फेक न्यूज़ के खिलाफ सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम | 13 Jan 2025
प्रिलिम्स के लिये:मेटा, चुनाव, डीप फेक, जन गण मन, प्रेस काउंसिल अधिनियम, 1978, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000, सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम, उपयोगकर्ता-जनित संदर्भ। मेन्स के लिये:भारत में फेक न्यूज़, सोशल मीडिया विनियमन से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी मेटा मेटा द्वारा अपने तृतीय-पक्ष पेशेवर तथ्य-जाँच कार्यक्रम को समाप्त करने के साथ इसे एलन मस्क के X प्लेटफॉर्म के समान सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम के साथ रूपांतरित किया गया है।
- मेटा के अनुसार तथ्य-जाँच करने वाले संगठनों द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से व्यवहार किया गया है और सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम से पक्षपात की आशंका कम होगी।
- विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के स्थान पर समुदाय-आधारित नेटवर्क लाने से भारत में फेक न्यूज़ में वृद्धि हो सकती है।
सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम क्या है?
- परिचय: यह X की एक पहल है, जिसका उद्देश्य फेक न्यूज़ का मुकाबला करना तथा उपयोगकर्त्ता-जनित संदर्भ के माध्यम से सामग्री की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
- यह केवल केंद्रीकृत मॉडरेशन टीमों पर निर्भर रहने के बजाय उपयोगकर्त्ताओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
- कम्युनिटी नोट्स को पहली बार वर्ष 2021 में ट्विटर द्वारा 'बर्डवॉच' नामक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था।
- कार्य: उपयोगकर्त्ता उन पोस्ट पर नोट्स प्रदान करते हैं जिनमें स्पष्टीकरण या अतिरिक्त संदर्भ की आवश्यकता होती है।
- नोट्स केवल तभी दिखाई देते हैं जब विविध समूह उनकी सटीकता एवं उपयोगिता पर सहमत हो जाते हैं।
- एल्गोरिदमिक समीक्षा: रेटिंग प्रणाली से यह सुनिश्चित होता है कि केवल सबसे संतुलित एवं व्यापक रूप से समर्थित नोट ही सार्वजनिक रूप से दिखाई दें। इससे पक्षपात को कम करने तथा निष्पक्षता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
- कोई संपादकीय निरीक्षण नहीं: पारंपरिक तथ्य-जाँच या मॉडरेशन के विपरीत, नोट्स को प्लेटफाॅर्म कर्मचारियों द्वारा संपादित या क्यूरेट नहीं किया जाता है बल्कि यह पूरी तरह से समुदाय द्वारा संचालित हैं।
पेशेवर तथ्य जाँचकर्त्ता
- पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ता ऐसे व्यक्ति या संगठन हैं जो डिजिटल दौर में फेक न्यूज़ से निपटने के लिये सार्वजनिक दावों का सत्यापन करते हैं।
- भारत में मेटा द्वारा 15 भाषाओं में सामग्री को कवर करने वाले 11 स्वतंत्र, प्रमाणित तथ्य-जाँच संगठनों के साथ सहयोग किया जाता है।
- प्रमुख विशेषताएँ: पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ता प्रशिक्षित, स्वतंत्र तथा गैर-पक्षपाती होते हैं जो पारदर्शी दावा सत्यापन के लिये साक्ष्य-आधारित तरीकों एवं नैतिक संहिताओं का उपयोग करते हैं।
- प्रमुख उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म में पोलिटिफैक्ट, FactCheck.org और स्नोप्स शामिल हैं जबकि भारत-विशिष्ट प्लेटफॉर्म में ऑल्ट न्यूज़, फैक्टली और बूम लाइव शामिल हैं।
भारत में सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम के संबंध में क्या चिंताएं हैं?
- फेक न्यूज़ के प्रति संवेदनशीलता: पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के बिना, अप्रशिक्षित उपयोगकर्त्ताओं को पूर्वाग्रहों तथा फेक न्यूज़ की पहचान करने में कठिनाई हो सकती है।
- निगरानी के बगैर राजनीतिक या पक्षपातपूर्ण सामग्री प्रभावी हो सकती है, जो जनसंख्या के बड़े भाग को गुमराह कर सकती है।
- उपयोगकर्त्ताओं पर ज़िम्मेदारी डालना: उपयोगकर्त्ता द्वारा चिह्नित सामग्री से संबंधित गलत आसूचना को दूर करने में विलंब हो सकता है, क्योंकि कंपनियाँ ज़िम्मेदारी को जनता पर डाल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप असंगतताएँ उत्पन्न होती हैं और फेक न्यूज़ के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
- वैचारिक पूर्वाग्रह: तटस्थ तथ्य-जाँच के बिना सामग्री राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण हो सकती है, जिससे हेरफेर और ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिल सकता है, विशेष रूप से राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में जो बहुसंख्यकवादी विचारों को लागू कर सकता है।
- वित्तीय और तकनीकी चुनौतियाँ: मेटा जैसे प्लेटफॉर्मों से समर्थन खोने से तथ्य-जाँचकर्त्ताओं का दायरा सीमित हो सकता है, फेक न्यूज़ के विरुद्ध संघर्ष कमज़ोर हो सकता है और सामग्री सत्यापन में अंतराल रह सकता है।
- विविधता और संदर्भ: भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधता समुदाय-आधारित तथ्य-जाँच को चुनौतीपूर्ण बनाती है, क्योंकि इसकी व्याख्याएँ भिन्न हो सकती हैं।
- जटिल मुद्दों की सटीक व्याख्या के लिये पेशेवर विशेषज्ञता की आवश्यकता हो सकती है, जो उपयोगकर्त्ता उपलब्ध नहीं करा सकते।
तथ्य-जाँच क्यों आवश्यक है?
- निष्पक्ष पत्रकारिता: तथ्य-जाँच से मीडिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है, पारदर्शिता बढ़ती है, तथा झूठे दावों को सही करके और सटीक समाचार सुनिश्चित करके फेक न्यूज़ का सामना होता है, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर।
- राजनीतिक अखंडता: तथ्य-जाँच, फेक न्यूज़ का सामना करके और मतदाताओं को गुमराह करने से रोकने के लिये राजनीतिक दावों की पुष्टि करके चुनावी अखंडता सुनिश्चित करती है।
- तकनीकी नवाचार: डीप फेक, वायरल अफवाहों और हेरफेर किये गए मीडिया के उदय के कारण पेशेवर पत्रकारों को सामग्री की जाँच और सत्यापन की आवश्यकता होती है।
- जवाबदेही: तथ्य-जाँचकर्त्ता अतिश्योक्ति या झूठ की जाँच करके और उसे उज़ागर करके यह सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग सच्चाई के उच्च मानकों पर खरे उतरें।
भारत में फेक न्यूज़ के लोकप्रिय उदाहरण
- वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों में फर्जी वीडियो के कारण सांप्रदायिक भावनाएँ भड़क उठीं
- यूनेस्को ने 'जन गण मन' को विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान घोषित किया है (व्हाट्सएप के अनुसार)
- 2000 रुपए के नोट में GPS ट्रैकिंग नैनो चिप (नवंबर 2016)
- एक भारतीय राजनेता ने भारतीय सड़कों के LED-विद्युतीकरण को दिखाने के लिये रूसी सड़कों की तस्वीर का इस्तेमाल किया
- गृह मंत्रालय (MHA) की वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय सीमा पर फ्लडलाइटिंग दिखाने के लिये स्पेन-मोरक्को सीमा की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया
फेक न्यूज़ से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विधिक परिभाषा का अभाव: अधिकांश देशों (भारत समेत), जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सुदृढ़ कानून वाले देश भी शामिल हैं, में फेक न्यूज़ की स्पष्ट विधिक परिभाषा का अभाव है, जिससे इसे प्रभावी रूप से विनियमित करने के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
- एक अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सही सूचनाओं की तुलना में झूठी खबरें 70% अधिक तीव्रता से फैलती हैं।
- विनियमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संतुलन: फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के प्रयासों को प्रायः सेंसरशिप के रूप में देखे जाने का खतरा होता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कंटेंट मॉडरेशन संबंधी प्रथाओं पर विवाद उत्पन्न होता है।
- पुनः साझाकरण की निष्क्रियता: उपयोगकर्त्ताओं की एक बड़ी संख्या अनजाने में गैर-सत्यापित सामग्री साझा करती है, जिससे दुर्भावनापूर्ण आशय के बगैर फेक न्यूज़ फैलती है, जिसे दंडात्मक उपायों से संबोधित करना कठिन होता है।
- प्लेटफॉर्म की जवाबदेही: सुरक्षित बंदरगाह संरक्षण के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही सीमित है, जिससे उपयोगकर्त्ता-जनित सामग्री के लिये उन्हें उत्तरदायी ठहराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- भाषा और क्षेत्रीय विविधता: 22 से अधिक आधिकारिक भाषाओं और सैकड़ों बोलियों वाले भारत को फेक न्यूज़ से निपटने में अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि BBC के एक अध्ययन (2019) से पता चला है कि फेक न्यूज़ प्रायः अंग्रेज़ी या हिंदी की तुलना में क्षेत्रीय भाषाओं में तेज़ी से फैलती हैं।
- डीपफेक का उदय: डीपट्रेस लैब्स (2019) के अनुसार ऑनलाइन डीपफेक वीडियो की संख्या प्रत्येक 6 माह में दोगुनी हो गई, जिसमें 96% फेक न्यूज़ या शोषण से संबंधित थे।
- डीपफेक टूल्स वर्तमान में व्यापक रूप से सुलभ हैं, जिससे दुर्भावनापूर्ण कर्त्ताओं की बाधाएँ कम हो गई हैं।
भारत में फेक न्यूज़ की रोकथाम से संबंधित क्या प्रावधान हैं?
- भारतीय प्रेस परिषद (PCI): प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के अंतर्गत मीडिया आउटलेट्स द्वारा पेशेवर कदाचार या फेक न्यूज़ प्रसारित करने की दशा में PCI को इनकी परिनिंदा करने अथवा चेतावनी देने का अधिकार है।
- समाचार प्रसारणकर्ता संघ (NBA): NBA एक स्व-नियामक निकाय है जो निजी टेलीविजन समाचार चैनलों पर प्रसारित सामग्री की गुणवत्ता और सटीकता पर बेहतर नियंत्रण सुनिश्चित करता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC): हिंसा, सांप्रदायिक अशांति भड़काने या धार्मिक भावनाओं के अपमान संबंधी फेक न्यूज़ से निपटने के लिये IPC (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 153 और 295 का उपयोग किया जा सकता है।
- मानहानि कानून: वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है, IPC की धारा 499 के तहत मामला दर्ज करा सकता है, जबकि धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के लिये दो वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में साइबर अपराधों जैसे पहचान चोरी (धारा 66C), प्रतिरूपण द्वारा छल (धारा 66D), निजता उल्लंघन (धारा 66E), अश्लील सामग्री के पारेषण (धारा 67) आदि संबंधी दंडों का प्रावधान है।
आगे की राह
- बहुभाषी मॉडरेशन: क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में फेक न्यूज़ का पता लगाने के लिये ए.आई.-संचालित साधन विकसित किये जाने चाहिये। क्षेत्रीय सामग्री की निगरानी में सुधार के लिये भाषाविदों और स्थानीय तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
- प्लेटफॉर्म की जवाबदेही: फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिये सुदृढ़ मॉडरेशन प्रणाली में निवेश कर जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिये।
- नैतिक पत्रकारिता: संपादन संबंधी कड़े दिशा-निर्देशों का क्रियान्वन करना, सामग्री का स्वतंत्र ऑडिट करना और फेक न्यूज़ प्रसारित करने के लिये पत्रकारों को जवाबदेह ठहराना मीडिया में विश्वास बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
- जन जागरूकता: सरकारें और गैर सरकारी संगठन जनता को फेक न्यूज़ के खतरों और सूचना की पुष्टि करने के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान आयोजित कर सकते हैं, जिससे गलत सूचना के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी।
- मीडिया साक्षरता कार्यक्रम: नागरिकों द्वारा डिजिटल साधनों का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग करने हेतु स्कूल पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में मीडिया साक्षरता और समालोचनात्मक चिंतन को शामिल किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. तथ्यों के प्रभावी जाँच तंत्र के क्रियान्वन में भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं और इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |