ईरान का गिरता रुपया रिज़र्व | 08 Mar 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय व्यापारियों ने ईरान के रुपए के घटते भंडार पर सावधानी बरतते हुए ईरानी खरीदारों के साथ नए निर्यात अनुबंधों पर हस्ताक्षर करना लगभग बंद कर दिया है।
- इससे पहले वर्ष 2020 में भारतीय विदेश मंत्रालय ने सूचित किया था कि अब वह ईरान की फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र परियोजना (Farzad-B Gas field Project) में शामिल नहीं है। इसका कारण ईरानी सरकार द्वारा नीतिगत परिवर्तन, ईरान के अनिश्चित वित्त और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों (USA sanctions) को बताया गया था।
- ईरान ने वर्ष 2020 में एक विधेयक पारित किया, जिसके अनुसार ईरानी मुद्रा रियाल (Rial) में चार स्लैब अर्थात चार शून्य तक की कटौती की गई। इस विधेयक से ईरान की वर्तमान मुद्रा रियाल को बदलकर तोमान (Toman) किया गया।
प्रमुख बिंदु
गिराता हुआ रिज़र्व:
- ईरान का रुपया भारत के UCO और IDBI बैंक में आरक्षित है, ये दोनों बैंक रुपया व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये अधिकृत हैं।
रिज़र्व में गिरावट का कारण:
- ईरान तेल की बिक्री के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों से अमेरिकी डॉलर का उपयोग करने में असमर्थ है।
- ईरान ने पहले रुपए के बदले भारत को तेल बेचने के लिये एक सौदा किया था, जिसका उपयोग उसने कृषि वस्तुओं सहित महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का आयात करने हेतु किया, लेकिन भारत ने मई 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों की समय सीमा समाप्त होने के बाद से तेहरान का तेल खरीदना बंद कर दिया।
- ईरान ने भारत से सामान खरीदने हेतु अपने रुपए का उपयोग जारी रखा, लेकिन ईरान के कच्चे तेल की बिक्री 22 महीने तक नहीं होने से उसके रुपए के भंडार में गिरावट आई है।
- ईरान का भंडार काफी कम हो गया है और जल्द ही खत्म हो जाएगा क्योंकि इसका व्यापार बंद हो गया है।
निहितार्थ:
- निर्यातकों की आशंका:
- निर्यातकों को विश्वास नहीं है कि उन्हें नए शिपमेंट के लिये समय पर भुगतान किया जाएगा और वे ईरान से भुगतान में देरी होने के कारण समझौता करने से बच रहे हैं।
- भारतीय निर्यात में गिरावट:
- भारत द्वारा ईरान को किया जाना वाला समग्र निर्यात वर्ष 2020 में 42% गिरकर एक साल पहले 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर गो गया, जो एक दशक में सबसे कम था।
- वर्ष 2021 में भी गिरावट जारी है और इस साल जनवरी में एक साल पहले की तुलना में निर्यात घटकर 100.20 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- चीन का बढ़ता प्रभाव:
- हाल ही में ईरान और चीन के बीच हस्ताक्षरित समझौते से बैंकिंग, दूरसंचार, बंदरगाह, रेलवे आदि परियोजनाओं में चीनी की उपस्थिति का ईरान में विस्तार होगा।
- भारत के हितों की सुरक्षा:
- भारत के 400 अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते को चीन और ईरान के बीच हुआ रणनीतिक समझौता बाधित कर सकती है, जिसके अंतर्गत भारत चाबहार (Chabahar) बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान और फिर अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (International North South Transportation Corridor) से तथा जुड़ना चाहता है, हालाँकि ईरान द्वारा अभी तक इन परियोजनाओं से अलग होने का कोई संकेत नहीं दिया गया है।
- भारत की क्षेत्र में भूमिका:
- भारत द्वारा ईरान से संबंध बनाये रखना, सऊदी अरब और इज़रायल के साथ-साथ पश्चिम एशिया में अपनी संतुलन नीति को बनाये रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
- सांप्रदायिक तनाव से बचना:
- भारत में शिया और सुन्नी दोनों मुसलमानों की बड़ी संख्या रहती है, जिससे भारत इस क्षेत्र में किसी भी सांप्रदायिक तनाव से खुद को अलग करना चाहता है। अतः भारत को ईरान के साथ ना तो पूरी तरह से नाता तोड़ना चाहिये और ना ही अमेरिका की खुलकर आलोचना करनी चाहिये।
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा:
- भारत इस्लामिक राष्ट्र से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
- भारत वर्ष 2018 के मध्य तक चीन के बाद ईरान से तेल आयात करने वाला प्रमुख देश था।
- भारत इस्लामिक राष्ट्र से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
- शांतिपूर्ण अफगानिस्तान:
- भारत, अफगानिस्तान में निवेश करने वाला एक प्रमुख देश है, इसलिये वह अफगानिस्तान में निर्वाचित, लोकतांत्रिक, संप्रभु और शांतिपूर्ण व्यवस्था चाहता है।
- भारत, अफगानिस्तान के पड़ोस में विकसित हो रहे ईरान - पाकिस्तान - चीन धुरी को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में देख रहा है जहाँ आतंकवादियों को शरण दी जाएगी।
- पाकिस्तान का प्रभाव:
- पाकिस्तान की सक्रियता मध्य-पूर्व (Middle-East) में अधिक है। वह इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर और अरब देशों के साथ संबंध बनाकर कश्मीर मुद्दे पर उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
आगे की राह
- भारत सरकार का वर्ष 2019 में ईरान से तेल आयात को रोकने का निर्णय भारत-अमेरिका संबंधों को देखते हुए लिया गया था, लेकिन भारत को आज एक ऐसे मार्ग की ज़रूरत है जिस पर चल कर वह या तो अमेरिका से ईरान से व्यापार को बनाये रखने पर छूट प्राप्त कर ले या फिर उसके प्रतिबंधों को दरकिनार करके अपनी ऊर्जा जरूरतों तथा क्षेत्रीय विदेश नीति के उद्देश्यों को देखते हुए ईरान के साथ अपना व्यापार जारी रखे जैसा कि वर्ष 2012-13 में किया गया था।
- भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये मध्य पूर्व के तेल और गैस पर अत्यधिक निर्भर है। अतः इसे ईरान, यूएई, कतर और सऊदी अरब के साथ-साथ इराक सहित प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिये।