भारतीय राजनीति
न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों पर बहस
- 02 Apr 2024
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प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, कॉलेजियम प्रणाली मेन्स के लिये:मौजूदा न्यायाधीश के इस्तीफे/कॉलेजियम के नैतिक निहितार्थ, कॉलेजियम प्रणाली का विकास और इसकी आलोचना। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों द्वारा आधिकारिक पद स्वीकार करने की प्रथा बहस का विषय बन गई है, विशेष रूप से हाल की घटनाओं के आलोक में जहाँ एक पूर्व न्यायाधीश न्यायपालिका से इस्तीफा देने के तुरंत बाद एक राजनीतिक दल में शामिल हो गए और न्यायिक आचरण पर सवाल उठाए।
भारत में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 124(7): यह सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत में किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष प्रैक्टिस करने से रोकता है।
- इस प्रतिबंध का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना है।
- हालाँकि, संविधान स्पष्ट रूप से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद के कार्य या नियुक्तियाँ स्वीकार करने से नहीं रोकता है।
- इस प्रतिबंध का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना है।
- अनुच्छेद 128:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की सहमति से, सर्वोच्च न्यायालय की नियुक्ति के लिये योग्य सर्वोच्च न्यायालय, संघीय न्यायालय या उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने एवं कार्य करने का अनुरोध कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 220:
- यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को "सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों को छोड़कर भारत में किसी भी प्राधिकारी" के समक्ष दलील देने से रोकता है।
- अनुच्छेद 124(7): यह सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत में किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष प्रैक्टिस करने से रोकता है।
- संबंधित मामले और सिफारिशें:
- बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन बनाम भारत संघ: सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों को स्वीकार करने से पूर्व दो वर्ष की अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि की मांग की गई थी।
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कूलिंग-ऑफ अवधि अनिवार्य करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
- जनहित याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों को विनियमित करने हेतु कानून बनाने के महत्त्व को रेखांकित किया, जिससे मामले को संबंधित न्यायाधीश के विवेक या विधायी हस्तक्षेप पर छोड़ दिया जाए।
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कूलिंग-ऑफ अवधि अनिवार्य करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
- 14वाँ विधि आयोग: MC सीतलवाड की अध्यक्षता वाले 14वें विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से नौकरी नहीं लेनी चाहिये; इसने सेवानिवृत्ति के बाद कूलिंग-ऑफ अवधि निर्धारित करने की भी सिफारिश की।
- हालाँकि, ऐसा कोई विशिष्ट नियम नहीं है जो न्यायाधीशों को ऐसे पद स्वीकार करने से रोकता हो।
- बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन बनाम भारत संघ: सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों को स्वीकार करने से पूर्व दो वर्ष की अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि की मांग की गई थी।
न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों से संबंधित तर्क क्या हैं?
- पक्ष में तर्क:
- विशेषज्ञता का उपयोग: समर्थकों का तर्क है कि न्यायाधीशों के पास मूल्यवान विशेषज्ञता और अनुभव है जो सरकार तथा सार्वजनिक सेवा क्षेत्रों के लिये फायदेमंद हो सकता है।
- सेवानिवृत्ति के बाद आधिकारिक पद स्वीकार करके, न्यायाधीश कानूनी सिद्धांतों और न्यायिक प्रक्रियाओं की अपनी गहरी समझ के आधार पर नीति निर्माण तथा शासन में योगदान दे सकते हैं।
- आधिकारिक पदों पर सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करना: सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों के समर्थकों का तर्क है कि न्यायाधीशों को उनके पूरे करियर में ईमानदारी के उच्च मानकों पर रखा जाता है और यह ईमानदारी आधिकारिक पदों पर उनकी भूमिकाओं में बनी रहने की संभावना है।
- प्रमुख पदों पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति से नैतिक मानकों को बनाए रखने और निर्णय लेने में निष्पक्षता का आश्वासन मिलता है।
- विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता वाली रिक्तियों को पूरा करना: कुछ आधिकारिक पदों के लिये विशिष्ट विशेषज्ञता या कानूनी जटिलताओं की समझ की आवश्यकता होती है, जो सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रदान करने हेतु अच्छी तरह से सुसज्जित हैं।
- ये नियुक्तियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि महत्त्वपूर्ण पद कानूनी मामलों में गहरी जानकारी रखने वाले और प्रभावी शासन तथा प्रशासन में योगदान करने वाले व्यक्तियों द्वारा भरे जाएँ।
- प्रमुख पदों पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति से नैतिक मानकों को बनाए रखने और निर्णय लेने में निष्पक्षता का आश्वासन मिलता है।
- प्रतिभा को बनाए रखना: सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्तियों की पेशकश यह सुनिश्चित करती है कि देश अनुभवी न्यायविदों के ज्ञान और कौशल को बरकरार रखता है।
- यह न्यायिक दिग्गजों को बेंच पर उनके कार्यकाल के बाद भी सार्वजनिक सेवा में योगदान जारी रखने की अनुमति देता है।
- विशेषज्ञता का उपयोग: समर्थकों का तर्क है कि न्यायाधीशों के पास मूल्यवान विशेषज्ञता और अनुभव है जो सरकार तथा सार्वजनिक सेवा क्षेत्रों के लिये फायदेमंद हो सकता है।
- सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों के विरुद्ध तर्क:
- न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता करने का जोखिम: आलोचकों का तर्क है कि सेवानिवृत्ति के बाद आधिकारिक पद स्वीकार करने से न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता हो सकता है, क्योंकि इससे नियुक्ति प्राधिकारी के प्रति पक्षपात की धारणा उत्पन्न हो सकती है।
- यह बदले की भावना से न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कम करता है और उनके कार्यकाल के दौरान लिये गए न्यायिक निर्णयों की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
- न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन न्यायिक आचरण में निष्पक्षता के महत्त्व पर ज़ोर देता है। न्यायाधीशों को न केवल न्याय देना चाहिये बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके कार्यों से न्यायपालिका की निष्पक्षता में जनता का विश्वास कायम रहे।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1997 में न्यायिक जीवन के मूल्यों की पुनर्कथन को अपनाया, जो न्यायाधीशों के लिये नैतिक मानकों की रूपरेखा तैयार करता है।
- यह निष्पक्षता, हितों के टकराव से बचने, वित्तीय लाभ प्राप्त करने से परहेज करने और सार्वजनिक जाँच के प्रति सचेत रहने के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
- हितों के टकराव की संभावना: इस बात की चिंता है कि सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियाँ हितों का टकराव पैदा कर सकती हैं, खासकर यदि पूर्व न्यायाधीश के कार्यकाल के दौरान उनके फैसलों से नियुक्ति प्राधिकारी को लाभ होता है।
- इससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम हो सकता है और साथ ही न्यायिक निर्णयों के पीछे की प्रेरणाओं पर संदेह भी उत्पन्न हो सकता है।
- न्यायपालिका को अस्थिर करना: इन नियुक्तियों को न्यायपालिका के अधिकार एवं अखंडता को धीरे-धीरे कम करके उसकी स्वतंत्रता को कमज़ोर करने की एक बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
- राजनीतिक नियुक्तियों के साथ न्यायाधीशों को लुभाकर, सरकार कार्यकारी शक्ति पर नियंत्रण के रूप में कार्य करने की न्यायपालिका की क्षमता से समझौता करने का जोखिम उठाती है।
- न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता करने का जोखिम: आलोचकों का तर्क है कि सेवानिवृत्ति के बाद आधिकारिक पद स्वीकार करने से न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता हो सकता है, क्योंकि इससे नियुक्ति प्राधिकारी के प्रति पक्षपात की धारणा उत्पन्न हो सकती है।
पद |
नियुक्ति प्रक्रिया |
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) |
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सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश |
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उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश |
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आगे की राह
- विधायी कार्रवाई: सरकार को न्यायालयों के न्यायाधीशों हेतु सेवानिवृत्ति के बाद के कार्यों को विनियमित करने के लिये एक व्यापक कानून निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- इस कानून को न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने चाहिये, जिसमें कूलिंग-ऑफ अवधि और कुछ नियुक्तियों पर प्रतिबंध के प्रावधान शामिल हों।
- न्यायपालिका के साथ परामर्श: कानून का मसौदा तैयार करने से पूर्व सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये न्यायपालिका, कानूनी विशेषज्ञों तथा हितधारकों के साथ सार्थक परामर्श करना चाहिये कि प्रस्तावित नियम संतुलित और प्रभावी हों।
- विराम अवधि का कार्यान्वन करना: भारत के विधि आयोग द्वारा अनुशंसित विराम अवधि (Cooling-Off) अवधि लागू करने पर विचार किया जा सकता है।
- यह अवधि न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति और सेवानिवृत्ति के बाद की संभावित नियुक्तियों के बीच एक बफर प्रदान करेगी, जिससे हितों के टकराव का जोखिम कम हो जाएगा।
- न्यायिक नैतिकता और आचार संहिता: न्यायपालिका को नैतिक मानकों को बनाए रखने और न्यायिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करना चाहिये।
- अनौचित्य की किसी भी स्थिति की रोकथाम के लिये सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों के संबंध में न्यायाधीशों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश और आचार संहिता स्थापित की जानी चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख: अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों से सीख लेते हुए भारत न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद के कार्यों को विनियमित करने के लिये अन्य देशों के दृष्टिकोण को अपना सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में हितों के टकराव को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों हेतु आजीवन कार्यरत रहने का प्रावधान है।
- यूनाइटेड किंगडम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 70 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं। न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियाँ ग्रहण करने से प्रतिबंधित करने के संबंध में कोई कानून नहीं है किंतु न्यायाधीशों द्वारा प्रायः ऐसा किया नहीं जाता है।
- तुलनात्मक अध्ययन और वैश्विक विधि विशेषज्ञों के साथ भागीदारी घरेलू नियमों को परिष्कृत करने के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में हितों के टकराव को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों हेतु आजीवन कार्यरत रहने का प्रावधान है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न:
प्रश्न. भारत में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों के संबंध में विधायी उपाय, न्यायिक इनपुट और विराम अवधि न्यायिक अखंडता को कैसे सुदृढ़ कर सकते हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |