शिक्षा में डिजिटल डिवाइड | 11 Oct 2021
प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद-21A, शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत मेन्स के लियेशिक्षा में डिजिटल डिवाइड के परिणाम और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने चेतावनी दी है कि ऑनलाइन कक्षाओं के कारण होने वाला ‘डिजिटल डिवाइड’ प्रत्येक गरीब बच्चे के स्कूल में पढ़ने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अफसोस जताया कि छोटे बच्चों का ‘शिक्षा का अधिकार’ अब इस बात पर निर्भर करता है कि कौन ऑनलाइन कक्षाओं के लिये ‘गैजेट्स’ खरीद सकता है और कौन नहीं।
- कोविड-19 महामारी के दौरान जैसे-जैसे स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा की ओर रुख किया है, डिजिटल डिवाइड के गंभीर परिणाम सामने आए हैं।
प्रमुख बिंदु
- डिजिटल डिवाइड:
- ‘डिजिटल डिवाइड’ उन क्षेत्रों अथवा जनसांख्यिकी के बीच के अंतर को संदर्भित करता है, जिनके पास आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तक पहुँच है और जिनके पास इन आधुनिक प्रोद्योगिकियों तक पहुँच नहीं है।
- यह मुख्यतः आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तक पहुँच रखने वाले और पहुँच न रखने वाले व्यक्तियों के बीच मौजूद अंतर है।
- ‘डिजिटल डिवाइड’ की स्थिति विकसित एवं विकासशील देशों, शहरी एवं ग्रामीण आबादी, युवा एवं शिक्षित और वृद्ध एवं कम शिक्षित व्यक्तियों तथा पुरुषों एवं महिलाओं के बीच मौजूद होती है।
- भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन ‘डिजिटल डिवाइड’ का सबसे बड़ा उदाहरण है।
- ‘डिजिटल डिवाइड’ उन क्षेत्रों अथवा जनसांख्यिकी के बीच के अंतर को संदर्भित करता है, जिनके पास आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तक पहुँच है और जिनके पास इन आधुनिक प्रोद्योगिकियों तक पहुँच नहीं है।
- पूर्व-महामारी विभाजन:
- महामारी से पूर्व शहरी क्षेत्र और अमीर परिवारों के बच्चे आधुनिक तकनीक एवं अन्य ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म की मदद से विज्ञान की अवधारणाओं को आसानी से सीख रहे थे, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों एवं गरीब परिवारों में शौचालय, उचित कक्षाओं व पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी थी।
- ग्रामीण भारत में बालिकाओं की स्थिति लड़कों से बदतर थी, यह देखा गया कि प्रायः मासिक धर्म शुरू होते ही कई लड़कियाँ स्कूलों से बाहर हो रही थीं, क्योंकि स्कूलों में शौचालय और प्राथमिक देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी थी।
- कुछ क्षेत्रों में छात्रों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिये 10-12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।
- महामारी के बाद ‘डिजिटल डिवाइड’:
- शहरी क्षेत्रों और समृद्ध परिवारों में छात्र एवं शिक्षक डिजिटल शिक्षा से परिचित हैं और तुलनात्मक रूप से उच्च आय के कारण परिवार शिक्षा के लिये डिजिटल उपकरणों को आसानी से खरीद सकते हैं तथा साथ ही विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म का खर्च उठा सकते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब परिवारों में यह स्थिति लगभग विपरीत है। अधिकांश मामलों में परिवार में केवल एक ही सदस्य के पास स्मार्टफोन होता है, इस प्रकार छात्रों को ऑनलाइन लेक्चर में हिस्सा लेने में बहुत मुश्किलें आ रही हैं। जो लोग स्मार्टफोन खरीद सकते हैं, उन्हें नेटवर्क की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
- कुछ मामलों में शिक्षक भी ऑनलाइन शिक्षा तकनीक से परिचित नहीं हैं।
- परिणाम
- वंचितों पर सर्वाधिक दबदबा:
- ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’ [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है।
- वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।
- अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:
- गरीब बच्चे प्रायः ऑनलाइन मौजूद सूचनाओं से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार वे हमेशा के लिये पिछड़ जाते हैं, जिसका प्रभाव उनके शैक्षिक प्रदर्शन पर पड़ता है।
- इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
- सीखने की क्षमता में असमानता:
- निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग प्रायः वंचित होते हैं और पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन की स्थिति से गुज़रना पड़ता है।
- जबकि अमीर परिवारों से संबंधित छात्र आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं।
- गरीबों के बीच उत्पादकता में कमी:
- अधिकांश अविकसित देशों या ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अनुसंधान क्षमताओं और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण आधे-अधूरे स्नातक पैदा होते हैं, क्योंकि प्रशिक्षण उपकरणों की कमी के साथ-साथ इन क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी भी सीमित है।
- वंचितों पर सर्वाधिक दबदबा:
- शिक्षा के अधिकार हेतु संवैधानिक प्रावधान:
- मूलतः भारतीय संविधान के ‘भाग-IV’ [‘राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत’ के तहत अनुच्छेद-45 और अनुच्छेद 39-(f)] में राज्य द्वारा वित्तपोषित शिक्षा के साथ-साथ समान एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
- वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन ने ‘शिक्षा के अधिकार’ को संविधान के भाग-III में मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया था।
- इसने अनुच्छेद-21A को संविधान में शामिल किया, जिसके तहत 6-14 वर्ष के बीच के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया।
- इसके पश्चात् ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ लागू किया गया।
- संबंधित पहलें:
आगे की राह
- यद्यपि स्कूल अब धीरे-धीरे महामारी के घटते वक्र के कारण फिर से खुल रहे हैं, किंतु अभी भी ‘बच्चों के लिये ऑनलाइन सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त कंप्यूटर-आधारित उपकरण प्रदान करने की आवश्यकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है’।
- कम सुविधा प्राप्त वाले उन छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिनके पास ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
- प्रत्येक बच्चे के लिये मौलिक अधिकार के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाली समान शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु भी प्रयास किया जाना आवश्यक है।
- सरकार को राज्य एवं केंद्र के सभी स्तरों पर समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी सामाजिक स्तर के बच्चों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों और संसाधनों की कमी से प्रभावित लोग शिक्षा तक पहुँच से वंचित न रह जाएँ।