ब्लैक टाइगर्स | 16 Sep 2021
प्रिलिम्स के लिये :सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व, ब्लैक टाइगर्स, प्रोजेक्ट टाइगर मेन्स के लिये :सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व की वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व (STR) में ओडिशा के 'ब्लैक टाइगर्स' के रंगों के पीछे के रहस्य को उजागर किया है।
- सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व दुनिया का एकमात्र बाघ निवास स्थान है जहाँ मेलेनिस्टिक ( Melanistic) बाघ पाए जाते हैं, जिनके शरीर पर चौड़ी काली धारियाँ/रेखाएँ' होती हैं, जो सामान्य बाघों की तुलना में मोटी होती हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय :
- ब्लैक टाइगर एक दुर्लभ रंग का बाघ है और यह एक विशिष्ट प्रजाति या भौगोलिक उप-प्रजाति नहीं है।
- उसके शरीर पर कोट या धारियों का रंग एवं पैटर्न बिल्कुल जंगली बिल्लियों की तरह गहरा होता है जो ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टिडेज़ क्यू (ताकपेप) (Transmembrane Aminopeptidase Q (Taqpep) जीन में एक उत्परिवर्तन के कारण दिखाई देता है।
- ऐसे बाघों में असामान्य रूप से गहरे या काले रंग के कोट को छद्म मेलेनिस्टिक या कृत्रिम रंग भी कहा जाता है।
- यदि सिमलीपाल से किसी भी बाघ को चुना जाता है, तो लगभग 60% संभावना है कि वह उत्परिवर्ती जीन को वहन करता है।
- काला रंग होने के कारक :
- भौगोलिक विविधताओं के कारण आनुवंशिक रूप से संबंधित प्रजातियाँ सिमलीपाल में कई पीढ़ियों से एक-दूसरे के साथ आंतरिक प्रजनन कर रही है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि बाघ संरक्षण हेतु इसके महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं क्योंकि इस तरह की अलग-अलग और जन्मजात आबादी के कम समय में भी विलुप्त होने की संभावना बनी रहती है।
- भौगोलिक विविधताओं के कारण आनुवंशिक रूप से संबंधित प्रजातियाँ सिमलीपाल में कई पीढ़ियों से एक-दूसरे के साथ आंतरिक प्रजनन कर रही है।
सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व
- परिचय:
- आधिकारिक रूप से टाइगर रिज़र्व के लिये इसका चयन वर्ष 1956 में किया गया था, जिसको वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के अंतर्गत लाया गया। भारत सरकार ने जून 1994 में इसे एक बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र घोषित किया था।
- यह बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 2009 से यूनेस्को के विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) का हिस्सा है।
- यह सिमलीपाल-कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व (Similipal-Kuldiha-Hadgarh Elephant Reserve) का हिस्सा है, जिसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व (Mayurbhanj Elephant Reserve) के नाम से जाना जाता है, इसमें 3 संरक्षित क्षेत्र यानी सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व, हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
- अवस्थिति:
- यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में स्थित है जो भौगोलिक रूप से पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित है।
- वन्यजीव:
- सिमलीपाल बाघों और हाथियों सहित जंगली जानवरों की एक विस्तृत शृंखला का निवास स्थान है, इसके अलावा यहाँ पक्षियों की 304 प्रजातियाँ, उभयचरों की 20 प्रजातियाँ और सरीसृप की 62 प्रजातियाँ निवास करती हैं।
- जनजातियाँ:
- इस बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र में दो जनजातियाँ यथा- इरेंगा खारिया (Erenga Kharias) और मैनकर्डियास (Mankirdias) निवास करती हैं, जो आज भी पारंपरिक कृषि गतिविधियों (बीज और लकड़ी का संग्रह) के माध्यम से खाद्य संग्रहण करती हैं।
- वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता:
- प्राकृतिक: इस क्षेत्र में प्रकाश या बढ़ते तापमान जैसे प्राकृतिक कारण वनाग्नि (Forest Fire) का कारण बन सकते हैं।
- मानव निर्मित कारण: शिकारियों द्वारा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिये आग का प्रयोग किया जाता है जो वनाग्नि का कारण हो सकता है।
- ओडिशा में अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र:
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान।
- बदरमा वन्यजीव अभयारण्य।
- चिलिका (नलबण) वन्यजीव अभयारण्य।
- हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य।
- बैसीपल्ली वन्यजीव अभयारण्य।
- कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य।
- नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य।
- लखारी घाटी वन्यजीव अभयारण्य।
- गहिरमाथा (समुद्री) वन्यजीव अभयारण्य।