जैव विविधता और पर्यावरण
2021 छठा सबसे गर्म वर्ष
- 19 Jan 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना, वनाग्नि, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), हीटवेव, दक्षिण पश्चिम मानसून मेन्स के लिये:पृथ्वी का बढ़ता तापमान और उसका प्रभाव, इस दिशा में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दो अमेरिकी एजेंसियों ने डेटा जारी कर जानकारी दी है कि वर्ष 2021 रिकॉर्ड स्तर पर पृथ्वी का छठा सबसे गर्म वर्ष था।
- वहीं जब से तापमान के संबंध में रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है, तब से पिछले 10 वर्ष सबसे गर्म वर्ष रहे।
- यह डेटा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा और ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (NOAA) द्वारा एकत्र किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2021 में पृथ्वी:
- वर्ष 2021 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत यानी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की तुलना में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी।
- उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध:
- इस वर्ष उत्तरी गोलार्द्ध में भूमि की सतह का तापमान रिकॉर्ड में तीसरा सबसे उच्चतम था, जबकि वर्ष 2016 और वर्ष 2020 क्रमशः पहले और तीसरे स्थान पर हैं।
- वर्ष 2021 में दक्षिणी गोलार्द्ध की सतह का तापमान रिकॉर्ड में नौवाँ उच्चतम था।
- समुद्र की सतह का तापमान:
- अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के कुछ हिस्सों में समुद्री सतह पर रिकॉर्ड-उच्च तापमान दर्ज किया गया।
- वर्ष 2021 में ऊपरी महासागरीय हीट रिकॉर्ड स्तर पर सबसे अधिक थी और इसने बीते वर्ष 2020 में निर्धारित रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया।
- पिछले सात वर्षों (2015-2021) में सात उच्चतम महासागरीय हीट दर्ज की गई हैं, यानी बीते 7 वर्षों में प्रत्येक वर्ष एक नया रिकॉर्ड बना है।
- अंटार्कटिक सागर:
- दिसंबर 2021 के दौरान अंटार्कटिक समुद्री बर्फ की सीमा 3.55 मिलियन वर्ग मील थी।
- यह मान औसत से 11.6% कम है और रिकॉर्ड पर तीसरी सबसे छोटी दिसंबर की सीमा थी।
- केवल वर्ष 2016 और 2018 के दिसंबर में यह सीमा थोड़ी कम थी।
- ला नीना के प्रभाव:
- ला नीना के प्रभाव ने दुनिया के तापमान को कम रखा।
- ला नीना एक मौसम पैटर्न है जो प्रशांत महासागर में घटित होती है लेकिन दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती है।
- ला नीना घटना तब घटित होती है जब दक्षिण अमेरिकी उष्णकटिबंधीय के प्रशांत तट के साथ समुद्र की सतह का पानी ठंडा हो जाता है। यह लगभग हर दो से सात वर्ष में होता है।
- ला नीना के प्रभाव ने दुनिया के तापमान को कम रखा।
- तापन प्रवृत्ति के कारण:
- दुनिया भर में यह तापन प्रवृत्ति मानवीय गतिविधियों के कारण है, जिसने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की है।
- पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में आर्कटिक समुद्री बर्फ पिघल रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जंगल की आग अधिक गंभीर होती जा रही है और पशु प्रवास पैटर्न बदल रहे हैं।
- दुनिया भर में यह तापन प्रवृत्ति मानवीय गतिविधियों के कारण है, जिसने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की है।
भारत में बढ़ता तापमान:
- इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) का पहला भाग क्लाइमेट चेंज 2021: द फिज़िकल साइंस बेसिस अगस्त, 2021 में जारी किया।
- भारतीय उपमहाद्वीप विशिष्ट निष्कर्ष:
- हीटवेव्स: 21वीं सदी के दौरान दक्षिण एशिया में हीटवेव और आर्द्र गर्मी का तनाव अधिक तीव्र और लगातार होगा।
- मानसून: मानसून वर्षा में परिवर्तन की भी उम्मीद है, वार्षिक और ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा दोनों में वृद्धि होने का अनुमान है।
- एरोसोल की वृद्धि के कारण पिछले कुछ दशकों में दक्षिण पश्चिम मानसून में गिरावट आई है, लेकिन एक बार यह कम हो जाने पर देश में भारी मानसूनी वर्षा का हो सकती है।
- समुद्र का तापमान: हिंद महासागर जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल है, वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हुआ है।
- हिंद महासागर के ऊपर समुद्र की सतह के तापमान उस स्थिति में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है जब ग्लोबल वार्मिंग में 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
- भारत द्वारा हाल ही में किये गए जलवायु संबंधी उपाय:
- COP26 में पाँच तत्त्वों के साथ एक महत्त्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन विज़न का अनावरवर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक ले जाना।
- वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना।
- वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
- वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना।
- वर्ष 2070 तक "नेट ज़ीरो" के लक्ष्य को प्राप्त करना।
- भारत अब स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में चौथे स्थान पर है और पिछले सात वर्षों में गैर-जीवाश्म ऊर्जा में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है तथा यह कुल ऊर्जा मिश्रण का 40% तक पहुँच गया है।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।
- COP26 में पाँच तत्त्वों के साथ एक महत्त्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन विज़न का अनावरवर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक ले जाना।