डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज 5.0 | 21 Aug 2021
प्रिलिम्स के लियेडिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज, रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार, 5G नेटवर्क, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अटल इनोवेशन मिशन मेन्स के लियेभारतीय सेना के आधुनिकीकरण की ज़रूरत एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार - रक्षा नवाचार संगठन (iDEX-DIO) के अंतर्गत डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज (DISC) का 5वाँ संस्करण लॉन्च किया।
- DISC 5.0 के अंतर्गत सेवाओं और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का अनावरण किया गया, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- सिचुएशनल अवेयरनेस, ऑगमेंटेड रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एयरक्राफ्ट ट्रेनर, नॉनलेथल डिवाइस, 5G नेटवर्क, अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस, ड्रोन SWARMS और डेटा कैप्चरिंग।
रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार
रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार के विषय में:
- इसे वर्ष 2018 में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिये तकनीकी रूप से उन्नत समाधान प्रदान करने हेतु नवप्रवर्तनकर्त्ताओं और उद्यमियों को शामिल कर रक्षा एवं एयरोस्पेस में नवाचार तथा प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने को एक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में लॉन्च किया गया था।
- यह MSMEs, स्टार्ट-अप्स, व्यक्तिगत इनोवेटर, शोध एवं विकास संस्थानों और अकादमियों को अनुसंधान एवं विकास के लिये अनुदान प्रदान करता है।
- इसको "रक्षा नवाचार संगठन" द्वारा वित्तपोषित और प्रबंधित किया जाता है।
मुख्य उद्देश्य:
- स्वदेशीकरण: नई, स्वदेशी और नवीन प्रौद्योगिकी का तेज़ी से विकास करना।
- नवाचार: सह-निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये स्टार्ट-अप के साथ जुड़ाव की संस्कृति बनाना।
प्रमुख बिंदु
डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज के विषय में:
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा (National Defence and Security) के क्षेत्र में उत्पादों के प्रोटोटाइप/व्यावसायिक उत्पादों का निर्माण करने हेतु स्टार्ट-अप/MSMEs/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
- आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त करने और रक्षा तथा एयरोस्पेस क्षेत्रों में नवाचार प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना।
- इसे रक्षा मंत्रालय द्वारा अटल इनोवेशन मिशन (Atal Innovation Mission) के साथ साझेदारी में लॉन्च किया गया था।
- कार्यक्रम के अंतर्गत स्टार्ट-अप, भारतीय कंपनियाँ और व्यक्तिगत नवप्रवर्तनकर्त्ता (अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों सहित) भाग ले सकते हैं।
- DISC 5.0 भारत की रक्षा प्रौद्योगिकियों, उपकरण डिज़ाइन और विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने के लिये स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ उठाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
दृष्टिकोण:
- प्रोटोटाइपिंग: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रासंगिक उत्पादों/प्रौद्योगिकियों के कार्यात्मक प्रोटोटाइप बनाने में मदद करना और भारतीय रक्षा क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ने हेतु नवाचारों को बढ़ावा देना।
- व्यावसायीकरण: भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान के रूप में नए तकनीकी उत्पादों/ प्रौद्योगिकियों के लिये एक बाज़ार और शुरुआती ग्राहक खोजने में मदद करना।
महत्त्व:
- यह युवाओं, शिक्षाविदों, अनुसंधान एवं विकास, स्टार्ट-अप और सशस्त्र बलों के बीच एक कड़ी बनाता है।
- ये चुनौतियाँ स्टार्ट-अप्स को नवीन अवधारणाओं के प्रति अधिक अभ्यस्त होने और भारत के नवोदित उद्यमियों में रचनात्मक सोच के दृष्टिकोण को विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करेंगी।
रक्षा क्षेत्र का स्वदेशीकरण
परिचय:
- स्वदेशीकरण का तात्पर्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य हेतु देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास एवं उत्पादन की क्षमता विकसित करना है।
- रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
- रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSUs), आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) और निजी संगठन रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2025 तक रक्षा निर्माण में 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कारोबार का लक्ष्य रखा है जिसमें 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सैन्य हार्डवेयर का निर्यात लक्ष्य शामिल है।
स्वदेशीकरण की आवश्यकता:
राजकोषीय घाटा कम करना:
- भारत दुनिया में (सऊदी अरब के बाद) दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है।
- उच्च आयात निर्भरता से राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है।
अनिवार्य सुरक्षा:
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी स्वदेशीकरण महत्त्वपूर्ण है।
- यह तकनीकी विशेषज्ञता को बरकरार रखता है और स्पिन-ऑफ प्रौद्योगिकियों एवं नवाचार को प्रोत्साहित करता है जो कि अक्सर इससे उत्पन्न होते हैं।
रोज़गार सृजन:
- रक्षा निर्माण से सैटेलाइट उद्योगों का निर्माण होगा जो बदले में रोज़गार के अवसरों के सृजन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सामरिक क्षमता:
- आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग भारत को शीर्ष वैश्विक शक्तियों में स्थान देगा।
- रक्षा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन से राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना बढ़ेगी, जो बदले में न केवल भारतीय बलों के विश्वास को बढ़ावा देगी बल्कि उनमें अखंडता और संप्रभुता की भावना को भी मज़बूत करेगी।
रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण की चुनौतियाँ:
- निजी भागीदारी का अभाव:
- रक्षा निर्माण केवल DRDO और रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों पर निर्भर रहा है।
- हाल ही में निजी क्षेत्र को भागीदारी की अनुमति दी गई है।
- विशेषज्ञता की कमी:
- केवल नौसेना में वास्तुकारों को IIT के माध्यम से भर्ती किया गया था और उन्हें विदेशों में प्रशिक्षण प्रदान किया गया था।
- हालाँकि थल सेना और वायु सेना के पास ऐसा क्षमता निर्माण कार्यक्रम नहीं है।
- विनिर्माण में बाधाएँ:
- नौकरशाही बाधाएँ, राजनीतिक बाधाएँ, मानव और तकनीकी संसाधनों की कमी, समय पर डिलीवरी का अभाव।
- अक्षम बजट:
- अधिकांश रक्षा बजट वेतन, भत्तों और उपकरणों के रखरखाव में व्यय होता है।
- भ्रष्टाचार:
- हथियारों की बिक्री और लॉबिंग ने रक्षा खर्च की दक्षता और प्रभावशीलता को कम कर दिया।
- तालमेल की कमी:
- सरकारी धन की कमी और खराब उद्योग-अकादमिक सहयोग के कारण शिक्षा, सैन्य और शोध क्षेत्र के बीच समन्वय का अभाव।
अन्य संबंधित पहल:
- प्रथम नकारात्मक स्वदेशीकरण :
- अगस्त 2020 में सरकार ने घोषणा की कि भारत 2024 तक 101 हथियारों और सैन्य प्लेटफ़ार्मों, जैसे-सैन्य परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, पारंपरिक पनडुब्बी, क्रूज़ मिसाइल और सोनार सिस्टम के आयात को रोक देगा।
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची:
- यह 108 सैन्य हथियारों और अगली पीढ़ी के कॉर्वेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन और रडार जैसी प्रणालियों पर आयात प्रतिबंध लगाता है।
- इसे दिसंबर 2021 से दिसंबर 2025 तक प्रभावी रूप से लागू करने की योजना है।
- रक्षा क्षेत्र में नई एफडीआई नीति:
- मई 2020 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र के लिये एक नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति को मंज़ूरी दी है, इस नीति में ऑटोमैटिक रूट के तहत रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020:
- इसमें तटरक्षक बल सहित सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिये रक्षा मंत्रालय के पूंजीगत बजट से खरीद और अधिग्रहण हेतु नीतियाँ और प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- रक्षा औद्योगिक गलियारे:
- रक्षा गलियारे एक सुनियोजित और कुशल औद्योगिक आधार की सुविधा प्रदान करेंगे जिससे देश में रक्षा उत्पादन में वृद्धि होगी।
आगे की राह
- निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि यह स्वदेशी रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिये अधिक कुशल और प्रभावी प्रौद्योगिकी तथा मानव पूंजी का संचार कर सकता है।
- तीनों सेवाओं के बीच इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये, नौसेना ने स्वदेशीकरण के पथ पर अच्छी तरह से प्रगति की है, मुख्य रूप से इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता, नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो के कारण।
- सरकार रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को एक स्वायत्त दर्जा प्रदान कर सकती है जिससे निजी क्षेत्र को उप-अनुबंधों की इकाई में सुधार होगा और निजी क्षेत्रों में भी विश्वास पैदा होगा।