प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट : 28 अगस्त, 2021
हरि सिंह नलवा: सिख योद्धा
Hari Singh Nalwa: The Sikh Warrior
साम्राज्यों का कब्रिस्तान (Graveyard of the Empires) कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर पूरी तरह से किसी का नियंत्रण नहीं हो सका।
- लेकिन एक महान सिख सेनापति हरि सिंह नलवा ने अफगानिस्तान में उपद्रवी/अशांत ताकतों पर काबू पा लिया और वहांँ के सबसे खूंखार सिख योद्धा की प्रतिष्ठा अर्जित की।
प्रमुख बिंदु
- हरि सिंह नलवा के बारे में:
- वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना में सेनापति थे।
- रणजीत सिंह पंजाब के सिख साम्राज्य के संस्थापक और महाराजा (1801-39) थे।
- वे कश्मीर, हजारा और पेशावर के गवर्नर रहे।
- उन्होंने अफगानों को हराया और अफगानिस्तान की सीमा के साथ विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
- अफगानिस्तान को अविजित क्षेत्र कहा जाता था और यह हरि सिंह नलवा ही थे जिन्होंने पहली बार अफगानिस्तान सीमा और खैबर दर्रे के साथ कई क्षेत्रों पर नियंत्रण करके अफगानों को उत्तर-पश्चिम सीमांत को तबाह करने से रोका था।
- इस प्रकार उन्होंने अफगानों को खैबर दर्रे के माध्यम से पंजाब में प्रवेश करने से रोक दिया, जो कि 1000 ईस्वी से 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक विदेशी आक्रमणकारियों के लिये भारत में घुसने का एक मुख्य प्रवेश मार्ग का कार्य करता था।
- हरि सिंह नलवा ने अफगानिस्तान की एक जनजाति हज़ारा के हज़ारों सनिकों को हराया, जबकि हरि सिंह की ताकत हज़ारा के तीन गुना से भी कम थी।
- सरकार ने वर्ष 2013 में उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिये नलवा के नाम पर एक डाक टिकट जारी किया।
- वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना में सेनापति थे।
- लड़ाइयाँ जिनमें उन्होंने भाग लिया:
- 1807 कसूर की लड़ाई (वर्तमान पाकिस्तान में स्थित): इसमें हरि सिंह नलवा ने अफगानी शासक कुतुब-उद-दीन खान (Kutab-ud-din Khan) को हराया।
- अटक की लड़ाई (1813 में): नलवा ने अन्य कमांडरों के साथ अजीम खान और उसके भाई दोस्त मोहम्मद खान के खिलाफ जीत हासिल की, जो काबुल के शाह महमूद की ओर से लड़े थे और यह दुर्रानी पठानों पर सिखों की पहली बड़ी जीत थी।
- वर्ष 1818 की पेशावर की लड़ाई: वर्ष 1818 में, नलवा के अधीन सिख सेना ने पेशावर की लड़ाई जीती और नलवा को वहा तैनात किया गया। वर्ष 1837 में नलवा ने ज़मरूद पर अधिकार कर लिया, जो खैबर दर्रे के माध्यम से अफगानिस्तान के प्रवेश द्वार पर एक किला था।
- इतिहासकारों का कहना है कि यदि महाराजा रणजीत सिंह और उनके सेनापति हरि सिंह नलवा ने पेशावर और उत्तर पश्चिम सीमांत को नहीं जीता होता, जो कि अब वर्तमान पाकिस्तान का हिस्सा है, तो यह क्षेत्र अफगानिस्तान का हिस्सा हो सकता था और पंजाब तथा दिल्ली में अफगानों का आक्रमण कभी नहीं रुकता।
चागोस द्वीप समूह में ब्रिटिश स्टैम्प्स पर प्रतिबंध
British Stamps Banned from Chagos Islands
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago) पर ब्रिटिश स्टैम्प्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- संदर्भ:
- अब यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU) ब्रिटेन द्वारा द्वीपसमूह को दिये गए नाम ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT) शब्दों वाले टिकटों का पंजीकरण, वितरण और प्रसारण बंद कर देगी।
- UPU संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है और यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये डाक क्षेत्र का प्राथमिक मंच है।
- चागोस द्वीपसमूह, मध्य हिंद महासागर में एक द्वीपसमूह है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी सिरे से लगभग 1,600 किमी. दक्षिण में स्थित है।
- अब यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU) ब्रिटेन द्वारा द्वीपसमूह को दिये गए नाम ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT) शब्दों वाले टिकटों का पंजीकरण, वितरण और प्रसारण बंद कर देगी।
- पृष्ठभूमि:
- 19वीं शताब्दी में चागोस मॉरीशस द्वारा शासित था, जो एक ब्रिटिश उपनिवेश था।
- वर्ष 1968 में मॉरीशस स्वतंत्र हो गया परंतु चागोस द्वीपसमूह ब्रिटिश नियंत्रण में ही रहा। यूनाइटेड किंगडम (UK) सरकार इसे BIOT के रूप में संदर्भित करती है।
- चागोसियों द्वारा इसके विरोध में प्रदर्शन किये गए, साथ ही लंदन के खिलाफ "अवैध कब्ज़ा" करने और उन्हें मातृभूमि से प्रतिबंधित करने का आरोप लगाया।
- मॉरीशस द्वारा इन द्वीपों के लिये 4 मिलियन पाउंड से अधिक की राशि का भुगतान कर स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी UK ने चागोस द्वीपसमूह पर कब्ज़ा कर लिया, जिसमें डिएगो गार्सिया (Diego Garcia) का रणनीतिक अमेरिकी एयरबेस शामिल है।
- चागोस द्वीपसमूह में डिएगो गार्सिया द्वीप से लगभग 1,500 मूल द्वीपवासियों को निर्वासित किया गया था ताकि वर्ष 1971 में एयरबेस के लिये इसे अमेरिका को पट्टे पर दिया जा सके।
- वर्ष 1975 के बाद से मॉरीशस ने द्वीपसमूह की सुरक्षित वापसी के लिये एक ठोस कानूनी प्रयास किया है।
- हालिया विकास:
- वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फैसला सुनाया कि ब्रिटेन को द्वीपों पर नियंत्रण छोड़ देना चाहिये।
- बाद में वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह स्वीकार करते हुए एक प्रस्ताव अपनाया कि "चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस क्षेत्र का एक अभिन्न अंग है" और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों से "मॉरीशस के विघटन का समर्थन करने" का आग्रह किया।
- भारत का रुख:
- भारत ने चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के रुख का समर्थन किया है। भारत ने अपने प्रस्ताव में ICJ से कहा है कि चागोस द्वीपसमूह को लेकर वह मॉरीशस के साथ है और हमेशा रहेगा तथा ब्रिटेन से चागोस द्वीपसमूह पर संप्रभुता की मांग की।
- भारत हिंद महासागर में अपने पड़ोसी मॉरीशस के साथ है और अपनी उपनिवेश विरोधी साख के लिये प्रतिबद्ध रहा है।
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 28 अगस्त, 2021
स्टॉकहोम वर्ल्ड वाटर वीक
‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल वाटर इंस्टीट्यूट’ द्वारा 23 अगस्त से 27 अगस्त के बीच ‘वर्ल्ड वाटर वीक’ का आयोजन किया गया। ‘स्टॉकहोम वर्ल्ड वाटर वीक’ की स्थापना वर्ष 1991 में ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल वाटर इंस्टीट्यूट’ (SIWI) द्वारा की गई थी। यह पाँच दिवसीय आयोजन वर्तमान में दुनिया का सबसे अग्रणी जल सम्मेलन है, जो मुख्य तौर पर जल, विकास और स्थिरता एवं अंतर्राष्ट्रीय विकास से संबंधित चिंताओं को संबोधित करने का प्रयास करता है। इस कार्यक्रम में 130 से अधिक देशों के छात्र, व्यावसायिक प्रमुख, राजनेता, गैर-सरकारी संगठन, शोधकर्त्ता, अंतर-सरकारी संगठन और कई अन्य लोग शामिल होते हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य एक स्वतंत्र एवं गतिशील मंच के माध्यम से विज्ञान, नीति और निर्णय लेने की प्रक्रिया का एकीकरण करना है। प्रतिवर्ष ‘वर्ल्ड वाटर वीक’ एक अलग विषय पर ध्यान केंद्रित करता है। वर्ष 2021 की थीम ‘बिल्डिंग रेज़िलिएशन फास्टर’ है, जो जल की कमी, खाद्य असुरक्षा और कोविड-19 महामारी के प्रभाव जैसी मौजूदा चुनौतियों के साथ-साथ जलवायु संकट के मुद्दे को संबोधित करती है। ज्ञात हो कि भारत की ओर से ‘सूरत नगर निगम’ एकमात्र ऐसा नागरिक निकाय था, जिसे ‘ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिटीज़’ विषय पर पैनल चर्चा में आमंत्रित किया गया था।
‘इंडियासाइज़’ सर्वेक्षण
कपड़ा मंत्रालय (भारत सरकार) के तत्त्वावधान में नई दिल्ली स्थित ‘राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान’ (NIFT) द्वारा भारतीय नागरिकों के लिये शरीर आकार चार्ट विकसित करने हेतु एक व्यापक मानवशास्त्रीय अनुसंधान किया जा रहा है। ‘इंडियासाइज़’ सर्वेक्षण का उद्देश्य रेडी-टू-वियर कपड़ों के क्षेत्र में भारत के लिये एक नया मानकीकृत आकार चार्ट पेश करना है। यद्यपि इस परियोजना की घोषणा फरवरी 2019 में की गई थी, किंतु महामारी के कारण इसमें देरी हुई। यह अनुसंधान कार्य वर्ष 2022 के अंत तक पूरा हो जाएगा। इस सर्वेक्षण में विभिन्न आयु समूहों, आय वर्ग और विभिन्न जातियों के प्रतिभागी शामिल होंगे। इस सर्वेक्षण में एक सुरक्षित ‘3D होल बॉडी स्कैनर’ तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। यह राष्ट्रीय आकार सर्वेक्षण के सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल का पालन करेगा और इस आकार का उपयोग परिधान उद्योग द्वारा किया जाएगा। गौरतलब है कि ‘इंडियासाइज़’ सर्वेक्षण, कपड़ा मंत्रालय की एक व्यापक ‘फाइबर-टू-फैशन’ पहल का हिस्सा है। कपड़ा क्षेत्र भारत में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है और प्रतिवर्ष लगभग 140 अरब रुपए का व्यापार करता है, जिसमें से 100 अरब रुपए अकेले भारतीय उपभोक्ताओं से, जबकि 40 अरब रुपए निर्यात से प्राप्त किया जाता है।
अल्जीरिया और मोरक्को के बीच राजनयिक संबंध समाप्त
हाल ही में अल्जीरिया ने शत्रुतापूर्ण कार्य का हवाला देते हुए मोरक्को के साथ अपने सभी राजनयिक संबंधों को समाप्त कर दिया है, इसी के साथ 1970 के दशक के बाद से उत्तरी अफ्रीकी पड़ोसियों के बीच राजनीतिक संबंध सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गए हैं। यद्यपि वर्ष 1994 से दो उत्तरी अफ्रीकी देशों (अल्जीरिया और मोरक्को) के बीच की सीमा पूर्णतः बंद थी, किंतु वर्ष 1988 में दोनों देशों के संबंध बहाल किये गए थे, जो अब तक जारी थे। अल्जीरिया को अफ्रीका और यूरोप के बीच प्रवेश द्वार माना जाता है और यह पिछली आधी सदी से हिंसा से त्रस्त रहा है। सहारा रेगिस्तान, अल्जीरिया के 80 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है। ‘अल्जीरिया’ अफ्रीका महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है और दुनिया का 10वाँ सबसे बड़ा देश है। अल्जीरिया उन तीन देशों में सबसे बड़ा है, जो उत्तर पश्चिमी अफ्रीका के ‘माघरेब क्षेत्र’ का निर्माण करते हैं। वहीं मोरक्को, उत्तरी अफ्रीका में स्थित एक देश है जिसकी आबादी लगभग 34 मिलियन है। यह पूर्व में अल्जीरिया और दक्षिण में पश्चिमी सहारा के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
क्यूबा में ‘क्रिप्टोकरेंसी’ को मान्यता
क्यूबा की सरकार ने हाल ही में भुगतान के लिये ‘क्रिप्टोकरेंसी’ को मान्यता देने और विनियमित करने का निर्णय लिया है। आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित एक प्रस्ताव के मुताबिक, क्यूबा का केंद्रीय बैंक ऐसी मुद्राओं के लिये जल्द ही नियम निर्धारित करेगा और यह भी निर्धारित किया जाएगा कि क्यूबा के भीतर संबंधित सेवाओं प्रदाताओं को किस प्रकार लाइसेंस प्रदान किया जाएगा। ज्ञात हो कि क्यूबा में इस प्रकार की मुद्राओं की लोकप्रियता काफी बढ़ गई है, क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन के तहत लगाए गए कड़े प्रतिबंध नियमों के कारण क्यूबा में डॉलर का उपयोग करना कठिन हो गया है। इसके अलावा मध्य अमेरिकी देश ‘अल सल्वाडोर’ ने भी विदेशों में रहने वाले अपने नागरिकों से प्रेषण प्राप्त करने के तरीके के रूप में क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन के उपयोग को मान्यता देने की घोषणा की थी।