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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 25 Jun, 2024
  • 21 min read
प्रारंभिक परीक्षा

इसरो का पुन: प्रयोज्य प्रमोचक रॉकेट: पुष्पक

स्रोत: द हिंदू 

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने पुष्पक रॉकेट के लिये तीसरा और अंतिम पुन: प्रयोज्य प्रमोचक रॉकेट लैंडिंग प्रयोग (Reusable Launch Vehicle Landing Experiment- RLV LEX-03) सफलतापूर्वक पूरा किया।

  • इसने प्रमोचन की अधिक चुनौतीपूर्ण स्थितियों और विषम वायु परिस्थितियों में RLV की स्वायत्त लैंडिंग क्षमता का प्रदर्शन किया।

RLV LEX-03 मिशन क्या है? 

  • परिचय:
    • RLV LEX-03 मिशन में, पुष्पक रॉकेट को भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा उठाया गया था और 4.5 किलोमीटर की ऊँचाई से छोड़ा था।
    • इस बिंदु से इस पंखयुक्त वाहन ने स्वचालित रूप से क्रॉस-रेंज सुधारों के साथ रनवे की केंद्र रेखा पर सटीक रूप से क्षैतिज लैंडिंग की।
    • यह अपने ब्रेक पैराशूट और लैंडिंग गियर ब्रेक का उपयोग करके 320 किमी/घंटा से अधिक की उच्च गति वाली लैंडिंग से सफलतापूर्वक लगभग 100 किमी/घंटा की गति पर आया।
  • प्रदर्शित प्रौद्योगिकी एवं क्षमताएँ:
    • सटीक लैंडिंग: LEX-03 ने रॉकेट के नियंत्रित लैंडिंग हेतु निर्देशित करने के लिये मल्टीसेंसर फ्यूज़न का उपयोग किया।
    • स्वायत्त उड़ान: पुष्पक रॉकेट ने स्वयं को लैंड करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिसमें पृथ्वी पर उतरते समय अपनी दिशा को सही करना भी शामिल है।
    • पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन: मिशन में इसकी पिछली उड़ान के प्रमुख भागों का पुन: उपयोग किया गया, जो RLV की लागत-बचत क्षमता को उजागर करता है।
  • महत्त्व:
    • इस मिशन ने अंतरिक्ष से लौटने वाले रॉकेट के दृष्टिकोण और उच्च गति की लैंडिंग स्थितियों का सफलतापूर्वक अनुकरण किया।
      • इसने अनुदैर्ध्य और पार्श्व त्रुटि सुधारों के लिये इसरो के उन्नत नेविगेशन एल्गोरिदम को प्रामाणित किया, जो भविष्य के कक्षीय पुन: प्रवेश मिशन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • स्वायत्त लैंडिंग और पुन: प्रयोज्य भागों जैसी प्रमुख तकनीकों का परीक्षण करके, यह पूर्ण रूप से से पुन: प्रयोज्य प्रमोचन रॉकेट के रूप में उपयोग किये जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इससे प्रमोचन की लागत में कमी आ सकती है और अंतरिक्ष मिशन अधिक कुशल हो सकते हैं।

पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन क्या हैं?

  • परिचय:
    • पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLV) ऐसे रॉकेट हैं जिनका उपयोग अंतरिक्ष अभियानों के लिये कई बार किया जा सकता है, पारंपरिक व्यय योग्य रॉकेटों के विपरीत जहाँ प्रत्येक चरण को उपयोग के बाद छोड़ दिया जाता है।
  • मल्टी-स्टेज रॉकेट से अलग:
    • एक विशिष्ट मल्टी-स्टेज रॉकेट में, ईंधन की खपत के बाद पहले चरण को जेटीसन (भार को हल्का करने के लिये छोड़ दिया जाता है) किया जाता है, जबकि शेष चरण पेलोड को कक्षा में ले जाना जारी रखते हैं।
    • RLV पहले चरण को पुनर्प्राप्त करके उसका पुनः उपयोग करते हैं। ऊपरी चरणों से अलग होने के बाद, पहले चरण में नीचे उतरने और साथ ही वापस पृथ्वी पर उतरने के लिये इंजन अथवा पैराशूट का उपयोग किया जाता है।
      • इसके बाद इसे भविष्य के प्रक्षेपणों के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है, जिससे लागत में काफी कमी आएगी।
  • अंतरिक्ष एजेंसियाँ वर्तमान में RLV का उपयोग या विकास कर रही हैं।
    • स्पेसएक्स (USA): मई 2023 तक, फाल्कन 9 लगभग 220 लॉन्च, 178 लैंडिंग के साथ 155 पुनः उड़ानें पूरी कर लेगा।
    • ब्लू ओरिज़िन (USA): न्यू शेपर्ड उपकक्षीय उड़ानें भरता है और साथ ही लंबवत् उतरता भी है।
    • JAXA (जापान) तथा ESA (यूरोप): अंतरिक्ष पहुँच लागत को कम करने के लिये पुन: प्रयोज्य लॉन्च सिस्टम पर शोध करना।
    • इसरो (भारत): पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान-प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (RLV-TD) विकसित किया और साथ ही सफल लैंडिंग भी कराई।

और पढ़ें… पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान-प्रौद्योगिकी

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLVs पृथ्वी के संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी उपग्रहों को लॉन्च करते हैं, जबकि GSLVs को मुख्य रूप से संचार उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  2. PSLVs द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह पृथ्वी पर किसी विशेष स्थान से देखने पर आकाश में उसी स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं। 
  3. GSLV Mk-III एक चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें पहले और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट मोटर्स का उपयोग तथा दूसरे व चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: (a)


प्रारंभिक परीक्षा

बायो-बिटुमेन

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

हाल ही में भारत ने बायोमास या कृषि अपशिष्ट से बड़े पैमाने पर बायो-बिटुमेन या जैव-कोलतार का उत्पादन शुरू करने की योजना शुरू की है।

बायो-बिटुमेन क्या है?

  • परिचय:
    • बायो-बिटुमेन एक जैव-आधारित बाइंडर (बंधक) है, जो वनस्पति तेलों, फसल के ठूंठ, शैवाल, लिग्निन (लकड़ी का एक घटक) या यहाँ तक ​​कि पशु खाद जैसे नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होता है।
  • उत्पत्ति और उत्पादन: बिटुमेन मुख्य रूप से कच्चे तेल के आसवन से प्राप्त होता है। रिफाइनिंग के दौरान, गैसोलीन और डीज़ल जैसे हल्के घटकों को हटाने के बाद भारी बिटुमेन बच जाता है। यह प्राकृतिक रूप से जमाव में भी पाया जा सकता है, जैसे कि तेल रेत में।
  • बिटुमेन के गुण और उपयोग: 
    • यह अपने जलरोधी और चिपकने वाले गुणों के लिये जाना जाता है तथा इसका उपयोग सड़क निर्माण (डामर फर्श) एवं इमारतों व समुद्री संरचनाओं में जलरोधी अनुप्रयोगों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • बायो-बिटुमेन का उपयोग के तरीके:
    • प्रत्यक्ष प्रतिस्थापन: डामर में पेट्रोलियम बिटुमेन को पूर्णतः बायो-बाइंडर से प्रतिस्थापित करना।
    • संशोधक: पारंपरिक बिटुमेन के गुणों में सुधार के लिये उसमें जैव-पदार्थ मिलाना।
    • कायाकल्प: पुराने डामर फुटपाथों की गुणवत्ता और कार्यक्षमता को बहाल करना।

  • भारत में वर्तमान बिटुमेन परिदृश्य:
    • आयात पर निर्भरता: भारत वर्तमान में वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपनी वार्षिक बिटुमेन आवश्यकता का लगभग आधा हिस्सा 3.21 मिलियन टन आयात करता है।
    • घरेलू उत्पादन: इसी अवधि में बिटुमेन उत्पादन 5.24 मिलियन टन रहा।
    • खपत में वृद्धि: बिटुमेन की खपत में लगातार वृद्धि हुई है, जो पिछले पाँच वर्षों में यह औसतन 7.7 मिलियन टन प्रतिवर्ष रही है।
      • वर्ष 2023-24 में राष्ट्रीय राजमार्गों (NH) का निर्माण लगभग 12,300 किलोमीटर तक पहुँच जाएगा, जो लगभग 34 किलोमीटर प्रतिदिन है।
  • जैव-बिटुमेन उत्पादन पहल के उद्देश्य:
    • आयात निर्भरता कम करना: इसका प्राथमिक उद्देश्य आगामी दशक में आयातित बिटुमेन के स्थान पर घरेलू स्तर पर उत्पादित जैव-बिटुमेन का उपयोग करना है, जिससे विदेशी मुद्रा व्यय में कमी आएगी।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान: जैव-बिटुमेन उत्पादन का उद्देश्य बायोमास तथा कृषि अपशिष्ट को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके पराली जलाने से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को कम करना है।
    • सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना: जैव-आधारित सामग्रियों का लाभ उठाकर, यह पहल टिकाऊ सड़क निर्माण प्रथाओं का समर्थन करती है और वैश्विक पर्यावरण मानकों के अनुरूप है।
    • तकनीकी विकास एवं प्रायोगिक अध्ययन: केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) जैव-बिटुमेन का उपयोग करके 1 किलोमीटर की सड़क पर एक पायलट अध्ययन करने के लिये भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के साथ सहयोग कर रहा है।
  • चुनौतियाँ:
    • लागत प्रभावशीलता: वर्तमान में जैव-बिटुमेन उत्पादन पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक महँगा हो सकता है।
    • दीर्घकालिक प्रदर्शन: पारंपरिक फुटपाथों की तुलना में जैव-ऐस्फाल्ट के दीर्घकालिक प्रदर्शन और स्थायित्व का आकलन करने के लिये अधिक व्यापक क्षेत्रीय परीक्षणों की आवश्यकता है।
    • मानकीकरण: निर्माण उद्योग में बायो-बिटुमेन को व्यापक रूप से अपनाने हेतु इसके लिये स्पष्ट मानक एवं विनिर्देश स्थापित करना आवश्यक है।

सड़क निर्माण की अन्य नवाचार विधियाँ 

  • स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी स्टील स्लैग, स्टील उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट का उपयोग करके अधिक मज़बूत और अधिक टिकाऊ सड़कें बनाने की एक नई विधि है। 
    • उदाहरण के लिये स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी का सबसे पहले सूरत में इस्तेमाल किया गया था। 
  • जर्मनी के हैम्बर्ग में कंपनियों ने लागत कम करने, ऊर्जा बचाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये 100% पुनर्नवीनीकरण डामर फुटपाथ (RAP) विकसित किया। 
  • भारत ने कुल 2,500 किलोमीटर से अधिक विस्तृत प्लास्टिक सड़कों का निर्माण किया है और वैश्विक स्तर पर भी 15 से अधिक देशों में प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है। 
    • उदाहरण के लिये लद्दाख में सड़क निर्माण के लिये कम-से-कम 10% प्लास्टिक कचरे का उपयोग किया जाना अनिवार्य है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ग्रामीण सड़क निर्माण में, पर्यावरणीय दीर्घोपयोगिता को सुनिश्चित करने अथवा कार्बन पदचिह्न को घटाने के लिये निम्नलिखित में से किसके प्रयोग को अधिक प्राथमिकता दी जाती है? (2020)

  1. कॉपर स्लैग
  2. शीत मिश्रित एस्फाल्ट प्रौद्योगिकी 
  3. जियोटेक्सटाइल्स
  4. ऊष्ण मिश्रित एस्फाल्ट प्रौद्योगिकी
  5. पोर्टलैंड सीमेंट

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 4 और 5
(d) केवल 1 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. केंद्रीय बजट 2011-12 में जैव-मूल ऐस्फाल्ट (बायोऐस्फाल्ट) पर मूल सीमा-शुल्क की पूरी छूट प्रदान की गई है। इस पदार्थ का क्या महत्त्व है? (2011)

  1. पारंपरिक ऐस्फाल्ट के विपरीत, बायोऐस्फाल्ट जीवाश्म ईंधनों पर आधारित नहीं होता।
  2. बायोऐस्फाल्ट अनवीकरणीय (नॉन-रिन्यूवेबल) साधनों से निर्मित हो सकता है।
  3. बायोऐस्फाल्ट जैव अपशिष्ट पदार्थों से निर्मित हो सकता है।
  4. बायोऐस्फाल्ट से सड़कों की ऊपरी सतह बिछाना पारिस्थितिकी के अनुकूल है।

उपर्युक्त में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


रैपिड फायर

विश्व चिकित्सा और स्वास्थ्य खेल

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में चार सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (Armed Forces Medical Service - AFMS) अधिकारियों ने फ्राँस के सेंट-ट्रोपेज़ में आयोजित 43वें विश्व चिकित्सा और स्वास्थ्य खेलों में रिकॉर्ड 32 पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया है।

  • विश्व चिकित्सा एवं स्वास्थ्य खेलों को स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये ओलंपिक खेल भी कहा जाता है।
  • यह चिकित्सा समुदाय के भीतर सबसे प्रतिष्ठित वैश्विक खेल आयोजन है। विश्व चिकित्सा एवं स्वास्थ्य खेलों की विरासत 1978 से चली आ रही है।
  • इस आयोजन में हर साल 50 से अधिक देशों के 2500 से अधिक प्रतिभागी भाग लेते हैं।
  • लेफ्टिनेंट कर्नल संजीव मलिक, मेजर अनीश जॉर्ज, कैप्टन स्टीफन सेबेस्टियन और कैप्टन डानिया जेम्स ने इस आयोजन में 19 स्वर्ण पदक, 09 रजत पदक और 04 कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया।

रैपिड फायर

कनिष्क त्रासदी

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में कनाडा ने कहा है कि 1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182 में हुए बम विस्फोट की जाँच अभी भी "सक्रिय और जारी है"

  • 23 जून 1985 को मॉन्ट्रियल-नई दिल्ली एयर इंडिया की ‘कनिष्क’ फ्लाइट 182, जो कनाडा से लंदन होते हुए भारत जा रही थी, आयरिश तट के पास विस्फोट में दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें विमान में सवार सभी 329 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश भारतीय थे।
  • टोक्यो के नारिता हवाई अड्डे पर एक और विस्फोट में दो जापानी बैगेज़ हैंडलर मारे गए, जबकि विमान अभी भी हवा में था।
    • जाँचकर्त्ताओं ने बाद में बताया कि यह बम फ्लाइट 182 पर हुए हमले से जुड़ा था और यह बैंकॉक जाने वाली एयर इंडिया की एक अन्य फ्लाइट के लिये था, लेकिन यह समय से पहले ही फट गया।
  • इस बम विस्फोट का श्रेय 1984 में भारतीय सेना द्वारा किये गए 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' के प्रतिशोध में सिख आतंकवादियों (खालिस्तानियों) को दिया गया।
    • 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सिख उग्रवादियों को हटाने के लिये भारत सरकार द्वारा आदेशित एक सैन्य अभियान था।
    • खालिस्तान आंदोलन एक अलगाववादी आंदोलन है जो पंजाब क्षेत्र में खालिस्तान नामक एक जातीय-धार्मिक संप्रभु राज्य की स्थापना करके सिखों के लिये एक मातृभूमि बनाने की मांग कर रहा है।

और पढ़ें: ऑपरेशन ब्लू स्टार की 36वीं वर्षगाँठ


रैपिड फायर

संत कबीर दास की 647वीं जयंती

स्रोत: पी.आई.बी.

22 जून, 2024 को प्रधानमंत्री ने संत कबीर दास की 647वीं जयंती मनाई

  • 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत संत कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक हिंदू परिवार में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम बुनकर दंपत्ति ने किया था।
  • वे भक्ति आंदोलन में एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे, जिसमें ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम पर जोर दिया गया था।
    • भक्ति आंदोलन 7वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में शुरू हुआ और 14वीं और 15वीं शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में फैल गया।
    • भक्ति आंदोलन के लोकप्रिय संत कवियों, जैसे रामानंद और कबीर दास ने स्थानीय भाषाओं में भक्ति गीत गाए।
  • कबीर ने रामानंद और शेख तकी जैसे गुरुओं से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया और अपने अद्वितीय दर्शन को आकार दिया।
  • कबीर को हिंदू और मुसलमान दोनों ही पूजते हैं और उनके अनुयायी "कबीर पंथी" के नाम से जाने जाते हैं।
  • उनकी लोकप्रिय साहित्यिक कृतियों में कबीर बीजक (कविताएँ और छंद), कबीर परचाई, साखी ग्रंथ, आदि ग्रंथ (सिख) और कबीर ग्रंथावली (राजस्थान) शामिल हैं।
  • ब्रजभाषा और अवधी बोलियों में लिखी गई उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा के विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।

अधिक पढ़ें: संत कबीर दास जयंती


रैपिड फायर

बालोन प्रोटीन

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में वैज्ञानिकों ने बैलोन नामक एक प्रोटीन की खोज की है, जो साइक्रोबैक्टर यूरेटिवोरन्स (Psychrobacter Urativorans) नामक जीवाणु को प्रतिकूल जीवन स्थितियों में अपनी कोशिकीय गतिविधियों को बाधित करने तथा ऐसी जीवन स्थितियों में सुधार होने पर उसे पुनः शुरू करने में सक्षम बनाता है।

  • वैज्ञानिकों ने पाया कि बालोन बैक्टीरिया के राइबोसोम के सक्रिय प्रोटीन संश्लेषण केन्द्रों से बंधा हुआ है, जो राइबोसोम को नए प्रोटीन बनाने से रोकता है।
  • बालोन की कार्यप्रणाली अन्य प्रोटीनों से भिन्न है जो कोशिकाओं को धीमा करने या बंद करने में मदद करते हैं।
  • बालोन के मामले में, जब बैक्टीरिया की बाह्य परिस्थितियाँ बेहतर हुईं, तो कोशिकाओं ने प्रोटीन संश्लेषण पुनः शुरू कर दिया।
  • यह खोज हमें यह समझने में मदद कर सकती है कि बैक्टीरिया आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट जैसे कठोर वातावरण में कैसे जीवित रहते हैं।
  • इससे यह भी पता चलेगा कि साइक्रोबैक्टर समूह के जीवाणु, जो प्रशीतित भोजन को सड़ा देते हैं, अत्यधिक ठंडे तापमान में जीवित कैसे रहते हैं।

और पढ़ें: आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट


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