उत्तर-पूर्व में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की विफलता

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना, ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) उत्तर-पूर्व के राज्यों में विफल साबित हो रही है। गौरतलब है कि इस योजना के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये सालाना 1,400 करोड़ रुपए रखे गए थे, जबकि पिछले साल केवल 8 करोड़ रुपए ही खर्च किये गए।

प्रमुख बिंदु

  • सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि चार उत्तर-पूर्वी राज्य- अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम इस योजना के तहत शामिल ही नहीं हैं।
  • बीमा की कमी की वज़ह से मक्का बोने वाले हज़ारों किसान तबाही की कगार पर हैं क्योंकि फॉल आर्मीवर्म ने फसलों को काफी नुकसान पहुँचाया है।

कारण क्या है?

  • बीमा के संबंध में पूर्वोत्तर राज्य कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
  • बीमा कंपनियों की कम दिलचस्पी।
  • राज्य बजट की कमी के कारण प्रीमियम के अपने हिस्से का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।
  • प्रशासनिक लागत अधिक होने के कारण बीमा कंपनियाँ इन राज्यों में रुचि नहीं ले रही हैं। बीमा कंपनियों को इसमें दिलचस्पी इसलिये भी नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में कवरेज बहुत सीमित है।
  • इन राज्यों के लिये विशेष रूप से ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर पर उचित भूमि रिकॉर्ड के साथ ही पिछली उपजों के आँकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं।
  • कई फसलों के लिये आवश्यक क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट (Crop Cutting Experiments- CCEs) करना भी मुश्किल है।

क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट

  • क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट की सहायता से फसलों की उपज का उचित और सटीक अनुमान प्राप्त किया जाता है।
  • पूर्वानुमान संबंधी बुनियादी ढाँचे की कमी ने भी इन राज्यों में मौसम आधारित बीमा योजना की राह में बाधा उत्पन्न की है।
  • ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ अधिसूचित फसलों के लिये फसल ऋण/केसीसी खाते का लाभ उठाने वाले कर्ज़दार किसानों हेतु अनिवार्य है, जबकि अन्य दूसरों के लिये स्वैच्छिक।
  • यहाँ इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि असम को छोड़कर पूर्वोत्तर में कर्ज़ लेने वाले किसानों की संख्या भी बहुत कम है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)

‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ 18 फरवरी, 2016 को शुरू की गई थी। इस योजना का संचालन कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। यह फसल खराब हो जाने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है जिससे किसानों की आय स्थिर करने में मदद मिलती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • इस योजना के तहत खरीफ, रबी तथा वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों को शामिल किया गया है।
  • इसमें खरीफ की फसल के लिये कुल बीमित राशि का 2% तक का बीमा प्रभार, रबी हेतु 1.5% तक तथा वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिये बीमित राशि का 5% तक का बीमा प्रभार निश्चित किया गया है।
  • किसानों की प्रीमियम राशि का एक बड़ा हिस्सा केंद्र तथा संबंधित राज्य वहन करता है। बीमित किसान यदि प्राकृतिक आपदा के कारण बोहनी नहीं कर पाता है तो भी उसे दावा राशि मिल सकेगी।
  • इस योजना में स्थानीय स्तर पर हानि की स्थिति में केवल प्रभावित किसानों का सर्वे कर उन्हें दावा राशि प्रदान की जाएगी। योजना में पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान को भी शामिल किया गया है।
  • योजना में टेक्नोलॉजी (जैसे रिमोट सेंसिंग) इस्तेमाल कर फसल कटाई/नुकसान का आकलन शीघ्र व सही तरीके से किया जाता है, ताकि किसानों को दावा राशि त्वरित रूप से मिल सके।

प्रक्रिया क्या है?

  • PMFBY के परिचालन दिशा-निर्देशों के तहत राज्य सरकारों को फरवरी के शुरू में बीमा कंपनियों के चयन के लिये बिड शुरू करनी होती है, यह प्रक्रिया नए फसल वर्ष शुरू होने से थोड़े पहले शुरू करने की व्यवस्था की जाती है।
  • इसके बाद सभी प्रासंगिक विवरणों को शामिल करने वाली एक अधिसूचना जारी की जाती, जिसके अंतर्गत फसलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में परिचालन करने वाली कंपनियों, क्षतिपूर्ति का स्तर और औसत उपज (जिसके मुआवज़े की गणना की जाती है), बीमा राशि, वास्तविक प्रीमियम दर एवं इस पर सब्सिडी आदि के ब्योरे को मार्च (खरीफ के सीज़न) तथा सितंबर (रबी के सीज़न) के संदर्भ में तैयार किया जाता है।
  • किसानों से प्रीमियम प्राप्त करने के लिये कट ऑफ तिथियाँ (उन्हें बीमा के लिये पात्र बनाना) 31 जुलाई (खरीफ के लिये) और 31 दिसंबर (रबी) हैं।
  • इसके अतिरिक्त किसानों द्वारा चुकाए जाने वाले प्रीमियम की अंतिम तिथि जुलाई 31 (खरीफ के लिये) तथा दिसंबर 31 (रबी के लिये) निर्धारित की गई है।
  • राज्यों द्वारा अगस्त-सितंबर (खरीफ का सीज़न) में प्रीमियम सब्सिडी योगदान का पहला इंस्टालमेंट जारी किया जाता है तथा शेष राशि का 50 फीसदी भुगतान नवंबर-दिसंबर तक किया जाता है। इसी प्रकार क्रमशः जनवरी-फरवरी और अप्रैल-मई में संबंधित रबी सीज़न की पहली किश्त जारी किये जाने की उम्मीद होती है।
  • इसके अलावा, उन्हें उपज के आकलन के लिये हर गाँव/ग्राम पंचायत में न्यूनतम चार, प्रत्येक तालुका/तहसील/ब्लॉक में 16 और प्रत्येक ज़िले में 24 CCEs पूर्ण करने होते हैं।
  • CCEs आधारित उपज डेटा कटाई के एक महीने के भीतर बीमा कंपनियों को जमा किया जाता है, जो खरीफ फसल के लिये अक्तूबर-दिसंबर और रबी फसल के लिये अप्रैल-जून के दौरान तैयार किया जाता है।
  • बदले में कंपनियाँ उपज डेटा प्राप्त होने के तीन हफ्तों में अंतिम दावों का अनुमोदन और भुगतान करने जैसे कार्य संपन्न करती हैं।
  • यदि राज्य खरीफ और रबी की फसल के लिये क्रमशः जनवरी और जुलाई तक प्रीमियम सब्सिडी के अपने पूरे हिस्से के साथ उपज डेटा उपलब्ध करा देते हैं तो किसान उचित समय के भीतर अपने फसल संबंधी दावों का भुगतान प्राप्त कर सकते हैं।
  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, बीमा कंपनियाँ तब तक इन दावों के विषय में कोई कार्यवाही नहीं करती हैं जब तक उन्हें पूरा प्रीमियम भुगतान तथा फसल नुकसान के संबंध में उपज डेटा नहीं मिल जाता है।

स्रोत- द हिंदू