सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन | 29 Oct 2024

परिचय:

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन, प्रशासनिक आवंटन बनाम नीलामी, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), दूरसंचार अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

भारत में स्पेक्ट्रम प्रबंधन, स्पेक्ट्रम आवंटन के आर्थिक निहितार्थ, नियामक ढाँचा, विभिन्न देशों में स्पेक्ट्रम से संबंधित आवंटन पद्धतियाँ।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत ने उद्योग जगत के दिग्गजों की प्रतिक्रिया और स्पेक्ट्रम संबंधी प्रबंधन पर नए सिरे से छिड़ी बहस के बीच,  सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी के माध्यम से नहीं, बल्कि “प्रशासनिक रूप से” किया जाएगा

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम क्या है? 

  • परिचय: 
    • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम से तात्पर्य उपग्रहों (सैटेलाइट) के माध्यम से संचार के लिये प्रयुक्त विशिष्ट आवृत्ति बैंड से है।
      • ये रेडियो फ्रीक्वेंसियाँ भू-स्टेशनों से कक्षा में स्थित उपग्रहों तक और इसके विपरीत संकेतों को प्रेषित करने के लिये आवश्यक हैं, जिससे टेलीविजन प्रसारण, इंटरनेट एक्सेस एवं मोबाइल संचार जैसी सेवाओं को सुविधाजनक बनाया जा सके।
  • नियामक निरीक्षण: 
    • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम मोबाइल संचार के लिये प्रयुक्त स्थलीय स्पेक्ट्रम से भिन्न होता है, क्योंकि यह राष्ट्रीय सीमाओं के बिना संचालित होता है। 
  • सैटेलाइट के महत्त्व: 
    • विशेष रूप से ब्रॉडबैंड और आपातकालीन संचार जैसे क्षेत्रों में उपग्रह सेवाओं की बढ़ती मांग के साथ, स्पेक्ट्रम आवंटन महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 
      • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का कुशल प्रबंधन विश्वसनीय संचार, विशेष रूप से दूरदराज या कम सुविधा वाले क्षेत्रों में, सुनिश्चित करता है।
  • सैटेलाइट फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) बैंड: 
    • एल-बैंड (1-2 गीगाहर्ट्ज): GPS और मोबाइल उपग्रह सेवाओं के लिये उपयोग किया जाता है।
    • एस-बैंड (2-4 गीगाहर्ट्ज): मौसम रडार, हवाई यातायात नियंत्रण और मोबाइल उपग्रह अनुप्रयोगों के लिये उपयोग किया जाता है।
    • सी-बैंड (4-8 गीगाहर्ट्ज): आमतौर पर उपग्रह टीवी प्रसारण और डेटा संचार के लिये उपयोग किया जाता है।
    • एक्स-बैंड (8-12 गीगाहर्ट्ज): मुख्य रूप से रडार और संचार के लिये सैन्य अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है।
    • कू-बैंड (12-18 गीगाहर्ट्ज) और का-बैंड (26-40 गीगाहर्ट्ज): उपग्रह टेलीविजन, इंटरनेट सेवाओं और  'हाई-थ्रूपुट' डेटा संचरण के लिये उपयोग किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU)

  • यह सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
  • संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय संपर्क को सक्षम करने हेतु वर्ष 1865 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) का मुख्यालय ज़िनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। 
  • यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और उपग्रह कक्षाओं का आवंटन करता है, तकनीकी मानकों को निर्धारित कर नेटवर्क और प्रौद्योगिकियों को निर्बाध रूप से आपस में जोड़ना सुनिश्चित करता है, तथा दुनिया भर में वंचित समुदायों के लिये ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास करता है। 

भारत में उपग्रह संचार (SatCom) क्षेत्र की स्थिति

  • मार्केट के खरीददार और बेचने वाले: 
    • सैटकॉम क्षेत्र में निवेश के मामले में भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है।
    • भारतीय सैटकॉम क्षेत्र का वार्षिक मूल्य लगभग 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसके वर्ष 2028 तक 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • भारत में लगभग 290.4 मिलियन घरों तक ब्रॉडबैंड सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सैटेलाइट ऑपरेटरों के लिये काफी अवसर मिलता है।
      • 5G/6G सेवाओं और उपग्रह संचार (सैटकॉम) में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के विकास और अपनाने पर भारत के फोकस ने इस क्षेत्र की प्रगति को और तेज़ कर दिया है। 
  • अनुप्रयोग: 
    • सैटकॉम सेवाओं से दूरसंचार, प्रसारण, रेल और समुद्री संचार सहित प्रमुख क्षेत्रों को सहायता मिलती है।
    • सैटकॉम सेवाओं के तहत 125,000 वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल (VSAT) सक्षम एटीएम के माध्यम से प्रतिवर्ष 5 बिलियन एटीएम लेनदेन को समर्थन मिलता है।

भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन की पद्धतियाँ क्या हैं?

  • नीलामी पद्धति: प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया के तहत सरकार सबसे अधिक बोली लगाने वाले को स्पेक्ट्रम लाइसेंस बेचती है। 
    • यह दूरसंचार अधिनियम, 2023 (जिसके तहत अधिकांश स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये नीलामी को अनिवार्य बनाया गया है) द्वारा शासित है।
    • लाभ: 
      • इससे कुशल संसाधन आवंटन को बढ़ावा मिलता है, पारदर्शिता सुनिश्चित होती है तथा सरकार के लिये राजस्व उत्पन्न होता है।
      • इसका उपयोग मुख्य रूप से स्थलीय मोबाइल सेवाओं के लिये किया जाता है, जहाँ कई संस्थाएँ पहुँच के लिये प्रतिस्पर्द्धा करती हैं। 
  • प्रशासनिक आवंटन: सरकार बोली प्रक्रिया के बिना सीधे स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित करती है। 
    • दूरसंचार अधिनियम, 2023 की प्रथम अनुसूची की कुछ प्रविष्टियों के तहत प्रशासनिक आवंटन की अनुमति (विशेष रूप से उपग्रह स्पेक्ट्रम के लिये) मिलती है।
    • लाभ: 
      • इससे लचीलापन मिलने के साथ यह कम प्रतिस्पर्द्धा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है तथा सरकारी सेवाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित होती है।
      • इसका उपयोग अक्सर उभरते उद्योगों, सार्वजनिक सेवाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये किया जाता है।

नीलामी और प्रशासनिक आवंटन के बीच अंतर:

नीलामी विधि 

प्रशासनिक आवंटन 

  • दूरसंचार अधिनियम, 2023 द्वारा अनिवार्य।
  • विशिष्ट क्षेत्रों के लिये दूरसंचार अधिनियम, 2023 के प्रावधानों द्वारा शासित।
  • प्रतिस्पर्द्धी नीलामी ; लाइसेंस उच्चतम बोली लगाने वाले को बेचे जाएंगे।
  • सरकार द्वारा बिना बोली के प्रत्यक्ष असाइनमेंट। 
  • उच्च पारदर्शिता; पक्षपात की संभावना कम हो जाती है
  • कम पारदर्शिता; कम निगरानी की संभावना।
  • यह सरकार के लिये राजस्व का प्रमुख स्रोत है। 
  • इसमें आमतौर पर प्रशासनिक लागतों को कवर करने वाली नाममात्र की फीस शामिल होती है।
  • स्पेक्ट्रम उन लोगों को आवंटित होता है जो इसे सबसे अधिक महत्त्व देते हैं; प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों में कुशल।
  • संसाधन आवंटन में अधिक लचीला लेकिन कम कुशल।
  • आमतौर पर वाणिज्यिक दूरसंचार के लिये उपयोग किया जाता है।
  • यह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सेवाओं और विशेष क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।

भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन विवाद

  • प्रशासनिक कार्यों में बदलाव: भारत के स्पेक्ट्रम आवंटन को जाँच का सामना करना पड़ा है, खासकर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव के कारण।
  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला: इस बड़े घोटाले में 2G लाइसेंसों का पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर आवंटन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप:
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (2012) में 2G घोटाले के कारण नीलामी को पसंदीदा आवंटन पद्धति के रूप में अनिवार्य किया गया।
    • वित्तीय घाटा: सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपए का कथित नुकसान।
      • अनुमानित हानि: 122 2G लाइसेंसों से 1.76 ट्रिलियन रुपए की हानि का अनुमान है।

भारत ने प्रशासनिक आवंटन के लिये भारत को क्यों चुना? 

  • गैर-विशिष्ट उपयोग: स्थलीय स्पेक्ट्रम के विपरीत, उपग्रह स्पेक्ट्रम को कई ऑपरेटरों के बीच साझा किया जा सकता है, जिससे विविध उपयोगकर्त्ताओं के लिये प्रशासनिक आवंटन व्यावहारिक हो जाता है।
  •  सुदूर क्षेत्रों तक पहुँच: प्रशासनिक आवंटन का उद्देश्य सुदूर और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बढ़ाना है, जिससे उपग्रह सेवाओं तक पहुँच आसान हो सके।
  • लचीलापन: यह विधि सरकार को लंबी नीलामी प्रक्रिया के बिना कंपनियों को शीघ्रता से स्पेक्ट्रम आवंटित करने की अनुमति देती है, जिससे सेवाओं की तीव्र तैनाती को बढ़ावा मिलता है।
    • नीलामी को अव्यावहारिक पाते हुए अमेरिका और ब्राज़ील ने पुनः प्रशासनिक आवंटन की ओर कदम बढ़ा दिये।
  • उभरते उद्योगों को प्रोत्साहित करना: यह उपग्रह संचार जैसी नई प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के विकास का समर्थन करता है, जिन्हें नीलामी द्वारा पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जा सकता है।
  • नियामक संरेखण: ITU के हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में, भारत ने उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के वैश्विक मानक को अपनाने का विकल्प चुना।
    • दूरसंचार अधिनियम, 2023 ने प्रशासनिक आवंटन की सूची में उपग्रह संचार के लिये स्पेक्ट्रम को भी जोड़ा है।

दूरसंचार अधिनियम, 2023 की मुख्य विशेषताएँ

  • परिभाषाएँ: यह दूरसंचार अधिनियम, अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न शब्दावलियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, जिससे अनिश्चितताएँ कम होती हैं
    • इंटरनेट-आधारित मैसेजिंग सेवा प्रदाताओं जैसे कि व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम के माध्यम से भेजे गए संदेश तथा साथ ही एन्क्रिप्टेड संदेश (ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं को छोड़कर) अधिनियम के दायरे में आते हैं।
  • राइट ऑफ वे (RoW) फ्रेमवर्क: यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार की संपत्तियों पर प्रभावी RoW ढाँचा प्रदान करता है। 
    • सरकारी एजेंसियों, स्थानीय निकायों और हवाई अड्डों, बंदरगाहों एवं राजमार्गों जैसी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं को शामिल करने के लिये सार्वजनिक संस्थाओं की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है।
    • सार्वजनिक संस्थाओं को विशेष परिस्थितियों को छोड़कर मार्ग का अधिकार प्रदान करने के लिये बाध्य किया जाएगा।
  • कॉमन डक्ट्स: पीएम गति शक्ति के दृष्टिकोण के अनुरूप, इस कानून में केंद्र सरकार को कॉमन डक्ट्स और केबल गलियारों को स्थापित करने का प्रावधान है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा उपाय: अधिनियम की धारा 20 (2) सरकार को सार्वजनिक सुरक्षा के हित में और सार्वजनिक आपातकाल के दौरान किसी भी संदेश के प्रसारण को रोकने की अनुमति देती है।
    • इससे उन सरकारी संस्थाओं की संख्या में काफी वृद्धि हो जाएगी जो संदेशों को रोकने में सक्षम हो सकती हैं। 
  • डिजिटल भारत निधि: नए अधिनियम के साथ, सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (USOF) डिजिटल भारत निधि बन जाएगी जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं की स्थापना का समर्थन करने के बजाय अनुसंधान, विकास और पायलट परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये किया जा सकता है।
    • यह अधिनियम, नवीन प्रौद्योगिकी के नवप्रवर्तन और प्रयोग को सुगम बनाने के लिये विनियामक सैंडबॉक्स हेतु कानूनी ढाँचा भी प्रदान करता है।
  • उपयोगकर्त्ताओं की सुरक्षा: उपयोगकर्त्ता की सहमति के बिना भेजे गए वाणिज्यिक संदेशों के कारण संबंधित ऑपरेटर पर जुर्माना लगाया जा सकता है और उसे सेवाएँ प्रदान करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है।

निष्कर्ष 

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिये प्रशासनिक आवंटन को अपनाने का भारत का निर्णय वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप है, जो तेज़ी से विकसित हो रहे सैटकॉम क्षेत्र में दक्षता और पहुँच को बढ़ाता है। सैटकॉम बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि की आशा के साथ, प्रशासनिक आवंटन का उद्देश्य वंचित क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाना और डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना है। यह कदम पिछले स्पेक्ट्रम आवंटन विवादों, विशेष रूप से 2G घोटाले से सीखे गए सबक को दर्शाता है, जो नियामक ढाँचे में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न: पिछले विवादों और भविष्य की बाज़ार संभावनाओं के मद्देनजर उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन में भारत के बदलाव के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।