3D प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन और अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण | 05 Apr 2023
प्रिलिम्स के लिये:3D प्रिंटिंग, क्रायोजेनिक स्टेज रॉकेट, अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण की पहल मेन्स के लिये:अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण, भारत की उपलब्धियाँ और इसका महत्त्व, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय निजी अंतरिक्ष वाहन कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस ने अपने भारी वाहन विक्रम- II हेतु विकसित अपने 3D प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन धवन- II का परीक्षण किया।
- इससे पहले नवंबर 2022 में स्काईरूट ने भारत का पहला निजी रूप से विकसित रॉकेट विक्रम- S लॉन्च किया था।
- यह अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण में भारत की विकास गाथा को शामिल करता है।
3D प्रिंटिंग:
- 3D प्रिंटिंग को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है जो कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन पर परिकल्पित उत्पादों को वास्तविक त्रि-आयामी वस्तुओं में बदलने हेतु प्लास्टिक और धातु जैसी सामग्रियों का उपयोग करता है।
- यह सबट्रैक्टिव मैन्युफैक्चरिंग के विपरीत है, जिसमें धातु या प्लास्टिक के टुकड़े को काटकर खोखला कर दिया जाता है, उदाहरण के लिये मिलिंग मशीन।
- पारंपरिक रूप से 3D प्रिंटिंग का उपयोग प्रोटोटाइपिंग हेतु किया जाता रहा है और इसमें कृत्रिम अंग, स्टेंट, डेंटल क्राउन, ऑटोमोबाइल के पुर्जे एवं उपभोक्ता सामान आदि बनाने की काफी संभावना है।
क्रायोजेनिक इंजन:
- परिचय:
- क्रायोजेनिक इंजन/क्रायोजेनिक चरण अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों का अंतिम चरण है जो क्रायोजेनिक्स का उपयोग करता है।
- क्रायोजेनिक्स- अंतरिक्ष में भारी वस्तुओं को उठाने और रखने हेतु बेहद कम तापमान (-150 ℃ से नीचे) पर सामग्री के उत्पादन एवं व्यवहार का अध्ययन।
- यह प्रोपेलेंट के रूप में तरल ऑक्सीजन (Liquid Hydrogen- LOx) और तरल हाइड्रोजन (LH2) का उपयोग करता है।
- इसे विकसित करना सबसे कठिन है और अब तक केवल 6 देशों के पास यह प्रक्षेपण वाहन है- अमेरिका, चीन, रूस, फ्राँस, जापान और भारत।
- GSLV और GSLV Mk III भारत के सबसे भारी लॉन्च वाहन हैं जिनके लॉन्च के ऊपरी चरण में क्रायोजेनिक ईंधन का उपयोग किया जाता है।
- क्रायोजेनिक इंजन/क्रायोजेनिक चरण अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों का अंतिम चरण है जो क्रायोजेनिक्स का उपयोग करता है।
- लाभ:
- पृथ्वी पर संग्रहीत किये जाने वाले ठोस और तरल प्रणोदक रॉकेट चरणों की तुलना में यह अधिक प्रभावी है और अपने द्वारा उपयोग किये जा रहे प्रत्येक किलोग्राम प्रणोदक की खपत के साथ अधिक बल प्रदान करता है।
- ठोस ईंधन चरण के बजाय क्रायोजेनिक ऊपरी चरण का उपयोग करने से रॉकेट की पेलोड वहन क्षमता बढ़ जाती है।
- रॉकेट उद्योग में उपयोग किये जाने वाले अन्य ठोस, अर्द्ध-क्रायोजेनिक और हाइपरगोलिक प्रणोदक की तुलना में दोनों ईंधन (LOx और LH2) पर्यावरण के प्रति अनुकूल हैं।
- नुकसान:
- बेहद कम तापमान पर प्रणोदकों के उपयोग और संबद्ध तापीय तथा संरचनात्मक समस्याओं के कारण ठोस/पृथ्वी पर भंडारण योग्य तरल प्रणोदक चरणों की तुलना में यह तकनीकी रूप से कहीं अधिक जटिल प्रणाली है।
धवन II:
- स्काईरूट की धवन क्रायोजेनिक इंजन शृंखला का नाम प्रसिद्ध भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन के सम्मान में रखा गया है, उनका भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान था।
- धवन II स्काईरूट के पहले निजी तौर पर विकसित पूर्ण-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन- धवन I पर आधारित है, धवन I का वर्ष 2021 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
- यह पूरी तरह से स्वदेश निर्मित है और 3D प्रिंटिंग इंजन के लिये इसमें एक सुपर एलॉय का इस्तेमाल किया गया है जिससे इसके निर्माण में लगने वाले समय 95% तक की कमी आई है।
- यह प्रणोदक के रूप में तरल प्राकृतिक गैस (LNG) और तरल ऑक्सीजन (LoX) का उपयोग करेगा।
- LNG में मीथेन की सांद्रता 90% से अधिक है, इसे भविष्य का रॉकेट ईंधन माना जाता है।
- इस इंजन का विकास आंशिक रूप से नीति आयोग के ANIC-ARISE कार्यक्रम, जिसके तहत ग्रीन रॉकेट प्रणोदक के उपयोग सहित अन्य प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाता है, द्वारा समर्थित था।
अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण हेतु पहलें:
- IN-SPACE:
- भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के मामले में निजी कंपनियों को एक समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre- IN-SPACE) की स्थापना की गई है।
- यह मंच भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने अथवा अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भागीदारी की इच्छा रखने वाले निकायों और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा किये गए अनुसंधान एवं विकास का उपयोग करना है।
- भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):
- भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) शीर्ष, गैर-लाभकारी उद्योग निकाय है जो विशेष रूप से भारत में निजी और सार्वजनिक अंतरिक्ष उद्योग के सफल अन्वेषण, सहयोग एवं विकास की दिशा में कार्य कर रहा है।
- स्काईरूट की विक्रम शृंखला:
- विक्रम, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया, विशेष रूप से छोटे उपग्रह बाज़ार हेतु तैयार किये गए मॉड्यूलर अंतरिक्ष प्रक्षेपण यानों की एक शृंखला है।
- इसके 4 रूपांतर हैं: विक्रम S, विक्रम, विक्रम II और विक्रम III।
- विक्रम S ने स्काईरूट को अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने वाली पहली भारतीय निजी कंपनी बनाया।
- विक्रम II रॉकेट वर्ष 2024 तक प्रक्षेपण के लिये तैयार हो जाएगा, जो कंपनी को दक्षिण एशिया का पहला निजी प्रक्षेपक बना देगा।
- विक्रम, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया, विशेष रूप से छोटे उपग्रह बाज़ार हेतु तैयार किये गए मॉड्यूलर अंतरिक्ष प्रक्षेपण यानों की एक शृंखला है।
अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण का महत्त्व:
- वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में लगभग 360.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, हालाँकि भारत का हिस्सा अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का केवल ~ 2% है। उद्योग में निजी क्षेत्र सरकार के अंतरिक्ष कार्यक्रम हेतु विक्रेताओं/आपूर्तिकर्त्ताओं तक सीमित रहा है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) की बढ़ी हुई भागीदारी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की बाज़ार हिस्सेदारी को बढ़ावा देगी।
- निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार के भीतर लागत प्रतिस्पर्द्धी बनेगा, इस प्रकार अंतरिक्ष एवं अन्य संबंधित क्षेत्रों में कई रोज़गार सृजित होंगे।
- इससे भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में स्वयं को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- निजी क्षेत्र नई प्रौद्योगिकियों, नवाचार और प्रबंधन कौशल का उपयोग कर सकते हैं, जिससे लागत अनुकूलन एवं अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों की दक्षता में वृद्धि होगी।
- यह अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सरकारी संसाधनों को भी मुक्त करेगा।
नोट:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष उद्योग में छठा सबसे प्रमुख देश है, जिसका हिस्सा विश्व की अंतरिक्ष-तकनीक कंपनियों का ~3.6% (वर्ष 2021 तक) है।
- अंतरिक्ष-तकनीक पारिस्थितिकी तंत्र में सभी कंपनियों में शीर्ष कंपनी का हिस्सा 56.4% है, इसके बाद यूके (6.5%), कनाडा (5.3%), चीन (4.7%) और जर्मनी (4.1%) का हिस्सा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |