बाल सगाई पर प्रतिबंध | 22 Oct 2024
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, किशोर न्याय अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र महासभा, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012, 'खुले में शौच मुक्त गाँव' पहल, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5)। मेन्स के लिये:बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006 के प्रभाव और कमियाँ, भारत में बाल विवाह का मुद्दा। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बच्चे के अल्पवयस्क होने के दौरान की गई सगाई से उसकी "स्वतंत्र पसंद" एवं "बचपन" की आज़ादी का उल्लंघन होता है। इस क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से बाल सगाई को गैर-कानूनी घोषित करने का आग्रह किया।
- न्यायालय के अनुसार, महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) द्वारा वर्ष 1977 में इस समस्या को हल करने की महत्ता पर बल देने के बावजूद, भारत ने अभी तक बाल सगाई के मुद्दे का पूरी तरह से समाधान नहीं किया है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006 में बाल विवाह को अपराध घोषित किया गया है, लेकिन इस अधिनियम के तहत सगाई की प्रथा पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW)
- इस अंतर्राष्ट्रीय संधि का उद्देश्य लैंगिक समानता प्राप्त करना और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है।
- इसे महिलाओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय अधिकार विधेयक माना जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख मानवाधिकार संधियों में से एक है।
- CEDAW को वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था तथा 20 देशों द्वारा अनुमोदन के बाद यह वर्ष 1981 में प्रभावी हुआ।
- भारत ने वर्ष 1980 में CEDAW पर हस्ताक्षर किये और वर्ष 1993 में इसका अनुसमर्थन किया।
भारत में बाल विवाह की स्थिति क्या है?
- इतिहास:
- ऐतिहासिक ग्रंथों से पता चलता है कि कम उम्र में विवाह (विशेष रूप से लड़कियों का) अक्सर सामाजिक-आर्थिक कारणों से या पारिवारिक संबंध सुनिश्चित करने के लिये प्रचलित थे।
- मध्यकाल के दौरान कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक मानदंडों के प्रभाव के कारण यह प्रथा और भी अधिक प्रचलित हो गई। उस दौरान लड़कियों की शादी की उम्र काफी कम थी और अक्सर यौवन के तुरंत बाद ही उनका विवाह तय कर दिया जाता था।
- राजा राम मोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे सामाजिक-धार्मिक सुधारकों से प्रभावित ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने बाल विवाह के नुकसान को पहचाना और इस मुद्दे पर ध्यान देना शुरू किया।
- ब्रिटिश सरकार ने इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिये विधायी उपाय (विशेष रूप से वर्ष 1891 का सम्मति आयु अधिनियम, जिसके तहत विवाह के लिये सहमति की आयु बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गई) प्रस्तुत किये।
- बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929), जिसे शारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष एवं लड़कों के लिये 18 वर्ष निर्धारित की गई, जो बाल विवाह को नियंत्रित करने के क्रम में पहला विधिक हस्तक्षेप था।
- भारत में बाल विवाह की स्थिति:
- बाल विवाह में बालिकाओं की हिस्सेदारी वर्ष 1993 के 49% से घटकर वर्ष 2021 में 22% रह गई। इसमें बालकों की हिस्सेदारी वर्ष 2006 के 7% से घटकर वर्ष 2021 में 2% रह गई, जो समग्र राष्ट्रीय गिरावट को दर्शाता है।
- हालाँकि वर्ष 2016 से 2021 के बीच, इस दिशा में होने वाली प्रगति स्थिर हो गई तथा कुछ राज्यों में बाल विवाह में चिंताजनक वृद्धि देखी गई।
- उल्लेखनीय है कि मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित छह राज्यों में बालिका विवाह में वृद्धि देखी गई।
- आठ राज्यों में बालकों के विवाह में वृद्धि देखी गई जिनमें छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं।
- बाल विवाह रोकने के लिये विधिक उपाय:
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006
- इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ, 2017 के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक पुरुष और उसकी पत्नी के बीच यौन संबंध (अगर उनकी उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच है) को बलात्कार माना जाएगा।
- उक्त निर्णय ने भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 375 के अपवाद 2 के दायरे को सीमित कर दिया और वैवाहिक यौन संबंध हेतु सहमति की आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया।
- सरकारी पहल:
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
- धनलक्ष्मी योजना: यह बीमा कवरेज के साथ बालिकाओं के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है।
- इसका उद्देश्य माता-पिता को चिकित्सा व्यय के लिये बीमा कवरेज प्रदान करने के साथ बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करके बाल विवाह को समाप्त करना भी है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (PCMA) 2006 क्या है?
- उद्देश्य: यह अधिनियम बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने के साथ विधिक उम्र से पूर्व बच्चों के विवाह पर रोक लगाता है।
- विवाह की विधिक आयु: इस अधिनियम के तहत विवाह की विधिक आयु महिलाओं के लिये 18 वर्ष और पुरुषों के लिये 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
- अमान्य विवाह: नाबालिगों के विवाह को किसी भी पक्ष की इच्छा पर अमान्य घोषित किया जा सकता है तथा वे वयस्क होने के दो वर्ष के अंदर विवाह को रद्द करने की मांग कर सकते हैं।
- दंड: इस अधिनियम में बाल विवाह कराने या इसके लिये उकसाने वालों के साथ-साथ इसमें शामिल माता-पिता या अभिभावकों के लिये कारावास एवं जुर्माने सहित दंड का प्रावधान किया गया है।
- बाल विवाह निषेध अधिकारी: यह अधिनियम राज्यों को बाल विवाह रोकने और कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये बाल विवाह निषेध अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार देता है।
- संरक्षण और भरण-पोषण: यह अधिनियम ऐसे विवाहों में शामिल नाबालिगों को सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें बाल वधू के पुनर्विवाह तक भरण-पोषण का अधिकार भी शामिल है।
- प्रयोज्यता: यह अधिनियम बाल विवाह की अनुमति देने वाले किसी भी रीति-रिवाज़, कानून या व्यक्तिगत धार्मिक कानून को रद्द करता है।
न्यायालय के निर्णय में क्या कहा गया?
- बचपन का समान अधिकार: न्यायालय ने बताया कि पुरुषत्व और यौन प्रभुत्व का पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण, साथ ही साथियों की गलत सूचना से अक्सर युवा लड़के अपनी बाल वधुओं के खिलाफ हिंसा करने के लिये प्रेरित होते हैं।
- यद्यपि लड़कियाँ इससे असमान रूप से प्रभावित होती हैं फिर भी निर्णय में इस बात पर बल दिया गया है कि बचपन का अधिकार लिंग से परे सभी को है।
- न्यायालय ने एक ऐसे बच्चे, जिसकी शादी तय हो चुकी थी, को किशोर न्याय अधिनियम के तहत "देखभाल एवं संरक्षण की ज़रूरत वाला नाबालिग घोषित किया।
- बाल विवाह आधुनिक कानूनों के समक्ष खतरा: न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह की सदियों पुरानी प्रथा, पोक्सो अधिनियम, 2012 जैसे आधुनिक कानूनों को कमजोर करती है क्योंकि इससे विधिक सुरक्षा के बावजूद नाबालिग लड़कियाँ यौन शोषण हेतु संवेदनशील हो जाती हैं।
- बाल विवाह का वस्तुकरण: न्यायालय ने माना कि बाल विवाह बच्चों को वस्तु बनाता है और उन पर वयस्क जिम्मेदारियाँ थोपता है, जिसमें प्रजनन क्षमता की अपेक्षाएँ भी शामिल हैं।
- प्राकृतिक कामुकता में व्यवधान: न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह से व्यक्ति की यौन इच्छा और क्षमता अव्यवस्थित हो जाती है।
- न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देश क्या हैं?
- यौन शिक्षा के लिये दिशानिर्देश: न्यायालय ने सरकार को स्कूलों में बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील यौन शिक्षा लागू करने का निर्देश दिया।
- बाल विवाह मुक्त गाँव पहल: इसमें 'खुले में शौच मुक्त गाँव' पहल के समान 'बाल विवाह मुक्त गाँव' बनाने के लिये एक अभियान का प्रस्ताव किया गया, जिसमें स्थानीय और सामुदायिक नेताओं को शामिल किया गया।
- ऑनलाइन रिपोर्टिंग पोर्टल: न्यायालय ने गृह मंत्रालय को बाल विवाह की ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिये एक निर्दिष्ट पोर्टल स्थापित करने की सिफारिश की।
- मुआवज़ा संबंधी योजना: न्यायालय ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से उन लड़कियों के लिये मुआवज़ा संबंधी योजना आरंभ करने का आग्रह किया, जो बाल विवाह से बाहर निकलना चाहती हैं।
- वार्षिक बजट आबंटन: इसमें बाल विवाह को रोकने और प्रभावित व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने के लिये समर्पित वार्षिक बजट के आबंटन का भी आह्वान किया गया।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) 2012
- उद्देश्य:
- POCSO अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाना है। इसका उद्देश्य अपराध की गंभीरता के आधार पर अपराधियों को दंडित करना भी है।
- विशेषताएँ:
- यह लैंगिक-तटस्थ है क्योंकि यह लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है। इसमें मामलों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतों, पीड़ितों के लिये मुआवज़ा और किसी विश्वसनीय वयस्क की मौज़ूदगी में मेडिकल जाँच के प्रावधान भी शामिल हैं।
- संशोधन:
- वर्ष 2019 में इसमें संशोधन करके मृत्युदंड सहित और भी कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
- रिपोर्टिंग:
- केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्टिंग की सुविधा के लिये POCSO ई-बॉक्स लॉन्च किया।
- मुआवज़ा:
- पीड़ितों को तत्काल ज़रूरतों के लिये अंतरिम मुआवज़ा मिल सकता है, किसी भी नुकसान या क्षति के लिये अंतिम मुआवज़ा मिल सकता है। मुआवज़ा इस बात की परवाह किये बगैर दिया जाता है कि आरोपी दोषी पाया गया है या नहीं।
PCMA को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक दृष्टिकोण: गहरी जड़ें जमाए हुए सांस्कृतिक विश्वास और प्रथाएँ विभिन्न समुदायों में बाल विवाह को बढ़ावा देती रहती हैं, जिससे दृष्टिकोण में बदलाव लाना मुश्किल हो जाता है।
- कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक कानून, जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ और पूर्वोत्तर में जनजातीय रीति-रिवाज़, बाल विवाह की अनुमति देते हैं, जिससे बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) इन मामलों में लागू नहीं होता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) वर्ष 2019-21 के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की लगभग 23% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई थी, जो इस प्रथा की निरंतर स्वीकृति को दर्शाता है।
- कानूनों का अपर्याप्त प्रवर्तन: PCMA, 2006 के अस्तित्व के बावजूद प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है। स्थानीय अधिकारियों के पास बाल विवाह के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिये संसाधन या प्रतिबद्धता की कमी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सज़ा की संभावना कम होती है।
- लैंगिक असमानता: लैंगिक भेदभाव बाल विवाह को बढ़ावा देता है, क्योंकि लड़कियों को अक्सर आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है।
- सामाजिक दबाव: बच्चों में गलत सूचना और सामाजिक दबाव के चलते बाल विवाह को स्वीकार किया जा सकता है। इन प्रभावों का सामना करने के लिये सामुदायिक सहभागिता और सामाजिक शिक्षा कार्यक्रम आवश्यक हैं।
- जागरुकता और शिक्षा का अभाव: कई समुदायों में बाल विवाह के विरुद्ध विधिक प्रावधानों और इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता का अभाव है।
- परिवारों को विवाह में विलंब के लाभ और बच्चों के अधिकारों के संबंध में जानकारी देने के लिये शैक्षिक अभियान चलाने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- विधिक ढाँचे और प्रवर्तन को सुदृढ़ करना: स्थानीय प्राधिकारियों और कानून प्रवर्तन की जवाबदेही बढ़ाकर बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रवर्तन को बढ़ाना।
- बाल विवाह को प्रभावी ढंग से रोकने और उससे निपटने के लिये अधिकारियों के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करना।
- लड़कियों के लिये शैक्षिक और आर्थिक अवसरों का विस्तार करना: लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली पहलों में निवेश करना और लड़कियों को स्कूल में रखने के लिये परिवारों को छात्रवृत्ति या वित्तीय सहायता प्रदान करना। उदाहरण के लिये असम की निजुत मोइना योजना सरकारी और सहायता प्राप्त संस्थानों में उच्चतर माध्यमिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की छात्राओं को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना, जिससे कम उम्र में विवाह की प्रवृत्ति कम हो।
- लड़कियों के लिये शैक्षिक और आर्थिक अवसरों का विस्तार करना: लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली पहलों में निवेश करना और लड़कियों को स्कूल में रखने के लिये परिवारों को छात्रवृत्ति या वित्तीय सहायता प्रदान करना। उदाहरण के लिये असम की निजुत मोइना योजना सरकारी और सहायता प्राप्त संस्थानों में उच्चतर माध्यमिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की छात्राओं को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- सहायता प्रणालियों और स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाना: बाल विवाह के जोखिम वाली लड़कियों के लिये परामर्श और स्वास्थ्य सेवाओं सहित सहायता नेटवर्क स्थापित करना।
- बालिकाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने तथा प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण प्रदान करना।
- व्यापक जागरुकता अभियान चलाना: बाल विवाह के नकारात्मक प्रभावों और लड़कियों के लिये शिक्षा के लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाना।
- सांस्कृतिक बदलावों को बढ़ावा देने और हानिकारक प्रथाओं को छोड़ने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु समुदाय के नेताओं, अभिभावकों और युवाओं को शामिल करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में बाल विवाह के बच्चों के अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपरोक्त में से कौन-सा/से अधिकार बच्चों के हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मुख्य परीक्षा:Q. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (वर्ष 2019) |