राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम | 18 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जनहित याचिका, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, विशाखा दिशा-निर्देश 

मेन्स के लिये:

राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम का अनुप्रयोग, राजनीतिक दलों में POSH लागू करने की आवश्यकता, निहितार्थ और चुनौतियाँ, भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजनीतिक दलों में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) की प्रयोज्यता के संबंध में एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की गई।

  • यह मुद्दा विशेषकर भारत में राजनीतिक संगठनों की विशिष्ट संरचना को देखते हुए, अस्पष्टता का क्षेत्र बना हुआ है। 

राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के अंतर्गत लाने की आवश्यकता क्यों है?

  • महिला सांसदों का उत्पीड़न: वर्ष 2016 के अंतर-संसदीय संघ (IPU) सर्वेक्षण में पाया गया कि विश्व स्तर पर 82% महिला सांसदों को मनोवैज्ञानिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिसमें लैंगिक भेदभावपूर्ण टिप्पणियाँ और धमकियाँ शामिल हैं। 
    • अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में 40% सांसद यौन उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
  • सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना: बढ़ती भागीदारी के बावजूद, महिलाओं की लोकसभा सीटों में केवल 14.4% और राज्य विधानसभाओं में 10% से भी कम हिस्सेदारी है, जो प्रणालीगत बाधाओं को दर्शाता है। 
    • राजनीतिक दलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने से महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व और नेतृत्व की भूमिका को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कानूनी और संवैधानिक अधिदेश: POSH अधिनियम की "कार्यस्थल" और "कर्मचारी" की विस्तृत परिभाषाओं में स्वयंसेवक, पार्टी कार्यकर्त्ता तथा क्षेत्र के कार्यकर्त्ता शामिल हो सकते हैं, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा की गारंटी मिलती है। इसके अतिरिक्त, संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 समानता एवं गैर-भेदभाव की गारंटी प्रदान करते हैं।
  • आंतरिक तंत्र का अभाव: राजनीतिक दलों में अक्सर उचित शिकायत निवारण प्रणालियों का अभाव होता है।
    • आंतरिक समितियों में बाह्य सदस्यों को शामिल करना या POSH अधिनियम के तहत अपेक्षित निष्पक्षता मानकों को पूरा करना अनिवार्य नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्टिंग में कमी आती है।
  • चुनावी और संस्थागत सुधार: POSH अधिनियम के अंतर्गत राजनीतिक दलों को शामिल करना, चुनाव आयोग द्वारा पार्टी संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर देने, प्रभावशाली संस्थाओं में आंतरिक लोकतंत्र तथा लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के अनुरूप है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ: भारत को स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों से सीख लेनी चाहिये, जिन्होंने लिंग-संवेदनशील राजनीतिक संगठन प्रथाओं को औपचारिकता बना दिया है।
    • वर्ष 2017 में स्थापित यूके संसद की स्वतंत्र शिकायत और शिकायत नीति (Independent Complaints and Grievance Policy- (ICGP)) का उद्देश्य यूके संसद में यौन उत्पीड़न से निपटना है। 

POSH अधिनियम क्या है?

परिचय:

  • इसे भारत सरकार द्वारा कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को हल करने और महिलाओं के लिये सुरक्षित एवं अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।

पृष्ठभूमि:

यौन उत्पीड़न:

  • अधिनियम में यौन उत्पीड़न को व्यापक रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह के लिये अनुरोध, यौन रूप से रंजित टिप्पणियाँ, पोर्नोग्राफी दिखाना तथा यौन प्रकृति का कोई भी अन्य अवांछित आचरण, चाहे वह शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक हो, शामिल है।

कार्यस्थल की परिभाषा:

  • POSH अधिनियम की धारा 3(1) में कहा गया है कि “किसी भी महिला को किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ेगा।” “कार्यस्थल” की परिभाषा व्यापक है और इसमें शामिल हैं:
    • सरकार द्वारा स्थापित या वित्तपोषित सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन।
    • निजी क्षेत्र के संगठन।
    • रोज़गार के दौरान कर्मचारियों द्वारा दौरा किये गए स्थान।

प्रमुख प्रावधान:

  • रोकथाम और निषेध: यह अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने और निषिद्ध करने के लिये नियोक्ताओं पर कानूनी दायित्व डालता है।
  • आंतरिक शिकायत समिति (ICC): नियोक्ताओं को यौन उत्पीड़न की शिकायतों को प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक ICC का गठन करना आवश्यक है।
    • शिकायत समितियों को साक्ष्य एकत्र करने के लिये सिविल न्यायालयों के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं।
      • ICC के विरुद्ध अपील औद्योगिक न्यायाधिकरण या श्रम न्यायालय में दायर की जा सकती है।
    • जिन संगठनों में 10 से कम कर्मचारी हों या विशिष्ट परिस्थितियों में आंतरिक समिति (IC) न हो, वहाँ शिकायतें प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये ज़िलाधिकारी द्वारा स्थानीय समिति (LC) गठित की जाती है।
  • नियोक्ताओं के कर्त्तव्य: नियोक्ताओं को जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिये, सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिये और कार्यस्थल पर POSH अधिनियम के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिये।
  • शिकायत तंत्र: अधिनियम में शिकायत दर्ज करने, जाँच करने तथा संबंधित पक्षों को उचित अवसर प्रदान करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
  • दंड: अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन न करने पर ज़ुर्माना और व्यवसाय लाइसेंस रद्द करने सहित दंड आरोपित किया जा सकता है।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशें:

न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन वर्ष 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा के लिये किया गया था। इसने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के संबंध में कई प्रमुख सिफारिशें कीं, जैसे:

  • घरेलू कामगारों को शामिल करना: समिति ने सिफारिश की कि घरेलू कामगारों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये POSH अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये।
  • नियोक्ता द्वारा मुआवज़ा: समिति ने सुझाव दिया कि नियोक्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अन्य कानूनी उपायों के साथ-साथ मुआवज़ा देने के लिये उत्तरदायी होना चाहिये।
  • रोज़गार न्यायाधिकरण: केवल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) पर निर्भर रहने के बजाय, समिति ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिये एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जिससे अधिक निष्पक्ष और व्यापक निर्णय सुनिश्चित हो सके।

राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम के अनुप्रयोग में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • पारंपरिक संरचना का अभाव:
    • राजनीतिक दल प्रायः अस्थायी कार्यकर्त्ताओं को नियुक्त करते हैं, जिनका कोई पारिभाषिक कार्यस्थल या उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ सीधा संबंध नहीं होता। 
      • इससे ICC की स्थापना के लिये ज़िम्मेदार कार्यस्थल की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव:
    • राजनीतिक दल आमतौर पर अपनी स्वयं की समितियों के माध्यम से आंतरिक अनुशासन (यौन उत्पीड़न के मामलों सहित) का प्रबंधन करते हैं, क्योंकि दलों से संबंधित POSH के आवेदन के लिये स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है।
  • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका:
    • संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मामले में निर्वाचन आयोग को स्पष्ट अधिकार प्राप्त है, लेकिन POSH जैसे अन्य कानूनों के मामले में इसका अभाव है।
    • ECI ने उम्मीदवारों के लिये अनिवार्य विवरण और राजनीतिक वित्तपोषण जवाबदेही जैसे उपायों के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाई है।
      • हालाँकि कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों, जैसे कि POSH अधिनियम, को लागू करने में इसकी भूमिका अभी भी अस्पष्ट है। 
  • विधिक उदाहरण:
    • केरल उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकार अनुसंधान एवं वकालत केंद्र बनाम केरल राज्य (2022) मामले में फैसला सुनाया कि राजनीतिक दलों का अपने सदस्यों के साथ नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है और इसलिये वे ICC के लिये बाध्य नहीं हैं। 
    • यह निर्णय कार्यस्थल संबंधी कानूनों को राजनीतिक क्षेत्र में लागू करने की जटिलता को रेखांकित करता है।

राजनीतिक दलों से संबंधित समान मुद्दे

  • राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाना: वर्ष 2013 में CIC द्वारा इन्हें सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किये जाने के बावजूद, अधिकांश राजनीतिक दलों ने RTI अधिनियम के दायरे में आने का विरोध किया।
    • इनकी कार्यप्रणाली और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की कमी से लोगों के बीच इसमें विश्वास के साथ लोकतांत्रिक जवाबदेही कमज़ोर होती है।
  • कोई अनिवार्य आयकर अनुपालन नहीं: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के तहत राजनीतिक दलों को करों से छूट प्राप्त है यदि वे उचित खाते बनाए रखते हैं और ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। 
    • हालाँकि कई दलों द्वारा अपने वित्तीय विवरणों को पूरी तरह से पारदर्शी न करने के कारण, दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। अधिक जवाबदेहिता तथा कराधान अनुपालन को अनिवार्य बनाने के क्रम में किये जाने वाले सुधार वित्तीय अस्पष्टता को रोकने में मदद कर सकते हैं।

आगे की राह

  • विधायी संशोधन: राजनीतिक दलों को इसमें स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये POSH अधिनियम में संशोधन करने के साथ पार्टी संरचनाओं के संदर्भ में "कार्यस्थल" तथा "नियोक्ता" संबंधी अस्पष्टताओं को दूर करना चाहिये।
    • राजनीतिक दलों द्वारा कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों जैसे POSH अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भारत निर्वाचन आयोग या सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
    • यदि 10 या अधिक सदस्यों वाली छोटी संस्थाओं को आंतरिक समितियाँ गठित करने का आदेश दिया जाता है तो राजनीतिक दलों को छूट देने का कोई औचित्य नहीं है।
  • ICC की स्थापना: राजनीतिक दलों के तहत आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना को अनिवार्य बनाना चाहिये ताकि POSH अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके एवं एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराया जा सके।
  • क्षमता निर्माण एवं जागरूकता: यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों एवं ICC की कार्यप्रणाली के संदर्भ में सदस्यों को शिक्षित करने के लिये राजनीतिक दलों के तहत नियमित रूप से संवेदनशीलता तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये।
  • महिलाओं के लिये समर्पित न्यायाधिकरण: वर्मा समिति की सिफारिश के अनुसार, राजनीतिक दलों से संबंधित उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिये एक समर्पित न्यायाधिकरण की स्थापना एक स्वतंत्र और विशिष्ट तंत्र के रूप में की जा सकती है। 
    • इससे जवाबदेही बढ़ने, समय पर निवारण सुनिश्चित होने तथा महिला राजनेताओं के लिये अधिक सुरक्षित एवं समावेशी राजनीतिक वातावरण का सृजन होगा।
  • ECI की निगरानी को मज़बूत करना: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को कार्यस्थल सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की निगरानी एवं इन्हें लागू करने के लिये सशक्त बनाने के साथ राजनीतिक दलों के तहत जवाबदेहिता तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये।

निष्कर्ष

राजनीतिक दलों पर POSH अधिनियम की प्रयोज्यता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के विचार-विमर्श से कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के क्रम में मज़बूत विधिक ढाँचे की तत्काल आवश्यकता को बल  मिला है। शासन एवं सामाजिक मानदंडों को आकार देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, राजनीतिक दलों को महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिये। इसको लागू करने से न केवल राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यस्थल सुरक्षा मानक भी प्रभावित होंगे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में POSH अधिनियम की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। क्या राजनीतिक दलों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिये? तर्कों एवं उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)