प्रारंभिक परीक्षा
थमिराबरानी नदी
तमिलनाडु में तिरुनेलवेली का ज़िला प्रशासन, अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एन्वायरनमेंट (ATREE) गैर-लाभकारी संगठन, थमिराबरानी नदी का जीर्णोद्धार करने के लिये तामीरासेस नामक एक 'हाइपर लोकल' विधि का उपयोग कर रहा है।
परियोजना:
- आवश्यकता:
- दक्षिणी तमिलनाडु के लिये पर्यावरणीय और ऐतिहासिक दृष्टि से थामिराबरानी का अत्यधिक महत्त्व है लेकिन इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है, इसलिये जीर्णोद्धार परियोजना शुरू की गई है।
- थमिराबरानी परिदृश्य सामान्य रूप से जल-समृद्ध प्रतीत होता है, जबकि इसने वर्ष 2016 में विविध जल भंडारण प्रणालियों के बावजूद भीषण सूखे का सामना किया।
- बस्तियाँ बढ़ रही हैं, जिसके कारण कृषि भूमि और जल निकाय सिकुड़ रहे हैं।
- तामीरासेस परियोजना (TamiraSES project):
- यह एक ज़िला स्तरीय पहल है जिसका उद्देश्य तामिरापारनी नदी के तट की (नदी के उद्गम स्थल से मुहाना तक) सामाजिक पारिस्थितिक प्रणालियों को बहाल करना है, ताकि स्थानीय जैवविविधता को पनपने और स्थानीय हितधारकों के लिये कई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने एवं बढ़ाने के लिये स्थितियों को सक्षम किया जा सके।
- परियोजना के पहले चरण के तहत पाँच सामाजिक पारिस्थितिक वेधशालाएँ स्थापित की जाएंगी। ये वेधशालाएँ सीखने के लिये पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम करेंगी।
- यह विचार न केवल थमिराबरानी नदी बल्कि तिरुनेलवेली के सभी जल निकायों को फिर से जीवंत करने की दिशा में प्रयास है।
थमिराबरानी नदी के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- थमिराबरानी, तमिलनाडु की एकमात्र बारहमासी (पानी का निरंतर प्रवाह) नदी है।
- यह राज्य की सबसे छोटी नदी है। यह अंबासमुद्रम तालुक में पश्चिमी घाट की पोथिगई पहाड़ियों से निकलती है और तिरुनेलवेली तथा थूथुकुडी ज़िलों से होकर बहते हुई कोरकाई (तिरुनेलवेली ज़िले) में मन्नार की खाड़ी (बंगाल की खाड़ी) में गिर जाती है। इस प्रकार यह एक ही राज्य में बहती है।
- यह नदी नीलगिरि मार्टन, पतला लोरिस, लायन टेल्ड मकाक, सफेद धब्बेदार झाड़ी मेंढक, आकाशगंगा मेंढक, श्रीलंकाई एटलस मोथ और ग्रेट हॉर्नबिल जैसे वन्यजीवों का समर्थन करती है।
- पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के अलावा यह नदी राज्य के लोगों के लिये ऐतिहासिक मूल्य भी रखती है। संगम युग साहित्य में इसका व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
प्रारंभिक परीक्षा
सफेद मक्खी
हाल ही में पंजाब और राजस्थान जैसे विभिन्न राज्यों में कपास पर सफेद मक्खी के हमलों की संख्या में तेज़ी आई है।
सफेद मक्खी:
- विषय:
- सफेद मक्खी कपास के लिये एक गंभीर कीट है जो पत्ती के निचले हिस्से को नुकसान पहुँचाकर और कपास लीफ कर्ल वायरस जैसी बीमारियों को फैलाकर उपज कम कर देता है।
- वे पत्तियों के रस पर निर्भर होते हैं और पत्तियों पर तरल पदार्थ छोड़ते हैं जिस पर एक काला कवक उगता है, यह प्रकाश संश्लेषण, पौधे की भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है जिससे पौधे की ताकत कम हो जाती है।
- सफेद मक्खियों का प्रसार:
- सर्वप्रथम दर्ज की गई सर्पिल आकार की आक्रामक सफेद मक्खी (Aleurodicus dispersus) अब पूरे भारत में पाई जाती है।
- इसी तरह, वर्ष 2016 में तमिलनाडु के पोलाची में दर्ज की गई झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Aleurodicus rugioperculatus) अब अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीपों सहित पूरे देश में फैल गई है।
- उपरोक्त दोनों प्रजातियों की उपस्थिति क्रमशः 320 और 40 से अधिक पादप प्रजातियों पर दर्ज की गई है।
- सफेद मक्खी की अधिकांश प्रजातियाँ कैरिबियाई द्वीपों या मध्य अमेरिका की स्थानिक हैं।
- प्रसार का कारण:
- सभी आक्रामक सफेद मक्खियों के लिये मेज़बान पौधों की संख्या में वृद्धि का कारण इनकी बहुभक्षी प्रकृति (विभिन्न प्रकार के खाद्य से भोजन प्राप्त करने की क्षमता) और विपुल प्रजनन (बड़ी संख्या में संतान पैदा करना) है।
- पौधों के बढ़ते आयात और बढ़ते वैश्वीकरण एवं लोगों के आवागमन ने भी विभिन्न किस्मों के प्रसार तथा बाद में आक्रामक प्रजातियों के रूप में उनके विकास में सहायता की है।
- इससे जुड़ी चिंताएँ:
- फसलों को नुकसान:
- सफेद मक्खियाँ उपज को कम करने के साथ फसलों को भी नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में लगभग 1.35 लाख हेक्टेयर नारियल और पाम ऑयल क्षेत्र झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Rugose Spiralling Whitefly) से प्रभावित हैं।
- अन्य आक्रामक सफेद मक्खियों को अपने होस्ट आधार को बड़ाने के क्रम में मूल्यवान पादप प्रजातियों, विशेष रूप से नारियल, केला, आम, सपोटा (चीकू), अमरूद, काजू पाम ऑयल और सजावटी पौधों जैसे- बॉटल पाम, फाल्स बर्ड ऑफ पैराडाइज़, बटरफ्लाई पाम तथा महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधों पर भी देखा गया है।
- कीटनाशकों की अप्रभाविता:
- उपलब्ध सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग करके सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।
- फसलों को नुकसान:
- सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना:
- वे वर्तमान में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कीट परभक्षी, परजीवी (कीटों के प्राकृतिक दुश्मन, ग्रीनहाउस और फसल वाले खेतों में कीटों का जैविक नियंत्रण प्रदान करते हैं) एवं एंटोमोपैथोजेनिक कवक (कवक जो कीड़ों को मार सकते हैं) द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं।
फसलों पर आक्रमण करने वाले अन्य कीट:
- फॉल आर्मीवर्म (FAW) हमला:
- यह एक खतरनाक सीमा-पारीय कीट है और प्राकृतिक वितरण क्षमता तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्रस्तुत अवसरों के कारण इसमें तेज़ी से फैलने की उच्च क्षमता है।
- वर्ष 2020 में कृषि निदेशालय ने असम के उत्तर-पूर्वी धेमाजी ज़िले में खड़ी फसलों पर आर्मीवर्म कीटों के हमले की सूचना दी तथा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने आर्मीवर्म द्वारा उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में FAW नियंत्रण के लिये एक वैश्विक कार्रवाई शुरू की है।
- टिड्डियों का हमला:
- टिड्डी (प्रवासी कीट) एक बड़ी, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय तृण-भोजी परिग (Grasshopper) है जिसकी उड़ान क्षमता बहुत मज़बूत होती है। ये व्यवहार परिवर्तन में साधारण तृण-भोजी कीटों से अलग होते हैं तथा झुंड बनाते हैं जो लंबी दूरी तक प्रवास कर सकते हैं।
- वयस्क टिड्डियाँ एक दिन में अपने वज़न के बराबर (यानी प्रतिदिन लगभग दो ग्राम ताज़ा शाक/वनस्पति) भोजन कर सकती है। टिड्डियों का एक बहुत छोटा सा झुंड भी एक दिन में उतना भोजन करता है जितना कि लगभग 35,000 लोग, जो फसलों और खाद्य सुरक्षा के लिये विनाशकारी है।
- पिंक बॉलवर्म (PBW):
- यह (Pectinophora gossypiella) एक कीट है जिसे कपास की खेती को नुकसान पहुँचाने के लिये जाना जाता है।
- पिंक बॉलवर्म एशिया के लिये स्थानिक है लेकिन यह विश्व के अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्रों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
प्रारंभिक परीक्षा
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 26 सितंबर को पर्यावरण के स्वास्थ्य के संदर्भ में विश्व स्तर पर जागरूकता का प्रसार करने के लिये मनाया जाता है।
- इस दिन को मनाने के पीछे केंद्रीय विचार यह है कि मानव स्वास्थ्य का पर्यावरण के स्वास्थ्य के साथ अपरिवर्तनीय संबंध है।
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस:
- पृष्ठिभूमि:
- यह दिन पहली बार वर्ष 2011 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ (IFEH) द्वारा मनाया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में लोगों का कल्याण करना है।
- IFEH पर्यावरण के स्वास्थ्य के संरक्षण और उसमें सुधार हेतु ज्ञान के विकास एवं प्रसार के लिये पूरी तरह से समर्पित है।
- यह दिन पहली बार वर्ष 2011 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ (IFEH) द्वारा मनाया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में लोगों का कल्याण करना है।
- थीम:
- इस वर्ष का विषय 'सतत् विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिये पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना' है।
- महत्त्व:
- यह आवश्यक है दुनिया समझे कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच अभिन्न संबंध है। इसलिये सभी समुदायों के स्वस्थ जीवन हेतु हरित पुनर्प्राप्ति में निवेश करना आवश्यक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्तमान में सामना की जा रही परिस्थितियों का लाभ उठाने के उद्देश्य से "कोविड-19 की स्वस्थ पुनर्प्राप्ति के लिये घोषणापत्र" जारी किया।
- इसके लिये मानव जाति के लिये पर्यावरण पर ध्यान देना तथा संतुलन बनाने की कोशिश करना और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने "COVID-19 की स्वस्थ पुनर्प्राप्ति के लिये घोषणापत्र" जारी किया।
- इसका उद्देश्य उस गति-शक्ति का लाभ उठाना है जिसका हम दुनिया भर में सामना कर रहे हैं।
- पर्यावरणीय स्वास्थ्य SDGs के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह दिलचस्प है कि पर्यावरणीय स्वास्थ्य 7 SDG, 19 योजनाओं और SDG के 30 संकेतकों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारत का पर्यावरणीय स्वास्थ्य:
- वर्तमान स्थिति:
- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 में भारत 18.9 के मामूली स्कोर के साथ 180 देशों की सूची में सबसे अंतिम स्थान पर है।
- भारत सूची में म्याँमार (179वें), वियतनाम (78वें), बांग्लादेश (177वें) और पाकिस्तान (176वें) से पीछे है।
- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 में भारत 18.9 के मामूली स्कोर के साथ 180 देशों की सूची में सबसे अंतिम स्थान पर है।
- संबंधित पहलें:
- नगर वन उद्यान योजना: इस योजना का उद्देश्य स्वस्थ पर्यावरण को समायोजित करने के लिये नगर निगम या श्रेणी-1 के शहरों (200 से अधिक संख्या वाले प्रत्येक शहर) में कम-से-कम एक शहरी वन विकसित करना है।
- राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP): इस पहल की शुरुआत देश में आर्द्रभूमि के संरक्षण और उपयोग के लिये की गई थी।
- हरित कौशल विकास कार्यक्रम: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने युवाओं के बीच पर्यावरण के संरक्षण के लिये आवश्यक कौशल विकसित करने हेतु जून 2017 में हरित कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया।
- मृदा बचाओ आंदोलन: विश्व पर्यावरण दिवस 2022 पर प्रधानमंत्री ने 'मृदा बचाओ आंदोलन' की शुरुआत की। यह पहल मृदा को रसायन मुक्त बनाने, मृदा में रहने वाले जीवों को बचाने, मृदा की नमी बनाए रखने, जल की उपलब्धता बढ़ाने और जंगलों की कमी के कारण मृदा के निरंतर क्षरण को रोकने पर केंद्रित है।
- भारत ने 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा है और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 27 सितंबर, 2022
विश्व पर्यटन दिवस
प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को दुनिया भर में विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day) मनाया जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1980 में की गई थी। विश्व पर्यटन दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को पर्यटन के प्रति जागरूक करना है। 27 सितंबर की तिथि को इस दिवस को मनाने के पीछे का कारण यह है कि इसी दिन वर्ष 1970 में संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) की विधियों को अपनाया गया था। उसके पाँच वर्ष बाद UNWTO की स्थापना वर्ष 1975 में हुई और इसके पाँच साल बाद विश्व पर्यटन दिवस की शुरुआत हुई. वर्ष 1997 में UNWTO ने इस्तांबुल, तुर्की में अपने पाँचवे सत्र में इस बात का निर्णय लिया की प्रत्येक वर्ष कोई एक देश विश्व पर्यटन दिवस की मेज़बानी करेगा। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने विश्व पर्यटन दिवस, 2022 की मेज़बानी इंडोनेशिया को सौंपी है। पर्यटन दिवस 2022 की थीम “पर्यटन पर पुनर्विचार”(Rethinking Tourism) है। यह इस पर पुनर्विचार करने का अवसर है कि कैसे पर्यटन क्षेत्र अधिक टिकाऊ, समावेशी और लचीला हो सकता है।
जलदूत एप्लीकेशन
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जलदूत एप्लीकेशन विकसित किया है जिससे देश भर के गाँवों के चयनित कुओं के जलस्तर का पता लगाया जाएगा। 27 सितंबर, 2022 को नई दिल्ली में इस एप्लीकेशन की शुरुआत की जाएगी। ग्राम रोज़गार सहायक जलदूत एप के माध्यम से वर्ष में दो बार- मॉनसून से पहले और बाद में चयनित कुओँ के जलस्तर का मापन करेंगे। मंत्रालय ने कहा है कि इस एप के आँकड़ों से बेहतर कार्ययोजना बनाने में मदद मिलेगी। भू-जलस्तर के आँकड़े ग्राम पंचायत विकास योजना और मनरेगा कार्यक्रम में सहायक होंगे। मंत्रालय के अनुसार, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जल प्रबंधन में सुधार के लिये कई कदम उठाए जा रहे हैं। इसमें वाटरशेड विकास, वनीकरण, जल निकाय विकास एवं नवीनीकरण तथा वर्षा जल संचयन शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार निशस्त्रीकरण दिवस
परमाणु हथियारों को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र प्रतिवर्ष 26 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार निशस्त्रीकरण दिवस के रूप में मनाता है। इसका उद्देश्य विश्व के लोगों को परमाणु हथियारों को मानवता के लिये सबसे घातक होने और उनको पूर्णतया समाप्त करने के प्रति जागरूक करना तथा इस दिवस के माध्यम से लोगों एवं सभी देशों के नेताओं को इस प्रकार के घातक हथियारों को समाप्त करने से होने वाले वास्तविक लाभ के प्रति शिक्षित करना है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1946 में प्रस्ताव पारित कर यह सिद्ध किया कि परमाणु ऊर्जा आयोग के पास न केवल परमाणु ऊर्जा के नियंत्रण और परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिये विशिष्ट प्रस्ताव बनाने का जनादेश है, बल्कि सामूहिक विनाश के सभी हथियारों का नियंत्रण भी है। महासभा ने वर्ष 1959 में सामान्य एवं पूर्ण निशस्त्रीकरण के उद्देश्य का समर्थन किया। वर्ष 1978 में महासभा के पहले विशेष सत्र में कहा गया कि निशस्त्रीकरण की दिशा में पूर्ण परमाणु निशस्त्रीकरण प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिये।