स्टेम सेल प्रत्यारोपण
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में हेमेटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण (HSCT) कराने वाले मरीजों के दीर्घकालिक परिणामों की जाँच की गई, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि प्रत्यारोपित स्टेम कोशिकाएँ समय के साथ कैसे विकसित और उत्परिवर्तित होती हैं।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- इस शोध में दानकर्त्ताओं और प्राप्तकर्त्ताओं के 16 जोड़ों को शामिल किया गया, जिनमें दोनों में आश्चर्यजनक रूप से कम उत्परिवर्तन दर (जो कि दानकर्त्ताओं में औसतन 2% और प्राप्तकर्त्ताओं में 2.6% प्रतिवर्ष) देखी गई।
- यह खोज दशकों तक स्टेम कोशिकाओं के स्थिर क्लोनल विस्तार का संकेत देती है।
- सभी दाताओं ने क्लोनल हेमेटोपोइसिस का कुछ स्तर प्रदर्शित किया, व्यापक क्लोनल विस्तार की अनुपस्थिति अस्थि मज्जा की मजबूत पुनर्योजी क्षमता को इंगित करती है।
- निहितार्थ:
- दीर्घकालिक प्रत्यारोपण परिणामों में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण।
- क्लोनल हेमेटोपोइसिस की उपस्थिति के कारण प्राप्तकर्त्ताओं में रक्त कैंसर या दीर्घकालिक रोग विकसित होने का संभावित जोखिम
नोट: जब रक्त प्रणाली में एक प्रकार की रक्त कोशिका की संख्या अन्य की तुलना में बढ़ जाती है तब क्लोनल हेमेटोपोइसिस की स्थिति होती है। इस स्थिति के सामान्य उदाहरणों में क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया और मायलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम (MDS) शामिल हैं।
हेमेटोपोइएटिक स्टेम कोशिकाएँ क्या हैं?
- स्टेम कोशिकाएँ: स्टेम कोशिकाओं से विशिष्ट कार्य करने वाली अन्य कोशिकाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- हेमेटोपोइएटिक स्टेम सेल (HSC): ये अपरिपक्व कोशिकाएँ हैं जो श्वेत रक्त कोशिकाओं, लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स सहित सभी प्रकार की रक्त कोशिकाओं में विकसित होने में सक्षम हैं। इसे पहली बार 1950 के दशक में मनुष्यों में उपयोग के लिये खोजा गया था।
- हेमेटोपोइएटिक स्टेम कोशिकाएँ परिधीय रक्त और अस्थि मज्जा में स्थित होती हैं, जिन्हें रक्त स्टेम कोशिकाएँ भी कहा जाता है।
- HSC का प्रत्यारोपण: इसमें निष्क्रिय या क्षीण अस्थि मज्जा वाले रोगियों को स्वस्थ हेमेटोपोइएटिक स्टेम कोशिकाएँ प्रदान की जाती हैं।
- हेमेटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण से रक्त कैंसर से पीड़ित लोगों की जान बचाई जा सकती है।
- प्रत्यारोपण के बाद दान की गई स्टेम कोशिकाएँ प्राप्तकर्त्ता की रक्त कोशिका उत्पादन प्रणाली को संतुलित करने में मदद करती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. वंशानुगत रोगों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न. अक्सर सुर्खियों में रहने वाली ‘स्टेम कोशिकाओं’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
एंटी-सबमरीन शिप अभय
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में, 7वें एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW SWC), अभय को लॉन्च किया गया।
- अभय की 80% से अधिक सामग्री स्वदेशी है, जो रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।
- रक्षा मंत्रालय (MoD) ने आठ ASW SWC जहाजों के निर्माण के लिये गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE), कोलकाता के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।
- इसकी क्षमताओं में सर्च अटैक यूनिट (SAU) और विमान के साथ समन्वित ASW संचालन, तटीय जल में उप-सतह लक्ष्यों का अवरोधन/विनाश शामिल हैं।
- इसे अल्प तीव्रता समुद्री संचालन (LIMO) और माइन लेइंग ऑपरेशन में तैनात किया जा सकता है।
- इसमें कम आवृत्ति वाला परिवर्तनीय गहराई वाला सोनार, पतवार पर लगा सोनार और व्यययोग्य बाथिथर्मोग्राफ लगा है।
- बाथिथर्मोग्राफ गहराई में परिवर्तन के साथ जल के तापमान में परिवर्तन का पता लगाते हैं।
- ये जहाज़ जल जेट से चलते हैं और हल्के टॉरपीडो जैसे पनडुब्बी रोधी हथियारों से लैस होते हैं।
- वे अर्नाला श्रेणी का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य सेवा में मौजूद अभय श्रेणी के ASW कॉर्वेट को प्रतिस्थापित करना है।
और पढ़ें: एंटी-सबमरीन वारफेयर का लॉन्च
ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में चीन ने मुंबई में ताइवान सरकार द्वारा ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) की स्थापना पर अपना विरोध जताया है। यह भारत में ताइवान का तीसरा कार्यालय है, इससे पहले नई दिल्ली (1995) और चेन्नई (2012) में भी कार्यालय खोले गए थे।
TECC:
- वर्ष 1993 में भारत और ताइवान ने प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये: ताइपे में भारत-ताइपे एसोसिएशन और नई दिल्ली में TECC।
- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे अन्य देश भी वीज़ा सेवाओं और सांस्कृतिक-आर्थिक आदान-प्रदान का समर्थन करने के लिये ऐसे केंद्र बनाए रखते हैं।
TECC पर चीन का रुख:
- चीन का आधिकारिक रुख यह है कि केवल एक ही चीन है, जिसमें ताइवान एक अविभाज्य अंग है, तथा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) एकमात्र वैध सरकार है।
- भारत ने वर्ष 1950 में PRC को मान्यता दी थी, जिससे वह ऐसा करने वाले सबसे पहले देशों में से एक बन गया, तथा वह आधिकारिक तौर पर ताइवान को मान्यता नहीं देता है।
भारत-ताइवान संबंध:
- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने ताइवान या चीन गणराज्य को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी, तथा ताइवान के साथ उसके राजनयिक संबंध भी नहीं थे। हालाँकि, वर्ष 1995 में, भारत और ताइवान ने अनौपचारिक संबंध स्थापित किये, प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये।
- पिछले कुछ वर्षों में ताइवान के प्रति भारत का दृष्टिकोण काफी बदल गया है तथा संबंधों में भी काफी प्रगति हुई है।
- 2000 के दशक में भारत के आर्थिक उत्थान और बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय छवि ने ताइवान के भारत के साथ संबंध को सुगम बनाया।
- ताइवान के विदेश मंत्रालय की वर्ष 2023 की प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि भारत-ताइवान व्यापार वर्ष 2006 में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021 में 8.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- एक प्रमुख प्रौद्योगिकी केंद्र और शीर्ष सेमीकंडक्टर उत्पादक के रूप में, ताइवान भारत के साथ मज़बूत संबंधों में रुचि रखता है, तथा इसकी वर्ष 2016 की "न्यू साउथबाउंड पॉलिसी" का लक्ष्य एकल बाज़ारों, विशेष रूप से चीन पर निर्भरता को कम करना है।
अधिक पढ़ें: चीन-ताइवान संघर्ष