भारतीय समाज
मलयालम फिल्म उद्योग पर हेमा समिति की रिपोर्ट
- 22 Aug 2024
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:हेमा समिति की रिपोर्ट, रोज़गार, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013, साइबर खतरे, गोपनीयता, भारतीय न्याय संहिता, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम- 2012, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) मेन्स के लिये:कार्यस्थल पर यौन शोषण की व्यापकता और प्रभाव तथा उनका निवारण। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मलयालम फिल्म उद्योग पर हेमा समिति की रिपोर्ट ज़ारी की गई। इसमें मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के साथ यौन शोषण, लैंगिक भेदभाव और अमानवीय व्यवहार के चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं।
- इसका नेतृत्व केरल उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. हेमा ने किया, जिसमें अनुभवी अभिनेत्री शारदा और सेवानिवृत्त IAS अधिकारी के. बी. वलसा कुमारी शामिल थे।
रिपोर्ट में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- यौन शोषण: इसमें काम शुरू करने से पहले ही अवांछित शारीरिक प्रस्ताव, बलात्कार की धमकी, समझौता करने को लेकर सहमत होने वाली महिलाओं के लिये कोड नाम और अन्य शर्मनाक कृत्य शामिल हैं।
- कास्टिंग काउच: रिपोर्ट से ‘कास्टिंग काउच’ की सर्वव्यापकता का पता चलता है, जहाँ महिलाओं पर प्रायः रोज़गार की संभावनाओं के लिये यौन संबंधों के लिये मजबूर किया जाता है।
- निर्देशक तथा निर्माता प्रायः महिला अभिनेत्रियों को समझौता करने के लिये मजबूर करते हैं और जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें ‘सहयोगी कलाकार’ कहा जाता है।
- दुर्व्यवहार करने वालों के साथ काम करने के लिये महिलाओं को मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गंभीर भावनात्मक आघात सहना पड़ता है।
- कास्टिंग काउच मनोरंजन उद्योग में नौकरी के आवेदक से रोज़गार, मुख्य रूप से अभिनय भूमिकाओं के बदले में यौन संबंधों की मांग की प्रथा का एक पर्याय है।
- फिल्म सेट पर सुरक्षा: फिल्म उद्योग में व्याप्त प्रायः यौन संबंधों की मांग और उत्पीड़न के डर से कई महिला फिल्म कर्मी अपने माता-पिता या करीबी रिश्तेदारों को सेट पर लाती हैं।
- आपराधिक प्रभाव: रिपोर्ट से पता चलता है कि मलयालम फिल्म उद्योग आपराधिक प्रभाव से ग्रस्त है।
- फिल्म जगत के कई पुरुष कभी-कभी शराब या ड्रग्स के प्रभाव में महिला कलाकारों के होटलों के दरवाज़े खटखटाते हैं, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती है।
- परिणामों का भय: यद्यपि ऐसे अपराध भारतीय दंड संहिता और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत दंडनीय हैं, लेकिन फिल्म उद्योग से जुड़ी महिलाएँ औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के परिणामों को लेकर चिंतित रहती हैं।
- यौन उत्पीड़न से जुड़ा कलंक, विशेष रूप से सार्वजनिक हस्तियों के लिये, अक्सर अभिनेताओं को ऐसी घटनाओं की शिकायत करने से रोकता है।
- साइबर धमकी: सिनेमा के क्षेत्र में ऑनलाइन उत्पीड़न महिलाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गया है, जिसमें महिला और पुरुष दोनों कलाकारों को साइबर धमकी, सार्वजनिक धमकी एवं मानहानि का सामना करना पड़ रहा है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अश्लील टिप्पणियों, छवियों और वीडियो के लिये माध्यम बन गए हैं, जहाँ महिला कलाकारों को धमकी भरे संदेशों के साथ विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है।
- अपर्याप्त सुविधाएँ: महिला कलाकार अक्सर शौचालय की अपर्याप्त सुविधाओं के कारण सेट पर पानी पीने से परहेज करती हैं, विशेषकर बाहरी स्थानों पर।
- मासिक धर्म के दौरान स्थिति और भी खराब हो जाती है, जब महिला कलाकारों को अपने सैनिटरी उत्पादों को बदलने या निपटाने में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।
- अमानवीय कार्य परिस्थितियाँ: जूनियर कलाकारों को उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। कुछ मामलों में जूनियर कलाकारों के साथ ‘गुलामों से भी बदतर व्यवहार’ किया जाता है, जहाँ उनसे 19 घंटे तक काम करवाया जाता है। बिचौलिये उनके भुगतान का एक बड़ा हिस्सा हड़प लेते हैं, जो समय पर नहीं दिया जाता।
फिल्म उद्योग में यौन शोषण से निपटने के लिये कानूनी ढाँचा क्या है?
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (जिसे अब भारतीय न्याय संहिता के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है): धारा 354 (महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला या फिर अनुचित बल-प्रयोग करता है), 354A (यौन उत्पीड़न) और 509 (महिला की शील भंग करने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य) यौन अपराधों से संबंधित हैं।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: यह कानून यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिये कार्यस्थलों पर आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना को अनिवार्य बनाता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: आईटी अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण को नियंत्रित करता है, जिसमें फिल्मों में डिजिटल सामग्री शामिल हो सकती है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों को यौन शोषण और दुर्व्यवहार से बचाता है, जिसमें फिल्मे भी शामिल है।
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA): इस अधिनियम का उद्देश्य वाणिज्यिक यौन शोषण के लिये तस्करी को रोकना है।
कास्टिंग काउच
- "कास्टिंग काउच" शब्द मनोरंजन उद्योग में एक ऐसी प्रथा को संदर्भित करता है, जिसमें व्यक्तियों, आम तौर पर महिलाओं से रोज़गार के अवसरों, विशेष रूप से अभिनय भूमिकाओं के बदले में शारीरिक समझौता करने की अपेक्षा की जाती है।
- इस अनैतिक और शोषणकारी प्रथा में निर्देशक, निर्माता या कास्टिंग एजेंट जैसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा महत्त्वाकांक्षी अभिनेताओं को समझौता करने वाली स्थितियों में धकेलने या दबाव डालने के लिये अपने अधिकार का दुरुपयोग किया जाता है।
- यह शब्द फिल्म, टेलीविजन और व्यापक मनोरंजन उद्योगों में कास्टिंग प्रक्रिया में होने वाले सत्ता के दुरुपयोग और शोषण पर प्रकाश डालता है।
रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें क्या हैं?
- आंतरिक शिकायत समिति (ICC): इसने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की अनिवार्य स्थापना का प्रस्ताव रखा।
- इसमें केरल फिल्म कर्मचारी संघ (FEFKA) और मलयालम मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (AMMA) के सदस्य शामिल होने चाहिये।
- स्वतंत्र न्यायाधिकरण का प्रस्ताव: कुछ सदस्यों ने सिनेमा उद्योग में उत्पीड़न और भेदभाव के मामलों को संभालने हेतु एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण का समर्थन किया ।
- रिपोर्ट में न्यायाधिकरण में बंद कमरे में कार्यवाही की भी वकालत की गई है ताकि पूरी गोपनीयता सुनिश्चित की जा सके और मीडिया रिपोर्टों से नाम गुप्त रखे जाएँ।
- लिखित अनुबंध: सिनेमा में कार्य करने वाले सभी लोगों के हितों की रक्षा के लिये जूनियर कलाकारों के संयोजकों सहित सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के लिये लिखित अनुबंध पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- लैंगिक जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम: यह अनिवार्य किया जाना चाहिये कि सभी कलाकार और क्रू सदस्य निर्माण कार्य शुरू करने से पहले एक मौलिक लैंगिक जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लें।
- प्रशिक्षण सामग्री मलयालम और अंग्रेज़ी दोनों में बनाई जा सकती है तथा इसे ऑनलाइन भी उपलब्ध कराया जा सकता है।
- निर्माता की भूमिका में महिलाएँ: विषयगत रूप से और निर्माण प्रक्रिया में लैंगिक न्याय पर आधारित फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिये पर्याप्त और समय पर बजटीय सहायता उपलब्ध होनी चाहिये।
- महिलाओं द्वारा निर्मित फिल्मों (पुरुषों के प्रतिनिधि नहीं) के लिये नाममात्र ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने और शूटिंग हेतु अनुमति को सुव्यवस्थित करने के लिये एकल खिड़की प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये। इससे उत्पादन सरल होगा तथा और अधिक महिलाओं को फिल्म उद्योग में प्रवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: मनोरंजन उद्योग के विशेष संदर्भ में भारत में महिलाओं के यौन शोषण के मुद्दे पर चर्चा कीजिये। कार्यस्थल पर यौन शोषण के बढ़ते मामलों को देखते हुए इनका निवारण कैसे किया जा सकता है? |
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