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भारतीय राजनीति

राजनीतिक फंडिंग का प्रकटीकरण

  • 01 Dec 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, सर्वोच्च न्यायालय, चुनावी बॉण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रचार अधिनियम, यूरोपीय संघ, यूरोपीय संसद का विनियमन, राजनीतिक दल, चुनाव और ब्रिटेन का जनमत संग्रह अधिनियम, 2000, लोकतंत्र, विधि का शासन, निर्वाचन आयोग 

मेन्स के लिये:

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और चुनावी भ्रष्टाचार को रोकने के लिये राजनीतिक दान के प्रकटीकरण का महत्त्व  

स्रोत: द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों और दान के संबंध में चिंताओं के मद्देनज़र, चुनावी बॉण्ड को चुनौती पर सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई का निष्कर्ष इस चुनौती के समाधान के भारत में लोकतंत्र और विधि के शासन पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव की एक महत्त्वपूर्ण जाँच का संकेत देता है। 

राजनीतिक फंडिंग क्या है?

  • परिचय:
    • राजनीतिक फंडिंग/चंदा से तात्पर्य राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों को उनकी गतिविधियों, अभियानों और समग्र कामकाज का समर्थन करने के लिये प्रदान किये गए वित्तीय योगदान से है।
    • राजनीतिक दलों के लिये लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने, चुनाव अभियान चलाने और विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिये राजनीतिक फंडिंग महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में वैधानिक प्रावधान:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: जन प्रतिनिधित्व (RPA) अधिनियम भारत में चुनावों के संबंध में नियमों और विनियमों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें चुनाव खर्चों की घोषणा, योगदान और खातों के रखरखाव से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
    • आयकर अधिनियम, 1961: आयकर अधिनियम राजनीतिक दलों और उनके दानदाताओं के कर उपचार को नियंत्रित करता है।
      • राजनीतिक दलों को कर नियमों का पालन करना होगा और राजनीतिक दानकर्त्ता व्यक्ति या संस्थाएँ कुछ शर्तों के तहत कर लाभ के लिये पात्र हो सकते हैं।
    • कंपनी अधिनियम, 2013: कंपनी अधिनियम राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट डोनेशन को नियंत्रित करता है, एक कंपनी द्वारा योगदान की जाने वाली अधिकतम राशि निर्दिष्ट करता है और वित्तीय विवरणों में राजनीतिक योगदान का प्रकटीकरण अनिवार्य करता है।
  • राजनीतिक चंदा जुटाने के तरीके:
    • एकल व्यक्ति: RPA की धारा 29B राजनीतिक दलों को एकल व्यक्तियों से दान प्राप्त करने की अनुमति देती है, जबकि करदाताओं को 100% कटौती का दावा करने की अनुमति देती है।
    • राज्य/सार्वजनिक अनुदान: यहाँ सरकार चुनाव संबंधी उद्देश्यों के लिये पार्टियों को धन मुहैया कराती है। राज्य वित्तपोषण दो प्रकार का होता है:
      • प्रत्यक्ष धन: सरकार राजनीतिक दलों को सीधे धन प्रदान करती है। हालाँकि भारत में प्रत्यक्ष फंडिंग प्रतिबंधित है।
      • अप्रत्यक्ष फंडिंग: इसमें प्रत्यक्ष फंडिंग को छोड़कर अन्य तरीके शामिल हैं, जैसे मीडिया तक निःशुल्क पहुँच, रैलियों के लिये सार्वजनिक स्थानों पर निःशुल्क पहुँच, निःशुल्क या रियायती परिवहन सुविधाएँ। भारत में इसके विनियमन की अनुमति दी गई है।
    • कॉर्पोरेट फंडिंग: भारत में कॉर्पोरेट निकायों द्वारा दान कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
    • चुनावी बॉण्ड योजना: चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
      • वे दाता की गोपनीयता बनाए रखते हुए व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये पंजीकृत राजनीतिक दलों को फंडिंग देने के साधन के रूप में कार्य करते हैं।
    • चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013: इसे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
      • इलेक्टोरल ट्रस्ट कंपनियों द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट है जिसका एकमात्र उद्देश्य अन्य कंपनियों एवं व्यक्तियों से प्राप्त योगदान को राजनीतिक दलों में वितरित करना है।

राजनीतिक फंडिंग का प्रकटीकरण करने की आवश्यकता क्यों है? 

  • राजनीतिक फंडिंग प्रकटीकरण पर वैश्विक मानक:
    • भारत में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में चुनावी  बॉण्ड  की अनुमति देने वाले संशोधन ने राजनीतिक दानदाताओं के लिये पूर्ण अनामिता बनाए रखी है।
      • यह अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के बिल्कुल विपरीत है, जहाँ प्रचलित आवश्यकता राजनीतिक दान का पूर्ण रूप से प्रकटीकरण करना है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर के देश राजनीतिक फंडिंग विनियम में पारदर्शिता को अनिवार्य करते हैं, प्रकटीकरण की आवश्यकताएँ वर्ष 1910 से चली आ रही हैं।
    • यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2014 में यूरोपीय राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर नियम बनाए, जिसमें दान पर सीमाएँ, प्रकटीकरण आदेश एवं बड़े योगदान के लिये तत्काल रिपोर्टिंग शामिल थी।
  • राजनीतिक फंडिंग विनियमों में मौलिक आवश्यकताएँ: 
    • वैश्विक स्तर पर अधिकांश कानूनी नियम राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिये दो मूलभूत आवश्यकताओं पर सहमत हैं:
      • विशिष्ट न्यूनतम राशि से अधिक के दानदाताओं का व्यापक प्रकटीकरण तथा फंडिंग पर सीमाएँ सुनिश्चित करना।
      • इन उपायों का उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा राजनीतिक व्यवस्था एवं लोकतंत्र में जनता का विश्वास बनाए रखना है।
  • नागरिकों के विश्वास को कायम रखना:
    • राजनीतिक फंडिंग का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य है क्योंकि राजनीतिक दल प्रतिनिधि लोकतंत्र की नींव के रूप में कार्य करते हैं।
    • पारदर्शी वित्तीय खाते पार्टियों और राजनेताओं दोनों में नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने, कानून के शासन की रक्षा करने तथा चुनावी एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं के भीतर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • यह पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करता है, उन लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मज़बूत करता है जो पारदर्शिता और निष्पक्षता पर निर्भर हैं।
  • अनुचित प्रभाव की रोकथाम: 
    • प्रकटीकरण के बिना धन कुछ लोगों के लिये राजनीतिक प्रक्रिया को अनुचित रूप से प्रभावित करने का एक उपकरण बन सकता है। पारदर्शिता कॉर्पोरेट हितों को राजनीति और बड़े पैमाने पर वोट खरीदने से रोकने में सहायता प्रदान करती है।
  • समान अवसर बनाए रखना: 
    • जब एक पार्टी के पास अतिरिक्त वित्त तक पहुँच होती है उस स्थिति में न्यायसंगतता समाप्त हो जाती है। प्रकटीकरण यह सुनिश्चित करता है कि सभी पक्षों को समान अवसर प्राप्त हों।

चुनावी बॉण्ड योजना के अंर्तगत प्रकटीकरण से छूट:

  • वित्त अधिनियम, 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का प्रकटीकरण करने से छूट दी है।
  • इसका अर्थ यह है कि मतदाताओं को यह नहीं पता होगा कि किस व्यक्ति, कंपनी अथवा संगठन ने किस पार्टी को और कितनी मात्रा में फंड दिया है।
  • हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक अपना वोट उन लोगों के लिये डालते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त धन पर अद्यतन डेटा प्रदान करने का निर्देश दिया है।
  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से माना है कि "जानने का अधिकार", विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।

राजनीतिक फंडिंग में क्या सुधार आवश्यक हैं?

  • चुनावी न्याय:
    • चुनावी न्याय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है, यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन प्रक्रिया के सभी पहलू विधि के अनुरूप हों एवं निर्वाचन अधिकारों की रक्षा करें।
    • यह प्रणाली स्वतंत्र, निष्पक्ष और प्रामाणिक चुनावों को सुविधाजनक बनाने में सहायक है, जो एक सशक्त लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
  • चुनावी बॉण्ड के मुद्दों को संबोधित करना:
    • चुनावी बॉण्ड, अज्ञात दाता विवरण की अनुमति देते हुए लोकतांत्रिक पारदर्शिता तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • उन्हें संवैधानिक रूप से सुदृढ़ बनाने के अतिरिक्त इस मुद्दे का समाधान करने के किये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो वैधता से परे हो एवं निर्वाचन प्रक्रिया में पारदर्शिता के लोकतांत्रिक सार को संरक्षित करने पर केंद्रित हो।
  • रिपोर्टिंग तथा स्वतंत्र लेखापरीक्षा के लिये तंत्र:
    • इसमें एक निर्दिष्ट नाममात्र सीमा से ऊपर के दानदाताओं की पहचान तथा निर्वाचन आयोग को महत्त्वपूर्ण दान की तत्काल रिपोर्ट करना शामिल है।
    • इसमें राजनीतिक दल के खातों को प्रचारित करना, दल के खातों की स्वतंत्र ऑडिटिंग तथा फंडिंग व व्यय पर सीमा स्थापित करना भी शामिल है।
  • चुनावों का राज्य वित्तपोषण:
    • चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण, एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें सरकार राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों को निर्वाचन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • यह फंडिंग आमतौर पर सार्वजनिक संसाधनों से प्राप्त होती है एवं इसका उद्देश्य निजी दान पर निर्भरता को कम करना, राजनीतिक अभियानों में निहित स्वार्थों के संभावित प्रभाव को कम करना है।

विधिक दृष्टिकोण: चुनावी बॉण्ड मामला

https://www.drishtijudiciary.com/

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017) 

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. संघ का गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)  


मेन्स:

प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की 'विश्वास्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ है? (2018)

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