विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी
- 22 Jul 2023
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी, स्टील स्लैग, वेस्ट टू वेल्थ मिशन मेन्स के लिये:स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी, वेस्ट टू वेल्थ मिशन में इसका महत्त्व, सड़क बुनियादी ढाँचे में तकनीकी प्रगति |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI), नई दिल्ली द्वारा इस्पात मंत्रालय और प्रमुख इस्पात विनिर्माण कंपनियों के सहयोग से विकसित नवीन स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी वेस्ट टू वेल्थ मिशन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रही है।
- यह तकनीक सड़क निर्माण में क्रांति के साथ स्टील स्लैग कचरे की पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान कर रही है।
स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी:
- परिचय:
- स्टील स्लैग रोड तकनीक अधिक मज़बूत और अधिक टिकाऊ सड़कों के निर्माण के लिये स्टील स्लैग, स्टील उत्पादन के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट का उपयोग करने की एक नवीन विधि है।
- प्रौद्योगिकी में अशुद्धियों और धातु सामग्री को हटाने के लिये स्टील स्लैग को संसाधित करना और फिर इसे सड़क आधार या उप-आधार परतों के लिये एक समुच्चय के रूप में उपयोग करना शामिल है।
- प्रसंस्कृत स्टील स्लैग में उच्च शक्ति, कठोरता, घर्षण प्रतिरोध, स्किड प्रतिरोध और जल निकासी क्षमता होती है, जो इसे सड़क निर्माण के लिये उपयुक्त बनाती है।
- यह इस्पात संयंत्रों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट स्टील स्लैग के बड़े पैमाने पर उपयोग की सुविधा प्रदान करता है, जिससे भारत में उत्पादित लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग का प्रभावी ढंग से प्रबंधन होता है।
- लाभ:
- पर्यावरण-अनुकूल अपशिष्ट उपयोग:
- सड़क निर्माण में अपशिष्ट स्टील स्लैग का उपयोग करके प्रौद्योगिकी औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये एक पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करती है।
- इससे लैंडफिल पर बोझ कम हो जाता है और स्टील स्लैग निपटान से जुड़े पर्यावरणीय प्रभाव कम हो जाते हैं।
- सड़क निर्माण में अपशिष्ट स्टील स्लैग का उपयोग करके प्रौद्योगिकी औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये एक पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करती है।
- लागत प्रभावी और टिकाऊ:
- स्टील स्लैग सड़कें लागत प्रभावी साबित हुई हैं, क्योंकि पारंपरिक फर्श विधियों की तुलना में उनका निर्माण लगभग 30% सस्ता है।
- इसके अतिरिक्त ये सड़कें असाधारण स्थायित्व को प्रदर्शित करती हैं तथा मौसम परिवर्तन का विरोध करती हैं जिसके परिणामस्वरूप रखरखाव लागत काफी कम हो जाती है।
- स्टील स्लैग सड़कें लागत प्रभावी साबित हुई हैं, क्योंकि पारंपरिक फर्श विधियों की तुलना में उनका निर्माण लगभग 30% सस्ता है।
- प्राकृतिक संसाधनों पर कम निर्भरता:
- पारंपरिक सड़क निर्माण काफी हद तक प्राकृतिक गिट्टी पर निर्भर करता है जिससे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाते हैं।
- स्टील स्लैग सड़क तकनीक प्राकृतिक सामग्रियों की आवश्यकता को समाप्त करती है। यह तकनीक मूल्यवान संसाधनों के संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में सहायता करती है।
- स्टील स्लैग अपशिष्ट चुनौती को संबोधित करना:
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है जो ठोस अपशिष्ट के रूप में लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पन्न करता है। यह आँकड़ा वर्ष 2030 तक आश्चर्यजनक रूप से 60 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है। प्रति टन स्टील उत्पादन के परिणामस्वरूप लगभग 200 किलोग्राम स्टील स्लैग अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
- कुशल निपटान विधियों की कमी के कारण इस्पात संयंत्रों के आसपास स्लैग के विशाल ढेर जमा हो गए हैं जो जल, वायु और भूमि प्रदूषण में योगदान दे रहे हैं।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है जो ठोस अपशिष्ट के रूप में लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पन्न करता है। यह आँकड़ा वर्ष 2030 तक आश्चर्यजनक रूप से 60 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है। प्रति टन स्टील उत्पादन के परिणामस्वरूप लगभग 200 किलोग्राम स्टील स्लैग अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
- पर्यावरण-अनुकूल अपशिष्ट उपयोग:
- सफल कार्यान्वयन:
- प्रौद्योगिकी में सूरत का चमत्कार:
- गुजरात के सूरत में स्टील स्लैग रोड तकनीक का उपयोग करके बनाई गई पहली सड़क ने अपनी प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता के लिये मान्यता प्राप्त की है।
- सीमा सड़क संगठन का योगदान:
- प्रौद्योगिकी की सफलता भारत-चीन सीमा तक है, जहाँ सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने CRRI और टाटा स्टील के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश में एक स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया।
- इस परियोजना ने चुनौतीपूर्ण इलाकों और महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के लिये प्रौद्योगिकी की उपयुक्तता का प्रदर्शन किया।
- प्रौद्योगिकी में सूरत का चमत्कार:
- राष्ट्रव्यापी स्वीकृति को बढ़ावा देना:
- स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी की सफलता ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों और मंत्रालयों का ध्यान आकर्षित किया है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सहयोग से इस्पात मंत्रालय देश भर में इस तकनीक के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
- सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देकर भारत का लक्ष्य स्थायी सड़क अवसंरचना के विकास का नेतृत्व करना और अपने 'वेस्ट टू वेल्थ' मिशन को पूरा करना है।
- स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी की सफलता ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों और मंत्रालयों का ध्यान आकर्षित किया है।
वेस्ट टू वेल्थ मिशन:
- यह मिशन अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पन्न करने, बेकार सामग्री के पुनर्चक्रण आदि के लिये प्रौद्योगिकियों की पहचान करने के साथ ही उनके विकास और उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
- “द वेस्ट टू वेल्थ” मिशन प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) के नौ राष्ट्रीय मिशनों में से एक है।
- यह मिशन स्वच्छ भारत और स्मार्ट शहर जैसी परियोजनाओं में मदद करेगा, साथ ही एक ऐसा वृहद् आर्थिक मॉडल तैयार करेगा जो देश में अपशिष्ट प्रबंधन को कारगर बनाने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी बनाएगा।