संविधान दिवस 2024 | 27 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:संविधान दिवस, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, 26/11 मुंबई हमले, अनुच्छेद 370, सरोजिनी नायडू, संविधान की मूल संरचना, निजता का अधिकार, मौलिक अधिकार, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, प्रस्तावना मेन्स के लिये:संविधान और उसका विकास, भारतीय संविधान पर वैश्विक प्रभाव, भारतीय संविधान का प्रारूपण, भारत के संविधान की मुख्य विशेषताएँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संविधान दिवस, 26 नवंबर 2024 को, भारत के प्रधानमंत्री ने भारतीय संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित समारोह में भाग लिया। उन्होंने संविधान को सामाजिक-आर्थिक प्रगति और न्याय के लिये महत्त्वपूर्ण जीवंत दस्तावेज़ बताया।
- इस अवसर पर 26/11 के मुंबई हमलों के पीड़ितों को भी याद किया गया, तथा भारत की दृढ़ता को रेखांकित किया गया।
संविधान दिवस क्या है?
- परिचय: 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अपनाने की याद में संविधान दिवस मनाया जाता है। यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का जश्न मनाता है और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है।
- वर्ष 2015 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नागरिकों के संविधान के साथ एकीकरण को मज़बूत करने के लिये 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2015 से पहले, 26 नवंबर को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था।
- यह दिन संविधान का मसौदा तैयार करने में संविधान सभा के दृष्टिकोण और प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की महत्त्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है, जिसके कारण उन्हें "भारतीय संविधान के जनक" की उपाधि मिली।
- संविधान दिवस 2024 की मुख्य विशेषताएँ:
- जम्मू और कश्मीर में संविधान दिवस समारोह: वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, 74 वर्षों में पहली बार जम्मू और कश्मीर ने संविधान दिवस मनाया।
- यह आयोजन केंद्र शासित प्रदेश के भारत के कानूनी और राजनीतिक ढाँचे के साथ संरेखण में एक नए अध्याय का प्रतीक है।
- हमारा संविधान, हमारा सम्मान: श्रम और रोज़गार मंत्री ने "हमारा संविधान, हमारा सम्मान" अभियान में भाग लिया।
- 24 जनवरी 2024 को शुरू किये गए "हमारा संविधान, हमारा सम्मान" अभियान का उद्देश्य नागरिकों में संविधान और भारतीय समाज को आकार देने में इसकी भूमिका के बारे में समझ को बढ़ावा देना है।
- यह संवैधानिक जागरूकता, विधिक अधिकारों और ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देने के क्रम में वर्ष भर चलने वाली पहल है।
- इसके तहत क्षेत्रीय कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और सेमिनारों के साथ-साथ सबको न्याय, हर घर न्याय (सभी के लिये न्याय), नव भारत, नव संकल्प (नए भारत के लिये नया संकल्प) एवं विधि जागृति अभियान (विधिक जागरूकता) जैसे उप-अभियान शामिल हैं।
- यह अभियान वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- 24 जनवरी 2024 को शुरू किये गए "हमारा संविधान, हमारा सम्मान" अभियान का उद्देश्य नागरिकों में संविधान और भारतीय समाज को आकार देने में इसकी भूमिका के बारे में समझ को बढ़ावा देना है।
- भारत की संविधान सभा की महिलाएँ: भारत के राष्ट्रपति ने संविधान सभा में 15 महिला सदस्यों (जिनमें सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी और विजय लक्ष्मी पंडित शामिल हैं) के योगदान पर प्रकाश डाला है।
- अम्मू स्वामीनाथन, एनी मैस्करीन, बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल और दक्षिणायनी वेलायुधन जैसे कम-ज्ञात सदस्यों को भी भारत के संविधान को आकार देने के क्रम में मान्यता दी गई।
- अम्मू स्वामीनाथन: केरल में विधवाओं पर लगे सामाजिक प्रतिबंधों को देखने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। हिंदू कोड बिल के माध्यम से लैंगिक समानता का समर्थन किया गया।
- एनी मास्कारेन (1902-1963): उन्होंने जातिवाद के विरोध के क्रम में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार हेतु अभियान चलाया।
- बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल (1909-2001): यह मुस्लिम लीग की सदस्य थी। उन्होंने विभाजन पर जटिल विचारों के बावजूद धर्म आधारित निर्वाचन का विरोध किया।
- दक्षिणायनी वेलायुधन (1912-1978): यह विज्ञान में स्नातक करने वाली पहली दलित महिला और कोचीन विधान परिषद की पहली दलित महिला थी। उन्होंने दलितों के लिये अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध करने के साथ राष्ट्रवाद पर बल दिया।
भारतीय संविधान किस प्रकार एक "जीवंत दस्तावेज़" है?
- संशोधनीयता: भारतीय संविधान में बदलती ज़रूरतों एवं परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जा सकता है। यह अनुकूलन इसे समय के साथ विकसित होने एवं इसके मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक है।
- संशोधन का प्रावधान: भाग XX में अनुच्छेद 368, संसद को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए, किसी भी प्रावधान को शामिल करने, बदलने या निरस्त करने के द्वारा संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- संसद संविधान के 'मूल ढाँचे' में संशोधन नहीं कर सकती (जैसा कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले, 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था) है।
- संशोधन का प्रावधान: भाग XX में अनुच्छेद 368, संसद को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए, किसी भी प्रावधान को शामिल करने, बदलने या निरस्त करने के द्वारा संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- संशोधन के प्रकार: संविधान में संशोधन तीन अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है अर्थात संसद के साधारण बहुमत से, संसद के विशेष बहुमत से तथा कुछ संशोधनों के लिये विशेष बहुमत + राज्य का अनुसमर्थन।
- साधारण बहुमत से होने वाले संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- न्यायिक व्याख्या: न्यायपालिका (विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय) संविधान की व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- ऐतिहासिक निर्णय एवं विकसित व्याख्याएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि संविधान प्रासंगिक बने रहने के साथ समकालीन मुद्दों के प्रति उत्तरदायी बना रहे।
- न्यायालयों ने समकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने के क्रम में विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या (जैसे के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 में निजता के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता देना) की है।
- संघीय ढाँचा: भारतीय संविधान की संघीय संरचना केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन, क्षेत्रीय आवश्यकताओं तथा विविधता पर प्रकाश डालती है।
- अनुच्छेद 246 सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ संघ, राज्य और समवर्ती सूची शामिल हैं: केंद्र सरकार संघ सूची पर कानून बनाती है, राज्य सूची पर राज्य तथा समवर्ती सूची पर दोनों कानून बनाते हैं, राज्य और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति में संघ के कानून लागू होते हैं।
- संविधान की संरचना: इसमें कुछ प्रावधान कठोर हैं, जो संघवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे मौलिक प्रावधानों की रक्षा करते हैं।
- अन्य प्रावधान, जैसे राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (DPSP), समाज की कल्याणकारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लचीले अनुकूलन की अनुमति देते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी: भारत के संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो उसे सामाजिक परिवर्तनों के प्रति उत्तरदायी बनाते हैं, जैसे कि हाशिये पर पड़े समुदायों की रक्षा करने एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने हेतु नए कानूनों को शामिल करना।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2003 के 89वें संशोधन अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को अनुच्छेद 338A के तहत एक संवैधानिक निकाय तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को अनुच्छेद 338 के तहत एक अलग संवैधानिक निकाय बना दिया गया, जिससे अधिक समावेशी समाज के निर्माण में उसकी भूमिका बढ़ गई।
भारत के संविधान के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- संविधान सभा: संविधान सभा को संविधान का मसौदा तैयार करने में लगभग तीन साल (2 साल, 11 महीने, 17 दिन) लगे। शुरू में, इसमें कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 प्रांतीय विधान सभाओं से, 93 रियासतों से और 4 मुख्य आयुक्तों के प्रांतों से चुने गए थे।
- हालाँकि, वर्ष 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद, पाकिस्तान के लिये एक अलग संविधान सभा का गठन किया गया, जिससे भारत की संविधान सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई।
- मूल संरचना (1949): प्रारंभ में, इसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ शामिल थीं।
- वर्तमान संरचना: इसमें वर्तमान में एक प्रस्तावना, 450 से अधिक अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
- संशोधन: सितंबर 2024 तक, वर्ष 1950 में पहली बार अधिनियमित होने के बाद से भारत के संविधान में 106 संशोधन हुए हैं।
- लंबाई: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
- इसके सुलेखक प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे तथा इसके पृष्ठों को नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया था।
- विस्तृत आकार का कारण: भारत के आकार और विविधता ने एक व्यापक संविधान को आवश्यक बना दिया है।
- वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम, जो स्वयं एक व्यापक दस्तावेज़ था, के प्रभाव ने संविधान के आकार में योगदान दिया है।
- भारत का एकल एकीकृत संविधान, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को नियंत्रित करता है, जो इसके आकार को विस्तृत बनाता है।
- कानूनी विशेषज्ञों के नेतृत्व में संविधान सभा ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो कानूनी और प्रशासनिक दोनों ही पहलुओं से संपूर्ण है, जिसमें मौलिक शासन सिद्धांतों के साथ-साथ विस्तृत प्रशासनिक प्रावधान भी शामिल हैं।
- इसके अलावा संविधान विभिन्न वैश्विक स्रोतों से लिया गया है तथा इसके प्रावधान अमेरिकी, आयरिश, ब्रिटिश, कनाडाई, ऑस्ट्रेलियाई, जर्मन और अन्य संविधानों से प्रेरित हैं, जो इसके डिज़ाइन पर व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाते हैं।
- लंबाई: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
भारतीय संविधान की आलोचनाएँ:
आलोचना |
खंडन |
उधार लिया गया संविधान |
संविधान निर्माताओं ने भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप उधार ली गई विशेषताओं को अनुकूलित और संशोधित किया ताकि उनकी कमियों को दूर रखा जा सके। |
भारत सरकार अधिनियम, 1935 की कार्बन कॉपी |
हालाँकि कई प्रावधान उधार लिये गए थे, किंतु संविधान केवल एक प्रति नहीं है। इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और परिवर्धन शामिल हैं। |
गैर-भारतीय या भारतीय विरोधी |
विदेशी स्रोतों से उधार लिये जाने के बावजूद संविधान भारतीय मूल्यों और आकांक्षाओं को दर्शाता है। |
गैर-गांधीवादी |
हालाँकि यह स्पष्ट रूप से गांधीवादी नहीं है, किंतु संविधान गांधी के अनेक सिद्धांतों के साथ संरेखित है। |
एलीफेंट साइज़ (विस्तृत आकार) |
भारत की विविधता और जटिलता को प्रबंधित करने के लिये संविधान की विस्तृत प्रकृति आवश्यक है। |
वकीलों की प्रसन्नता (Paradise) |
स्पष्टता और प्रवर्तनीयता के लिये कानूनी भाषा आवश्यक है। |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारतीय संविधान को अक्सर एक 'जीवंत दस्तावेज़' कहा जाता है। बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की इसकी क्षमता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन संविधान सभा की संघीय संविधान समिति के अध्यक्ष थे? (2005) (a) बी.आर. अंबेडकर उत्तर: (c) प्रश्न. भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण निम्नलिखित में दी गई योजना पर आधारित है: (2012) (a) मॉर्ले-मिंटो सुधार, 1909 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: स्वतंत्र भारत के लिये संविधान का मसौदा केवल तीन वर्ष में तैयार करने के एतिहासिक कार्य को पूर्ण करना संविधान सभा के लिये कठिन होता, यदि उनके पास भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्राप्त अनुभव नहीं होता। चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न: निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017) प्रश्न: यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014) |