नई जीन एडिटिंग तकनीक | 22 Oct 2021
प्रिलिम्स के लिये:जीन एडिटिंग, डीएनए, CRISPR, हरित क्रांति मेन्स के लिये:जीन एडिटिंग : संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारतीय नियामकों के लिये एक नई जीन एडिटिंग तकनीक पर विचार करने का प्रस्ताव जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee –GEAC) के पास लगभग दो वर्षों से लंबित है।
जीन एडिटिंग
- जीन एडिटिंग (जिसे जीनोम एडिटिंग भी कहा जाता है) प्रौद्योगिकियों का एक समुच्चय है जो वैज्ञानिकों को एक जीव के डीएनए (DNA) को बदलने की क्षमता उपलब्ध कराता है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) अब साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज (SDN) 1 और 2 जैसी नई तकनीकों की ओर स्थानांतरित हो गया है।
- नई तकनीक का उद्देश्य CRISPR (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) जैसे जीन एडिटिंग उपकरण का उपयोग करके प्रजनन प्रक्रिया में सटीकता और दक्षता लाना है, जिसके डेवलपर्स को वर्ष 2020 में रसायन विज्ञान के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
- SDN जीनोम एडिटिंग में विभिन्न डीएनए को काटने/पृथक करने वाले एंजाइमों (न्यूक्लिअस) का उपयोग शामिल होता है, जिन्हें विभिन्न डीएनए बाइंडिंग सिस्टम की एक श्रृंखला द्वारा पूर्व निर्धारित स्थान पर डीएनए को काटने/पृथक के लिये निर्देशित किया जाता है।
- पृथक किये जाने के बाद, कोशिका में मौज़ूद डीएनए पुन:निर्मित क्रियाविधि द्वारा कोशिकाओं में स्वाभाविक रूप से मौजूद दो विकल्पों में से एक का उपयोग करके, समस्या की पहचान करता है और क्षतिग्रस्त कोशिका को पुन: ठीक करता है।
- इसमें जीन एडिटिंग टूल्स का उपयोग प्रत्यक्ष रूप से पौधे के जीन को परिवर्तित (सुधार / परिवर्तन) करने के लिये किया जाता है।
- यह पारंपरिक ट्रांसजेनिक तकनीक के उपयोग के बिना पौधों को आनुवंशिक रूप से संशोधित करने की अनुमति देगा।
- वर्तमान आवेदन:
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत एक अनुसंधान गठबंधन, जिसमें IARI शामिल है, इन तकनीकों का उपयोग चावल की किस्मों को विकसित करने के लिये किया जा रहा है जो सूखा-सहिष्णु, लवणता-सहिष्णु और उच्च उपज वाली हैं। वे संभावित रूप से तीन वर्ष के भीतर व्यावसायिक खेती के लिये तैयार हो सकते हैं।
- IARI ने पहले गोल्डन राइस पर कार्य किया है, जो एक पारंपरिक जीएम किस्म है जिसमें चावल के पौधे में अन्य प्रजातियों के जीन डाले गए है, लेकिन कृषि संबंधी मुद्दों के कारण पाँच वर्ष पूर्व इसके परीक्षण की सीमा समाप्त हो गई।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत एक अनुसंधान गठबंधन, जिसमें IARI शामिल है, इन तकनीकों का उपयोग चावल की किस्मों को विकसित करने के लिये किया जा रहा है जो सूखा-सहिष्णु, लवणता-सहिष्णु और उच्च उपज वाली हैं। वे संभावित रूप से तीन वर्ष के भीतर व्यावसायिक खेती के लिये तैयार हो सकते हैं।
- नई तकनीकों का महत्त्व:
- सुरक्षित:
- इसका अभिप्राय यह है कि पौधों में केवल उस जीन को बदला जा रहा हैं जो पहले से ही पौधे में मौज़ूद है अर्थात् किसी बाहरी जीन का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
- जब प्रोटीन बाहरी प्रजातियों से आता है, तो उसकी सुरक्षा के लिये परीक्षण करने की आवश्यकता होती है। लेकिन इस तकनीक में यह प्रोटीन पौधे में पहले से ही मौज़ूद होता है जिसमें तकनीक के माध्यम से कुछ परिवर्तन किया जा रहा है, जैसे प्रकृति उत्परिवर्तन के माध्यम से करती है।
- गतिशीलता:
- यह प्राकृतिक उत्परिवर्तन या पारंपरिक प्रजनन विधियों की तुलना में अधिक गतिशील और अधिक सटीक है जिसमें परीक्षण एवं त्रुटि तथा कई प्रजनन चक्र शामिल हैं। यह संभावित रूप से एक नई हरित क्रांति है।
- सुरक्षित:
- विश्व स्तर पर नई तकनीकों की स्थिति:
- अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान उन देशों में शामिल हैं जिन्होंने पहले ही SDN 1 और 2 प्रौद्योगिकियों को जीएम तकनीक के समतुल्य मंज़ूरी नहीं प्रदान की है, इसलिये चावल की ऐसी किस्मों को बिना किसी समस्या के निर्यात किया जा सकता है।
- यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये है कि इन तकनीकों को पारंपरिक जीन उत्परिवर्तन के समान सुरक्षा मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं है, हालाँकि यूरोपीय संघ ने अभी तक सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है।
- भारत में संबंधित कानून:
- भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अधिसूचित "खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक रूप से अभियांत्रिक जीवों या कोशिकाओं के उत्पाद, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के लिये नियम, 1989" द्वारा समर्थित कई नियम, दिशा-निर्देश और नीतियाँ आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों को विनियमित करती हैं।
- इसके अलावा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा मानव प्रतिभागियों को शामिल करने वाले बायोमेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश, 2017 तथा बायोमेडिकल एवं स्वास्थ्य अनुसंधान विनियमन विधेयक का तात्पर्य जीन एडिटिंग प्रक्रिया के विनियमन से है।
- यह विशेष रूप से इसकी भाषा “अनुवांशिक सामग्री के कुछ हिस्सों को संशोधित, हटाने या समाप्त करने” के उपयोग में है।
- हालाँकि जीन एडिटिंग शब्द का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति
- यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत कार्य करती है।
- यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार है।
- समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादों के निर्गमन से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी ज़िम्मेदार है।
- GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करते हैं और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा सह-अध्यक्षता की जाती है।