्रभावित कर सकती है और संभावित रूप से क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर सकती है जिससे समुद्र के स्तर में वृद्धि से संबंधित समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
  • भूकंप और ज्वालामुखी गतिविधि: यद्यपि पृथ्वी के घूर्णन और द्रव्यमान वितरण में कम प्रत्यक्ष परिवर्तन विवर्तनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
    • घूर्णन में परिवर्तन से भू-पर्पटी में तनाव वितरण पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से भूकंपीय और ज्वालामुखीय गतिविधियाँ हो सकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन साक्ष्य: यह घटना जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभाव की ओर संकेत करता है, जो न केवल मौसम के पैटर्न और समुद्र के स्तर को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पृथ्वी के घूर्णन की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर रहा है।

पृथ्वी की गतियाँ और उनके प्रभाव क्या हैं?

  • पृथ्वी का घूर्णन: पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक चलने वाली एक काल्पनिक रेखा है। यह घूर्णन पश्चिम से पूर्व की ओर होता है।
    • एक चक्कर पूरा करने में इसे लगभग 24 घंटे लगते हैं जिसके परिणामस्वरूप दिन और रात का चक्र चलता है।
    • प्रभाव:
      • पुरस्सरण (Precession): इसमें पृथ्वी की घूर्णन अक्ष में कंपन होता है, जिससे स्थिर तारों के सापेक्ष इसकी दिशा बदल जाती है।
        • पुरस्सरण मौसम के समय और तीव्रता को प्रभावित करता है। वर्तमान में, उत्तरी गोलार्द्ध में पेरिहेलियन/उपसौर के दौरान सर्दी और अपहेलियन/अपसौर के दौरान गर्मी का अनुभव होता है। लगभग 13,000 वर्षों में ये स्थितियाँ परिवर्तित हो जाएँगी जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियाँ ठंडी और गर्मियाँ गर्म हो जाएँगी।
      • कोरिओलिस प्रभाव: घूर्णन के कारण पवन और समुद्री धाराएँ प्रभावित होती हैं, जिससे कोरिओलिस बल के कारण वे उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं।
      • टाइम ज़ोन: विभिन्न क्षेत्रों में सूर्योदय और सूर्यास्त अलग-अलग समय पर होता है, जिसके कारण टाइम ज़ोन का निर्धारण आवश्यक हो जाती है।
      • प्रदीप्ति वृत्त: पृथ्वी के दिन और रात के पक्षों को विभाजित करने वाली सीमा रेखा को प्रदीप्ति वृत्त के रूप में जाना जाता है।
  • पृथ्वी की परिक्रमा: पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 365 दिन, 6 घंटे, 9 मिनट में 29.29 से 30.29 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से परिक्रमा करती है। अतिरिक्त 6 घंटे, 9 मिनट के परिणामस्वरूप प्रत्येक चार वर्ष में एक अतिरिक्त दिन की गणना और निर्धारण की जाती है, जिसे 29 फरवरी के साथ लीप वर्ष के रूप में नामित किया जाता है।
    • प्रभाव:
      • ऋतुएँ: सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा के सापेक्ष पृथ्वी की धुरी के नमन/झुकाव के परिणामस्वरूप पूरे वर्ष सूर्य के प्रकाश के अलग-अलग कोण होते हैं, जिससे चार मौसम बनते हैं: वसंत, ग्रीष्म, शरद/हेमंत और सर्दी।
      • अयनांत: ग्रीष्म अयनांत (21 जून के आसपास) और शीत अयनांत (21 दिसंबर के आसपास) क्रमशः वर्ष के सबसे लंबे और सबसे छोटे दिन होते हैं।
      • विषुव: वसंत विषुव (21 मार्च के आसपास) और शरद विषुव (23 सितंबर के आसपास) में दिन-समय और रात्रि-समय की लंबाई लगभग बराबर होती है।
      • अक्षीय नमन/झुकाव: पृथ्वी की धुरी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा के लंबवत, ऊर्ध्वाधर से 23.5 डिग्री पर झुकी हुई है। यह अक्षीय झुकाव, जिसे तिर्यकता/तिरछापन भी कहा जाता है, कक्षीय तल के साथ 66.5 डिग्री का कोण बनाता है। यह झुकाव, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा के साथ मिलकर दिन और रात की लंबाई को प्रभावित करता है जो मौसमों में परिवर्तन लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पृथ्वी की घूर्णन गतिकी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. अलग-अलग ऋतुओं में दिन-समय और रात्रि-समय के विस्तार में विभिन्नता किस कारण से होती है?  (2013) 

(a) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन
(b) पृथ्वी का, सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय रीति से परिक्रमण
(c) स्थान की अक्षांशीय स्थिति
(d) पृथ्वी का नत अक्ष पर परिक्रमण

उत्तर: (d)

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