SAARC का 40वाँ चार्टर दिवस | 10 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता, राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क, यूरोपीय यूनियन (EU), दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, बिम्सटेक मेन्स के लिये:दक्षिण एशियाई क्षेत्रवाद, SAARC में भारत की भूमिका और योगदान, आर्थिक एवं राजनीतिक सहयोग। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
8 दिसंबर, 2024 को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) ने अपना 40वाँ चार्टर दिवस मनाया। यह दिवस SAARC की स्थापना के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन क्या है?
- दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग पर पहली बार एशियाई संबंध सम्मेलन (1947), बगुइओ सम्मेलन (1950) और कोलंबो पॉवर्स सम्मेलन (1954) में चर्चा की गई थी।
- SAARC की अवधारणा वर्ष 1980 में तब सामने आई जब बांग्लादेश के राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय सहयोग का प्रस्ताव रखा।
- SAARC की आधिकारिक स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को ढाका, बांग्लादेश में हुई थी, जिसके 7 संस्थापक सदस्य हैं: बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
- वर्ष 2007 में अफगानिस्तान 8वें सदस्य के रूप में इसमें शामिल हुआ।
- उद्देश्य:
- दक्षिण एशिया में कल्याण को बढ़ावा देना तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
- आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाना।
- सदस्य राज्यों के बीच आत्मनिर्भरता और आपसी विश्वास को मज़बूत करना।
- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना।
- अन्य विकासशील देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
- प्रमुख सिद्धांत: संप्रभु समानता, क्षेत्रीय अखंडता, अहस्तक्षेप, तथा सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेना।
- SAARC का महत्त्व: SAARC में वर्ष 2021 तक विश्व के भूमि क्षेत्र का 3% विश्व की जनसंख्या का 21% और वैश्विक अर्थव्यवस्था का 5.21% (4.47 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) शामिल है।
- सहयोग का दायरा: SAARC के एजेंडे में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता (South Asian Free Trade Area- SAFTA) शामिल है, जिसकी स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी और यह वर्ष 2006 से प्रभावी है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में टैरिफ कम करना और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है।
- SAARC एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विस (SAARC Agreement on Trade in Services- SATIS) 2012 में लागू हुआ, जिसका उद्देश्य अंतर-क्षेत्रीय निवेश को बढ़ाना तथा सेवाओं में व्यापार को स्वतंत्र बनाना है।
आज के संदर्भ में SAARC की प्रासंगिकता क्या है?
- संवाद के लिये मंच: अपनी निष्क्रियता के बावजूद SAARC उन कुछ मंचों में से एक है जहाँ भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देश संवाद/बातचीत कर सकते हैं।
- समय-समय पर आयोजित शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन और निर्धनता जैसे ज्वलंत क्षेत्रीय मुद्दों पर विचार करने का अवसर प्रदान करते हैं, भले ही कोई ठोस परिणाम न निकले।
- साझा क्षेत्रीय समाधान: सीमा पार आतंकवाद और महामारी जैसे मुद्दे सामूहिक क्षेत्रीय प्रतिक्रिया की मांग करते हैं।
- SAARC ने पहले भी कोविड-19 आपातकालीन कोष की स्थापना जैसी पहलों का समन्वय किया है, जिससे संकट के दौरान इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है।
- आर्थिक एकीकरण की संभावना: 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद और लगभग 1.8 बिलियन की आबादी के साथ, दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता है।
- व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये SAARC के ढाँचे, जैसे कि साफ्टा और सेवाओं में व्यापार पर SAARC समझौता, को अभी भी पुनर्जीवित किया जा सकता है।
- बाह्य ढाँचे पर अत्यधिक निर्भरता से बचना: सार्क की उपेक्षा करने से सदस्य राष्ट्रों को आसियान जैसे बाह्य मंचों या चीन के नेतृत्व वाली पहलों जैसे BRI पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है।
- SAARC दक्षिण एशिया को अपने विकास पथ पर नियंत्रण रखने का साधन प्रदान करता है।
SAARC में भारत का योगदान क्या है?
- SAARC शिखर सम्मेलन: भारत ने अठारह SAARC शिखर सम्मेलनों में से तीन की मेजबानी की है: दूसरा शिखर सम्मेलन बंगलुरु (1986), आठवाँ शिखर सम्मेलन नई दिल्ली (1995) और 14 वां शिखर सम्मेलन नई दिल्ली (2007) में।
- तकनीकी सहयोग: भारत ने अपने राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (National Knowledge Network- NKN) को श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों तक विस्तारित किया है, जिससे शैक्षिक तथा तकनीकी आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला है।
- इसके अतिरिक्त भारत ने वर्ष 2017 में दक्षिण एशियाई उपग्रह (South Asian Satellite- SAS) लॉन्च किया, जो SAARC देशों को उपग्रह-आधारित सेवाएँ प्रदान करेगा।
- मुद्रा विनिमय व्यवस्था: वर्ष 2019 में भारत ने वित्तीय सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से SAARC सदस्यों के लिये मुद्रा विनिमय व्यवस्था में 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि के 'स्टैंडबाय स्वैप' को शामिल करने को मंज़ूरी दी थी।
- आपदा प्रबंधन: भारत गुजरात में SAARC आपदा प्रबंधन केंद्र की अंतरिम इकाई की मेजबानी करता है।
- यह केंद्र SAARC देशों में आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये नीतिगत सलाह, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (SAU): भारत दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय का घर है, जिसकी स्थापना 14 वें SAARC में अंतर-सरकारी समझौते के माध्यम से की गई थी।
- यह SAARC देशों के छात्रों और विद्वानों के लिये विश्व स्तरीय शिक्षा और अनुसंधान के अवसर प्रदान करता है।
SAARC को मजबूत बनाने में भारत की भूमिका
- नेतृत्व की भूमिका: सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत SAARC देशों के बीच क्षेत्रफल और जनसंख्या का 70% से अधिक हिस्सा बनाता है तथा लगभग सभी सदस्य देशों से रणनीतिक रूप से संबंधित हुआ है।
- SAARC उपग्रह और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये समर्थन जैसी पहल भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं।
- प्रस्तावित उपाय: भारत को कम विकसित SAARC देशों के लिये शुल्क मुक्त पहुँच जैसी एकतरफा रियायतें देना जारी रखना चाहिये।
- छोटे देशों को भी भारत की प्रगति को अपने लिये खतरा मानने के बजाय उसका लाभ अपने विकास के लिये उठाना चाहिये।
- BBIN मोटर वाहन समझौते जैसी क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं को मज़बूत करना तथा उन्हें वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकृत करना।
- भारत के लिये यह आवश्यक है कि वह दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना, साथ ही छोटे पड़ोसियों के बीच "बिग ब्रदर" की धारणा को भी नियंत्रित करना।
- क्वाड और हिंद-प्रशांत साझेदारी जैसे मंचों का उपयोग बाहरी दबावों को संतुलित करने और क्षेत्रीय सहयोग सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
- भारत पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संपर्क स्थापित करने के लिये बिम्सटेक का भी उपयोग कर सकता है।
- छात्रवृत्ति, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और पर्यटन-केंद्रित पहलों के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देना।
SAARC के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- राजनीतिक तनाव एवं द्विपक्षीय संघर्ष: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) तथा जनसंख्या के मामले में भारत और पाकिस्तान SAARC में प्रभावी भूमिका में हैं लेकिन आतंकवाद एवं क्षेत्रीय विवाद जैसे मुद्दों सहित इनके बीच तनावपूर्ण संबंध, सहयोग में बाधक हैं।
- सीमापार आतंकवाद से निपटने में पाकिस्तान की निष्क्रियता के कारण भारत ने वर्ष 2016 में 19वें SAARC शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिसके परिणामस्वरूप इसे स्थगित कर दिया गया।
- 18वाँ SAARC शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में काठमांडू में आयोजित किया गया था और इसके परिणामस्वरुप 36-सूत्रीय काठमांडू घोषणापत्र लाया गया था।
- बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान सहित कई सदस्य देशों में राजनीतिक अस्थिरता तथा शासन संबंधी समस्याओं के कारण दीर्घकालिक क्षेत्रीय नियोजन में बाधा आती है।
- निम्न आर्थिक एकीकरण: SAARC देशों के बीच अंतर-क्षेत्रीय व्यापार उनके कुल व्यापार का केवल 5% है जबकि यूरोपीय संघ (EU) में यह 65% और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ में 26% है।
- SAFTA के सीमित कार्यान्वयन तथा उत्पाद विविधीकरण की कमी से आर्थिक विकास अवरुद्ध हुआ है।
- असममित विकास: भारत के प्रभुत्व से अक्सर इसे "बिग ब्रदर सिंड्रोम" की संज्ञा दिये जाने से छोटे देशों के बीच अविश्वास पैदा होता है।
- छोटे सदस्य देश अक्सर भारत को बहुत अधिक प्रभावशाली मानते हैं जिससे इनके द्वारा भारतीय पहलों का विरोध किया जाता है। इस धारणा से सामूहिक कार्रवाई हतोत्साहित होने के साथ चीन जैसी बाहरी शक्तियों पर निर्भरता में वृद्धि होती है।
- नेपाल, भूटान और मालदीव बुनियादी ढाँचे की कमी के साथ सीमित संसाधनों से ग्रस्त हैं।
- संस्थागत कमजोरियाँ: SAARC के चार्टर में निर्णयों हेतु सर्वसम्मति की आवश्यकता होने से कोई भी सदस्य प्रगतिशील मुद्दों से संबंधित प्रगति को रोक सकता है।
- पाकिस्तान ने अक्सर इस तंत्र का उपयोग SAARC मोटर वाहन एवं रेलवे समझौतों जैसे समझौतों को अवरुद्ध करने के लिये किया है।
- चीन, यूरोपीय संघ एवं अमेरिका जैसे पर्यवेक्षकों की भूमिकाओं के बारे में स्पष्टता का अभाव होने से बाहरी समर्थन सीमित रहा है।
- विवादास्पद द्विपक्षीय मामलों को अलग रखने से क्षेत्रीय तनाव के मूल कारणों का समाधान करने की SAARC की क्षमता सीमित हुई है। इससे विवादों को सुलझाने में संगठन की प्रासंगिकता कमज़ोर हुई है।
- बाह्य प्रभाव: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से चीन की बढ़ती उपस्थिति एवं श्रीलंका, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान में इसके रणनीतिक निवेश से SAARC देशों के बीच गतिशीलता जटिल हुई है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) तथा हंबनटोटा बंदरगाह के विकास से चीन के प्रभाव में वृद्धि हुई है।
आगे की राह
- आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना: SATIS के परिचालन में तीव्रता लाना।
- बुनियादी ढाँचा, स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा से संबंधित क्षेत्रीय परियोजनाओं को समर्थन देने के क्रम में SAARC विकास कोष जैसी पहलों का विस्तार करना चाहिये।
- राजनीतिक संघर्षों का समाधान: SAARC के तहत मध्यस्थता तंत्र से द्विपक्षीय तनावों को दूर करने में सहायता मिल सकती है। शिक्षाविदों, व्यापारिक समूहों एवं नागरिक समाज को शामिल करते हुए ट्रैक-II कूटनीति को बढ़ावा देना चाहिये।
- ट्रैक II कूटनीति तनाव कम करने के क्रम में वार्ता तथा कार्यशालाओं के माध्यम से संघर्षों को हल करने का एक अनौपचारिक, गैर-सरकारी दृष्टिकोण है।
- आपदा प्रबंधन, शिक्षा तथा लोक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों (जो राजनीतिक रूप से कम संवेदनशील हैं) को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- उप-क्षेत्रीय समूहों का लाभ उठाना: BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल) और BIMSTEC (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) जैसी पहल SAARC के उद्देश्यों को पूरा करने के साथ विश्वास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकती हैं।
- गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों का समाधान करना: आतंकवाद-रोधी तथा आपदा प्रबंधन हेतु क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत बनाने के साथ सदस्य देशों के बीच खुफिया-साझाकरण ढाँचे को बढ़ावा देना चाहिये।
- संस्थागत तंत्र में सुधार: किसी एक देश द्वारा प्रगति में बाधा डालने को रोकने के लिये सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेने के मॉडल को भारित मतदान द्वारा प्रतिस्थापित करना चाहिये।
- SAARC सचिवालय को अधिक स्वायत्तता तथा वित्तीय संसाधन देने के माध्यम से इसे मज़बूत बनाना चाहिये।
- युवा भागीदारी को प्रोत्साहित करना: दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय और अन्य क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से छात्र आदान-प्रदान, छात्रवृत्ति तथा युवा-केंद्रित विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर दक्षिण एशिया के जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करना चाहिये।
निष्कर्ष
राजनीतिक तनाव और कम आर्थिक एकीकरण जैसी चुनौतियों के बावजूद SAARC, क्षेत्रीय सहयोग हेतु एक प्रमुख मंच बना हुआ है। भारत का बढ़ता नेतृत्व इस संगठन की क्षमता को मज़बूत कर सकता है। SAARC की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिये इसमें आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने, राजनीतिक संघर्षों का समाधान करने एवं उप-क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में SAARC की भूमिका पर चर्चा कीजिये। आर्थिक एकीकरण प्राप्त करने के क्रम में इसकी प्रभावशीलता के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ बाधक हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्स:Q. “भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।” उपयुक्त उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये। (2016) |