26/11 की घटना के 16 वर्ष | 26 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय नौसेना, तटरक्षक बल, प्रादेशिक जल, गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (UAPA), इंटेलिजेंस ब्यूरो, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF)

मेन्स के लिये:

आतंकवाद विरोधी उपायों को मज़बूत करना।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों? 

26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने मुंबई में ताज महल पैलेस होटल, नरीमन हाउस, ओबेरॉय ट्राइडेंट और छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन पर हमले किये।

  • इन हमलों से भारत के सुरक्षा ढाँचे में महत्त्वपूर्ण कमजोरियाँ उजागर हुईं, जिससे आतंकवाद-रोधी उपायों में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

26/11 हमलों से भारतीय सुरक्षा की क्या कमजोरियाँ उजागर हुईं?

  • इंटेलिजेंस विफलताएँ: विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच वास्तविक समय में इंटेलिजेंस जानकारी साझा करने में विफलता के कारण आतंकवादियों को हमले से पहले काफी समय तक बिना किसी जानकारी के काम करने का मौका मिल गया।
  • समुद्री सुरक्षा:  
    • तटीय सीमाएँ असुरक्षित: हमलावरों ने एक पाकिस्तानी ध्वज लगे मालवाहक जहाज़ पर सवार होकर एक भारतीय मछली पकड़ने वाले जहाज़ को हाइजैक कर लिया, फिर संदेह उत्पन्न किये बिना भारतीय तटों पर उतरने के लिये इन्फ्लेटेबल बोट/नावों का उपयोग किया।
    • समन्वय का अभाव: भारतीय नौसेना, तटरक्षक बल, समुद्री पुलिस के बीच स्पष्ट कमान और नियंत्रण संरचनाओं की कमी के कारण तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा में अक्षमता आई, जिससे वे शोषण के प्रति संवेदनशील हो गए।
  • डिजिटल कमजोरियाँ: डिजिटल प्रचार और ऑनलाइन कट्टरपंथ का मुकाबला करने में भारत की असमर्थता के कारण स्थानीय स्तर पर सैन्य सहायता के माध्यम से समर्थन प्राप्त हुआ
  • विशेष प्रशिक्षण का अभाव\: भारत के सुरक्षा बलों को नए प्रकार के शहरी आतंकवादी हमले से निपटने के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था, जैसा कि 26/11 की घटनाओं में एक साथ कई स्थलों को निशाना बनाया गया था। 
  • धीमी प्रतिक्रिया: सुरक्षा बलों की ओर से विलंबित प्रतिक्रिया, त्वरित तैनाती और सामरिक समन्वय की कमी के कारण आतंकवादियों को कई घंटों तक टिके रहने का मौका मिल गया। 
  • अपर्याप्त साइबर सुरक्षा उपाय: 26/11 के हमलावरों ने पाकिस्तान में अपने प्रमुखों के साथ लगातार संपर्क में रहने के लिये सैटेलाइट फोन सहित उन्नत संचार उपकरणों का इस्तेमाल किया।

26/11 हमलों के बाद सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये क्या कदम उठाए गए?

  • समुद्री सुरक्षा में सुधार: भारतीय तटरक्षक बल को प्रादेशिक जल पर कमान सौंपी गई तथा तट के साथ नए समुद्री पुलिस स्टेशनों के साथ संपर्क स्थापित करने का दायित्व सौंपा गया, जबकि समुद्री सुरक्षा की अंतिम ज़िम्मेदारी भारतीय नौसेना को दी गई।
  • भारतीय नौसेना ने तटीय गश्त और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सागर प्रहरी बल की स्थापना की।
    • समन्वय में सुधार के लिये तटरक्षक, राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के सहयोग से सभी राज्यों में नियमित तटीय सुरक्षा अभ्यास आयोजित किये जाते हैं।
    • 20 मीटर से अधिक लंबे सभी जहाज़ों में पहचान और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रेषित करने के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) स्थापित की गई।
  • खुफिया समन्वय: केंद्रीय एजेंसियों, सशस्त्र बलों और राज्य पुलिस के बीच  खुफिया जानकारी साझा करने के समन्वय को बेहतर बनाने के लिये खुफिया ब्यूरो के बहु-एजेंसी केंद्र (MAC) को मज़बूत किया गया।
    • MAC के चार्टर का विस्तार करके इसमें नए क्षेत्रों को शामिल किया गया, जैसे कट्टरपंथ और आतंकवादी नेटवर्क का अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण करना और उनसे निपटना।
  • संस्थागत उपाय:
    • राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी केंद्र (NCTC) की स्थापना राज्यों में आतंकवाद विरोधी संगठनों सहित अन्य हितधारकों के साथ आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिये योजनाएँ तैयार करने एवं समन्वय स्थापित करने के लिये की गई थी।
    • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) की शुरुआत जाँच, डेटा विश्लेषण, अनुसंधान और नीति निर्माण के उद्देश्य से सभी पुलिस स्टेशनों को एक सामान्य एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के तहत जोड़ने के लिये की गई थी।
  • नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) एक एकीकृत आईटी प्लेटफॉर्म है जो देश में अपराध एवं आतंकवादी खतरों से निपटने के लिये क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड, कर, दूरसंचार, आव्रजन, एयरलाइंस और रेलवे टिकट, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे विभिन्न डेटाबेस से एकत्रित आँकड़ों तक पहुँचने में मदद करता है।
  • कानूनी सुधार: आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ अधिक सक्रिय कदम उठाने के लिये आतंकवाद की परिभाषा को व्यापक बनाने हेतु गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (UPA) में संशोधन किया गया
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम, 2008 को एक संघीय अन्वेषण एजेंसी बनाने के लिये पारित किया गया था, जिसे राज्यों में आतंकवाद के मामलों को संभालने का अधिकार दिया गया था।
  • पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: गृह मंत्रालय ने पुलिस थानों को उन्नत करने, उन्हें आधुनिक तकनीक से लैस करने, आतंकवाद जैसी आधुनिक चुनौतियों के लिये अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और बेहतर हथियार उपलब्ध कराने के लिये राज्य सरकारों को अधिक धनराशि आवंटित की।
    • सभी पुलिस बलों में  कुशल कमांडो टीमों के गठन पर ज़ोर दिया गया।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) ने त्वरित तैनाती के लिये देश भर में चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में चार क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: 26/11 के हमलों का सबसे बड़ा प्रभाव पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, की सुरक्षा के मामलों में भारत के साथ सहयोग करने की इच्छा थी।
    • अमेरिका ने हमलों के दौरान वास्तविक समय पर सूचना उपलब्ध कराई तथा FBI के माध्यम से अभियोजन योग्य साक्ष्य जुटाने में मदद की, जिससे पाकिस्तान को विश्व स्तर पर अलग-थलग करने में मदद मिली।
    • वर्ष 2018 में, वैश्विक दबाव के कारण पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में डाल दिया गया, जिससे लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मुहम्मद (JeM) जैसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्यवाही करने पर मज़बूर होना पड़ा।
  • जागरूकता अभियान: इन अभियानों का उद्देश्य स्थानीय लोगों को समुद्री खतरों से उत्पन्न जोखिमों के बारे में संवेदनशील बनाना और उन्हें संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देने के लिये प्रोत्साहित करना है।

भारतीय तटीय सुरक्षा में लगातार कमियाँ क्या हैं?

  • निगरानी की चुनौती: भारत की 7517 किमी लंबी तटरेखा, जिसमें मुख्य भूमि (5423 किमी) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (2094 किमी) शामिल हैं। 
    • विशाल तटरेखा, जिसमें हज़ारों मछली पकड़ने वाली नावें और जलपोत हैं, संभावित खतरों की निगरानी और गश्त करना चुनौतीपूर्ण बना देती है।
  • व्यापक कवरेज का अभाव: 20 मीटर से अधिक लंबाई वाली नौकाओं के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) स्थापित करने का प्रावधान समुद्री निगरानी के दायरे को सीमित करता है, खासकर तब जब कई छोटी नौकाओं (20 मीटर से कम) का इस्तेमाल तस्करी या घुसपैठ जैसी अवैध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
  • विविध खतरा परिदृश्य: खतरों की विविध प्रकृति (आतंकवादी हमले, तस्करी और अवैध प्रवासन) सुरक्षा चुनौतियों की जटिलता को उज़ागर करती है।
    • प्रवासी, विशेषकर बांग्लादेश और श्रीलंका से आने वाले, अनजाने में या जानबूझकर सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकते हैं।
  • स्थानीय समुदायों पर अत्यधिक निर्भरता: मछुआरे तटीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन खुफिया जानकारी के लिये केवल उन पर निर्भर रहना जोखिम भरा है, क्योंकि भय, जागरूकता की कमी या अविश्वास के कारण संभावित असहयोग की आशंका है।
  • निम्न बुनियादी ढाँचा: राज्य पुलिस बल अभी भी अपर्याप्त रूप से सुसज्जित और कम प्रशिक्षित हैं तथा निरंतर राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण समग्र समन्वय में बाधा उत्पन्न हो रही है।

आगे की राह

  • निवारण और आक्रामक रणनीतियाँ: सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों सहित सीमा पार आतंकवाद के प्रति भारत की हालिया प्रतिक्रियाओं को भारत की दीर्घकालिक आतंकवाद-रोधी नीति के भाग के रूप में संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये। जिसका उद्देश्य निर्णायक रूप से प्रतिक्रिया करने के देश के संकल्प को प्रदर्शित करके आतंकवाद को रोकना हो।
  • बहु-एजेंसी प्रशिक्षण एवं अभ्यास: बहु-एजेंसी अभ्यास के NSG मॉडल (जहाँ विभिन्न सुरक्षा बल एक साथ प्रशिक्षण लेते हैं) को देश भर में बढ़ावा देना चाहिये। 
    • इन अभ्यासों में स्थानीय कानून प्रवर्तन, अर्द्धसैनिक बल एवं खुफिया एजेंसियों को शामिल किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमलों के दौरान सभी पक्ष समन्वित कार्रवाई के लिये अच्छी तरह से तैयार रहें।
  • विशेष बलों के साथ समन्वय: स्थानीय पुलिस को किसी हमले की स्थिति में सुचारू समन्वय सुनिश्चित करने हेतु NSG जैसी राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी इकाइयों के साथ घनिष्ठ कार्य संबंध बनाए रखना चाहिये।
  • निर्णयकर्त्ताओं को सशक्त बनाना: विभिन्न स्तरों पर निर्णयकर्त्ताओं (स्थानीय पुलिस से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों तक) को आपात स्थितियों के दौरान शीघ्रता एवं निर्णायक रूप से कार्य करने हेतु सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएँ: शहरों में ऐसी आपदा प्रबंधन योजनाएँ होनी चाहिये जिनसे न केवल प्राकृतिक आपदाओं पर बल्कि आतंकवादी हमलों जैसे मानव निर्मित खतरों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके।
  • साइबर सुरक्षा विशेषज्ञता को बढ़ावा देना: साइबर सुरक्षा में बहु-विषयक प्रशिक्षण को एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • 'जागरूक समूहों' का गठन: युवाओं एवं नागरिकों से गठित समुदाय-आधारित 'जागरूक समूहों' द्वारा संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देकर तथा वास्तविक समय की खुफिया जानकारी प्रदान करके लोगों एवं सुरक्षा एजेंसियों के बीच के अंतराल को कम किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: 26/11 के हमलों के बाद आतंकवाद-रोधी क्षमताओं को बढ़ाने के क्रम में भारत की सुरक्षा प्रणाली में क्या सुधार किये गए हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स: 

प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गम्भीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट का नियंत्रण करने के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधीयन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2015)

प्रश्न. कुछ रक्षा विश्लेषक इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम द्वारा युद्ध को अलकायदा और आतंकवाद से भी बड़ा खतरा मानते हैं। आप 'इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम युद्ध' (Cyber Warfare) से क्या समझते हैं? भारत ऐसे जिन खतरों के प्रति संवेदनशील है उनकी रूपरेखा खींचिये और देश की उनसे निपटने की तैयारी को भी स्पष्ट कीजिये। (2013)