प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स: 21 अगस्त, 2021
उत्तराखंड का नारायणकोटि मंदिर: ‘धरोहर गोद लें’ परियोजना
Uttarakhand’s Narayankoti Temple: Adopt a Heritage Project
हाल ही में उत्तराखंड के नारायणकोटि मंदिर को केंद्र की ‘धरोहर गोद लें’ (Adopt a Heritage) परियोजना के तहत शामिल किया गया है।
प्रमुख बिंदु
‘धरोहर गोद लें’ परियोजना के बारे :
- इस परियोजना को 27 सितंबर, 2017 (विश्व पर्यटन दिवस) पर शुरू किया गया था, यह पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों का एक समन्वित प्रयास है।
उद्देश्य:
- संपूर्ण देश में फैले विरासत/प्राकृतिक/पर्यटक स्थलों पर पर्यटन सुविधाओं का विकास करना ताकि उन्हें पर्यटन के अनुकूल, योजनाबद्ध और चरणबद्ध तरीके से विकसित किया जा सके।
योजना का कार्यान्वयन:
- स्थलों/स्मारकों का चयन पर्यटकों की संख्या और दृश्यता के आधार पर किया जाता है तथा इसे पांँच साल की प्रारंभिक अवधि के लिये निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा अपनाया जा सकता है जिन्हें स्मारक मित्र के रूप में जाना जाता है।
- स्मारक मित्रों का चयन 'निगरानी और दृष्टि समिति' (Oversight and Vision Committee) द्वारा किया जाता है, जिसकी सह-अध्यक्षता पर्यटन सचिव और संस्कृति सचिव द्वारा विरासत स्थल पर सभी सुविधाओं के विकास हेतु बोली लगाने वाले के विज़न के आधार पर की जाती है।
- बोली में कोई वित्तीय आधार शामिल नहीं है।
- कॉर्पोरेट क्षेत्र से साइट के रखरखाव के लिये कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड का उपयोग करने की उम्मीद की जाती है।
अन्य संबंधित योजनाएंँ
नारायणकोटि मंदिर:
- यह प्राचीन मंदिरों का एक समूह है, जो रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर गुप्तकाशी से लगभग 2 किमी. दूर अवस्थित है।
- यह देश का एकमात्र स्थान (नारायणकोटि) है जहांँ नौ ग्रहों के मंदिर एक समूह में स्थित हैं जो "नौ ग्रहों का प्रतीक" है।
- यह लक्ष्मी नारायण को समर्पित है जो पांडवों से संबंधित है।
- ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था।
उत्तराखंड में अन्य महत्त्वपूर्ण स्थान
- चारधाम- गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ (अलकनंदा नदी के तट पर भगवान विष्णु को समर्पित), केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) को सामूहिक रूप से चार धाम के रूप में जाना जाता है।
- चारधाम परियोजना के तहत सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का लक्ष्य चारधाम के लिये कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
- हेमकुंड साहिब: पूर्व में गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जी के नाम से जाना जाने वाला यह चमोली ज़िले में एक सिख पूजा स्थल और तीर्थ स्थल है। यह दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित है तथा दशम ग्रंथ में इसका उल्लेख मिलता है, जिन्हें स्वयं गुरुजी द्वारा लिखा गया है।
- यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल फूलों की घाटी और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान।
- जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (देश का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान) और राजाजी टाइगर रिज़र्व।
तुंगभद्रा बाँध
Tungabhadra Dam
हाल ही में उपराष्ट्रपति ने कर्नाटक में तुंगभद्रा बाँध (Tungabhadra Dam) का दौरा किया।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- तुंगभद्रा बाँध जिसे पम्पा सागर के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक के बल्लारी ज़िले के होसापेटे में तुंगभद्रा नदी पर बना एक बहुउद्देशीय बाँध है। इसका निर्माण वर्ष 1953 में डॉ. थिरुमलाई अयंगर द्वारा किया गया था।
- तुंगभद्रा जलाशय में 101 टीएमसी (हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट) की भंडारण क्षमता है, जिसमें जलग्रहण क्षेत्र 28000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसकी ऊँचाई लगभग 49.5 मीटर है।
महत्त्व:
- यह कर्नाटक के बेल्लारी, कोप्पल और रायचूर (कर्नाटक के चावल के कटोरे के रूप में जाना जाता है) और पड़ोसी आंध्र प्रदेश में अनंतपुर, कडप्पा एवं कुरनूल के 6 कालानुक्रमिक सूखा प्रवण जिलों की जीवन रेखा है।
- दोनों राज्यों में भूमि के बड़े हिस्से को सिंचित करने के अलावा यह जलविद्युत भी उत्पन्न करता है और बाढ़ को रोकने में मदद करता है।
तुंगभद्रा नदी
- यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है जो कर्नाटक राज्य से होकर आंध्र प्रदेश में बहती है। नदी का प्राचीन नाम पम्पा था। यह नदी लगभग 710 किमी. लंबी है।
- यह दो नदियों, तुंगा नदी और भद्रा नदी के संगम से बनती है। तुंगा और भद्रा दोनों नदियाँ पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलानों से निकलती हैं।
- तुंगभद्रा के मार्ग का अधिकांश भाग दक्कन के पठार के दक्षिणी भाग में स्थित है। नदी मुख्य रूप से वर्षा द्वारा पोषित है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ भद्रा, हरिद्रा, वेदवती, तुंगा, वरदा और कुमदावती हैं।
- पूर्वी कृष्णा नदी में मिलने से पहले यह कमोबेश उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती है। कृष्णा नदी अंत में बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
सुरंगम प्रणाली
Surangam System
अफगानिस्तान की करेज प्रणाली खतरे में है, जबकि दक्षिण भारत में सुरंगम नामक एक समान प्रणाली फल-फूल रही है।
- सुरंगम संरचना और प्रसार दोनों में करेज प्रणाली से मिलती-जुलती है।
प्रमुख बिंदु
सुरंगम के बारे में:
- सुरंगम या सुरंगा प्रणाली आमतौर पर उत्तरी केरल और दक्षिणी कर्नाटक में पाई जाती है।
- सुरंगम मूल रूप से एक लेटराइट पहाड़ी के माध्यम से खोदी गई एक सुरंग है जिसकी परिधि पर पानी के रिसाव के साथ नमी रहती है।
- सुरंगम कानाट्स (Qanats) के समान हैं जो कभी मेसोपोटामिया और बेबीलोन में लगभग 700 ईसा पूर्व के आस-पास मौजूद थे। 714 ईसा पूर्व तक यह तकनीक मिस्र, फारस और भारत में फैल गई थी।
- कानाट्स भूमिगत सुरंग प्रणाली है जो केवल गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके घुसपैठ किये गए भूजल, सतही जल या झरने के पानी को पृथ्वी की सतह पर लाती है।
- उत्तरी मालाबार के शुष्क क्षेत्रों में घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिये इस प्रणाली का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है।
- कुछ लोगों का मानना है कि सुरंगम स्वदेशी है और सुरंग प्रणाली की संभावित उत्पत्ति 18 करहदा ब्राह्मण परिवारों को संदर्भित करती है जिन्हें 17वीं शताब्दी में दबाव पूर्वक आधुनिक महाराष्ट्र से कासरगोड क्षेत्र में ले जाया गया था।
करेज प्रणाली:
- करेज प्रणाली अपने फारसी सांस्कृतिक मूरिंग्स (Moorings) की विरासत है। 43 वर्षों के युद्ध में इसे व्यापक नुकसान हुआ है और तालिबान के दूसरे शासन के तहत इसका भविष्य अनिश्चित दिखता है।
- करेज एक जल दोहन तकनीक है जिसमें भूमिगत जल को एक सुरंग द्वारा सतह पर लाया जाता है।
- इस प्रणाली में किसी यांत्रिक पंप या लिफ्ट का उपयोग नहीं किया जाता है। केवल गुरुत्वाकर्षण द्वारा भूमिगत स्रोत से पानी लाया जाता है।
- इस प्रौद्योगिकी की उत्पत्ति फारस/ईरान में हुई थी और मध्ययुगीन काल के दौरान इसका व्यापक रूप से उपयोग किया गया था।
क्रम संख्या |
पारिस्थितिक क्षेत्र |
पारंपरिक जल प्रबंधन |
1. |
ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र |
जिंग |
2. |
पश्चिमी हिमालय |
कुल, नौला, कुहल, खत्री |
3. |
पूर्वी हिमालय |
अपतानि |
4. |
नॉर्थ ईस्टर्न हिल रेंज |
ज़ाबो |
5. |
ब्रह्मपुत्र घाटी |
डोंग्स / डंग्स / जम्पोइस |
6. |
इंडो-गंगा के मैदान |
अहार - पायनेस, बंगाल के इनडेशन चैनल, दिघी, बावली |
7. |
थार रेगिस्तान |
कुंड, कुइस/बेरी, बावड़ी/बेर/ |
8. |
केंद्रीय हाइलैंड्स |
तालाब, बंधी, साजा कुवा, जोहड़, नाडा / बंद, पट, रापट, चंदेला टैंक, बुंदेला टैंक |
9. |
पूर्वी हाइलैंड्स |
कटास / मुंडा / बंधा |
10. |
दक्कन का पठार |
चेरुवु, कोहली टैंक, भंडारास, |
11. |
पश्चिमी घाट |
सुरंगम |
12. |
पश्चिमी तटीय मैदान |
वीरदास |
13. |
पूर्वी घाट |
कोराम्बु |
14. |
पूर्वी तटीय मैदान |
एरी/ओरानिस |
15. |
द्वीप |
जैक वेल्स |
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 अगस्त, 2021
'उभरते सितारे' फंड
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में छोटी एवं मध्यम आकार की निर्यातोन्मुखी कंपनियों के लिये 250 करोड़ रुपए के वैकल्पिक निवेश कोष 'उभरते सितारे' फंड का शुभारंभ किया है। इस वैकल्पिक निवेश कोष को संयुक्त रूप से ‘एक्ज़िम बैंक ऑफ इंडिया’ और सिडबी द्वारा प्रायोजित किया जाएगा, जो निर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में निर्यात-उन्मुख इकाइयों में इक्विटी एवं इक्विटी जैसे उत्पादों के माध्यम से फंड में निवेश करेंगे। इस फंड में 250 करोड़ रुपए का ‘ग्रीनशू’ विकल्प भी शामिल होगा। ‘ग्रीनशू’ या 'ओवर-अलॉटमेंट ऑप्शन' IPO अंडरराइटिंग एग्रीमेंट में शामिल एक प्रावधान है, जो अंडरराइटर को अधिक शेयर बेचने का अधिकार प्रदान करता है। 'उभरते सितारे कार्यक्रम’ (USP) के माध्यम से उन भारतीय कंपनियों की पहचान की जाएगी, जिनमें वैश्विक मांगों और मानकों को पूरा करते हुए घरेलू क्षेत्र में चैंपियन बनने की क्षमता है। साथ ही इसके तहत ऐसी कंपनियों की भी पहचान की जाएगी, जो वर्तमान में तो खराब प्रदर्शन कर रही हैं, किंतु उनके पास प्रौद्योगिकी, प्रक्रियाओं या उत्पादों और निर्यात की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षमता मौजूद हैं। वैकल्पिक निवेश कोष वित्तीय एवं सलाहकार सेवाओं और इक्विटी या इक्विटी जैसे उपकरणों में निवेश के माध्यम से संरचित समर्थन प्रदान करेगा। इस फंड का प्राथमिक उद्देश्य एमएसएमई के विकास को प्रोत्साहित करना है, क्योंकि वे रोज़गार सृजन, नवाचार करने और जोखिम लेने के मामले में अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
‘ZyCoV-D’ वैक्सीन
भारतीय दवा नियामक की विषय विशेषज्ञ समिति ने आपातकालीन उपयोग के लिये ‘ज़ाइडस कैडिला’ कंपनी की तीन-खुराक वाली कोविड-19 वैक्सीन- ‘ZyCoV-D’ को मंज़ूरी देने की सिफारिश की है। जेनेरिक दवा निर्माता कंपनी ‘ज़ाइडस कैडिला’ ने देश भर में 28,000 से अधिक स्वयंसेवकों के परीक्षण में 66.6% की प्रभावकारिता दर के आधार पर ‘ZyCoV-D’ वैक्सीन को मंज़ूरी देने के लिये आवेदन किया था। ‘ZyCoV-D’ एक प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन है जो SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करती है और मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के सेलुलर (T लिम्फोसाइट्स इम्युनिटी) तथा ह्यूमरल (एंटीबॉडी-मध्यस्थता प्रतिरक्षा) के ज़रिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करती है। ‘ZyCoV-D’ वैक्सीन स्थानीय रूप से उत्पादित ‘कोविशील्ड’, भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सिन’, रूस की ‘स्पुतनिक वी’ और अमेरिका में निर्मित ‘मॉडर्ना’ के बाद देश में उपयोग के लिये स्वीकृत पाँचवीं वैक्सीन बन जाएगी। साथ ही यह किसी भी देश में मंज़ूरी पाने वाली दुनिया की पहली डीएनए वैक्सीन भी बन जाएगी।
डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज 5.0
रक्षा मंत्री ने हाल ही में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस- डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइज़ेशन’ (iDEX-DIO) के तहत ‘डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज 5.0’ का शुभारंभ किया है। ‘डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज के तहत सिचुएशनल अवेयरनेस, ऑगमेंटेड रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एयरक्राफ्ट-ट्रेनर, नॉन-लेथ डिवाइस, 5G नेटवर्क, अंडर-वाटर डोमेन अवेयरनेस, ड्रोन स्वार्म और डेटा कैप्चरिंग जैसे क्षेत्रों को कवर किया गया है। ‘डिफेंस इंडिया स्टार्ट-अप चैलेंज 5.0’ का उद्देश्य भारतीय रक्षा क्षेत्र को ‘आत्मनिर्भर’ बनाना है और नवाचार, डिज़ाइन तथा विकास को नई ऊँचाइयों पर ले जाना है। ‘डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइज़ेशन’ (DIO) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा-8 के तहत पंजीकृत एक 'गैर-लाभकारी’ कंपनी है। इसके दो संस्थापक सदस्य ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (HAL) और ‘भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड’ (BEL)- रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSUs) हैं। ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ और ‘भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड’ नवरत्न कंपनियाँ हैं।
रिमोट सेंसिंग डेटा साझाकरण हेतु ब्रिक्स समझौता
ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) ने रिमोट सेंसिंग उपग्रह डेटा साझाकरण में सहयोग के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के मुताबिक, यह समझौता ब्रिक्स देशों को अपनी अंतरिक्ष एजेंसियों के निर्दिष्ट रिमोट सेंसिंग उपग्रहों के माध्यम से एक ‘वर्चुअल इंस्टॉलेशन’ के निर्माण में सक्षम बनाता है, जिसमें संबंधित देशों के ग्राउंड स्टेशनों से डेटा प्राप्त किया जा सकेगा। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरण संरक्षण जैसी चुनौतियों का सामना करने में ब्रिक्स अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच बहुपक्षीय सहयोग को मज़बूत करने में योगदान देगा। यह समझौता ब्रिक्स में भारत की अध्यक्षता के तहत हस्ताक्षरित किया गया है।