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भारतीय राजव्यवस्था

केरल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक

  • 19 Dec 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की भूमिका।

मेन्स के लिये:

केरल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल विधानसभा ने राज्य विश्वविद्यालयों के शासन से संबंधित कानूनों में संशोधन करने और राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटाने के लिये विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक पारित किया।

पृष्ठभूमि:

  • महीनों से केरल के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव चल रहा था।
  • यह स्थिति तब और भी बदतर हो गई जब राज्यपाल ने राज्य विधानसभा द्वारा पहले पारित विवादास्पद लोकायुक्त (संशोधन) और विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयकों को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।
  • राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच बिगड़ता संबंध सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के साथ एक महत्त्वपूर्ण बिंदु पर पहुँच गया, जिसमें एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (KTU) के कुलपति (VC) की नियुक्ति को इस आधार पर अवैध घोषित कर दिया गया कि इसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों का उल्लंघन किया है।
  • इसके बाद राज्यपाल ने 11 अन्य कुलपतियों के इस्तीफे इस आधार पर मांगे थे कि सरकार ने उन्हें उसी प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त किया था जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध माना था।

विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक:

  • प्रस्तावित कानून केरल में विधायी अधिनियमों द्वारा स्थापित 14 विश्वविद्यालयों के कानूनों में संशोधन करेगा तथा राज्यपाल को उन विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद से हटाएगा।
  • विधेयक राज्यपाल के स्थान पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के रूप में प्रख्यात शिक्षाविदों को नियुक्त करने के लिये सरकार को प्राधिकृत करेगा, इस प्रकार विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्यपाल की निगरानी भूमिका समाप्त हो जाएगी।
  • इन विधेयकों में नियुक्त कुलाधिपति के कार्यकाल को पाँच वर्ष तक सीमित करने का भी प्रावधान है। हालाँकि इसमें यह भी कहा गया है कि सेवारत कुलाधिपति को दूसरे कार्यकाल के लिये नियुक्त किया जा सकता है।

प्रस्ताव का पक्ष और विपक्ष:

  • पक्ष:
    • पहले यूजीसी दिशा-निर्देश केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिये अनिवार्य हुआ करते थे और राज्य विश्वविद्यालयों के लिये "आंशिक रूप से अनिवार्य एवं आंशिक रूप से निर्देशात्मक" होते थे, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल के फैसलों के माध्यम से इन्हें सभी विश्वविद्यालयों के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया गया।
    • यह एक ऐसे परिदृश्य की ओर इशारा करती है जिसमें समवर्ती सूची (संविधान की) के सभी विषयों पर विधानसभा की विधायी शक्तियों को अधीनस्थ कानून या केंद्र द्वारा जारी एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • कहा जा रहा है कि भविष्य में कानूनी पेचीदगियों से बचने के लिये यह विधेयक लाया गया था।
  • विपक्ष:
    • यदि कुलाधिपति सरकार द्वारा नियुक्त किये गए, तो वे सत्तारूढ़ मोर्चे के ऋणी होंगे और इससे वे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के क्षरण की ओर अग्रसर होंगे।
    • यह सत्तारूढ़ मोर्चे के करीबी लोगों की नियुक्ति की सुविधा प्रदान कर सकता है।
      • इससे एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण होगा जिसमें राज्यपाल केवल उन लोगों को नियुक्त कर सकता है जो सरकार के करीबी हैं।

UGC नियमों के तहत कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया:

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2018 के अनुसार, एक विश्वविद्यालय का कुलपति सामान्य रूप से विधिवत गठित खोज सह चयन समिति द्वारा अनुशंसित तीन से पाँच नामों के पैनल से विज़िटर/ चांसलर द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • किसी भी विज़िटर के पास यह अधिकार होता है कि पैनल द्वारा सुझाए गए नामों से असंतुष्ट होने की स्थिति में वह नामों के एक नए सेट की मांग कर सकता है।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों के संदर्भ में भारत का राष्ट्रपति सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों का पदेन विज़िटर होता है और राज्यों के राज्यपाल संबंधित राज्य के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं।
  • यह प्रणाली सभी विश्वविद्यालयों में अनिवार्य रूप से एक समान नहीं है। जहाँ तक अलग-अलग राज्यों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का संबंध है, उनमे भिन्नताएँ होती हैं।

विश्वविद्यालय के संबंध में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियाँ:

  • राज्य विश्वविद्यालय:
    • राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और सभी विश्वविद्यालयों के मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है।
  • केंद्रीय विश्वविद्यालय:
    • केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का विज़िटर होगा।
    • केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति नाममात्र के प्रमुख होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक के रूप में चुना जाता है, उनके कर्तव्य दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तक सीमित हैं।
    • कुलपति की नियुक्ति, केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनलों से विज़िटर/आगंतुक द्वारा की जाती है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को विज़िटर के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण को अधिकृत करने एवं पूछताछ करने का अधिकार होगा।

आगे की राह

  • वर्ष 2009 में केरल राज्य उच्च शिक्षा परिषद द्वारा गठित एम. आनंदकृष्णन समिति ने सिफारिश की थी कि विश्वविद्यालयों को शैक्षणिक और प्रशासनिक मामलों में पूर्ण स्वायत्तता होनी चाहिये।
  • एक ऐसी वैधानिक संरचना का निर्माण किया जाए ताकि विश्वविद्यालयों के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में राज्यपाल और उच्च शिक्षा मंत्री को हस्तक्षेप से दूर रखा जा सके।
  • इसमें यूजीसी विनियम, 2010 को तुरंत शामिल करने की भी सिफारिश की गई है।
  • केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग की सिफारिश के अनुसार, राज्यपाल को उन पदों और शक्तियों का बोझ नहीं उठाना चाहिये जो संविधान में निर्दिष्ट नहीं हैं तथा विवाद या सार्वजनिक आलोचना का कारण बन सकते हैं।
  • सरकारों को विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की रक्षा के लिये वैकल्पिक उपाय तलाशने चाहिये ताकि सत्ताधारी दल विश्वविद्यालयों के कामकाज पर अनुचित प्रभाव न डालें।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. क्या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच राजनीतिक संघर्ष को सुलझा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक शर्तों की चर्चा कीजिये। राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों को विधायिका के समक्ष रखे बिना पुन: प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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