शासन व्यवस्था
शारीरिक दंड
- 06 May 2024
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 मेन्स के लिये:शारीरिक दंड का मुद्दा, शारीरिक दंड के संबंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूलों में शारीरिक दंड के उन्मूलन (GCEP) के लिये दिशा-निर्देश जारी किये।
- ये दिशा-निर्देश छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक हितों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं एवं विद्यार्थियों के किसी भी प्रकार के उत्पीड़न को रोकने करने के लिये शारीरिक दंड को समाप्त करते हैं।
दिशा-निर्देशों के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य शारीरिक दंड, मानसिक उत्पीड़न एवं भेदभाव को समाप्त कर विद्यार्थियों के लिये सुरक्षित एवं विकासपूर्ण वातावरण निर्मित करना है।
- GECP में विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करना एवं हितधारकों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(NCPCR) के दिशा-निर्देशों से परिचित कराने के लिये जागरूकता शिविर आयोजित करना भी सम्मिलित है।
- GECP दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी और किसी भी मुद्दे का समाधान करने हेतु प्रत्येक स्कूल में स्कूल प्राचार्यों, अभिभावकों, शिक्षकों एवं वरिष्ठ विद्यार्थियों को सम्मिलित करते हुए निगरानी समितियों की स्थापना पर ज़ोर देता है।
- GECP ने शारीरिक दंड के विरुद्ध सकारात्मक कार्रवाइयों को भी सूचीबद्ध किया है, जिसमें बहु-विषयक हस्तक्षेप, जीवन-कौशल शिक्षा एवं बच्चों की शिकायतों के लिये तंत्र शामिल हैं।
शारीरिक दंड क्या है?
- परिचय:
- बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा शारीरिक दंड को परिभाषित किया गया है, "कोई भी दंड जिसमें शारीरिक बल का उपयोग किया जाता है और बच्चों के लिये कुछ हद तक दर्द अथवा परेशानी उत्पन्न करने का इरादा होता है, चाहे वह दंड कितना भी सरल क्यों न हो।"
- समिति के अनुसार, इसमें ज्यादातर बच्चों को हाथ या डंडे, बेल्ट आदि से मारना (पीटना, थप्पड़ मारना) सम्मिलित है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, शारीरिक या शारीरिक दंड वैश्विक स्तर पर घरों तथा स्कूलों दोनों में अत्यधिक प्रचलित है।
- 2 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के लगभग 60% बच्चे नियमित रूप से अपने माता-पिता या अन्य देखभाल करने वालों द्वारा शारीरिक रूप से दंडित किये जाते हैं।
- भारत में बच्चों के लिये 'शारीरिक दंड' की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।
- बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा शारीरिक दंड को परिभाषित किया गया है, "कोई भी दंड जिसमें शारीरिक बल का उपयोग किया जाता है और बच्चों के लिये कुछ हद तक दर्द अथवा परेशानी उत्पन्न करने का इरादा होता है, चाहे वह दंड कितना भी सरल क्यों न हो।"
- शारीरिक दंड के प्रकार:
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा परिभाषित शारीरिक दंड में कोई भी ऐसा कार्य शामिल है जो किसी बच्चे को दर्द, चोट या हानि पहुँचाता है।
- इसमें बच्चों को बेंच पर खड़ा करना, दीवार के सामने कुर्सी जैसी मुद्रा में खड़ा करना या सिर पर स्कूल बैग लेकर बैठने जैसी असुविधाजनक स्थितियों में मजबूर करना सम्मिलित है।
- इसमें पैरों में हाथ डालकर कान पकड़ना, घुटनों के बल बैठना, जबरन पदार्थ खिलाना एवं बच्चों को स्कूल परिसर के भीतर बंद स्थानों तक सीमित रखना जैसी प्रथाएँ भी शामिल हैं।
- मानसिक उत्पीड़न का संबंध गैर-शारीरिक दुर्व्यवहार से है जो बच्चों के शैक्षणिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- दंड के इस रूप में व्यंग्य, अपशब्दों तथा अपमानजनक भाषा का उपयोग करके डाँटना, डराना और अपमानजनक टिप्पणियों का उपयोग जैसे व्यवहार शामिल हैं।
- इसमें बच्चे का उपहास करना, उसका अपमान करना या उसे लज्जित करना, भावनात्मक कष्ट और समस्याग्रस्त वातावरण निर्मित करना जैसे कार्य भी शामिल हैं।
- शारीरिक दंड का औचित्यः
- वर्तमान में अमेरिका के 22 राज्यों में स्कूलों में शारीरिक दंड की विधिक अनुमति हैं।
- भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की कुछ धाराएँ शारीरिक दंड हेतु आधार प्रदान करती हैं।
- धारा 88 "किसी व्यक्ति के लाभ के लिये सद्भावना से सहमति से किये गए ऐसे कृत्यों के लिये सुरक्षा प्रदान करती है, जो मृत्यु का कारण नहीं हैं।"
- धारा 89 किसी अभिभावक द्वारा या उसकी सहमति से किसी बच्चे या विक्षिप्त व्यक्ति के लाभ के लिये सद्भावना से किये गए कार्यों की रक्षा करती है।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: शब्द "बच्चे का सर्वोत्तम हित" धारा 2(9) को संदर्भित करता है, जिसमें कहा गया है कि निर्णय लेते समय बच्चे की पहचान, शारीरिक, भावनात्मक और बौद्धिक विकास, साथ ही उनके बुनियादी अधिकारों एवं ज़रूरतों को ध्यान में रखा जाना चाहिये, जिसका उन पर प्रभाव पड़ता है।
- शारीरिक दंड के प्रभाव:
- मानसिक स्वास्थ्य:
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बढ़ी हुई चिंता तथा अवसाद:शारीरिक दंड के कारण बच्चे असुरक्षित, डरा हुआ व वातावरण को अरुचिपूर्ण अनुभव कर सकते हैं। इससे उनमें मानसिक चिंता एवं अवसाद बढ़ सकता है तथा आगे चलकर शैक्षणिक प्रदर्शन खराब हो सकता है।
आत्मसम्मान में कमी: जिन बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से दंडित किया जाता है उनमें कम आत्मसम्मान और आत्म-मूल्य की नकारात्मक भावना विकसित हो सकती है।
- आक्रामकता एवं हिंसा:जो बच्चे हिंसक कृत्यों को देखते हैं उनके बड़े होकर आक्रामक या हिंसक होने की संभावना अधिक होती है। बच्चा अपने सहपाठियों और शिक्षक के प्रति प्रतिशोध की भावना भी विकसित कर सकता है।
- संबंधों में कठिनाई: जो बच्चे शारीरिक दंड का अनुभव करते हैं उन्हें दूसरों के साथ व्यावहारिक संबंध बनाने में कठिनाई हो सकती है।
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- शारीरिक स्वास्थ्यः
- शारीरिक चोटः मामूली चोटों से लेकर अधिक गंभीर चोटों तक शारीरिक क्षति शारीरिक दंड के कारण हो सकती है।
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मादक द्रव्यों का सेवन: जो बच्चे शारीरिक दंड का अनुभव करते हैं, वे वयस्कों की तरह ड्रग्स और शराब का दुरुपयोग करने की अधिक संभावना रखते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य:
शारीरिक दंड के संबंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधान क्या हैं?
- वैधानिक प्रावधानः
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009:
- अधिनियम की धारा 17 शारीरिक दंड पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है। यह 'शारीरिक दंड' और 'मानसिक उत्पीड़न' पर रोक लगाती है तथा इसे दंडनीय अपराध बनाती है।
- यह निर्दिष्ट करती है कि उल्लंघन करने वाले पक्ष को उन पर लागू होने वाले सेवा नियमों के अनुरूप अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015:
- इस अधिनियम की धारा 23 के प्रावधानों के अनुसार, किसी नाबालिग का प्रभारी वयस्क जो जानबूझकर नाबालिग को त्यागकर, दुर्व्यवहार करके, या उसकी उपेक्षा करके मानसिक अथवा शारीरिक हानि पहुँचाता है, उसे अधिकतम 6 माह की जेल की सज़ा और ज़ुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009:
- कानूनी प्रावधानः
- भारतीय दण्ड संहिता (IPC) 1860
- धारा 305 एक बच्चे को आत्महत्या के लिये उकसाने से संबंधित है
- धारा 323 स्वेच्छा से चोट पहुँचाने से संबंधित है
- धारा 325 जो स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने के बारे में है।
- भारतीय दण्ड संहिता (IPC) 1860
- न्यायिक मामले:
- अंबिका एस नागल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2020 में, राज्य उच्च न्यायालय ने माना कि "जब भी किसी बच्चे को स्कूल भेजा जाता है, तो माता-पिता ने अपने बच्चे को सज़ा और अनुशासन के अधीन होने पर एक निहित सहमति देने के लिये कहा होगा।"
- केरल राज्य के खिलाफ एक मामले में, 2014 में केरल उच्च न्यायालय ने राजन बनाम पुलिस के उप-निरीक्षक शीर्षक से शारीरिक दंड देने को बरकरार रखते हुए कहा कि यह उन मामलों में भी बच्चे के लिये लाभदायक था, जहाँ परिणाम अत्यधिक थे, क्योंकि शिक्षक के पास यह निर्णय करने का अधिकार है कि उसे दंड देना है अथवा नहीं।
- बाल अधिकारों के संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 21 A: 6-14 आयु वर्ग में अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
- अनुच्छेद 24: यह 14 वर्ष की आयु तक जोखिमपूर्ण कार्यों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 39 (e): यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्त्तव्य है कि आर्थिक असमानता के कारण कम उम्र के बच्चों के साथ दुर्व्यवहार न हो।
- अनुच्छेद 45: 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की देखभाल प्रदान करना राज्य का कर्त्तव्य है।
- अनुच्छेद 51A(k): माता-पिता का मौलिक कर्त्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि उनके बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु के लिये शिक्षा प्राप्त होI
- सांविधिक निकाय:
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR): बच्चों के खिलाफ शारीरिक दंड को समाप्त करने के लिये NCPCR दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक स्कूल को छात्रों की शिकायतों को दूर करने हेतु एक प्रभावी तंत्र विकसित करने और उचित प्रोटोकॉल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- प्रत्येक स्कूल को एक 'शारीरिक दंड निगरानी सेल' का गठन करना होगा जिसमें दो शिक्षक, दो माता-पिता, एक डॉक्टर और एक वकील (ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा नामित (District Legal Service Authority- DLSA) शामिल होंगे।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR): बच्चों के खिलाफ शारीरिक दंड को समाप्त करने के लिये NCPCR दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक स्कूल को छात्रों की शिकायतों को दूर करने हेतु एक प्रभावी तंत्र विकसित करने और उचित प्रोटोकॉल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून:
- बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1989 (UNCRC) के अनुच्छेद 19 में घोषणा की गई है कि हिंसा से जुड़े किसी भी प्रकार का अनुशासन अस्वीकार्य है।
- इसमें बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट और दुर्व्यवहार से बचाने का अधिकार है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग क्या है?
- NCPCR एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना मार्च 2007 में बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
- यह आयोग महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
- आयोग का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान एवं बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में निहित बाल अधिकारों के परिप्रेक्ष्य के अनुरूप हों।
- यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बच्चों के लिये मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
- यह यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences- POCSO) अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. संबंधित संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों का उल्लेख करते हुए शारीरिक दंड के मुद्दे पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 (Universal Declaration of Human Rights,1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) |