जैव विविधता और पर्यावरण
समुद्री मूँगों में प्रतिरक्षित कोशिकाएँ
- 24 Aug 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:प्रवाल, फागोसाइटोसिस, समुद्र एनीमोन, ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, प्रवाल विरंजन मेन्स के लिये:प्रवाल भित्तियों के लाभ और खतरा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक नए अध्ययन ने पहली बार पहचान की है कि समुद्री मूँगों और एनीमोन (Anemone) की कुछ किस्मों में विशेष प्रतिरक्षित कोशिकाएँ (Immune Cell- फागोसाइटिक कोशिकाएँ) मौजूद होती हैं।
- यह इस बात को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा कि कैसे प्रवाल निर्माता मूँगा और अन्य प्रवाल जंतु बैक्टीरिया एवं वायरस जैसे विदेशी आक्रमणकारियों से खुद को बचाते हैं।
फागोसाइटोसिस
- यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कुछ जीवित कोशिकाएँ जिन्हें फागोसाइट (Phagocyte) कहा जाता है, अन्य कोशिकाओं या कणों को निगलती हैं।
- फागोसाइट एक मुक्त जीवित एकल कोशिका वाला जीव हो सकता है, जैसे कि अमीबा।
- पशु जीवन के कुछ रूपों जैसे- अमीबा, स्पंज आदि के लिये फागोसाइटोसिस भोजन का एक साधन है।
- बड़े जानवरों में फागोसाइटोसिस मुख्य रूप से एंटीजन द्वारा संक्रमण और शरीर पर आक्रमण के खिलाफ एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है।
समुद्री एनीमोन
- इन्हें कभी-कभी 'समुद्री फूल' भी कहा जाता है, ये वास्तव में सुंदर जानवर हैं जो मूँगा और जेलिफिश के करीबी वंशज हैं तथा एक्टिनियारिया क्रम के समुद्री शिकारी जानवर हैं।
- ये सभी महासागरों के ज्वारीय क्षेत्र से 10,000 मीटर से अधिक की गहराई तक पाए जाते हैं।
प्रमुख बिंदु
- प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान जीवों से बने होते हैं जिन्हें ‘पॉलीप्स’ कहा जाता है। इन पॉलीप्स में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें ज़ूजैन्थेले (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
- प्रवाल और शैवाल में परस्पर संबंध होता है।
- प्रवाल, ज़ूजैन्थेले को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक यौगिक प्रदान करता है। बदले में ज़ूजैन्थेले कार्बोहाइड्रेट की तरह प्रकाश संश्लेषण के जैविक उत्पादों की प्रवाल को आपूर्ति करता है, जो उनके कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के संश्लेषण हेतु प्रवाल पॉलीप्स द्वारा उपयोग किया जाता है।
- यह प्रवाल को आवश्यक पोषक तत्त्वों को प्रदान करने के अलावा इसे अद्वितीय और सुंदर रंग प्रदान करता है।
- उन्हें "समुद्र का वर्षावन" भी कहा जाता है।
- प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
- कठोर, उथले पानी के प्रवाल।
- ‘सॉफ्ट’ प्रवाल और गहरे पानी के प्रवाल जो गहरे ठंडे पानी में रहते हैं।
प्रवालों से लाभ:
- आवास:
- प्रवाल 1 मिलियन से अधिक विविध जलीय प्रजातियों का घर है, जिनमें हज़ारों मछलियों की प्रजातियाँ शामिल हैं।
- आय:
- प्रवाल भित्ति और संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों का वैश्विक अनुमानित मूल्य 2.7 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है, यह सभी वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्यों का 2.2% है, इसमें पर्यटन और भोजन शामिल हैं।
- तटीय सुरक्षा:
- प्रवाल भित्ति तरंगों से ऊर्जा को अवशोषित करके तटरेखा क्षरण को कम करते हैं। वे तटीय आवास, कृषि भूमि और समुद्र तटों की रक्षा कर सकते हैं।
- चिकित्सा:
- ये भित्तियाँ उन प्रजातियों का घर है, जिनमें दुनिया की कुछ सबसे प्रचलित और खतरनाक बीमारियों के इलाज की क्षमता है।
खतरा:
- अत्यधिक मत्स्ययन और मछली पकड़ने का गलत तरीका:
- अत्यधिक मत्स्ययन प्रवाल के पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता को प्रभावित कर सकता है।
- डायनामाइट, साइनाइड, बॉटम ट्रॉलिंग और मूरो अमी (लाठी से भित्ति पर वार करना) के साथ मछली पकड़ना पूरी भित्ति को नुकसान पहुँचा सकता है।
- मनोरंजक गतिविधियाँ:
- अनियमित मनोरंजक गतिविधियाँ और पर्यटन, जिस पर उद्योग निर्भर करते हैं, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
- तटीय विकास:
- उष्णकटिबंधीय देशों में तटीय क्षेत्रों में विकास दर सबसे तेज़ है। हवाई अड्डे और इमारतों को अक्सर समुद्री भूमि पर बनाया जाता है।
- प्रदूषण:
- शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, कृषि रसायन एवं तेल प्रदूषण प्रवाल भित्तियों को ज़हरीला बना रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन:
- प्रवाल विरंजन: जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल ज़ूजैन्थेले को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।
- महासागरीय अम्लीकरण: महासागरों की बढ़ती अम्लता प्रवाल भित्तियों के कंकाल निर्माण में कठिनाई उत्पन्न करती है जिससे यह प्रवाल भित्तियों के निर्माण हेतु खतरा है।
प्रवालों के संरक्षण हेतु की गई पहलें:
- वैश्विक पहल:
- अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
- ग्लोबल कोरल रीफ मॉनीटरिंग नेटवर्क (GCRMN)
- ग्लोबल कोरल रीफ अलायंस (GCRA)
- ग्लोबल कोरल रीफ आर एंड डी एक्सेलेरेटर प्लेटफॉर्म
- भारतीय पहल:
- भारत ने तटीय क्षेत्र अध्ययन (Coastal Zone Studies) के अंतर्गत प्रवाल भित्तियों पर अध्ययन को शामिल किया है।
- भारत में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI), गुजरात के वन विभाग की मदद से "बायोरॉक" या खनिज अभिवृद्धि तकनीक का उपयोग करके प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया का प्रयास कर रहा है।
- देश में प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा और रखरखाव के लिये राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम (National Coastal Mission Programme) चलाया जा रहा है।
भारत में मूँगे के प्रमुख स्थान
- प्रवाल भित्तियाँ कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप द्वीप समूह तथा मालवन के क्षेत्रों में मौजूद हैं।