एशिया-प्रशांत देशों में जलवायु परिवर्तन लचीलापन घाटा | 12 May 2023

प्रिलिम्स के लिये:

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वैश्विक जलवायु संकट

मेन्स के लिये:

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कमज़ोर समूहों पर जलवायु-प्रेरित आपदाओं का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आर्थिक लागत

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट "द रेस टू नेट ज़ीरो: एक्सेलेरेटिंग क्लाइमेट एक्शन इन एशिया एंड द पैसिफिक" में एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (UNESCAP) ने खुलासा किया है कि एशिया एवं प्रशांत के अधिकांश देशों के पास चरम मौसमी घटनाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न बढ़ते खतरों का प्रबंधन करने हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

  • यह अध्ययन क्षेत्र में अनुकूलन और शमन प्रयासों का समर्थन करने के लिये आवश्यक डेटा और संसाधनों की कमी को दर्शाता है।

मुख्य बिंदु

  • एशिया-प्रशांत में बढ़ती जलवायु चुनौतियाँ:
    • इस क्षेत्र में पिछले 60 वर्षों में बढ़ते तापमान ने वैश्विक औसत को पार कर लिया है, जिससे तीव्र चरम मौसम की घटनाएँ एवं प्राकृतिक खतरे उत्पन्न हो गए हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात, गर्म हवाएँ, बाढ़ तथा सूखे के कारण जीवन की महत्त्वपूर्ण हानि, विस्थापन, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई है।
    • इस तरह की आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित शीर्ष 10 देशों में से छह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिससे खाद्य प्रणालियों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को नुकसान हो रहा है। 
  • कमज़ोर समूहों पर विषम प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन और जलवायु-प्रेरित आपदाएँ महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों, प्रवासियों, स्वदेशी आबादी तथा कमज़ोर स्थितियों वाले युवा लोगों सहित कमज़ोर समूहों पर गंभीर रूप से बोझ डालती हैं।
    • इन चुनौतियों के कारण गरीबी और सामाजिक असमानता जैसे अंतर्निहित कारकों के उभार में तेज़ी देखी जा रही है जो विकास की प्रगति में बाधा बन रहे हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में क्षेत्रों का योगदान:
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र विश्व के आधे से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
      • यह क्षेत्र तीव्र विकास और विशाल आबादी के चलते वैश्विक जलवायु संकट में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 
    • इस क्षेत्र के भीतर विभिन्न निचले इलाके और कमज़ोर छोटे द्वीपीय देश स्थित हैं, जो इसे जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के प्रति सुभेद्य बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन की आर्थिक लागत:
    • ESCAP का अनुमान है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक और जैविक खतरों से लगभग 780 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक औसत नुकसान हुआ है।
      • मध्यम जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के अनुसार, इस नुकसान के 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सबसे खराब स्थिति में 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • जलवायु कार्रवाई के लिये मौजूदा वित्तपोषण इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करने तक सीमित है।

आवश्यक पहल: 

  • उत्सर्जन अंतराल को समाप्त करना: 
    • ऊर्जा क्षेत्र: 
      • राष्ट्रीय ऊर्जा प्रणालियों का पुनर्गठन और नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना में निवेश करना।
      • जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण।
      • नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु सीमा पार विद्युत ग्रिड को बढ़ावा देना।
      • स्थानीय समाधानों और विकेंद्रीकृत विद्युत उत्पादन पर ज़ोर देना।
    • परिवहन क्षेत्र: 
      • निम्न-कार्बन वाले परिवहन मार्गों में स्थानांतरण।
      • कीकृत भूमि उपयोग योजना के माध्यम से परिवहन दूरी को कम करना।
      • कम कार्बन या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन वाले टिकाऊ परिवहन साधनों को प्रोत्साहित करना।
      • वाहन और ईंधन दक्षता में सुधार।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश: 
      • क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में जलवायु संबंधी विचारों को एकीकृत करना।
      • जलवायु-स्मार्ट व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देना।
      • निजी क्षेत्र को निम्न-कार्बन मार्गों और धारणीयता प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
      • स्थिरता रिपोर्टिंग और ग्रीनहाउस गैस लेखांकन के माध्यम से पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्त्व बढ़ाना।

UNESCAP: 

  • परिचय: UNESCAP एशिया-प्रशांत क्षेत्र हेतु संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय विकास शाखा है।
    • इसमें भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 53 सदस्य देश और 9 सहयोगी सदस्य हैं। 
  • स्थापना: 1947 
  • मुख्यालय: बैंकाॅक, थाईलैंड
  • उद्देश्य: सदस्य देशों को परिणामोन्मुख परियोजनाएँ, तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण प्रदान करके इस क्षेत्र की कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों पर नियंत्रण प्राप्त करना। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ