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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 26 Feb, 2025
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

सामाजिक न्याय पर पहली क्षेत्रीय वार्ता का उद्घाटन

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्याय के लिये वैश्विक गठबंधन के तहत सामाजिक न्याय पर पहली दो दिवसीय क्षेत्रीय वार्ता का उद्घाटन नई दिल्ली में किया गया।

सामाजिक न्याय के लिये वैश्विक गठबंधन क्या है?

  • परिचय: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा वर्ष 2023 में सामाजिक न्याय के लिये शुरू किया गया वैश्विक गठबंधन का उद्देश्य सामाजिक न्याय की कमियों से निपटना तथा सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को बढ़ावा देना है।
  • उद्देश्य: यह वैश्विक एकजुटता, नीतिगत सुसंगतता और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वित कार्रवाई के माध्यम से मज़बूत, सतत् और समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
  • सदस्यता: यह सरकारों, संगठनों, व्यवसायों और शिक्षाविदों के लिये है, जिसके सदस्य संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सिद्धांतों के तहत सामाजिक न्याय और श्रम अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध हैं।
    • सदस्यता स्वैच्छिक है और भारत इसका सदस्य है।

सामाजिक न्याय पर भारत के संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • प्रस्तावना: यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करता है, तथा स्थिति एवं अवसर की समानता की गारंटी प्रदान करता है।
  • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बलात् श्रम पर प्रतिबंध लगाता है तथा अनुच्छेद 24 खतरनाक व्यवसायों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत:
    • अनुच्छेद 38: यह राज्य को सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने का निर्देश देता है। 
    • अनुच्छेद 39: यह समान आजीविका, उचित मज़दूरी और शोषण से सुरक्षा सुनिश्चित करता है।  
    • अनुच्छेद 39A: यह वंचित लोगों को  मुफ्त कानूनी सहायता की गारंटी प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 46: यह भेदभाव को रोकने के लिये अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और कमज़ोर वर्गों के लिये विशेष शैक्षिक और आर्थिक प्रोत्साहन का आदेश देता है।

ESIC

  • यह कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के तहत गठित एक सांविधिक निकाय है और श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के अधीन कार्य करता है
  • उद्देश्य: यह 10 अथवा उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों (यदि यह कोई परिसंकटमय उद्योग है, जैसे पटाखे, विषैले रसायन आदि, तो 10 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों) के कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा प्रदान करता है।
  • पात्रता : 21,000 रुपए प्रति माह वेतन भोगी कर्मचारी ।
  • प्रदत्त लाभ: चिकित्सा देखभाल, बीमारी लाभ, मातृत्व लाभ, दिव्यांगता लाभ, आश्रित लाभ, और बेरोज़गारी भत्ता।

नोट: ILO की विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2024-26 के अनुसार भारत का सामाजिक सुरक्षा कवरेज (स्वास्थ्य के अतिरिक्त) वर्ष 2021 में 24.4% था जो वर्ष 2024 में बढ़कर 48.8% हो गया है।

  • भारतीय स्नातकों की नियोजनीयता वर्ष 2013 में 33.95% थी जो वर्ष 2024 में बढ़कर 54.81% हो गयी है।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के उद्देश्यों में से एक के रूप में 'आर्थिक न्याय' का किसमें उपबंध किया गया है? (2013) 

(a) उद्देशिका और मूल अधिकार 
(b) उद्देशिका और राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) मूल अधिकार और राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(d) उपर्युक्त में से किसी में नहीं 

उत्तर: (b)


प्रारंभिक परीक्षा

टी हॉर्स रोड

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

भारत में चीन के राजदूत ने तिब्बत से होकर चीन को भारत से जोड़ने वाले प्राचीन टी हॉर्स रोड पर प्रकाश डाला तथा चीन और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच होने वाले विनिमय को सुविधाजनक बनाने में इसकी वर्षों पुरानी भूमिका उजागर किया।

टी हॉर्स रोड क्या है?

  • परिचय:
    • टी हॉर्स रोड, जिसे प्रायः दक्षिणी सिल्क रोड के रूप में जाना जाता है, कारवाँ मार्गों का एक नेटवर्क और व्यापार की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण मार्ग है जिससे सदियों से चीन, तिब्बत और भारत के बीच कनेक्टिविटी सुनिश्चित हुई।
  • मार्ग:
    • यह दक्षिण-पश्चिम चीन (युन्नान और सिचुआन) से शुरू होकर तिब्बत, नेपाल और भारत से होते हुए अंततः कोलकाता तक विस्तृत है।
  • प्रमुख केंद्र:
    • लिजिआंग और डाली (युन्नान, चीन): चाय प्रसंस्करण और व्यापार केंद्र।
    • ल्हासा (तिब्बत): चाय और तिब्बती वस्तुओं जैसे अश्वों का एक प्रमुख अभिसरण बिंदु।
    • कलिम्पोंग और कोलकाता (भारत): यह यूरोप और एशिया में निर्यात से पहले अंतिम व्यापार गंतव्य अथवा पड़ाव है।
  • प्रमुख मार्ग:
    • मार्ग 1: याआन (चेंग्दू के पास) से शुरू होकर, कांगडिंग, ल्हासा से होकर नेपाल और भारत तक विस्तारित होता है।
    • मार्ग 2: मध्य युन्नान में शुरू हुआ, लिजिआंग, झोंगडियन और डेकिन से गुजरते हुए, भारत में विस्तार करने से पहले ल्हासा पहुँचा।

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  • उत्पत्ति एवं विकास:
    • टी हॉर्स रोड तांग राजवंश (618-907 CE) के समय का है और शुरू में चीन से तिब्बत और भारत तक चीनी, कपड़ा और चावल नूडल्स के व्यापार की सुविधा प्रदान करता था, जबकि घोड़े, स्वर्ण, केसर और औषधीय जड़ी-बूटियों का व्यापार विपरीत मार्ग में होता था।
    • अंततः यह व्यापार चाय और घोड़ों के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया, जिसके कारण इस मार्ग का नाम "टी हॉर्स रोड" रखा गया।
    • सोंग राजवंश (960-1279 ई.) ने व्यापार को औपचारिक रूप दिया, तथा चीन की सेना के लिये तिब्बती घोड़ों और तिब्बत के लिये चीनी चाय के आदान-प्रदान को विनियमित किया। 
      • 13 वीं शताब्दी में मंगोल विस्तार ने घोड़ों की आपूर्ति के लिये इस मार्ग के महत्त्व को और बढ़ा दिया।
  • टी हॉर्स रोड का पतन:
    • किंग राजवंश का अंत (1912): राजनीतिक अस्थिरता के कारण व्यापार मार्गों पर नियंत्रण कमज़ोर हो गया।
    • बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: आधुनिक परिवहन नेटवर्क ने पारंपरिक मार्गों को अप्रचलित बना दिया है।
    • द्वितीय विश्व युद्ध और आर्थिक बदलाव: यद्यपि सैन्य रसद के लिये इसे कुछ समय के लिये पुनर्जीवित किया गया, लेकिन औद्योगिक उत्पादन और मशीनीकृत परिवहन के कारण इसमें गिरावट आई।
    • आधुनिक चीन की स्थापना (1949): भूमि सुधार और सड़क निर्माण ने पारंपरिक पोर्टिंग प्रणाली को अनावश्यक बना दिया।

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और पढ़ें: सिल्क रोड क्या है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाले बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

लघु-स्तरीय मत्स्य पालन को आगे बढ़ाना

स्रोत: पी.आई.बी.

भारत ने नीली अर्थव्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत करते हुए बांग्लादेश से बंगाल की खाड़ी अंतर-सरकारी संगठन (BOBP-IGO) की अध्यक्षता संभाल ली है।

  • भारत का लक्ष्य लघु-स्तरीय मत्स्य पालन (SSF) की आजीविका, स्थिरता और आर्थिक विकास में सुधार करना है।
  • BOBP-IGO (वर्ष 2003) के बारे में: यह बंगाल की खाड़ी  में SSF को समर्थन देने वाला एक क्षेत्रीय मत्स्य पालन निकाय है।
    • इसके सदस्यों में बांग्लादेश, भारत, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं, जबकि इंडोनेशिया, मलेशिया, म्याँमार और थाईलैंड गैर-अनुबंधित सहयोगी पक्ष हैं।
  • SSF के बारे में: SSF मत्स्यन करने वाले परिवारों द्वारा किया जाने वाला पारंपरिक, कम पूंजी वाला मत्स्य पालन है, जिसमें वे छोटे जहाज़ों (यदि कोई हो) का उपयोग करते हैं, तथा जीविका या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये छोटी, निकटवर्ती यात्राएँ करते हैं।

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  • SSF का वैश्विक महत्त्व: 
    • भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र: भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जहाँ 28 मिलियन लोग इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
    • भारत छठा सबसे बड़ा समुद्री मत्स्य उत्पादक (कुल मत्स्य उत्पादन का 1/3) है।
    • भारत में 13 तटीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा और 2.20 मिलियन वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है।
    • भारत में 5 मिलियन सक्रिय समुद्री मछुआरे हैं, जिनमें लगभग 50% कार्यबल महिलाएँ हैं।

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और पढ़ें: मत्स्य पालन क्षेत्र में परिवर्तन


रैपिड फायर

ब्लैक प्लास्टिक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

रसोई के बर्तनों और कंटेनरों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाले ब्लैक प्लास्टिक की, संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के कारण जाँच की जा रही है, जिससे इसकी सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

  • विषय: ब्लैक प्लास्टिक प्रायः पुनश्चक्रित इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से बनाया जाता है। ब्लैक कार्बन (अल्पकालिक प्रदूषक, तापन में अहम कारक) नामक पदार्थ के कारण इसका वर्ण काला होता है।
  • संरचना: पुनश्चक्रित ई-अपशिष्ट से निर्मित ब्लैक प्लास्टिक जिसमें ब्रोमीनित ज्वाला मंदक, एंटीमनी, सीसा, कैडमियम और पारा जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं। 
    • उच्च उद्भासन स्तर पर ये भारी धातुएँ विषाक्त होती हैं और कई देशों में प्रतिबंधित हैं। ब्लैक प्लास्टिक में पाया जाने वाले ज्वाला मंदक डेकाब्रोमोडिफेनिल ईथर (BDE-209) से स्वास्थ्य को जोखिम हो सकते हैं।
    • कुछ रसायनों पर प्रतिबंध के बावजूद, हानिकारक तत्त्वों वाले लिगेसी प्लास्टिक (जिन्हें पुनः उपयोग या पुनश्चक्रित नहीं किया जा सकता) का पुनर्चक्रण शृंखला में उपयोग जारी है।
  • चिंताएँ: हालाँकि रसोई के बर्तनों के माध्यम से जोखिम कम है, लेकिन संचयी रासायनिक जोखिम के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।

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और पढ़ें: भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक


रैपिड फायर

लोकपाल का क्षेत्राधिकार

स्रोत: द हिंदू

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें उच्च न्यायालय (HC) के न्यायाधीशों को लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत "लोक सेवक" के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिससे वे इसके अधिकार क्षेत्र में आ गए। 

  • मामले की पृष्ठभूमि: लोकपाल ने दावा किया कि उच्च न्यायालयों का निर्माण ब्रिटिश काल के कानूनों जैसे भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत किया गया था, और अनुच्छेद 214 उन्हें स्थापित करने के बजाय केवल मान्यता देता है, जिससे उनके न्यायाधीश इसके अधिकार क्षेत्र के अधीन हो जाते हैं।
    • हालाँकि, इसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना संविधान (अनुच्छेद 124) द्वारा की गई थी, न कि संसद के अधिनियम द्वारा।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सभी न्यायाधीश, चाहे वे उच्च न्यायालय में हों या सर्वोच्च न्यायालय में, संविधान के तहत नियुक्त किये जाते हैं, जिससे वे लोकपाल की निगरानी से उन्मुक्त हो जाते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति अनुच्छेद 124 के तहत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति अनुच्छेद 217 के तहत की जाती है।
  • लोकपाल का क्षेत्राधिकार: लोकपाल का क्षेत्राधिकार प्रधानमंत्री (राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय संबंध आदि के मामलों को छोड़कर), केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और सरकारी अधिकारियों (ग्रुप A-D) पर है। 
    • इसमें संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित संस्थाओं के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी या कर्मचारी, केंद्र सरकार द्वारा आंशिक/पूर्ण रूप से वित्त पोषित या नियंत्रित संस्थाएँ, या विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत 10 लाख रुपए/वर्ष से अधिक विदेशी दान प्राप्त करने वाले संगठन भी शामिल हैं।

Lokpal

और पढ़ें: लोकपाल और लोकायुक्त


रैपिड फायर

प्रकृति 2025

स्रोत: पी.आई.बी

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा आयोजित कार्बन बाज़ारों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, प्रकृति 2025 ( परिवर्तनकारी पहलों को एकीकृत करने के लिए सशक्‍तता, जागरूकता, ज्ञान और संसाधनों को बढ़ावा देना) ने वैश्विक कार्बन बाज़ार के रुझानों, चुनौतियों और भविष्य के रास्तों पर गहन चर्चा के लिये एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य किया।

  • प्रकृति 2025 का दृष्टिकोण: इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भारत का कार्बन बाज़ार यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसी वैश्विक नीतियों से प्रभावित है, जो स्टील और उच्च उत्सर्जन क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इन प्रभावों को कम करने के लिये त्वरित घरेलू सुधारों की आवश्यकता है।
  • यूरोपीय संघ का CBAM: यह यूरोपीय संघ द्वारा उत्पादित वस्तुओं के साथ समतुल्यता की गारंटी प्रदान कर आयात पर उचित कार्बन मूल्य निर्धारित करता है, तथा विश्व भर में स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
  • कार्बन बाज़ार: पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के अनुसार, कार्बन बाज़ार (व्यापारिक प्रणालियां) संगठनों को कार्बन क्रेडिट खरीदने में सक्षम बनाती हैं, ताकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या समाप्त करने वाली पहलों को वित्तपोषित करके उत्सर्जन की भरपाई की जा सके।
  • भारत और कार्बन बाज़ार: वैश्विक CDM (स्वच्छ विकास तंत्र) परियोजना पंजीकरण में  भारत दूसरे स्थान पर है।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना ने वर्ष 2015 से 106 मिलियन टन से अधिक CO₂ की बचत की है। भारत में कार्बन बाज़ार का विनियमन BEE द्वारा किया जाता है।
  • BEE: ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत वर्ष 2002 में स्थापित, BEE विद्युत मंत्रालय के अधीन कार्य करता है जिसका उद्देश्य नीतियों को विकसित करके, स्व-नियमन को बढ़ावा देकर और हितधारकों के साथ समन्वय करके भारत की ऊर्जा तीव्रता को कम करना है।

और पढ़ें: भारत के कार्बन बाज़ार का उदय


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