त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म सौदा: भारत-श्रीलंका | 28 Dec 2021

प्रिलिम्स के लिये:

त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म सौदा, त्रिंकोमाली बंदरगाह की अवस्थिति, कच्चातीवु द्वीप संबंधी मुद्दा, भारत और श्रीलंका के मध्य संयुक्त सैन्य अभ्यास, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI), लाइन ऑफ क्रेडिट, मुद्रा स्वैप समझौता

मेन्स के लिये:

भारत-श्रीलंका संबंध, भारत-श्रीलंका समझौता 1987

चर्चा में क्यों?

भारत और श्रीलंका जल्द ही त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्मों को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु लंबे समय से लंबित सौदे पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं।

  • दोनों देशों के मध्य तनावपूर्ण संबंधों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर एक सकारात्मक संकेत को दर्शाएगा।

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प्रमुख बिंदु

  • ‘त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म’ के विषय में:
    • तेल टैंक फार्म द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ईंधन भरने वाले स्टेशन के रूप में अंग्रेज़ों द्वारा बनाया गया था।
    • यह त्रिंकोमाली के गहरे पानी में स्थित प्राकृतिक बंदरगाह के करीब 'चाइना बे' में स्थित है।
    • इस संयुक्त विकास के प्रस्ताव की परिकल्पना 35 वर्ष पूर्व भारत-श्रीलंका समझौते (1987) में की गई थी।
    • इसमें 99 भंडारण टैंक शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक में 12,000 किलोलीटर की क्षमता है, जो लोअर टैंक फार्म और अपर टैंक फार्म के रूप में फैले हुए हैं।
    • वर्ष 2003 में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने इस तेल फार्म पर काम करने के लिये अपनी श्रीलंकाई सहायक कंपनी ‘लंका IOC’ की स्थापना की थी।
    • वर्तमान में ‘लंका IOC’ के पास 15 टैंक हैं। शेष टैंकों के लिये नए समझौते पर वार्ता चल रही है।
  • समझौते का महत्त्व:
    • त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्मों की अवस्थिति इसे कई अनुकूल कारक प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये: 
      • आसान पहुँच: यह त्रिंकोमाली के गहरे जल के प्राकृतिक बंदरगाह पर स्थित है।
      • हिंद महासागर में रणनीतिक स्थान: ये तेल फार्म विश्व के कुछ सबसे व्यस्त शिपिंग लेन के साथ स्थित हैं।
    • इस प्रकार त्रिंकोमाली बंदरगाह से सटे एक अच्छी तरह से विकसित तेल भंडारण सुविधा और रिफाइनरी का भारत और श्रीलंका दोनों के लिये बहुत आर्थिक मूल्य होगा।

भारत-लंका समझौता:

  • इस समझौते के सूत्रधार भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने थे, यह समझौता मुख्य रूप से राजीव-जयवर्धने समझौते के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1987 में इस समझोते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इस समझौते पर श्रीलंका में गृहयुद्ध (तमिलों और सिंहल समुदाय के बीच) के बहाने हस्ताक्षर किये गए थे।
  • समझौते में भारत के सामरिक हितों, श्रीलंका में भारतीय मूल के लोगों के हितों और श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के अधिकारों को संतुलित करने की मांग की गई थी।.
  • समझौते के तहत श्रीलंकाई गृहयुद्ध को हल करने हेतु श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षा बल (Indian Peace Keeping Force- IPKF) की नियुक्ति की गई।
  • समझौते के परिणामस्वरूप श्रीलंका के संविधान में 13वें सविधान संशोधन और वर्ष 1987 के प्रांतीय परिषद अधिनियम को भी लागू किया गया।

भारत-श्रीलंका संबंधों में तनाव:

  • चीन का हस्तक्षेप: श्रीलंका में चीन का तेज़ी से बढ़ता हस्तक्षेप (और इसके परिणाम के रूप में राजनीतिक दबदबा) भारत-श्रीलंका संबंधों को तनावपूर्ण बना रहा है।
    • चीन पहले से ही श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक है, जिसका श्रीलंका में वर्ष 2010-2019 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में 23.6% हिस्सा है, जबकि भारत का हिस्सा 10.4% है।
    • चीन श्रीलंकाई सामानों के लिये सबसे बड़े निर्यात स्थलों में से एक है और अपने विदेशी ऋण का 10% से अधिक रखता है।
    • चीन श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को भी संभाल रहा है, इस बंदरगाह को चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
  • कच्चातीवु द्वीप मुद्दा: भारत ने वर्ष 1974 में एक सशर्त समझौते के तहत कच्चातीवु नामक निर्जन द्वीप को अपने दक्षिणी पड़ोसी देश को सौंप दिया।
    • हालाँकि भारत-श्रीलंका के दृष्टिकोण के बजाय यह विवाद कई बार मछुआरों से संबंधित घरेलू संघर्ष के कारण उत्पन्न होता है।
  • श्रीलंका के संविधान का 13वाँ संशोधन: श्रीलंका के संघर्ष के राजनीतिक समाधान के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • यह एक संयुक्त श्रीलंका के भीतर समानता, न्याय, शांति और सम्मान के लिये तमिल लोगों की उचित मांग को पूरा करने हेतु प्रांतीय परिषदों को आवश्यक शक्तियों के हस्तांतरण की परिकल्पना करता है।
    • इस समझौते के प्रावधान श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन द्वारा किये गए थे।
    • बावजूद इसके प्रावधानों को धरातल पर लागू नहीं किया जा रहा है। आज भी श्रीलंकाई गृहयुद्ध (2009) से बचने वाले बहुत से श्रीलंकाई तमिल तमिलनाडु में शरण मांग रहे हैं। 
  • श्रीलंका का पीछे हटना: हाल ही में श्रीलंका घरेलू मुद्दों का हवाला देते हुए कोलंबो पोर्ट पर अपने ईस्ट कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट के लिये भारत और जापान के साथ त्रिपक्षीय साझेदारी से पीछे हट गया।

भारत-श्रीलंका सहयोग: हाल के घटनाक्रम:

  • फोर-पिलर इनिशिएटिव: हाल ही में भारत और श्रीलंका ने श्रीलंका के आर्थिक संकट को कम करने में मदद हेतु खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा पर चर्चा करने के लिये चार सूत्री रणनीति पर सहमति व्यक्त की है।
  • संयुक्त अभ्यास: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य अभ्यास (मित्र शक्ति) तथा नौसैनिक अभ्यास- स्लीनेक्स (SLINEX) का आयोजन करते हैं।
  • समूहों के बीच भागीदारी: श्रीलंका भी बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) और सार्क जैसे समूहों का सदस्य है जिसमें भारत प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • SAGAR विज़न: श्रीलंका अपनी 'पड़ोसी पहले' नीति और सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) के साथ हिंद महासागर की सुरक्षा के लिये भारत की चिंता का समर्थन करता है।

आगे की राह

  • श्रीलंका के साथ ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का संपोषण भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। 
  • श्रीलंका के प्रति अपनी 'द्वीपीय कूटनीति' के हिस्से के रूप में भारतीय विदेश नीति को भी आकस्मिक वास्तविकताओं और खतरों के अनुरूप विकसित करना होगा।
  • दोनों देश आर्थिक लचीलापन पैदा करने के लिये निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने में भी सहयोग कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू