दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023 | 25 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023, नॉर्डिक बाल्टिक आठ (NB8), वैश्विक आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को बढ़ाने के लिये ब्लू इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, G20 के माध्यम से ग्लोबल साउथ, भारतीय उद्योग परिसंघ 

मेन्स के लिये:

दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दूसरा भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industries- CII) भारत नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023 नई दिल्ली में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक आठ (Nordic Baltic Eight- NB8) देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था, जो नवाचार तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के लिये जाने जाते हैं।

नॉर्डिक बाल्टिक आठ (NB8) क्या है?

  • NB8 एक क्षेत्रीय सहयोग प्रारूप है जो नॉर्डिक देशों और बाल्टिक राज्यों को एक साथ लाता है।
    • इसमें पाँच नॉर्डिक देश शामिल हैं: डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन, साथ ही तीन बाल्टिक राज्य: एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया।
  • समूह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंधों को साझा करता है, राजनीतिक, आर्थिक, व्यापार, सुरक्षा तथा संस्कृति सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहभागिता और सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • जबकि नॉर्डिक देश उत्तरी यूरोप में स्थित हैं और शासन, सामाजिक प्रणालियों तथा मूल्यों में समानताएँ साझा करते हैं, बाल्टिक राज्य उत्तरपूर्वी यूरोप में स्थित हैं एवं उनकी अद्वितीय ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भू-राजनीतिक स्थिति है।

कॉन्क्लेव की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • खाद्य प्रसंस्करण एवं स्थिरता: 
    • चर्चाएँ मुख्य रूप से भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अनुभवों, नवाचारों तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके खाद्य प्रणालियों को स्थिरता की दिशा के परिवर्तन पर केंद्रित थीं।
    • सहयोग का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय आयामों को शामिल करते हुए समग्र दृष्टिकोण के साथ वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
  • ब्लू इकॉनमी एवं समुद्री सहयोग: 
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को बढ़ाने, टिकाऊ समुद्री प्रथाओं को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने एवं भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अधिक समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने के लिये ब्लू इकॉनमी के कुशल प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया।
  • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: 
    • विचार-विमर्श नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण, संसाधनों की पहचान, नीति समर्थन, ऊर्जा भंडारण और उन्नत प्रौद्योगिकी पहल के लिये भारत के दबाव पर केंद्रित था।
    • इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित प्रौद्योगिकियों की पहचान करने और उन्हें लागू करने में नवीन नॉर्डिक-बाल्टिक अर्थव्यवस्थाओं से समर्थन प्राप्त करना था।
  • उद्योग 5.0 में संक्रमण: 
    • सहयोग चर्चा विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादकता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता), IoT तथा स्मार्ट विनिर्माण जैसी उन्नत तकनीकों का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच सहयोग वर्ष 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य में कैसे योगदान दे सकता है।
  • जलवायु कार्रवाई के लिये हरित वित्तपोषण: 
    • कॉन्क्लेव ने हरित और टिकाऊ परिवर्तन में जलवायु वित्त के महत्त्व पर प्रकाश डाला। चर्चा का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने में भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अधिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तपोषण एवं निवेश को बढ़ावा देने के लिये रणनीतियों और समाधानों की खोज करना था।
  • सूचना प्रौद्योगिकी और AI सहयोग: 
    • जटिल सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिये IT और AI का लाभ उठाने में भारत एवं नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों की खोज पर ज़ोर दिया गया। समावेशी AI और IT विकास को सक्षम करने के लिये कौशल विकास पहल पर भी चर्चा की गई।
  • लचीली आपूर्ति शृंखला और रसद:
    • चर्चाएँ भारत की लॉजिस्टिक्स नीति के अनुरूप कुशल और लचीली आपूर्ति शृंखला बनाने की आवश्यकता के इर्द-गिर्द घूमती रहीं। सम्मेलन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देश तकनीकी प्रगति करके वैश्विक मूल्य शृंखला को मज़बूत करने के लिये कैसे सहयोग कर सकते हैं।

भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच आर्थिक संबंध कैसे रहे हैं?

  • व्यापार और निवेश:
    • नॉर्डिक देशों से प्राप्त संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आपसी निवेश हितों को प्रदर्शित करते हुए एक महत्त्वपूर्ण आँकड़े तक पहुँच गया है।
      • NB 8 देशों के साथ भारत का संयुक्त वस्तु व्यापार वर्तमान में लगभग 7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और वर्ष 2000 से वर्ष 2023 तक नॉर्डिक देशों से प्राप्त संचयी FDI 4.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • इसके अलावा भारत में 700 से अधिक नॉर्डिक कंपनियों और नॉर्डिक-बाल्टिक क्षेत्र में करीब 150 भारतीय कंपनियों की उपस्थिति द्विपक्षीय निवेश तथा व्यापार साझेदारी को दर्शाती है।
  • द्विपक्षीय सहयोग:
    • विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सहयोग और साझेदारियाँ स्थापित की गई है।
    • उदाहरणों में फिनलैंड के साथ संयुक्त साझेदारी, डेनमार्क के साथ जल समाधान, पवन ऊर्जा और कृषि पर ध्यान केंद्रित करने वाली हरित रणनीतिक साझेदारी तथा भू-तापीय ऊर्जा के दोहन में आइसलैंड के साथ संयुक्त परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • क्षेत्रीय सहभागिता:
    • नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य प्रसंस्करण, रसद, IT, AI, समुद्री सहयोग तथा नीली अर्थव्यवस्था पहल जैसे क्षेत्रों में सहयोग को संयुक्त प्रयासों एवं निवेश के संभावित क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है।
    • नॉर्डिक-बाल्टिक देशों की तकनीकी विशेषज्ञता के साथ भारत के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के संयोजन हेतु सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तथा ध्रुवीय अनुसंधान:
    • आर्कटिक तथा अंटार्कटिक क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं एवं अवसरों पर चर्चा के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, भू-स्थानिक क्षेत्रों तथा ध्रुवीय और जलवायु अनुसंधान में सहयोग की संभावना है।
  • वैश्विक सहभागिता तथा भागीदारी:
    • भारत तथा नॉर्डिक-बाल्टिक देश दोनों सक्रिय रूप से वैश्विक साझेदारियों में संलग्न हैं, जैसे G20 के माध्यम से ग्लोबल साउथ के साथ भारत की भागीदारी, जो सतत् विकास के लिये समाधान खोजने में सहयोग के अवसर प्रदान करती है।
    • इसके अतिरिक्त विशेष रूप से अफ्रीका में संयुक्त विकास परियोजनाओं में साझेदारी, उनके सामूहिक वैश्विक पदचिह्न के विस्तार की क्षमता को दर्शाती है।

आगे की राह

  • व्यापारिक वस्तुओं तथा सेवाओं की सीमा में विविधता लाकर द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करने की आवश्यकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, कृषि एवं विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से पारस्परिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। व्यापार बाधाओं को कम करना तथा बाज़ार पहुँच बढ़ाना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • भारत तथा नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच निवेश को प्रोत्साहित एवं सुविधाजनक बनाना। परस्पर हित के क्षेत्रों में संयुक्त उद्यम, सहयोग एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना।
  • अनुकूल नीतियों, नियामक ढाँचे तथा व्यापार करने में सुगमता के माध्यम से निवेश के लिये अनुकूल तंत्र सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।