पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024
स्रोत: लेक्सोलॉजी
हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने भारतीय पेटेंट अभ्यास और प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए पेटेंट संशोधन नियम, 2024 को अधिसूचित किया है।
पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 के तहत पेश किये गए प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
- परीक्षा के लिये अनुरोध (RFE) दाखिल करने हेतु कम समयसीमा: RFE दाखिल करने की समयसीमा अब प्राथमिकता तिथि से 48 से घटाकर 31 महीने कर दी गई है।
- परीक्षा के लिये अनुरोध (Request for Examination- RFE) दाखिल करने की समयसीमा कम होने से पेटेंट परीक्षा प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
- फॉर्म 3 का सरलीकृत प्रस्तुतिकरण: आवेदक पहली परीक्षा रिपोर्ट (First Examination Report- FER) प्राप्त करने के बाद केवल एक अद्यतन फॉर्म 3 दाखिल कर सकते हैं।
- पेटेंट कार्यालय आवेदक को एक परीक्षा रिपोर्ट जारी करता है, जिसे आमतौर पर FER के रूप में जाना जाता है।
- 'सर्टिफिकेट ऑफ इन्वेंटरशिप' का परिचय: पेटेंट किये गए आविष्कारों में आविष्कारकों के योगदान को पहचानना।
- चूँकि भारतीय पेटेंट प्रमाणपत्र आविष्कारकों की पहचान नहीं करता है, इसलिये यह प्रावधान आविष्कारकों को उनके आविष्कारों हेतु पहचानने की अनुमति देगा।
- विवरण दाखिल करने की आवृत्ति: कार्यशील पेटेंट दाखिल करने की आवृत्ति एक वित्तीय वर्ष में एक बार से घटाकर प्रत्येक तीन वित्तीय वर्षों में एक बार कर दी गई है।
- अनुदान-पूर्व और अनुदान-उपरांत विपक्ष प्रक्रियाओं में संशोधन: एक विपक्षी बोर्ड द्वारा सिफारिशें प्रस्तुत करने की समय सीमा और आवेदकों के लिये प्रतिक्रिया समय को समायोजित किया गया है।
- एक डिविज़नल आवेदन अनंतिम या पूर्ण आवेदन या आगे डिविज़नल एप्लीकेशन में प्रकट किये गए आविष्कार के संबंध में दायर किया जा सकता है।
- यह संशोधन सिंजेंटा लिमिटेड बनाम पेटेंट एवं डिज़ाइन नियंत्रक मामले, 2023 में दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अनुरूप है।
- इसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि डिविज़नल आवेदन मूल आवेदनों के संबंध में दायर किये जा सकते हैं, जहाँ मूल आवेदन के पूर्ण या अनंतिम विनिर्देश (और ज़रूरी नहीं कि दावे) आविष्कारों की बहुलता को उजागर करते हों।
पेटेंट क्या है?
- परिचय:
- पेटेंट किसी आविष्कार के लिये एक वैधानिक अधिकार है जो सरकार द्वारा पेटेंटधारक को उसके आविष्कार के पूर्ण प्रकटीकरण के बदले में एक सीमित अवधि के लिये दिया जाता है, जो दूसरों को पेटेंटधारक की अनुमति के बिना उन उपयोगों के लिये उत्पादन की पेटेंट उत्पाद/विधि के निर्माण, उपयोग, आयात या बिक्री से नियंत्रित करती है।
- भारत में पेटेंट प्रणाली पेटेंट अधिनियम, 1970 द्वारा शासित होती है जिसे वर्ष 2003 और वर्ष 2005 में संशोधित किया गया था।
- वर्तमान परिवेश के अनुरूप पेटेंट नियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता है, सबसे हालिया पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 है।
- पेटेंट की अवधि:
- दिये गए प्रत्येक पेटेंट की अवधि आवेदन दाखिल करने की तिथि से अगले 20 वर्ष तक की होती है।
- हालाँकि, पेटेंट सहयोग संधि (PCT) के तहत राष्ट्रीय चरण के अंतर्गत दायर आवेदनों के लिये पेटेंट की अवधि PCT के तहत दी गई अंतर्राष्ट्रीय फाइलिंग तिथि से 20 वर्ष होगी।
- PCT एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसमें 150 से अधिक देश शामिल हैं। यह प्रत्येक अनुबंधित देश में आविष्कारों की रक्षा के लिये पेटेंट आवेदनों को दाखिल करने हेतु एक एकीकृत प्रक्रिया प्रदान करती है।
- ऐसा आवेदन किसी भी व्यक्ति द्वारा दायर किया जा सकता है जो PCT अनुबंधित राज्य या राष्ट्र का निवासी है और आमतौर पर अनुबंधित राज्य के राष्ट्रीय पेटेंट कार्यालय या आवेदक के विकल्प पर जिनेवा में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के साथ दायर किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA) भारतीय कृषि की सुरक्षा में कैसे मदद करता है? (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) मेन्स:प्रश्न: वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014) |
ऑम्निबस SRO फ्रेमवर्क
स्रोत: द हिंदू
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपनी विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities- RE) के लिये स्व-नियामक संगठनों (Self-regulatory Organizations- SRO) को मान्यता देने हेतु ऑम्निबस फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने की घोषणा की है।
- फ्रेमवर्क का उद्देश्य विनियमित संस्थाओं के बढ़ते संचालन और नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के साथ-साथ स्व-नियमन के लिये उद्योग मानकों में सुधार करना है।
नोट:
- RBI के मौद्रिक नीति वक्तव्य में एक घोषणा के बाद 21 दिसंबर, 2023 को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये प्रारूप फ्रेमवर्क जारी किया गया था।
- ऑम्निबस फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने के लिये हितधारकों से प्राप्त इनपुट की जाँच की गई।
ऑम्निबस SRO फ्रेमवर्क क्या है?
- ऑम्निबस फ्रेमवर्क स्व-नियामक संगठनों (SRO) को मान्यता देने के लिये दिशानिर्देशों और विनियमों का एक व्यापक सेट है।
- ऑम्निबस SRO फ्रेमवर्क क्षेत्र की परवाह किये बिना सभी SRO के लिये सामान्य उद्देश्य, कार्य, पात्रता मानदंड और संचालन मानक निर्धारित करता है।
- यह RBI द्वारा मान्यता प्राप्त होने के लिये SRO के लिये सदस्यता मानदंड और शर्तें भी स्थापित करता है।
- यह फ्रेमवर्क न्यूनतम आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता है, और मान्यता प्राप्त SRO को अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- फ्रेमवर्क के व्यापक मापदंडों के भीतर, SRO को मान्यता देने के लिये आवेदन मांगते समय रिज़र्व बैंक क्षेत्र-विशिष्ट अतिरिक्त शर्तें लगा सकता है।
- यह विभिन्न क्षेत्रों के लिये भिन्न-भिन्न सेक्टर-विशिष्ट दिशानिर्देश जारी करने की अनुमति देते हुए नियामक निरीक्षण के लिये एक समन्वित तथा एकीकृत दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों की अखंडता में विश्वास उत्पन्न करने के लिये SRO के भीतर पारदर्शिता, व्यावसायिकता एवं स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है, जिन्हें वे विनियमित करते हैं।
नोट:
- RBI द्वारा मान्यता प्राप्त मौजूदा SRO अपने वर्तमान नियमों तथा शर्तों द्वारा शासित होते रहेंगे, जब तक कि फ्रेमवर्क विशेष रूप से उनके लिये विस्तारित नहीं किया जाता है।
स्व-विनियामक संगठन:
- SRO विशिष्ट उद्योगों अथवा क्षेत्रों के भीतर स्वयं को विनियमित करने के लिये बनाई गई संस्थाएँ हैं, जो प्राय: सरकारी नियामकों के सहयोग से संपन्न होती हैं।
- SRO सरकारी नियामकों की देखरेख में कार्य करते हैं, जो इन संगठनों को कुछ नियामक कार्य सौंपते हैं। जबकि नियामक अंतिम अधिकार बनाए रखते हैं, वे अपने संबंधित उद्योगों के भीतर अनुपालन की निगरानी के साथ-साथ लागू करने के लिये SRO पर विश्वास व्यक्त करते हैं।
- SRO का लक्ष्य अपने उद्योगों के भीतर सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ ही नैतिक आचरण को बढ़ावा देना है। वे प्राय: सदस्यों को नियामक आवश्यकताओं को समझने तथा उनका अनुपालन करने में सहायता प्रदान करने हेतु मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और शैक्षिक संसाधन प्रदान करते हैं।
- ये संगठन अपने सदस्यों के बीच अनुपालन और नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उद्योग-विशिष्ट नियमों, मानकों तथा आचार संहिता को विकसित एवं लागू करते हैं।
- SRO यह सुनिश्चित करने के लिये पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करते हैं कि उनकी नियामक गतिविधियाँ सार्वजनिक हित में संचालित की जाती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पाॅलिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और उत्तर: (b) |
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जिसका उद्देश्य नवीकरणीय/अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देकर देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ संकटापन्न पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण और सुरक्षा को संतुलित करना है।
- ये बड़े पंखों वाले पक्षी विलुप्त होने की कगार पर हैं जिसका एक कारण गुजरात और राजस्थान में इनके मुख्य प्राकृतिक वास के निकट से गुज़रने वाले उच्च ऊर्जा वाले विद्युत तार हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्या है?
- परिचय:
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Ardeotis nigriceps) राजस्थान का राजकीय पक्षी है और भारत का सबसे गंभीर रूप से संकटापन्न पक्षी माना जाता है।
- यह घास के मैदान की प्रमुख प्रजाति मानी जाती है, जो चरागाह पारिस्थितिकी का प्रतिनिधित्व करती है।
- ये अधिकांशतः राजस्थान और गुजरात में पाए जाते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में यह प्रजाति कम संख्या में पाई जाती है।
- सुभेद्यता:
- ये प्रजाति खतरे की स्थिति में है जिसके प्रमुख कारणों में ऊर्जा ट्रांसमिशन लाइनों के साथ टकराव/विद्युत-आघात से मृत्यु (Electrocution), शिकार (वर्तमान समय में पाकिस्तान में प्रचलित), व्यापक कृषि विस्तार के परिणामस्वरूप निवास स्थान में परिवर्तन और उसका ह्रास शामिल है।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के प्रजनन की दर धीमी होती है। वे एक समय में कुछ ही अंडे देते हैं और लगभग एक वर्ष की अवधि तक माता-पिता द्वारा चूज़ों की देखभाल की जाती है। GIB को परिपक्व होने में लगभग 3-4 वर्ष का समय लगता है।
- सुरक्षा की स्थिति:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट-1
- प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS): परिशिष्ट-I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-1
GIB की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:
- प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम:
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH) के तहत प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के तहत रखा गया है।
- जुगनू पक्षी डायवर्टर:
- जुगनू पक्षी डायवर्टर बिजली लाइनों पर स्थापित फ्लैप हैं। वे GIB जैसी पक्षी प्रजातियों के लिये रिफ्लेक्टर(परावर्तक) के रूप में कार्य करते हैं।
- पक्षी इन्हें लगभग 50 मीटर की दूरी से देख सकते हैं और बिजली लाइनों से टकराव से बचने के लिये अपनी उड़ान का रास्ता बदल सकते हैं।
- कृत्रिम हैचिंग :
- संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम, 2019 में जंगलों से अंडे एकत्र करके और उन्हें कृत्रिम रूप से अंडे सेने का कार्य शुरू हुआ। 21 जून, 2019 को पहला चूज़ा निकला और उसका नाम 'यूनो' रखा गया। उस वर्ष आठ और चूज़े पैदा हुए एवं उनका पालन-पोषण किया गया तथा उनकी निगरानी की गई।
- राजस्थान के दो प्रजनन केंद्रों में कुल 29 GIB रखे गए हैं।
- राष्ट्रीय बस्टर्ड पुनर्प्राप्ति योजनाएँ:
- इसे वर्तमान में संरक्षण एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- संरक्षण प्रजनन सुविधा:
- राजस्थान सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा जून 2019 में जैसलमेर के डेज़र्ट नेशनल पार्क में एक संरक्षण प्रजनन सुविधा भी स्थापित की गई है।
- प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:
- इसे राजस्थान सरकार ने इस प्रजाति के प्रजनन बाड़ों के निर्माण और उनके आवासों पर मानव दबाव को कम करने के लिये एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के उद्देश्य से लॉन्च किया है।
डेज़र्ट नेशनल पार्क:
- यह राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर ज़िलों के भीतर भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित है।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, राजस्थान राजकीय पशु (चिंकारा) और राजकीय वृक्ष (खेज़री) तथा राजकीय पुष्प (रोहिड़ा) इस उद्यान में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं।
- इसे 1980 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल और 1992 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य:
- कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य भारत के गुजरात के कच्छ ज़िले में नलिया के पास स्थित है।
- यह देश का सबसे छोटा अभयारण्य है, जो सिर्फ दो वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। अभयारण्य, जिसे लाला-परिजन अभयारण्य (Lala-Parijan Sanctuary) के रूप में भी जाना जाता है, मुख्य रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की सुरक्षा के लिये जुलाई 1992 में घोषित किया गया था।
- अभयारण्य बस्टर्ड की तीन प्रजातियों का आवास है: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन और मैक्वीन बस्टर्ड।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्राणी समूह संकटापन्न जातियों के संवर्ग के अंतर्गत आता है? (2012) (a) भारतीय सारंग, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई वन्य गधा उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के 'मरु राष्ट्रीय उद्यान' के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं ? (2020) 1. यह दो ज़िलों में विस्तृत है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |
शिप्रा (क्षिप्रा) नदी
हाल ही में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India- CAG) ने शिप्रा नदी के क्षरण पर एक निष्पादन अंकेक्षण (वर्ष 2016-17 से वर्ष 2020-21) किया।
शिप्रा नदी:
- उद्गम: शिप्रा (क्षिप्रा), मध्य प्रदेश में चंबल नदी की सहायक नदी है जो मालवा पठार से होकर प्रवाहित होती है।
- इसका उद्गम विंध्य पर्वतमाला में काकरी-टेकड़ी नामक पहाड़ी से होता है, जो धार के उत्तर में और उज्जैन के पास स्थित है।
- प्रमुख सहायक नदियाँ: खान और गंभीर।
- सांस्कृतिक महत्त्व:
- उज्जैन एक नदी के पूर्वी तट पर स्थित पवित्र शहर है। यहाँ प्रत्येक 12 वर्ष में सिंहस्थ मेला (कुंभ मेला) और नदी की देवी क्षिप्रा के लिये वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है।
- हिंदू ग्रंथों के अनुसार शिप्रा नदी का संबंध भगवान विष्णु के अवतार वराह से है। इसके अतिरिक्त विष्णु के एक अन्य अवतार भगवान कृष्ण ने नदी के किनारे ऋषि संदीपनी के आश्रम में अध्ययन किया था।
- इसका उल्लेख बौद्ध और जैन धर्मग्रंथों में भी मिलता है।
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ओडिशा का 'ड्रिंक फ्रॉम टैप' मिशन
स्रोत: डाउन टू अर्थ
वर्ष 2017 में ओडिशा सरकार ने अपना अग्रणी 'ड्रिंक फ्रॉम टैप' मिशन शुरू किया, जिससे यह घरेलू नल कनेक्शन पर पीने के पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाला भारत का पहला और एकमात्र राज्य बन गया।
- इस पहल का उद्देश्य शहरी पेयजल आपूर्ति में बदलाव लाना, जलजनित बीमारियों से निपटना एवं वित्तीय तनाव से राहत दिलाना है। यह सीधे नल से उच्च गुणवत्ता वाले पीने के पानी तक 24x7 पहुँच प्रदान करता है, जिससे लागत और समय में कमी के साथ निस्पंदन अथवा उबालने की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है।
- वर्तमान में आठ शहरों में 2.55 मिलियन लोगों को कवर करते हुए, इस मिशन का लक्ष्य 2024 के अंत तक शहरी ओडिशा में 4.1 मिलियन लोगों तक पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है।
- वास्तविक समय की निगरानी पीने के पानी के लिये भारतीय मानक (IS) को लागू करती है, घुलनशील एवं अघुलनशील घटकों के लिये अनुमेय सीमा बनाए रखती है और साथ ही सुरक्षित खपत भी सुनिश्चित करती है।
- 'जल साथी' कार्यक्रम जैसी सामुदायिक भागीदारी पहल सेवा वितरण एवं व्यवहार परिवर्तन की सुविधा के लिये स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को सूचीबद्ध करती है।
- यह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स द्वारा तृतीय-पक्ष मूल्यांकन परियोजना के महत्त्व एवं प्रतिकृति की क्षमता पर प्रकाश डालता है।
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ICG जहाज़ समुद्र पहरेदार की ASEAN देशों में तैनाती
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय तटरक्षक बल (ICG) जहाज़ समुद्र पहरेदार ने आसियान देशों में एक महत्त्वपूर्ण विदेशी तैनाती शुरू की, जिससे समुद्री प्रदूषण से निपटने और क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि हुई।
- समुद्र पहरेदार जैसे विशेष प्रदूषण नियंत्रण जहाज़ों की यात्रा का उद्देश्य भारत की समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया क्षमताओं और आसियान क्षेत्र में समुद्री प्रदूषण के प्रति साझा चिंता को प्रदर्शित करना है।
- इस यात्रा का उद्देश्य फिलीपींस,वियतनाम और ब्रुनेई में प्रमुख समुद्री एजेंसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना है।
- यह जहाज़ विशेष समुद्री प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों और प्रदूषण प्रतिक्रिया कन्फिगरेशन के लिये एक चेतक हेलीकॉप्टर की तैनाती से सुसज्जित है, इसे समुद्र में तेल को फैलने से रोकने, उसे एकत्र करने तथा ऑपरेशन हेतु डिज़ाइन किया गया है।
- भ्रमण वाले बंदरगाहों पर प्रदूषण प्रतिक्रिया प्रशिक्षण और विभिन्न उपकरणों का प्रायोगिक प्रदर्शन किया जाएगा।
- ICGS समुद्र पहरेदार आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में भारत के पूर्वी तट पर तैनात है, जो उप महानिरीक्षक सुधीर रवींद्रन की कमान में है। पिछले कुछ वर्षों में समुद्र पहरेदार ने समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL)/विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) निगरानी, अंतर्राष्ट्रीय अपराधों को रोकने और समुद्री खोज एवं बचाव (SAR) सहित विभिन्न तटरक्षक अभियानों में सफलतापूर्वक भाग लिया है।
और पढ़ें: समुद्र प्रहरी की आसियान देशों में तैनाती
युवाओं में बढ़ता कोलेस्ट्रॉल
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल के वर्षों के रुझान युवा आबादी में कोलेस्ट्रॉल के स्तर में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाते हैं।
कोलेस्ट्रॉल:
- कोलेस्ट्रॉल एक मोम जैसा पदार्थ है जिसका निर्माण यकृत/लीवर द्वारा किया जाता है। यह कोशिकाओं और हार्मोनों के निर्माण व विटामिन D एवं पित्त अम्ल के उत्पादन में योगदान देता है, जो मानव पाचन तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- प्रकार: हमारे रक्तप्रवाह में कोलेस्ट्रॉल का परिवहन लिपोप्रोटीन द्वारा किया जाता है जिसे उच्च-घनत्व लिपोप्रोटीन (HDL) और कम-घनत्व लिपोप्रोटीन (LDL) के रूप में जाना जाता है।
- HDL कोलेस्ट्रॉल (गुड कोलेस्ट्रॉल) रक्त में कोलेस्ट्रॉल को अवशोषित करता है और इसे यकृत में ले जाता है। फिर यकृत इसे शरीर से बाहर उत्सर्जित कर देता है। HDL कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर हृदय रोग और स्ट्रोक के खतरे को कम कर सकता है।
- LDL कोलेस्ट्रॉल (बैड कोलेस्ट्रॉल) शरीर के अधिकांश कोलेस्ट्रॉल का निर्माण करता है। उच्च LDL स्तर हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ा सकता है।
- यह धमनी की दीवारों में जमा हो सकता है, जिससे प्लैक का निर्माण (Atherosclerosis एथेरोस्क्लेरोसिस) हो सकता है।
- इस प्लैक के निर्माण से रक्त के थक्कों का खतरा बढ़ सकता है, जो धमनियों को अवरुद्ध कर सकता है और हृदय के आघात या स्ट्रोक का कारण बन सकता है।
- यह महत्त्वपूर्ण अंगों में रक्त के प्रवाह और ऑक्सीजन को भी कम कर सकता है, जिससे संभावित रूप से गुर्दे की बीमारी या परिधीय धमनी रोग हो सकता है।
मसान होली
स्रोत: द हिंदू
मसान होली वाराणसी में मनाया जाने वाला दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम है। इस उत्सव के दौरान लोग एक-दूसरे पर चिता की राख और गुलाल लगाते हैं। इस आयोजन को मरण का उत्सव मनाने के रूप में भी जाना जाता है।
- इस उत्सव के दौरान कई लोग नदी के किनारे अथवा घाट पर बड़ी संख्या में एकजुट होते हैं। वे नाचते हैं, गाते हैं और "हर-हर महादेव" का जाप करते हैं।
- उत्पत्ति: वाराणसी में मसान होली की रस्म होलिका-प्रहलाद की पौराणिक घटना की स्मृति में चिता की राख का उपयोग कर मनाई जाती है।
महत्त्व:
- वाराणसी की मसान होली में चिता की राख का उपयोग जीवन की अल्पता और इस भौतिकवादी दुनिया में मनुष्य के अस्तित्त्व की चक्रीय प्रकृति का प्रतीक है।
- ऐसा माना जाता है कि मसान होली में इस्तेमाल की जाने वाली राख में शुद्धिकरण गुण होते हैं जो शरीर, मन और आत्मा की अशुद्धियों को दूर करते हैं।
- होली के दौरान एक-दूसरे को राख लगाकर, लोग आध्यात्मिक कायाकल्प और आंतरिक शुद्धि की कामना करते हैं।