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भारतीय अर्थव्यवस्था

बायोफार्मास्युटिकल एलायंस

  • 14 Jun 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संघ, बायोफार्मास्युटिकल एलायंस, नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी, वैक्सीन मैत्री, विश्व स्वास्थ्य संगठन, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

वैक्सीन कूटनीति, वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा, वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मज़बूत करना।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण कोरिया, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा यूरोपीय संघ (EU) ने कोविड-19 महामारी के दौरान दवा आपूर्ति की कमी को दूर करने के साथ-साथ आपूर्ति शृंखला में वृद्धि के लिये बायोफार्मास्युटिकल एलायंस लॉन्च किया है।

  • यह उद्घाटन बैठक बायो इंटरनेशनल कन्वेंशन 2024 के दौरान सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में संपन्न हुई।

बायोफार्मास्युटिकल एलायंस क्या है?

  • परिचय: बायोफार्मास्युटिकल एलायंस एक रणनीतिक साझेदारी गठबंधन है जिसका उद्देश्य दुनिया भर में बायोफार्मास्युटिकल उत्पादों की स्थिर एवं सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करना और साथ ही वैक्सीन कूटनीति में सहायता करना है।
    • इसका उद्देश्य भाग लेने वाले देशों के बीच जैव नीतियों, विनियमों और अनुसंधान तथा विकास सहायता उपायों का समन्वयन करना है।
    • यह पहल दक्षिण कोरिया तथा अमेरिका के बीच चर्चा से प्रारंभ हुई और साथ ही इसमें जापान, भारत एवं यूरोपीय संघ को भी शामिल किया गया। सहयोग के माध्यम से सदस्य देश एक ऐसी प्रणाली के निर्माण की आशा करते हैं जो भविष्य के वैश्विक स्वास्थ्य संकटों का सामना कर सके।
  • आवश्यकता: कोविड-19 महामारी के दौरान दवा आपूर्ति में आई कमी को देखते हुए इस गठबंधन का गठन किया गया था। महामारी ने बायोफार्मास्युटिकल के लिये एक विश्वसनीय एवं स्थायी आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • जैव नीतियों एवं विनियमों को संरेखित करके, गठबंधन जैव-फार्मास्युटिकल विकास के लिये एक समेकित दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
  • संचालन तंत्र: 
    • क्रियान्वयन: सदस्य देश जैव नीतियों एवं अनुसंधान सहायता के समन्वय पर सहमति व्यक्त करते हुए क्रियान्वयन प्रारंभ करेंगे।
    • आपूर्ति शृंखला मानचित्रण: कमज़ोरियों को पहचानने के साथ कम करने के लिये फार्मास्युटिकल आपूर्ति शृंखला का एक व्यापक मानचित्र विकसित करना।
    • निरंतर सहयोग: गठबंधन के लक्ष्यों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिये भागीदार देशों के बीच निरंतर सहयोग और संवाद स्थापित करना।

कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं की प्रमुख कमी

  • कोविड-19 महामारी के कारण कई महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में व्यापक कमी आई है। कोविड-19 टीकों की कमी ने दुनिया भर में टीकाकरण अभियान को प्रभावित किया है। टीकों की कमी ने महामारी के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया को शिथिल कर दिया।
    • रेमडेसिविर जैसी आवश्यक औषधियों की कमी का सामना करना पड़ा, जिससे कोविड-19 के गंभीर मामलों का उपचार प्रभावित हुआ। इन कमियों के कारण संक्रमण के चरम अवधि के दौरान रोगियों के देखभाल के प्रबंधन में चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, कई महत्त्वपूर्ण औषधियों जैसे- एमोक्सिसिलिन और पेनिसिलिन की कमी का सामना करना पड़ा जो प्रतिजैविक (Antibiotics) हैं तथा जीवाण्विक संक्रमण के उपचार के लिये आवश्यक हैं।
  • कोविड-19 के मामलों में वृद्धि के कारण मेडिकल ऑक्सीजन की मांग में वृद्धि हुई। कई देशों को श्वसन संबंधी गंभीर स्थितियों के लिये आवश्यक मेडिकल ऑक्सीजन की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिये संघर्ष करना पड़ा।
  • विश्व को मास्क, दस्ताने और गाउन सहित व्यक्तिगत सुरक्षा उपस्कर (Personal Protective Equipment- PPE) की कमी का सामना करना पड़ा। PPE की कमी से फ्रंटलाइन हेल्थकेयर कर्मियों के लिये जोखिम उत्पन्न हुआ, जिससे उनकी स्वयं की सुरक्षा और साथ ही रोगियों की देखभाल करने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई।

वैक्सीन की वैश्विक कूटनीति किस प्रकार औषधि आपूर्ति की कमी का समाधान कर सकती है?

  • ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ: ऐतिहासिक रूप से, पश्चिमी शक्तियों ने स्वास्थ्य सहायता पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है, जिससे विश्व की स्वास्थ्य पहलें प्रभावित होती हैं।
    • वर्तमान में, रूस, चीन और भारत की भूमिका सहायता प्राप्तकर्त्ताओं से प्रमुख वैक्सीन उत्पादक के रूप में परिवर्तित हुई है, जो विश्व की स्वास्थ्य गतिशीलता में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है।
  • वैश्विक वैक्सीन कूटनीति के रणनीतिक दृष्टिकोण:
    • रूस का प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: रूस की अनुसंधान और विकास (R&D) क्षमताएँ सुदृढ़ हैं, किंतु इसकी उत्पादन तथा वितरण क्षमता सीमित है। इसने एशिया, लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के देशों को वैक्सीन उत्पादन आउटसोर्स करने के लिये प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण किया।
      • प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से न केवल इसकी बिक्री को बढ़ावा मिला अपितु विकासशील देशों में रूस की सॉफ्ट पावर की भी वृद्धि हुई।
    • भारत द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन: भारत की वैक्सीन कूटनीति की विशेषता यह रही है कि महामारी से पूर्व भी विश्व के लगभग 60% टीकों का उत्पादन भारत में ही किया जाता था और बड़ी मात्रा में औषधि निर्माण के कारण इसे "विश्व की फार्मेसी" के रूप में जाना जाता है।
      • मज़बूत विनिर्माण आधार के साथ, भारत ने वैक्सीन मैत्री जैसी पहलों के माध्यम से निःशुल्क वैक्सीन प्रदान करने और इसकी वाणिज्यिक बिक्री दोनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, पश्चिमी देशों द्वारा आविष्कृत वैक्सीन के उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाया। 
        • जनवरी और अप्रैल 2021 की अवधि में भारत ने 65 देशों को 46 मिलियन से अधिक डोज़ का निर्यात किया जिनमें से लगभग 80% का निःशुल्क वितरण करने के साथ पर विक्रय किया गया था। 
      • भारत ने भू-राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण देशों को निःशुल्क वैक्सीन प्रदान किये, जबकि विनिर्माण लागत को कवर करने के लिये धनी देशों को इसका विक्रय किया। इसने पड़ोसी देशों (नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी) और क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जहाँ भारतीय प्रवासियों की बहुलता है।
      • भारत वैक्सीन कूटनीति में अहम भूमिका निभाने के साथ इसकी आपूर्ति में असमानता की चिंताओं को दूर करने पर बल दे रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विकसित देशों में टीकों की जमाखोरी के संदर्भ में आलोचना की गई है, जबकि कई देश वैक्सीन अंतराल को दूर करने के लिये भारत की ओर रुख कर रहे हैं।
    • चीन का व्यापक निवेश: चीन ने वैक्सीन के विकास, उत्पादन एवं वितरण में बड़े पैमाने पर निवेश करने के साथ बेल्ट एंड रोड पहल के साथ जुड़ने हेतु अफ्रीकी तथा ASEAN देशों को प्राथमिकता दी है। 
      • पाकिस्तान, चीन की वैक्सीन सहायता का सबसे बड़ा लाभार्थी बन गया है।
    • BRICS देशों के बीच समन्वय: वैक्सीन उद्योग में BRICS देश आपस में समन्वय कर रहे हैं। उदाहरण के लिये, रूस ने ब्राज़ील से बड़ा ऑर्डर मिलने पर इसके उत्पादन आउटसोर्स के लिये चीन तथा भारत की ओर रुख किया। 
      • चीन ने ब्राज़ील में वैक्सीन के क्लिनिकल परीक्षण किये तथा रूस ने कोविशील्ड उत्पादन हेतु ब्राज़ील और भारत को API की आपूर्ति की। 
  • दवा आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये वैक्सीन कूटनीति:
    • वैक्सीन कूटनीति से देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। इससे आपूर्ति शृंखला में संभावित कमी का अनुमान लगाने और उसे दूर करने के क्रम में उत्पादन को सुव्यवस्थित करने हेतु कच्चे माल तथा संसाधनों को साझा किया जा सकता है। 
    • वैक्सीन कूटनीति से अन्य देशों को तकनीक या उत्पादन लाइसेंस प्रदान करने के क्रम में नए विनिर्माण केंद्रों के निर्माण को प्रोत्साहित करके वैक्सीन उत्पादन क्षमता का विस्तार किया जा सकता है। 
      • मौजूदा वैक्सीन उत्पादन केंद्रों में आवश्यक दवाओं के उत्पादन द्वारा आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता को बढ़ावा मिलेगा। 
    • एकल-स्रोत आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम होने से स्वास्थ्य संकट के दौरान आपूर्ति में व्यवधान संबंधित जोखिम कम किया जा सकता है।

बायो इंटरनेशनल कन्वेंशन, 2024 

  • हाल ही में सैन डिएगो,कैलिफोर्निया में बायो इंटरनेशनल कन्वेंशन, 2024 (जिसे BIO 2024 के नाम से भी जाना जाता है) का आयोजन हुआ। 
  • यह बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र का सबसे बड़ा आयोजन है, जिसमें उद्योग जगत से विश्व भर के 18,500 से ज़्यादा लोग शामिल हुए। इसमें सरकारी दवा कंपनियों, बायोटेक स्टार्टअप, शिक्षाविदों, गैर-लाभकारी संस्थाओं सहित शोधकर्त्ता, व्यावसायिक पेशेवर एवं निवेशक शामिल होते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  बायोफार्मास्युटिकल एलायंस दवा आपूर्ति की कमी को कम करने और भविष्य के स्वास्थ्य संकटों से निपटने में किस प्रकार योगदान दे सकता है? 

और पढ़ें: चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों के शुद्ध निर्यातक के रूप में भारत

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