भारतीय इतिहास
औरंगज़ेब और मराठा साम्राज्य
- 25 Mar 2025
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:मुगल, मराठा, जज़िया कर, संभाजी, छत्रपति शिवाजी। मेन्स के लिये:मुगलों के बारे में, उनका प्रशासन, कराधान प्रणाली, मराठा साम्राज्य के बारे में |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
नागपुर में सार्वजनिक जनाक्रोश के कारण खुल्दाबाद, छत्रपति संभाजी नगर में मुगल शासक औरंगज़ेब के 17वीं सदी के मकबरे को ध्वस्त करने की मांग उठने लगी है, जिससे औरंगज़ेब और मराठों के बारे में चर्चा शुरू हो गई है।
औरंगज़ेब
- शाहजहाँ का पुत्र औरंगज़ेब (आलमगीर) छठा मुगल सम्राट था (बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के बाद) जिसने वर्ष 1658 से वर्ष 1707 तक शासन किया।
- वे उत्तराधिकार के युद्ध में दारा शिकोह, शुजा और मुराद सहित सभी प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करने के बाद सिंहासन पर बैठे।
- वे अंतिम शक्तिशाली मुगल शासक थे, उनके अधीन साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ, लेकिन इसके साथ ही साथ उन्हें महत्त्वपूर्ण आंतरिक संघर्षों का भी सामना करना पड़ा।
औरंगज़ेब की प्रमुख नीतियाँ क्या थीं?
- धार्मिक नीतियाँ:
- इस्लामी रूढ़िवाद: उन्होंने रूढ़िवादी सुन्नी इस्लाम की सख्त व्याख्या का पालन किया और कठोर धार्मिक प्रथाओं पर ज़ोर दिया।
- जज़िया का पुनर्रोपण: उन्होंने वर्ष 1679 में गैर-मुसलमानों पर जज़िया कर को पुनः लागू कर दिया, जिसे विशेष रूप से हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण माना गया।
- धार्मिक नेताओं का उत्पीड़न: उन्होंने गुरु तेग बहादुर (नौवें सिख गुरु) का इस्लाम में धर्मांतरण से इनकार करने पर उत्पीड़न किया, जिससे सिख प्रतिरोध को बढ़ावा मिला और मुगल सत्ता के खिलाफ उनके सशस्त्र संघर्ष में योगदान मिला।
- मंदिरों का विध्वंसीकरण: वर्ष 1669 में, औरंगज़ेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) और केशवदेव मंदिर (मथुरा) सहित प्रमुख हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
- प्रशासनिक नीतियाँ:
- प्रशासनिक केंद्रीकरण: औरंगज़ेब ने सूबेदारों और ज़मींदारों की स्वायत्तता पर अंकुश लगाया, मनसबदारों के लिये निश्चित वेतन लागू किया और शाही नियंत्रण को मज़बूत करने के लिये नौकरशाही नियुक्तियों को केंद्रीकृत कर दिया।
- मनसबदारी में सुधार: औरंगज़ेब ने मनसबदारों की वित्तीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाया, जिससे वे केंद्रीय कोष पर निर्भर हो गए, तथा धोखाधड़ी को रोकने के लिये दाग (घोड़े पर दाग लगाना) और चेहरा (सैनिक पहचान) प्रणालियों के माध्यम से सैन्य दक्षता में वृद्धि की।
- दाग और चेहरा प्रणालियाँ अलाउद्दीन खिलजी (वर्ष 1296 से वर्ष 1316) द्वारा शुरू की गई थीं।
- फतवा-ए-आलमगीरी: प्रशासनिक और न्यायिक मामलों को संचालित करने के लिये इस्लामी कानूनों को संकलित किया गया, जिससे राज्य की प्रकृति अधिक धर्मतंत्रात्मक हो गयी।
- आर्थिक एवं कराधान नीतियाँ:
- उन्होंने राजस्व संग्रह की ज़ब्त प्रणाली जारी रखी, जिसने फसल की विफलता के बावजूद उच्च, अनम्य कर लगाए, जिससे किसान संकटग्रस्त हो गए और खाद्यान्न की कमी हो गई। सिंचाई और कृषि सुधारों में निवेश की कमी से आर्थिक स्थिरता और खराब हो गई।
- अकबर के अधीन राजा टोडरमल द्वारा शुरू की गई दहसाला (ज़ब्ती) प्रणाली, फसल उत्पादन और कीमतों के 10-वर्षीय औसत पर आधारित एक व्यवस्थित राजस्व मूल्यांकन पद्धति थी।
- अत्यधिक सैन्य व्यय: मराठों और राजपूतों के विरुद्ध लंबे समय तक चले युद्धों से वित्तीय घाटा हुआ, कर का बोझ बढ़ा, तथा किसान विद्रोहों को बढ़ावा मिला, जिससे क्षेत्रीय प्रतिरोध में तेज़ी आई।
- व्यापार विनियमन: व्यापार प्रतिबंधों ने मुस्लिम व्यापारियों को लाभ पहुँचाया, जबकि सख्त इस्लामी वाणिज्यिक कानूनों ने उद्यमशीलता को हतोत्साहित किया, जिससे साम्राज्य की आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो गई।
- कला, संस्कृति और बुनियादी ढाँचे में गिरावट: कारीगरों को मिलने वाले संरक्षण में कमी आई, स्मारकीय वास्तुकला पर रोक लगी, सैन्य किलेबंदी पर ध्यान केंद्रित हुआ, जिससे आर्थिक विकास सीमित हो गया।
- उन्होंने राजस्व संग्रह की ज़ब्त प्रणाली जारी रखी, जिसने फसल की विफलता के बावजूद उच्च, अनम्य कर लगाए, जिससे किसान संकटग्रस्त हो गए और खाद्यान्न की कमी हो गई। सिंचाई और कृषि सुधारों में निवेश की कमी से आर्थिक स्थिरता और खराब हो गई।
मराठा साम्राज्य से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- मराठों का उदय:
- दक्कन में कमज़ोर पड़ते आदिलशाही और मुगल शासन का विरोध करके, छत्रपति शिवाजी (1630-1680) ने 17वीं सदी के मराठा साम्राज्य की आधारशिला रखी।
- मराठा साम्राज्य की औपचारिक स्थापना वर्ष 1674 में शिवाजी के छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक के साथ हुई और यह वर्ष 1819 तक चला, जब इसे अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी ने हरा दिया।
- मराठा साम्राज्य का उदय: मराठों के उत्थान को सामरिक, भौगोलिक और राजनीतिक कारकों के संयोजन के कारण माना जा सकता है।
- भौगोलिक लाभ: पश्चिमी घाट के बीहड़ इलाके ने प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान की और गुरिल्ला युद्ध रणनीति को सुविधाजनक बनाया, जबकि पहाड़ी पर स्थित अनेक किलों ने मराठा प्रतिरोध और सैन्य अभियानों को मज़बूत किया।
- धार्मिक और राजनीतिक एकता: शिवाजी के नेतृत्व ने मराठों को राजनीतिक रूप से एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि भक्ति आंदोलन ने धार्मिक सामंजस्य को बढ़ावा दिया।
- संत तुकाराम, समर्थ रामदास और एकनाथ जैसे आध्यात्मिक नेताओं ने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।
- प्रशासनिक और सैन्य अनुभव: मराठों ने बीजापुर और अहमदनगर सल्तनत में प्रमुख पदों पर कार्य करके बहुमूल्य प्रशासनिक और सैन्य अनुभव प्राप्त किया।
संभाजी महाराज
- परिचय: छत्रपति शिवाजी महाराज और साईबाई निंबालकर के सबसे बड़े पुत्र, संभाजी महाराज (1657-1689), वर्ष 1681 में मराठा सिंहासन पर बैठे।
- उनका शासनकाल मुगल साम्राज्य, विशेषकर औरंगज़ेब के विरुद्ध अटूट प्रतिरोध के लिये जाना जाता है।
- प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक: उनका जन्म 14 मई 1657 को हुआ था, 2 वर्ष की आयु में उनकी माँ का निधन हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई की देखरेख में हुआ।
- उन्होंने छोटी उम्र से ही सैन्य कौशल दिखाया, जब वे केवल 16 वर्ष के थे तब उन्होंने रामनगर में अपनी पहली लड़ाई का नेतृत्व किया।
- उन्होंने येसुबाई से विवाह किया और उनका एक पुत्र शाहू महाराज था।
- मुगलों के साथ संघर्ष:
- औरंगज़ेब के विरुद्ध प्रतिरोध: संभाजी ने मुगलों और अन्य क्षेत्रीय शत्रुओं के विरुद्ध अपने पिता के संघर्ष को जारी रखा।
- बुरहानपुर पर आक्रमण (1681): उन्होंने सफलतापूर्वक मुगल गढ़ बुरहानपुर पर आक्रमण किया, जिससे औरंगज़ेब की सेना को बड़ा झटका लगा।
- गुरिल्ला युद्ध: उन्होंने निरंतर होने वाले मुगल आक्रमणों का मुकाबला करने के लिये गुरिल्ला रणनीति का प्रभावी रूप से उपयोग किया, जिससे दुश्मनों को व्यापक नुकसान हुआ।
- प्रग्रहण और फाँसी:
- वर्ष 1689 में संभाजी के साले गणोजी शिर्के ने उनके साथ छल किया और मुगलों को उनके स्थान की सूचना दी।
- उन्हें उनके करीबी सहयोगी कवि कलश के साथ संगमेश्वर में पकड़ लिया गया।
- औरंगज़ेब के अधीन होने से इनकार करते हुए, उन्हें 11 मार्च 1689 को पुणे के समीप तुलापुर में फाँसी दिये जाने से पहले क्रूर यातनाएँ दी गईं।
छत्रपति शिवाजी से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- मुगलों के साथ संघर्ष: शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार (1657) के पास मुगल क्षेत्रों पर आक्रमण किया, जिसके प्रत्युत्तर में औरंगज़ेब ने नासिरी खान को भेजा, जिसने शिवाजी की सेना को पराजित किया।
- वर्ष 1659 में शिवाजी ने पुणे में शाइस्ता खान और बीजापुर सेना को हराया और वर्ष 1664 में व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लिया।
- राजा जय सिंह प्रथम के साथ पुरंदर की संधि (1665) के कारण मुगलों को कई किले सौंपने पड़े। शिवाजी आगरा में औरंगज़ेब के दरबार में जाने और अपने पुत्र संभाजी को भेजने के लिये भी सहमत हुए।
- प्रग्रहण और पलायन: वर्ष 1666 में, शिवाजी को आगरा में औरंगज़ेब के दरबार में बंदी बना लिया गया, लेकिन वे संभाजी के साथ भेष बदलकर भाग निकलने में सफल रहे।
- इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुगलों के बीच शांति बनी रही। मुगलों द्वारा संभाजी को दी गई बरार की जागीर उनसे वापस ले ली गई थी। शिवाजी ने जवाबी कार्रवाई करते हुए तेजी से खोए हुए इलाकों को वापस हासिल किया और दक्कन में मराठा नियंत्रण का विस्तार किया।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
- संभाजी (1681-1689): उन्होंने विस्तारवादी नीतियाँ जारी रखीं लेकिन मुगलों ने उन्हें बंदी बना लिया और उन्हें फाँसी की सज़ा दी।
- राजाराम (1689-1700): मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध किया और गिन्जी किले में शरण ली तथा बाद में सतारा में उनकी मृत्यु हो गई।
- शिवाजी द्वितीय और तारा बाई का शासन (1700-1714): राजाराम की मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी तारा बाई ने संरक्षिका के रूप में शासन किया और मराठा प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
- शाहू और पेशवाओं का उदय (1713 के बाद): संभाजी के पुत्र शाहू ने वर्ष 1713 में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया, जिससे मराठा प्रशासन में पेशवा प्रणाली का उदय हुआ।
शिवाजी के प्रशासन से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- केंद्रीय प्रशासन: शिवाजी ने दक्कन शैली, विशेष रूप से अहमदनगर में मलिक अंबर के सुधारों से प्रेरणा लेते हुए एक सुव्यवस्थित प्रशासन की स्थापना की।
- इसके अंतर्गत राजा सर्वोच्च अधिकारी होता था, जिसकी सहायता के लिये अष्टप्रधान (आठ मंत्रियों की परिषद) होता था, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते थे:
- पेशवा (प्रधानमंत्री): समग्र प्रशासन की देखरेख की ज़िम्मेदारी।
- अमात्य (वित्त मंत्री): राज्य के वित्त का प्रबंधन।
- सचिव: शाही आदेश जारी करना।
- मंत्री (आंतरिक मंत्री): आंतरिक कार्यों का प्रबंधन।
- सेनापति (कमांडर-इन-चीफ): सैन्य अभियानों का नेतृत्व करता था।
- सुमंत (विदेश मंत्री): विदेश नीति, युद्ध और शांति जैसे मामलों पर राजा को परामार्श देना।
- न्यायाध्यक्ष (मुख्य न्यायाधीश): न्यायिक मामलों की देखरेख करना।
- पंडितराव: धार्मिक कार्यों का प्रबंधन।
- चिटनिस (शाही सचिव) ने शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसके अंतर्गत राजा सर्वोच्च अधिकारी होता था, जिसकी सहायता के लिये अष्टप्रधान (आठ मंत्रियों की परिषद) होता था, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते थे:
- प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को प्रांतों, ज़िलों (तरफों) और उप-ज़िलों (परगना) में बाँटा गया था।
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स्थानीय अधिकारियों में देशमुख और देशपांडे (राजस्व संग्रहकर्ता) शामिल थे।
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राजस्व प्रशासन: शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और रैयतवाड़ी व्यवस्था की शुरुआत की, जिससे देशमुख, देशपांडे, पाटिल और कुलकर्णी जैसे वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की भूमिका में बदलाव आया।
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उन्होंने मीरासदारों पर कड़ी नज़र रखी, जिनके पास वंशानुगत भूमि अधिकार थे। उनकी राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली के अनुरूप थी, जिसमें भूमि को काठी (Rod) का उपयोग करके मापा जाता था।
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प्रमुख राजस्व स्रोत:
- चौथ (राजस्व का 1/4) गैर-मराठा क्षेत्रों पर संरक्षण कर के रूप में इसकी वसूली की गई।
- सरदेशमुखी (10% कर) राज्य के बाहर के क्षेत्रों पर अधिरोपित।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम करने के लिये मीरासदारों (वंशानुगत ज़मींदारों) की शक्ति को नियंत्रित किया गया।
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- सैन्य प्रशासन: शिवाजी के पास एक अत्यंत अनुशासित और कुशल सेना थी, जिसमें 30,000-40,000 सैनिकों की घुड़सवार सेना भी शामिल थी ।
- साधारण सैनिकों का भुगतान नकद में किया जाता था, जबकि सरदारों और कमांडरों को जागीर अनुदान (सरंजाम या मोकासा) प्रदान किया जाता था। उनकी सेना में शामिल थे:
- पैदल सेना (मावली पैदल सैनिक)
- घुड़सवार सेना (घुड़सवार और उपकरण प्रबंधकर्त्ता) तटीय क्षेत्रों की रक्षा के लिये एक मज़बूत नौसैनिक बल था।
- गुरिल्ला युद्ध की रणनीति शुरू की गई और कई रणनीतिक स्थानों को सुरक्षित किया गया।
- समुद्री व्यापार और तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये भारत की पहली नौसेना बल की स्थापना की गई।
- साधारण सैनिकों का भुगतान नकद में किया जाता था, जबकि सरदारों और कमांडरों को जागीर अनुदान (सरंजाम या मोकासा) प्रदान किया जाता था। उनकी सेना में शामिल थे:
निष्कर्ष:
शिवाजी के नेतृत्व और मराठों के दृढ़ विश्वास से मुगल सेना के प्रभुत्व पर नियंत्रण स्थापित हुआ और एक स्व-शासित राज्य की स्थापना के साथ भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। उनकी सैन्य शक्ति, प्रशासनिक दक्षता और शक्तिशाली साम्राज्यों के प्रति प्रतिरोधक्षमता की भारत के राजनीतिक पुनरुत्थान में अहम भूमिका रही।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. मराठा साम्राज्य के पतन के कारणों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'अष्ट प्रधान' ____________ मंत्रिपरिषद थी (a) गुप्त प्रशासन में उत्तर: (d) प्रश्न. मुगल भारत के संदर्भ में, जागीरदार और ज़मींदार के बीच क्या अंतर है/हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (d) |