भारत में अनुबंध कृषि | 31 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

अनुबंध कृषि, जैविक उर्वरक, अधिकतम अवशेष सीमा (MRL), मृदा क्षरण, मोनोक्रॉपिंग, खाद्य सुरक्षा, किसान उत्पादक संगठन (FPO), मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण व संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020, एंडीज क्षेत्र, पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार का संरक्षण अधिनियम, 2001, उच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

अनुबंध कृषि से संबंधित लाभ और चिंताएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत में अनुबंध कृषि का सकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से प्रसंस्कृत आलू के लिये पड़ा है, और इस सफलता को अन्य फसलों और खाद्य उत्पादों तक बढ़ाया जा सकता है।

अनुबंध कृषि मॉडल क्या है?

  • परिचय: अनुबंध कृषि एक ऐसी प्रणाली है जिसमें किसान (उत्पादक) और खरीदार कृषि उत्पादों के उत्पादन और विपणन के संबंध में एक समझौता करते हैं।
    • इस समझौते में उत्पादन प्रक्रिया शुरू होने से पूर्व किसान की उपज के लिये मूल्य, मात्रा, गुणवत्ता मानक और डिलीवरी की तारीख निर्दिष्ट की जाती है।
  • लाभ:
    • कुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: यह उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करते हुए शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की बर्बादी को कम करता है।
    • ऋण और कृषि निवेश वस्तुओं तक पहुँच: किसानों को बेहतर गुणवत्ता और उत्पादन के लिये संविदाकारी फर्मों द्वारा प्रदान किये गए ऋण, इनपुट और विस्तार सेवाओं से लाभ होता है।
    • उन्नत परिचालन दक्षता: इससे कंपनियों को लागत कम करने, दक्षता बढ़ाने तथा उच्च मूल्य वाली, गैर-परंपरागत फसलों की मांग की पूर्ति करने में सहायता मिलती है।
    • किसानों की आय में वृद्धि: बेहतर उपज, गारंटीकृत मूल्य और कुशल प्रथाओं के कारण अनुबंधित किसान प्रायः गैर-अनुबंधित किसानों की तुलना में अधिक आय अर्जित करते हैं
    • खाद्य सुरक्षा मानकों का अनुपालन: कंपनियाँ प्रायः किसानों को खाद्य सुरक्षा प्रथाओं, जैसे जैविक उर्वरकों और कीटनाशक नियंत्रण का उपयोग करने, अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये प्रशिक्षित करती हैं।
    • उपभोक्ताओं के लिये बेहतर मूल्य: उपभोक्ताओं के लिये बेहतर मूल्य और मध्यस्थों के बिना उत्पादों के लिये प्रतिस्पर्द्धी दरों की सुविधा के साथ इस मॉडल से मध्यस्थों की भूमिका समाप्त होती है
  • चिंताएँ:
    • शक्ति असंतुलन: छोटे किसानों के पास अक्सर बड़े कृषि व्यवसायों के साथ सौदेबाजी की शक्ति का अभाव होता है, जिसके कारण उन्हें शोषणकारी शर्तों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से तब जब वे विशिष्ट फसलों अथवा परिसंपत्तियों में अनुबंधों और निवेशों पर निर्भर होते हैं।
    • व्यतिक्रम का जोखिम: यदि बाज़ार मूल्य बढ़ता है तो किसान चूक कर सकते हैं, जबकि मूल्य में गिरावट के बाद कंपनियाँ खरीद से इनकार कर सकती हैं, जिससे किसान बाज़ार से वंचित रह जाएंगे।
    • भूमि के स्वामित्व पर प्रभाव: कंपनियाँ प्रायः कृषि निवेश की सभी वस्तुओं की आपूर्ति करती हैं, जिससे किसानों के पास देने के लिये केवल भूमि और श्रम ही बचता है। इससे कंपनियों द्वारा ज़बरन कृषि कराने और अप्रत्यक्ष रूप से भूमि का अधिग्रहण किये जाने जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • पर्यावरण क्षरण: गहन अनुबंध कृषि अत्यधिक जल उपयोग, एकल फसल से संबंधित संक्रमण, तथा कीटनाशक और उर्वरक के अधिक प्रयोग के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • खाद्य असुरक्षा: किसान खाद्य फसलों की कीमत पर अनुबंध कृषि के लिये उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे स्थानीय खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है ।
  • विधिक स्थिति:
    • मॉडल APMR (कृषि उपज विपणन विनियमन) अधिनियम, 2003: इसने अनुबंध फर्मों के लिये अनिवार्य पंजीकरण, विवाद समाधान, बाज़ार शुल्क में छूट और अनुबंधों के तहत किसानों के भूमि स्वामित्व की सुरक्षा की शुरुआत की।
    • मॉडल कृषि उपज और पशुधन अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018: प्रमुख प्रावधानों में अनुबंध कृषि के कार्यान्वयन के लिये राज्य स्तरीय प्राधिकरण, FPO को बढ़ावा देना, अनुबंधित उपज के लिये बीमा शामिल हैं।

भारत में आलू उत्पादन से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • आलू: आलू एक स्टार्चयुक्त जड़ वाली सब्जी है, जो कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका के पेरूवियन-बोलिवियन एंडीज क्षेत्र में हुई थी।
    • आलू के लिये भुरभुरी, छिद्रयुक्त, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • आलू उत्पादन: भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक है।
    • शीर्ष उत्पादक: उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार।
    • आलू की कुफरी किस्म केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI), शिमला द्वारा विकसित की गई थी ।
  • कानूनी विवाद (पेप्सिको बनाम भारतीय किसान मामला ): वर्ष 2016 में, पेप्सिको ने गुजरात में किसानों के खिलाफ मुकदमा दायर किया, उन पर FL 2027 (आलू की किस्म) की अनधिकृत खेती का आरोप लगाया और मुआवजे की मांग की। 
  • कानूनी विवाद (पेप्सिको बनाम भारतीय किसान मामला): 2016 में, पेप्सिको ने गुजराती किसानों पर मुकदमा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि वे बिना अनुमति के आलू की किस्म FL 2027 की खेती कर रहे थे तथा भुगतान की मांग कर रहे थे।
    • वर्ष 2024 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत पेप्सिको के FL 2027 पंजीकरण को बहाल कर दिया, जिससे विवाद फिर से शुरू हो गया।

आगे की राह

  • किसानों की सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाना: सरकार को छोटे भूमिधारकों की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाने और उनके शोषण को कम करने में मदद करने के लिये FPO तथा सहकारी समितियों के माध्यम से सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना चाहिये।
  • भूमि सुधार कार्यक्रम: भूमि पट्टे और अनुबंधों तक पहुँच को आसान बनाने, स्वामित्व के मुद्दों का समाधान करने तथा छोटे किसानों को अनुबंध कृषि में अधिक प्रभावी ढंग से भाग लेने में सक्षम बनाने के लिये भूमि समेकन जैसे भूमि सुधार कार्यक्रमों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • उत्पाद-विशिष्ट रणनीतियाँ: नीति निर्माताओं को विभिन्न फसलों, क्षेत्रों एवं बाज़ार की ज़रूरतों के लिये विशेष रूप से उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में लाभ को अधिकतम करने के क्रम में अनुबंध कृषि रणनीतियाँ अपनानी चाहिए।
  • किसानों के हितों की सुरक्षा: विधिक ढाँचे के तहत विवाद समाधान तंत्र एवं स्पष्ट, निष्पक्ष और कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों को सुनिश्चित करके किसानों को शोषण से बचाना चाहिए।
  • फर्मों के साथ साझेदारी: सरकार को किसानों के हितों को किसानों के कल्याण के साथ जोड़ने, निष्पक्ष प्रथाओं को बढ़ावा देने तथा उत्पादकता बढ़ाने एवं जोखिम कम करने के क्रम में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, किसान प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ कृषि व्यवसायों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित लाभों और चिंताओं का परीक्षण कीजिये। नीतिगत सुधार से इन चिंताओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. भारत में कृषि भूमि धारणों के पतनोन्मुखी औसत आकार को देखते हुए, जिसके कारण अधिकांश किसानों के लिये कृषि अलाभकारी बन गई है, क्या संविदा कृषि को और भूमि को पट्टे पर देने को बढ़ावा दिया जाना चाहिये? इसके पक्ष-विपक्ष का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)