प्रिलिम्स फैक्ट्स (20 Dec, 2022)



पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक

केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने कोलकाता में 25वीं पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक की अध्यक्षता की।

क्षेत्रीय परिषद:

  • परिचय:
    • क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक (संवैधानिक नहीं) निकाय हैं।
    • ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित की गई हैं।
    • इस अधिनियम ने देश को पाँच क्षेत्रों- उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी में विभाजित किया तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक क्षेत्रीय परिषद प्रदान की।
    • इन क्षेत्रों का निर्माण करते समय कई कारकों को ध्यान में रखा गया है जिनमें शामिल हैं:
      • देश का प्राकृतिक विभाजन
      • नदी प्रणाली और संचार के साधन
      • सांस्कृतिक व भाषायी संबंध
      • आर्थिक विकास, सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था की आवश्यकता
    • उपर्युक्त क्षेत्रीय परिषदों के अलावा संसद के एक अलग अधिनियम वर्ष 1971 के उत्तर-पूर्वी परिषद अधिनियम द्वारा एक उत्तर-पूर्वी परिषद बनाई गई थी।
      • इसके सदस्यों में असम, मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं।
  • संरचना:
    • उत्तरी क्षेत्रीय परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख शामिल हैं।
      • मुख्यालय: नई दिल्ली
    • मध्य क्षेत्रीय परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य शामिल हैं।
      • मुख्यालय: इलाहाबाद
    • पूर्वी क्षेत्रीय परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, ओड़िसाऔर पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
      • मुख्यालय: कोलकाता
    • पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन-दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली शामिल हैं।
      • मुख्यालय: मुंबई
    • दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।
      • मुख्यालय: चेन्नई
  • संगठनात्मक ढाँचा:
    • अध्यक्षः केंद्रीय गृह मंत्री इन सभी परिषदों का अध्यक्ष होता है।
    • उपाध्यक्ष: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
    • सदस्य: मुख्यमंत्री एवं प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा नामित दो अन्य मंत्री और परिषद में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य।
    • सलाहकार: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद के लिये योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा नामित एक मुख्य सचिव और ज़ोन में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त होते हैं।
  • उद्देश्य:
    • राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
    • तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
    • केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
    • विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।
  • परिषदों के कार्य:
    • आर्थिक और सामाजिक नियोजन के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई भी मामला;
    • सीमा विवाद, भाषायी अल्पसंख्यकों या अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई भी मामला;
    • राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित या उससे उत्पन्न कोई भी मामला।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस निकाय/किन निकायों का संविधान में उल्लेख नहीं है? (2013)

  1. राष्ट्रीय विकास परिषद
  2. योजना आयोग
  3. क्षेत्रीय परिषदें

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय विकास परिषद एक कार्यकारी निकाय (न तो संवैधानिक और न ही वैधानिक निकाय) है जिसकी स्थापना वर्ष 1952 में इस योजना के समर्थन में राष्ट्र के प्रयासों एवं संसाधनों को मज़बूत करने के साथ सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आम आर्थिक नीतियों को बढ़ावा देने तथा देश के सभी हिस्सों का तेज़ी से विकास सुनिश्चित करने के लिये की गई थी। अत: 1 सही है।
  • योजना आयोग की स्थापना वर्ष 1950 में भारत सरकार के एक कार्यकारी आदेश द्वारा की गई थी। यह आयोग भारत में सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये भारत की पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करने हेतु उत्तरदायी था। भारत के प्रधानमंत्री ने योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। योजना आयोग को वर्ष 2014 में भंग कर दिया गया था और भारत सरकार के पहले के थिंक टैंक को बदलने के लिये नीति आयोग का गठन किया गया था। अत: 2 सही है।
  • क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक (संवैधानिक नहीं) निकाय हैं। ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित किये गए हैं और प्रत्येक परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा की जाती है। अतः कथन 3 सही है।
  • क्षेत्रीय परिषद के उद्देश्य:
    • राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
    • तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
    • केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
    • विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


ताल छापर अभयारण्य

हाल ही में राजस्थान राज्य द्वारा प्रसिद्ध ताल छापर कृष्णमृग (ब्लैकबक) अभयारण्य, चूरू के इको सेंसिटिव ज़ोन के आकार को कम करने के प्रस्ताव के विरुद्ध उक्त अभ्यारण्य को संरक्षण प्राप्त हुआ है।

  • वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर ने भी 7.19 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में शिकारी पक्षियों (रैप्टर्स) के संरक्षण के लिये एक बड़ी परियोजना शुरु की है।

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ताल छापर अभयारण्य:

  • परिचय:
    • ताल छापर अभयारण्य भारतीय थार रेगिस्तान की सीमा पर स्थित है।
    • ताल छापर भारत में देखे जाने वाले सबसे सुंदर एंटीलोप "द ब्लैकबक" का एक विशिष्ट आश्रय स्थल है।
    • इसे वर्ष 1966 में अभयारण्य का दर्जा दिया गया था।
      • ताल छापर बीकानेर के पूर्व शाही परिवार का एक शिकार अभ्यारण्य था।
    • “ताल” शब्द राजस्थानी शब्द है जिसका अर्थ समतल भूमि होता है।
    • इस अभयारण्य में लगभग समतल क्षेत्र और संयुक्त पतला निचला क्षेत्र है। इसमें फैले बबूल और प्रोसोपिस के पौधों के साथ खुले एवं चौड़े घास के मैदान हैं जो इसे एक विशिष्ट सवाना का रूप देते हैं।
  • पशु:
    • कृष्णमृग या काले हिरण या ब्लैकबक देखने के लिये ताल छापर एक आदर्श स्थान है जो यहाँ एक हज़ार से अधिक संख्या में हैं। यह रेगिस्तानी जानवरों और सरीसृप प्रजातियों को देखने हेतु एक अच्छी जगह है।
    • यह अभयारण्य लगभग 4,000 ब्लैकबक, रैप्टर्स की 40 से अधिक प्रजातियों और स्थानिक एवं प्रवासी पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियों का निवास स्थल है।
    • अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों में हैरियर, ईस्टर्न इम्पीरियल ईगल, टॉनी ईगल, शॉर्ट-टोड ईगल, गौरैया और छोटे-हरे मधुमक्खी खाने वाले, ब्लैक आईबिस और डेमोइसेल क्रेन शामिल हैं। इसके अलावा, स्काईलार्क्स, क्रेस्टेड लार्क्स, रिंग डव्स और ब्राउन डव्स पूरे साल देखे जा सकते हैं।

कृष्णमृग या काले हिरण (Blackbuck)

  • परिचय:
    • कृष्णमृग का वैज्ञानिक नाम ‘Antilope cervicapra’ है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में मूल रूप से स्थानिक मृग की एक प्रजाति है।
      • ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में) व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
    • ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं अर्थात् इसे घास के मैदान का प्रतीक माना जाता है।
    • इसे चीते के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर माना जाता है।
    • कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है।
    • यह आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु है।
    • सांस्कृतिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म के लिये पवित्रता का प्रतीक है क्योंकि इसकी त्वचा और सींग को पवित्र अंग माना जाता है। बौद्ध धर्म के लिये यह सौभाग्य (Good Luck) का प्रतीक है।
  • संरक्षण स्थिति:
  • खतरा:
    • इनके संभावित खतरों में प्राकृतिक आवास का विखंडन, वनों का उन्मूलन, प्राकृतिक आपदाएँ, अवैध शिकार आदि शामिल हैं।
  • संबंधित संरक्षित क्षेत्र:
    • वेलावदर (Velavadar) कृष्णमृग अभयारण्य- गुजरात
    • प्वाइंट कैलिमेर (Point Calimer) वन्यजीव अभयारण्य- तमिलनाडु
    • वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने प्रयागराज के समीप यमुना-पार क्षेत्र (Trans-Yamuna Belt) में कृष्णमृग संरक्षण रिज़र्व स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी। यह कृष्णमृग को समर्पित पहला संरक्षण रिज़र्व होगा।

पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र या इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ)

  • ESZ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Climate Change- CC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
  • जून, 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि देश भर में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य में उनकी सीमांकित सीमाओं से शुरू करते हुए कम से कम एक किलोमीटर का अनिवार्य पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) होना चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रश्न: भारतीय अनूप मृग (बारहसिंगा) की उस उपजाति, जो पक्की भूमि पर फलती-फूलती है और केवल घासभक्षी है, के संरक्षण के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा संरक्षित क्षेत्र प्रसिद्ध है? (2020)

(a) कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
(b) मानस राष्ट्रीय उद्यान
(c) मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य
(d) ताल छप्पर वन्यजीव अभयारण्य

उत्तर: A

व्याख्या:

  • मध्य प्रदेश के राज्य पशु अनूप मृग या बारहसिंघा (Rucervus duvaucelii) के संरक्षण हेतु उन्हें कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व (KNPTR) में लाया जा रहा है।
  • कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में अनूप मृग विलुप्त होने के करीब था। हालाँकि संरक्षण प्रयासों के चलते वर्तमान में इसकी जनसंख्या लगभग 800 है।
  • यह हिरण सतपुड़ा पहाड़ियों की मैकाल श्रेणी पर कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व की स्थानिक है। यहाँ कैप्टिव प्रजनन और आवास सुधार जैसे उपायों का उपयोग किया गया था।

अतः विकल्प A सही है।


प्रश्न. 'पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र’ (ESZ) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र वे क्षेत्र हैं, जिन्हें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अधीन घोषित किया गया है।
  2. पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र को घोषित करने का प्रयोजन है, उन क्षेत्रें में केवल कृषि को छोड़कर सभी मानव क्रियाओं पर प्रतिबन्ध लगाना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


ज़िला खनिज फाउंडेशन योजना

ओडिशा का क्योंझर ज़िला, ज़िला खनिज फाउंडेशन (District Mineral Foundation- DMF) योजना के तहत भारत का सबसे अधिक वित्त प्राप्त करने वाला ज़िला है और विगत सात वर्षों में इस योजना के तहत 3,000 करोड़ रूपए खर्च किये गए हैं।

  • क्योंझर खनिज भंडार विशेष रूप से लौह अयस्क में बेहद समृद्ध है। क्योंझर ज़िले में मृदा के नीचे 2,555 मिलियन टन लौह अयस्क उपलब्ध है, जिसमें से लगभग 50 मिलियन टन प्रत्येक वर्ष निकाला जाता है, जो ओडिशा की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत है।

ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) योजना

  • परिचय:
    • खान और खनिज विकास विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2015 के अनुसार, खनन से संबंधित कार्यों से प्रभावित प्रत्येक ज़िले में राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा ज़िला खनिज फाउंडेशन नामक गैर-लाभकारी निकाय के रूप में एक ट्रस्ट स्थापित करेगी।
  • DMF वित्त:
    • प्रत्येक खनन पट्टा धारक केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर DMF में रॉयल्टी के अधिकतम एक-तिहाई वित्त का योगदान करेगा।
    • इस फंड का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावित लोगों के कल्याण के लिये किया जाएगा।
      • क्योंझर में कुल DMF कोष संग्रह ₹8,840 करोड़ तक पहुँच गया है, जो भारत में किसी भी ज़िले के लिये सबसे अधिक है।
  • उद्देश्य:
    • योगदान के पीछे विचार यह है कि स्थानीय खनन प्रभावित समुदायों, ज़्यादातर आदिवासी और देश के सबसे गरीब लोगों को भी जहाँ वे रहते हैं, वहाँ से निकाले गए प्राकृतिक संसाधनों से लाभ पाने का अधिकार है।
  • क्रियान्वयन:
    • DMF ट्रस्टों के क्रियान्वयन और राज्यों के DMF नियमों द्वारा शासित कोष उपयोग में एक केंद्रीय दिशानिर्देश, प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY) के जनादेश शामिल हैं।

प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY):

  • परिचय:
    • यह ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट के कोष का उपयोग कर खनन गतिविधियों से प्रभावित लोगों और क्षेत्रों का कल्याण सुनिश्चित करने संबंधी यह खनन मंत्रालय की एक प्रमुख योजना है।
  • उद्देश्य:
    • खनन प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक और कल्याणकारी परियोजनाओं/कार्यक्रमों को लागू करना, जो राज्य और केंद्र सरकार की मौजूदा परियोजनाओं/कार्यक्रमों के पूरक के तौर पर कार्य करें।
    • आम लोगों के स्वास्थ्य, पर्यावरण और उस क्षेत्र विशिष्ट की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर खनन गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना।
    • खनन क्षेत्रों में प्रभावित लोगों के लिये दीर्घकालिक स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना।
  • क्रियान्वयन:
    • कम-से-कम 60 प्रतिशत फंड का उपयोग ‘उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों’ जैसे- पेयजल आपूर्ति, पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण उपाय, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा आदि के लिये किया जाएगा।
    • शेष फंड का उपयोग ‘अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों’ जैसे कि अवसंरचना, सिंचाई, ऊर्जा तथा वाटरशेड विकास और पर्यावरण गुणवत्ता में सुधार करने संबंधी उपायों के लिये किया जाएगा।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)

  1. खनिज समृद्ध ज़िलों में खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देना
  2. खनन कार्यों से प्रभावित व्यक्तियों के हितों की रक्षा करना
  3. राज्य सरकारों को खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु अधिकृत करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 दिसंबर, 2022

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस

प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस (International Human Solidarity Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अनेकता में एकता का जश्न मनाना और एकजुटता के महत्त्व के बारे में जागरूक करना है। संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी घोषणा के अनुसार, एकजुटता उन मूलभूत मूल्यों में से एक है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों हेतु आवश्यक हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर, 2005 को संकल्प 60/209 द्वारा मानव एकता को एकजुटता के मौलिक और सार्वभौमिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी थी, जो इक्कीसवीं सदी में विभिन्न जनसमुदायों के बीच संबंधों को दर्शाता है और इसी कारण प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। एकजुटता को साझा हितों और उद्देश्यों के बारे में जागरूकता के रूप में परिभाषित किया गया है जो एक समाज में एकता संबंधी मनोवैज्ञानिक भावना पैदा करता है। हेल्प4ह्यूमेन रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधने की पहल की है। यह संस्था हमेशा से देश में शांति, एकता और भाईचारे की भावना के प्रसार हेतु अग्रणीय भूमिका अदा करती रही है।

मोटा अनाज खाद्य उत्सव

मोटे अनाज के महत्त्व के संबंध में जागरुकता बढ़ाने के लिये कृषि मंत्रालय 20 दिसंबर, 2022 को संसद में सदस्‍यों के लिये मोटा अनाज खाद्य उत्‍सव का आयोजन कर रहा है। विश्‍व में अभी तक जनसंख्‍या में सबसे अधिक वृद्धि को देखते हुए वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में बड़ी आबादी के भोजन के लिये मोटे अनाज सस्‍ता और पौष्टिक विकल्‍प हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने का प्रस्‍ताव पारित किया है। केंद्रीय खाद्य और किसान कल्‍याण मंत्री ने मोटे अनाज के उत्‍पादन का अर्थव्‍यवस्‍था और पर्यावरण पर सकारात्‍मक प्रभाव का उल्‍लेख किया। अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के आयोजन एवं मोटे अनाज के उत्‍पादन को बढ़ावा देने से वर्ष 2030 के सतत् विकास के एजेंडे में भी योगदान मिलेगा। मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है। ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे- कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail), प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं। ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।

पाणिनी के 2500 वर्ष पुराने संस्कृत नियम का डीकोड

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के PhD छात्र डॉ. ऋषि राजपोपत ने 2500 वर्ष पुराने अष्टाध्यायी में व्याकरण की समस्या को हल किया है। ऋषि राजपोपत ने अपनी थीसिस, जिसका शीर्षक था 'इन पाणिनि, वी ट्रस्ट: डिस्कवरिंग द एल्गोरिथम फॉर रूल कंफ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन इन द अष्टाध्यायी’, के साथ सफलता हासिल की है। इसे छठी या पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास संस्कृत के महान विद्वान पाणिनी ने लिखा था। 4000 सूत्रों वाला अष्टाध्यायी संस्कृत के पीछे के विज्ञान की व्याख्या करता है। अष्टाध्यायी में मूल शब्दों से नया शब्द बनाने के नियम मौजूद हैं। पाणिनि एक सम्मानित संस्कृत विद्वान, भाषाविद् और वैयाकरण थे, जो भारत में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास रहते थे। उन्हें "प्रथम वर्णनात्मक भाषाविद्" माना गया है और पश्चिमी विद्वानों द्वारा "भाषा विज्ञान के जनक" के रूप में स्थापित किया गया है। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में अष्टाध्यायी है, एक व्याकरण जो अनिवार्य रूप से संस्कृत भाषा को परिभाषित करता है। इसे संस्कृत के हर पहलू को नियंत्रित करने वाले बीजगणितीय नियमों के साथ एक निर्देशात्मक और जनरेटिव व्याकरण माना जाता है। व्याकरण की इतनी गहनता है कि सदियों से विद्वान इसके नियमों एवं उपनियमों के सही अनुप्रयोग पर काम नहीं कर पाए हैं।