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कृषि

कृषि संकट पर उच्चतम न्यायालय पैनल की रिपोर्ट

  • 13 Dec 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि संकट, उच्चतम न्यायालय, भारत में कृषि की स्थिति, राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF), कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP), पाम ऑयल मिशन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना।

मेन्स के लिये:

कृषि संकट पर उच्चतम न्यायालय पैनल की रिपोर्ट: कारण, प्रभाव, सरकारी पहल।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय (SC) द्वारा नियुक्त समिति ने भारत में कृषि संकट पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है। रिपोर्ट में भारत में कृषि पर संकट की स्थिति को गंभीर बताया गया है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्च स्तरीय समिति का परिचय: 

  • इसका गठन उच्चतम न्यायालय (SC) ने सितंबर 2024 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह की अध्यक्षता में शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों की शिकायतों के समाधान और इसके संभावित समाधान सुझाने के लिये किया था।

कृषि में किसानों की स्थिति पर उच्चतम न्यायालय समिति की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • आय संकट: रिपोर्ट में पाया गया है कि किसान कृषि गतिविधियों से प्रतिदिन मात्र 27 रुपए कमाते हैं, जो इस क्षेत्र में व्याप्त घोर निर्धनता को उजागर करता है।
    • कृषि परिवारों की औसत मासिक आय 10,218 रुपए है, जो एक सभ्य जीवन के लिये आवश्यक बुनियादी जीवन स्तर से काफी कम है।
  • बढ़ता कर्ज: पंजाब एवं हरियाणा के किसान बढ़ते कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं, वर्ष 2022-23 में संस्थागत ऋण क्रमशः 73,673 करोड़ रुपए और 76,630 करोड़ रुपए तक पहुँच गया है ।
    • गैर-संस्थागत ऋण इस बोझ को और बढ़ा देता है, जो पंजाब में 21.3% और हरियाणा में 32% है, जिससे व्यापक वित्तीय संकट उत्पन्न होता है, जिससे अनेक किसान निराशा की ओर बढ़ते हैं।
  • किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएँ: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार वर्ष 1995 से अब तक भारत में 4 लाख से अधिक किसानों और कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की है। 
    • पंजाब में तीन सार्वजनिक क्षेत्र के विश्वविद्यालयों द्वारा किये गए घर-घर सर्वेक्षण में वर्ष 2000 से वर्ष 2015 के बीच 16,606 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जिनमें मुख्य रूप से लघु एवं सीमांत किसानों और भूमिहीन श्रमिकों के बीच आत्महत्याएँ शामिल थीं तथा इसका प्रमुख कारण उच्च ऋणग्रस्तता थी।
  • कृषि विकास में स्थिरता: पंजाब एवं हरियाणा ने कृषि विकास में स्थिरता का अनुभव किया है, वर्ष 2014-15 से वर्ष 2022-23 तक उनकी वार्षिक वृद्धि दर क्रमशः 2% और 3.38% रही है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। 
    • इस स्थिरता के कारण किसानों की आय में कमी आई है तथा जीवन स्तर में गिरावट आई है।
  • रोज़गार की असंगतता: रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का 46% कार्यबल कृषि में कार्यरत है, फिर भी यह राष्ट्रीय आय में केवल 15% का योगदान देता है।
    • अनेक कृषि श्रमिकों को या तो कम वेतन दिया जाता है या फिर उन्हें प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है, जिससे ग्रामीण निर्धनता और भी बदतर हो जाती है ।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: घटता जल स्तर, सूखा, अनियमित वर्षा और चरम मौसमी जलवायु वर्तमान संकट को बढ़ा रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा एवं कृषि उत्पादकता को और अधिक खतरा हो रहा है।

रिपोर्ट के निष्कर्षों के निहितार्थ क्या हैं?

  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: कृषि की गिरती स्थिति, उच्च आत्महत्या दर और बढ़ते कर्ज के कारण देश की अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। 
    • कृषि की उपेक्षा से दीर्घकालिक आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है तथा ग्रामीण-शहरी प्रवास में वृद्धि की संभावना रहती है।
  • स्थिरता और खाद्य सुरक्षा: यदि वर्तमान स्थिति जारी रही तो भारत के कृषि क्षेत्र को खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में संकट का सामना करना पड़ सकता है। 
    • घटती कृषि उत्पादकता, जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों और सुधार की कमी के कारण, भारत को खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी एवं भुखमरी और अधिक बढ़ जाएगी।
  • सामाजिक स्थिरता: किसानों द्वारा की जा रही निरंतर आत्महत्याएँ और कृषक समुदाय में बढ़ती निराशा भी सामाजिक अशांति का कारण हो सकती है

भारत में कृषि क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ऋण और वित्त तक सीमित पहुँच: भारत की कृषि जनगणना वर्ष 2015-16 के अनुसार, लगभग 86% भारतीय किसान छोटे और सीमांत हैं तथा उनमें से कई को संस्थागत ऋण तक पहुँचने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • इससे मशीनरी, बीज और उर्वरक जैसे आधुनिक कृषि आगतों में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे उत्पादकता भी प्रभावित होती है।
  • खंडित भूमि जोत: भारत में औसत भूमि जोत लगभग 1.08 हेक्टेयर है, जो वृहद् स्तर पर कुशल कृषि के लिये अपर्याप्त है। 
    • इससे किसानों के लिये आधुनिक कृषि तकनीक और प्रौद्योगिकी अपनाना मुश्किल हो जाता है। स्तरीय अर्थव्यवस्थाओं की कमी के कारण कृषि उत्पादन तथा  उत्पादकता कम होती है, जिससे वित्तीय अस्थिरता बढ़ती है।
  • पुरानी कृषि पद्धतियाँ: बड़ी संख्या में भारतीय किसान अभी भी पारंपरिक कृषि तकनीकों पर निर्भर हैं, जो अकुशल और अस्थायी हैं। 
    • आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच की कमी और परिवर्तन के प्रति विरोध कृषि उत्पादकता तथा स्थिरता संबंधी सुधार में बाधा डालते हैं
  • जल की कमी और सिंचाई: भारत की कृषि काफी हद तक मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है तथा 60% फसल क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है, जिससे यह सूखे और अनियमित वर्षा के प्रति संवेदनशील है। 
    • नीति आयोग के वर्ष 2022-23 के आँकड़ों के अनुसार, भारत का शुद्ध बोया गया क्षेत्र (73 मिलियन हेक्टेयर) का केवल 52% ही सिंचित है, जिससे जल की कमी और बढ़ रही है।
  • मृदा क्षरण और अपक्षय: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की रिपोर्ट के अनुसार भारत की लगभग 30% कृषि भूमि मृदा क्षरण से प्रभावित है, जिसका मुख्य कारण अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, खराब सिंचाई पद्धतियाँ और वनोन्मूलन है। 
    • इससे मृदा उर्वरता कम हो जाती है, उत्पादकता में कमी आती है तथा कीटों और रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • अपर्याप्त कृषि अवसंरचना: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, अपर्याप्त भंडारण, कोल्ड चेन और ग्रामीण सड़क अवसंरचना के कारण भारत को 15-20% फसलोत्तर नुकसान का सामना करना पड़ता है । 
    • इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है और किसानों की बाज़ार तक पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे उचित मूल्य प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।

किसान कल्याण हेतु सरकारी योजनाएँ क्या हैं?

भारत में किसानों की परेशानी कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • ऋण माफी: किसानों के लिये ऋण राहत, जिसमें ऋण माफी भी शामिल है, उनके वित्तीय संकट को कम करने के लिये एक तात्कालिक उपाय के रूप में। 
    • इससे कर्ज के भारी बोझ को कम करने में मदद मिलेगी, जो किसानों की आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारणों में से एक है।
  • MSP को कानूनी मान्यता: उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनल ने किसानों को बाज़ार मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी मान्यता देने की भी सिफारिश की है।
    • इससे किसानों को उनकी उपज के लिये निश्चित मूल्य की गारंटी मिलेगी, आय स्थिरता सुनिश्चित होगी तथा कृषि क्षेत्र में अनिश्चितता कम होगी।
  • जैविक कृषि और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना: कुछ प्रमुख फसलों पर निर्भरता कम करने के लिये जैविक कृषि और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इससे स्थायित्व सुनिश्चित होगा और पारंपरिक कृषि पद्धतियों के पर्यावरणीय प्रभाव में भी कमी आएगी।
  • कृषि विपणन सुधार: कृषि बाज़ारों की दक्षता में सुधार करने हेतु, कृषि विपणन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें अधिक किसान-अनुकूल बाज़ारों की स्थापना, बिचौलियों को कम करना और किसानों के लिये बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन: कम कृषि आय की समस्या से निपटने के लिये नीतियों को ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने, विविधीकरण और सतत् विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये
    • इसमें कौशल विकास कार्यक्रम, ग्रामीण औद्योगीकरण और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने हेतु तत्काल उपाय किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें बेहतर जल प्रबंधन पद्धतियाँ, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना और जलवायु-लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. इस योजना के अंतर्गत कृषकों को वर्ष के किसी भी मौसम में उनके द्वारा किसी भी फसल की खेती के लिये दो प्रतिशत की एक समान दर से बीमा किश्त का भुगतान करना होगा।
  2. यह योजना चक्रवात एवं गैर-मौसमी वर्षा से होने वाले कटाई उपरांत घाटे को बीमाकृत करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. सभी अनाजों, दालों और तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रापण (खरीद) भारत के किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में असीमित है।
  2. अनाज और दालों का MSP किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में उस स्तर पर निर्धारित किया जाता है, जिस स्तर तक बाज़ार मूल्य कभी नहीं पहुँच पाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

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