रेलवे सुरक्षा सुनिश्चित करना | 21 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

रेलवे अवसंरचना, कवच, राष्ट्रीय रेल योजना, मूल्यह्रास आरक्षित निधि, अतिरिक्त बजटीय संसाधन, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, नीति आयोग, हाई स्पीड रेल गलियारे, रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष, भारतीय रेलवे अवसंरचना प्राधिकरण, रेलवे दुर्घटना जाँच बोर्ड, रेलवे अवसंरचना कंपनी, काकोडकर समिति

मेन्स के लिये:

रेलवे सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेलवे जोनों में दुर्घटनाओं में होने वाली वृद्धि के बाद सरकार ने उन्हें रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित किया है।

रेल दुर्घटनाओं की क्या स्थिति है?

  • दशकीय स्तर पर कमी: 1960 के दशक में रेल दुर्घटनाओं की संख्या काफी अधिक (वार्षिक औसत 1,390) थी
    • पिछले दशक में यह संख्या घटकर प्रतिवर्ष लगभग 80 दुर्घटनाओं तक सीमित हो गई, जो सुरक्षा उपायों और परिचालन दक्षता में उल्लेखनीय सुधार का संकेत है।
  • परिणामी दुर्घटनाओं में हालिया रुझान: समग्र दुर्घटनाओं में कमी के बावजूद वर्ष 2021-2022 में 34, 2022-2023 में 48 और 2023-2024 में 40 परिणामी दुर्घटनाएँ हुईं
    • परिणामी दुर्घटना से लोग घायल हो जाते हैं और/या इनकी मृत्यु हो जाती है तथा रेलवे के बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचने के साथ रेल यातायात बाधित होता है।
  • दुर्घटनाओं के प्राथमिक कारण: सार्वजनिक रिकॉर्ड के अनुसार, रेलगाड़ियों से जुड़ी सभी दुर्घटनाओं में से 55.8% रेलवे कर्मचारियों की गलती के कारण और 28.4% अन्य लोगों की गलती के कारण हुई हैं। इसमें उपकरणों की विफलता 6.2% दुर्घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार है।
  • प्रमुख दुर्घटनाओं में सिग्नलिंग विफलता: बालासोर (2023) और कावराईपेट्टई (2024) जैसी रेल दुर्घटनाओं के लिये सिग्नलिंग प्रणाली की विफलता को ज़िम्मेदार ठहराया गया।

रेलवे दुर्घटनाओं के क्या कारण हैं?

  • अपर्याप्त सुरक्षा प्रौद्योगिकियाँ: कवच में स्वचालित ब्रेक लगाने और अलर्ट जारी करके टकरावों को रोकने की क्षमता है लेकिन इसके सीमित उपयोग से यह बड़े पैमाने पर अप्रभावी बनी हुई है।
    • फरवरी 2024 तक रेलवे द्वारा अनुमानतः 1,465 किमी मार्ग या अपने कुल मार्ग की लंबाई के 2% पर 'कवच' प्रणाली को शामिल किया गया। 
  • सिग्नलिंग प्रणाली की विफलता: दोषपूर्ण सिग्नलिंग प्रणाली के कारण कुछ बड़ी दुर्घटनाएँ हुई हैं, जिनमें बालासोर और कवराईपेट्टई की दुर्घटनाएँ भी शामिल हैं।
    • वर्ष 1990-1991 से रेलवे ने सभी बड़ी दुर्घटनाओं में से लगभग 70% को सिग्नलिंग त्रुटियों के कारण होने वाली रेल दुर्घटनाओं के रूप में वर्गीकृत किया है।
  • नेटवर्क भीड़भाड़: रेलवे नेटवर्क पर अधिक भीड़भाड़ को प्रमुख सुरक्षा मुद्दे के रूप में रेखांकित किया गया है। 
    • राष्ट्रीय रेल योजना के मसौदे के अनुसार, रेलवे नेटवर्क के लगभग 30% हिस्से का 100% से अधिक क्षमता पर उपयोग किया जा रहा है, जिससे सुरक्षा जोखिम बढ़ रहा है। 
  • अपर्याप्त ट्रैक रखरखाव: रेलवे के मौजूदा उपकरणों को बेहतर बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है, जिसमें पटरियों को बदलना एवं ट्रैक के किनारे बुनियादी ढाँचे को बनाए रखना शामिल है। 
    • लेकिन वर्ष 2023-2024 के बजट में ट्रैक नवीनीकरण के लिये पूंजीगत परिव्यय घटकर 7.2% रह गया।
    • वर्ष 2014-19 के बीच मूल्यह्रास आरक्षित निधि के लिये विनियोजन में भी 96% की गिरावट आई है।
  • उच्च परिचालन अनुपात: वर्ष 2024-2025 में परिचालन अनुपात (OR) 98.2 रुपए होने का अनुमान है, जो वर्ष 2023-2024 (98.7 रुपए) से थोड़ा सुधार दर्शाता है, लेकिन वर्ष 2016 के 97.8 रुपए से गिरावट दर्शाता है।
    • उच्च OR से पूंजीगत व्यय के लिये कम धन बचता है और रेलवे को बजटीय सहायता और अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (EBRs) पर अधिक निर्भर बनाता है। 
    • इस वित्तीय तनाव के परिणामस्वरूप सुरक्षा उन्नयन और बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण हो रहा है।
    • OR वह राशि है जो रेलवे को 100 रुपए अर्जित करने पर खर्च करनी होती है। 
  • धीमा बुनियादी ढाँचा विकास: सरकार ने वर्ष 2005 में जिन डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) की योजना बनाई थी, उनमें से केवल पूर्वी DFCs ही पूरी तरह से संचालित है। 
    • पश्चिमी DFCs आंशिक रूप से ही तैयार हैं; पूर्वी तट, पूर्व-पश्चिम उप-गलियारा और उत्तर-दक्षिण उप-गलियारा DFCs (जिनकी लंबाई 3,958 किमी है) अभी भी योजना के अंतर्गत हैं।  
    • बुनियादी ढाँचे की मांग और आपूर्ति में ऐसा अंतर सुरक्षा समस्या को और जटिल बना देता है।
  • घाटे की भरपाई: नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2009-2019 में माल ढुलाई दरों में यात्री दरों की तुलना में तीन गुना से अधिक तेज़ी से वृद्धि हुई, लेकिन रेलवे का माल ढुलाई लाभ यात्री घाटे से काफी हद तक संतुलित हो जाता है।
    • वर्ष 2019-20 में यात्री सेवाओं से राजस्व 50,000 करोड़ रुपए से थोड़ा अधिक था और घाटा 63,364 करोड़ रुपए था।
  • कार्य की लंबी अवधि: रेलवे दुर्घटनाओं (विशेषकर सिग्नल पास्ड एट डेंजर (SPAD) के मामलों) का एक प्रमुख कारण लोको पायलटों द्वारा लंबे समय तक कार्य करना है। 
    • जनशक्ति की कमी के कारण उन्हें 12 घंटे की ड्यूटी सीमा से अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।

रेलवे सुरक्षा बढ़ाने के लिये विभिन्न समितियों ने क्या सिफारिशें की हैं?

  • राकेश मोहन समिति (2010):
  • काकोदकर समिति (2012):
  • बिबेक देबरॉय समिति (2014): 
  • विनोद राय समिति (2015):
    • वैधानिक शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना
    • निष्पक्ष जाँच के लिये रेलवे दुर्घटना जाँच बोर्ड का गठन करना 
    • रेलवे परिसंपत्तियों के स्वामित्व और रखरखाव के लिये एक अलग रेलवे अवसंरचना कंपनी की स्थापना करना

रेलवे सुरक्षा के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?

रेलवे दुर्घटनाओं को रोकने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • लोको पायलट की रिक्तियों को भरना: भारतीय रेलवे में लगभग 18,799 लोको पायलट की रिक्तियाँ हैं। पायलटों को अधिक कार्य करने से रोकने और तनाव एवं थकावट से होने वाली गलतियों को कम करने के लिये इन पदों को भरने की आवश्यकता है।
  • 'कवच' नामक टक्कर रोधी प्रणाली लागू करना: रेलवे को भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिये अधिक मार्गों (विशेषकर उच्च यातायात और उच्च जोखिम वाले मार्गों पर) पर कवच की स्थापना में तेज़ी लानी चाहिये।
  • नेटवर्क भीड़भाड़ का समाधान: डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) को प्राथमिकता देने और लंबित परियोजनाओं को पूरा करने से यातायात को अधिक सुलभ बनाने के साथ भीड़भाड़ को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • स्वतंत्र रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण: काकोदकर समिति की सिफारिश के अनुसार एक स्वतंत्र रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण बनाने से रेलवे सुरक्षा निरीक्षण के लिये अधिक विशिष्ट और स्वतंत्र दृष्टिकोण सुनिश्चित होगा।
  • कार्य समय का विनियमन: कार्य समय सीमा का सख्ती से पालन तथा यह सुनिश्चित करना कि चालक दल के सदस्यों को पर्याप्त आराम मिले, मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिये आवश्यक है।
  • सिग्नल अवसंरचना में सुधार: उन्नत सिग्नल और संचार प्रौद्योगिकियों में निवेश से सिग्नल विफलताओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संभावना में कमी आ सकती है।
  • पटरियों के किनारे बाड़ लगाना: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रेलवे पटरियों के किनारे बाड़ लगाने से मवेशियों की दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है, जो कि रेल दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
  • यात्री राजस्व में वृद्धि: यात्री किराए में विवेकपूर्ण वृद्धि या यात्री सेवाओं की दक्षता में सुधार से घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न : रेलवे सुरक्षा और परिचालन दक्षता में सुधार के लिये डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) सहित बुनियादी ढाँचे के विकास के महत्त्व का आकलन कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित संचार प्रौद्योगिकियों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. निकट -परिपथ (क्लोज़-सर्किट) टेलीविज़न
  2. रेडियो आवृत्ति अभिनिर्धारण 
  3. बेतार स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क

उपर्युक्त में कौन-सी लघु-परास युक्तियाँ/प्रौद्योगिकियाँ मानी जाती हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न: किरायों का विनियमन करने के लिये रेल प्रशुल्क प्राधिकरण की स्थापना आमदनी-बंधे (कैश स्ट्रैप्ड) भारतीय रेलवे को गैर-लाभकारी मार्गों और सेवाओं को चलाने के दायित्व के लिये सहायिकी (सब्सिडी) मांगने पर मजबूर कर देगी। विद्युत् क्षेत्र के अनुभव को सामने रखते हुए, चर्चा कीजिये कि क्या प्रस्तावित सुधार से उपभोक्ताओं, भारतीय रेलवे या निजी कंटेनर प्रचालकों को लाभ होने की आशा है। (2014)