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भारतीय अर्थव्यवस्था

G20 श्रम और रोज़गार मंत्रियों की बैठक

  • 24 Jun 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

G20

मेन्स के लिये:

महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थिति से संबंधित मुद्दे एवं सुधार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री (Union Minister for Labour and Employment) ने कहा है कि भारत श्रम बल की भागीदारी में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिये सामूहिक प्रयास कर रहा है।

  • वह G20 श्रम और रोजगार मंत्रियों की बैठक में घोषणा और रोज़गार कार्य समूह की प्राथमिकताओं पर बैठक को संबोधित कर रहे थे।

G20

  • G20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि, यूरोपियन संघ एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
  • G20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्त्व करता है
  • सदस्य: इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु:

बैठक में चर्चित मुद्दे:

  • रोजगार कार्य समूह ने महिला रोज़गार, सामाजिक सुरक्षा और दूरस्थ कार्य सहित प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। 
    • वर्ष 2014 में G20 नेताओं ने ब्रिस्बेन में वर्ष 2025 तक पुरुषों और महिलाओं के बीच श्रम शक्ति भागीदारी दर में अंतर को 25% तक कम करने का संकल्प लिया, जिसका उद्देश्य 100 मिलियन महिलाओं को श्रम क्षेत्र में लाना, वैश्विक एवं समावेशी विकास को बढ़ाना और गरीबी एवं असमानता को कम करना था। ।

भारत द्वारा हाइलाइट की गई पहल:

  • शैक्षिक और कौशल प्रयास (Educational and Skilling Efforts):
    • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020: 
      • इसका उद्देश्य स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणालियों में सुधार करना है।
      • भारत, पूर्वस्कूली से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लये अपने शैक्षिक और कौशल प्रयासों को मज़बूत कर रहा है।
    • राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन:
      • इसका उद्देश्य कौशल प्रशिक्षण गतिविधियों के संदर्भ में सभी क्षेत्रों और राज्यों को केंद्रबिंदु बनाना है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना:
      • एक कौशल प्रमाणीकरण कार्यक्रम जिसके अंतर्गत एक बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं एवं युवतियों को उद्योग-अनुरूप कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा जो उन्हें बेहतर जीविका सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगा।
    • दीक्षा (DIKSHA), स्वयं (SWAYAM) जैसे विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म पर डिजिटल शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई गई है।
  • रोजगार सृजन के लिये:
    • आत्मानिर्भर भारत रोज़गार योजना:
      • सरकार नए कर्मचारियों के साथ-साथ महामारी में अपनी नौकरी खो चुके लोगों के लिये EPF योगदान हेतु 24% तक वेतन का भुगतान कर रही है तथा उन्हें फिर से नियोजित किया जा रहा है।
  • महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये:
    • नई श्रम संहिता 2019:
      • यह वेतन, भर्ती और रोजगार की शर्तों में लिंग आधारित भेदभाव को कम करेगा।
    • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
      • यह महिला उद्यमियों को लघु उद्यम शुरू करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
      • इस योजना के तहत अब तक कुल 9 लाख करोड़ रुपये के संपार्श्विक मुक्त ऋण वितरित किये गए हैं।
      • इस योजना के अंतर्गत लगभग 70% महिलाएँ हैं।
    • नई सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020:
      • इसमें अब स्व-नियोजित तथा अन्य सभी वर्ग के कार्यबल को भी सामाजिक सुरक्षा कवरेज के दायरे में शामिल किया जा सकता है।
    • अन्य:
      • महिलाएँ अब रात के समय भी काम कर सकती हैं तथा सवैतनिक मातृत्व अवकाश (Maternity Leave)  की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई है।

ब्रिस्बेन लक्ष्य की ओर तथा उससे आगे G20 रोडमैप:

  • इसे श्रम बाजारों के साथ-साथ सामान्य रूप से समाजों में महिलाओं और पुरुषों हेतु समान अवसर तथा  परिणाम प्राप्त करने के लिये विकसित किया गया है। 
  • ब्रिस्बेन लक्ष्य की ओर तथा उससे आगे G20 रोडमैप को इस प्रकार निर्धारित किया गया है:
    • महिलाओं के रोज़गार की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि करना।
    • समान अवसर सुनिश्चित करना और श्रम बाजार में बेहतर परिणाम प्राप्त करना।
    • सभी क्षेत्रों और व्यवसायों में महिलाओं और पुरुषों के समान वितरण को बढ़ावा देना।
    • लैंगिक वेतन अंतर से निपटना। 
    • महिलाओं तथा पुरुषों के बीच भुगतान और अवैतनिक काम के अधिक संतुलित वितरण को प्रोत्साहित करना।
    •  श्रम बाजार में भेदभाव और लैंगिक रुढ़िबद्धता का समाधान करना।

श्रम बल भागीदारी

  • श्रम बल भागीदारी दर कार्यशील आयु के सभी लोगों के प्रतिशत को इंगित करती है जो कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं।
  • भारत महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने के लिये प्रयासरत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुमानों के अनुसार, 2019 में, कोविड -19 महामारी से पूर्व भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी 23.5% थी।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण(PLFS), 2018-19 के अनुसार, भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) ग्रामीण क्षेत्रों में 26.4% और शहरी क्षेत्रों में 20.4% है।

महिला श्रम बल की भागीदारी में बाधाएँ

  • समाज में रूढ़िबद्धता: भारत के सामाजिक मानदंड ऐसे हैं कि महिलाओं से परिवार की देखभाल और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी की आशा की जाती है। यह रूढ़िवादिता  महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
    • इससे महिलाएँ काम के लिये समय के आवंटन को लेकर लगातार संघर्ष करती हैं और यह  उनके लिये जीवन संघर्ष की लड़ाई होती है।
  • डिजिटल अंतराल: भारत में वर्ष 2019 में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं में 67% पुरुष और 33% महिलाएँ थी तथा  यह अंतराल ग्रामीण क्षेत्रों में और भी अधिक है।
    • यह अंतराल महिलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं तक पहुँचने या उन गतिविधियों या क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में एक बाधा बन सकता है जो अधिक डिजिटलाइज़ हो रहे हैं।
  • तकनीकी व्यवधान: महिलाएँ अधिकांश प्रशासनिक और डेटा-प्रसंस्करण क्षेत्रों में भूमिकाएँ निभाती हैं, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा अन्य तकनीकों के प्रचलन से अधिक प्रभावित होंगे।
    • जैसे-जैसे नियमित नौकरियाँ स्वचालित होंगी, महिलाओं पर दबाव और बढ़ेगा तथा वे उच्च बेरोज़गारी दर से प्रभावित हो सकती हैं।
  • लैगिक-संबंधित डेटा का अभाव: वैश्विक स्तर पर लैंगिक डेटा में प्रमुख अंतराल और प्रचलित डेटा की कमी के कारण प्रगति की निगरानी करना मुश्किल हो जाता है।
    • भारत में भी बालिकाओं के आँकड़ों में महत्त्वपूर्ण अंतराल लड़कियों के जीवन के व्यवस्थित अनुदैर्ध्य मूल्यांकन (Longitudinal Assessment) को प्रभावित करता है।
  • कोविड-19 का प्रभाव: कोविड-19 के कारण वैश्विक महिला रोज़गार पुरुष रोज़गार (ILO अनुमान) की तुलना में 19% अधिक जोखिम में है।

आगे की राह:

  • महिलाओं के लिये काम के अवसर कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। विभिन्न क्षेत्रों और व्यवसायों में रोज़गार तक पहुँच को बढ़ावा देने, विविध क्षेत्रों में निवेश और विशेष रूप से ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में परिवहन, आवास, स्वच्छता सुविधाओं, रोशनी एवं बुनियादी ढाँचे के समर्थन के लिये नीति निर्माण की आवश्यकता है। 
  • महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करना एक व्यापक गतिशील अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है, महिलाओं की आर्थिक भूमिका को बढ़ा सकता है और इसलिये विकास के लाभों को अधिक समावेशी रूप से वितरित कर सकता है।

स्रोत: PIB

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