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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 20 May, 2023
  • 16 min read
प्रारंभिक परीक्षा

ECL आधारित लोन लॉस प्रोविज़निंग फ्रेमवर्क

भारत में ऋणदाताओं ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से संपर्क किया है और अपेक्षित साख हानि (ECL)आधारित लोन लॉस प्रोविज़निंग फ्रेमवर्क  के कार्यान्वयन के लिये एक वर्ष का विस्तार मांगा है।

  • इससे पहले जनवरी 2023 में, RBI साख हानि के लिये अपेक्षित साख हानि दृष्टिकोण को अपनाने का प्रस्ताव करते हुए एक मसौदा दिशा-निर्देश लेकर आया था।   

ECL आधारित लॉस लोन प्रोविज़निंग क्या है?

  • पृष्ठभूमि:  
    • RBI ने पहले साख हानि के लिये ECL दृष्टिकोण अपनाने का प्रस्ताव दिया था, और अंतिम दिशा-निर्देश जारी होने के बाद बैंकों को कार्यान्वयन के लिये एक वर्ष की अवधि दी गई थी।
      • अभी अंतिम दिशा-निर्देशों की घोषणा की जानी बाकी है, यह उम्मीद की जा रही है कि उन्हें 1 अप्रैल, 2025 से कार्यान्वयन के लिये वित्त वर्ष 2024 तक अधिसूचित किया जा सकता है।
    • भारतीय बैंक संघ (IBA) ने RBI से अनुरोध किया है कि ECL मानदंडों के कार्यान्वयन की तैयारी के लिये ऋणदाताओं को एक अतिरिक्त वर्ष प्रदान किया जाए।
  • ECL फ्रेमवर्क का परिचय:
    • अपेक्षित क्रेडिट लॉस फ्रेमवर्क में, बैंकों को उन हानियों के लिये संबंधित प्रावधान करने से पहले क्रेडिट लॉस/साख हानि की प्रतीक्षा करने के बजाय फॉरवर्ड लुकिंग अनुमानों के माध्यम से अनुमानित क्रेडिट लॉस की भविष्यवाणी करना अनिवार्य है।
      • प्रत्येक वर्ग के आधार/ की स्थितियों पर प्रावधान किया जाएगा।
    • बैंकों को वित्तीय संपत्तियों (मुख्य रूप से अपरिवर्तनीय ऋण प्रतिबद्धताओं सहित ऋण, और अपरिपक्व-से-परिपक्व या बिक्री के लिये उपलब्ध के रूप में वर्गीकृत निवेश) को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करने की आवश्यकता होगी: चरण 1, चरण 2, और चरण 3, के आधार पर पहचान और बाद की रिपोर्टिंग तिथियों के समय साख  घाटे का आकलन किया।
  • ECL बनाम IL मॉडल:
    • यह नया दृष्टिकोण मौजूदा "उपगत हानि (Incurred Loss-IL)" मॉडल को प्रतिस्थापित करता है, यह दृष्टिकोण लोन लॉस प्रोविज़निंग में देरी करता है जो संभावित रूप से बैंकों के लिये क्रेडिट/साख जोखिम बढ़ाता है।
    • IL मॉडल में एक महत्त्वपूर्ण दोष यह था कि आमतौर पर बैंकों ने ऋणकर्त्ता को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना शुरू करने के बाद काफी देरी से प्रावधान किये, जिससे उनका क्रेडिट/साख जोखिम बढ़ गया। इससे संरचनात्मक समस्याएंँ पैदा हुईं।
    • इसके अलावा, लोन लॉस की देरी से पहचान के परिणामस्वरूप बैंकों की आय में वृद्धि हुई, लाभांश भुगतान के साथ, जिसने उनके पूंजी आधार को और कम कर दिया।
  • संक्रमणकालीन व्यवस्था:
    • यह चरणबद्ध कार्यान्वयन बैंकों को उनकी लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी भी अतिरिक्त प्रावधान को अवशोषित करने में मदद करेगा।  
      • कैपिटल शॉक को रोकने के लिये, RBI ने ECL मानदंडों की शुरूआत के लिये एक संक्रमणकालीन व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है।

लोन लॉस प्रोविज़निंग क्या है?

  • यह बैंकों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने और जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा के लिये RBI द्वारा लागू एक नियामक आवश्यकता है।
  • यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPA) या बैड लोन से उत्पन्न होने वाले संभावित नुकसान को कवर करने के प्रावधान के रूप में अपने आय अर्जन के एक हिस्से को अलग करने के लिये अपनाई जाने वाली प्रथा को संदर्भित करता है।
    • RBI भारत में NPA को किसी भी अग्रिम या ऋण के रूप में परिभाषित करता है जो 90 दिनों से अधिक के लिये अतिदेय है।
  • यह बैंकों को उनके ऋण पोर्टफोलियो के सही मूल्य को सही ढंग से दर्शाने और उनके समग्र जोखिम जोखिम का आकलन करने में मदद करता है।
    • पर्याप्त प्रोविज़निंग बैंक के वित्तीय विवरणों की पारदर्शिता को भी बढ़ाता है और हितधारकों को इसके वित्तीय स्वास्थ्य की अधिक सटीक तस्वीर प्रदान करता है।

भारतीय बैंक संघ क्या है?

  • भारतीय बैंक संघ (IBA) भारत में बैंकों का एक स्वैच्छिक संघ है। इसका गठन 26 सितंबर, 1946 को भारतीय बैंकिंग उद्योग के हितों को बढ़ावा देने और उनके बीच समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • इसके सदस्यों में शामिल हैं:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
    • निजी क्षेत्र के बैंक
    • विदेशी बैंकों के भारत में कार्यालय हैं
    • सहकारी बैंक
    • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
    • अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 मई, 2023

ग्रेटर फ्लेमिंगो

हाल ही में हरियाणा की सीमा से लगे नजफगढ़ आर्द्रभूमि से एक ग्रेटर फ्लेमिंगो को बचाया गया है।

ग्रेटर फ्लेमिंगो (फोनीकोप्टेरस रोसियस/Phoenicopterus roseus) गुजरात का राजकीय पक्षी है। वे मध्य पूर्व में पाए जाते हैं, जिनमें ईरान, तुर्किये, दुबई, ओमान और अफगानिस्तान शामिल हैं। वे दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम एशिया में भी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। वे मुख्य रूप से उथले जल क्षेत्र लैगून, झीलों, ज्वारनदमुख तथा कीचड़युक्त समुद्र तटों में पाए जाते हैं। विश्व में फ्लेमिंगो की छह प्रजातियों में से दो भारत में पाई जाती हैं: उनमें से सबसे बड़ी, ग्रेटर फ्लेमिंगो तथा सबसे छोटी, लेसर फ्लेमिंगो (फोनीकोनैस माइनर) है। ये लंबे होते है जिनकी काली-टिप वाली हल्की गुलाबी रंग की चोंच, पीली आँखें और गुलाबी-सफेद शरीर होता है। प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में इन्हें "कम चिंतनीय (Least Concern- LC)" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

और पढ़ें… नजफगढ़ आर्द्रभूमि, ग्रेटर फ्लेमिंगो

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

भारत सरकार ने टेस्ला (Tesla) सहित विभिन्न कंपनियों से निवेश आकर्षित करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और उन्नत रसायन सेल बैटरी के लिये एक उन्नत उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना की पेशकश की है। यह समायोजन टेस्ला के लिये विशिष्ट नहीं है, हालाँकि यह दूरसंचार उपकरणों और IT हार्डवेयर PLI योजनाओं के साथ प्रयोग की जाने वाली रणनीति के समान है। संशोधित PLI योजना को अंतिम रूप देने से साझेदार कंपनियों के लिये प्रोत्साहन और संरचना की बारीकियों का निर्धारण सुनिश्चित होगा। PLI योजना 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और देश को रणनीतिक क्षेत्रों में वैश्विक चैंपियन के रूप में स्थापित करना है। इस योजना के तहत कंपनियों को आधार वर्ष की तुलना में भारत में निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री के आधार पर प्रोत्साहन प्राप्त होता है। PLI योजना विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के लिये भी प्रोत्साहित करती है। केंद्रीय बजट 2021-22 ने PLI योजनाओं के लिये 1.97 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये, जिसमें मोबाइल निर्माण, चिकित्सा उपकरण, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, विशेष इस्पात, दूरसंचार उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, व्हाइट गुड्स, खाद्य उत्पाद, वस्त्र उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल बैटरी और ड्रोन जैसे 14 क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों को राजस्व तथा रोज़गार पैदा करने की उनकी क्षमता के आधार पर चुना गया था। PLI योजना भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
और पढ़ें… फार्मास्यूटिकल्स और IT हार्डवेयर के लिये PLI योजना

जलवायु और कोविड-19 के बीच की कड़ी

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के विशेषज्ञ समूह ने निष्कर्ष निकाला है कि हो सकता है कि ठंडे और शुष्क मौसम ने कोविड-19 के प्रसार में मदद की हो, लेकिन यह प्रमाण वायरस के प्रसार में मौसम की महत्त्वपूर्ण भूमिका का समर्थन नहीं करता है। अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि "उच्च गुणवत्ता वाले" शोध अध्ययन तापमान और कोविड-19 संचरण के बीच एक नकारात्मक संबंध दिखाते हैं, यह सुझाव देते हुए कि कम तापमान वायरस के प्रसार को बढ़ावा दे सकता है। इसी तरह नमी भी कोविड-19 संचरण के साथ सहसंबद्ध है, जो यह दर्शाता है कि शुष्क परिस्थितियों में संचरण होता है। WMO 192 सदस्य राज्यों और क्षेत्रों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था। WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है। भारत 1949 से WMO का सदस्य है।
और पढ़ें… विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), कोविड-19 और भारत

बाओबाब का पेड़

मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को धार ज़िले में बाओबाब के पेड़ों को काटने से रोकने का निर्देश दिया है। यह निर्णय आदिवासी समुदायों द्वारा इन पेड़ों को हटाए जाने के विरोध के बाद आया है। न्यायालय ने राज्य को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि "इस न्यायालय के अगले आदेश तक किसी भी प्राधिकरण द्वारा किसी भी उद्देश्य के लिये एक भी बाओबाब का पेड़ नहीं काटा जाएगा"। ज़िले में लगभग 1,000 बाओबाब के पेड़ हैं, जिनमें से कुछ सदियों पुराने हैं और विरासत एवं ऐतिहासिक मूल्य के हैं। पेड़ों को जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के तहत रखा गया है, जिसका अर्थ है कि व्यावसायिक उपयोग के लिये राज्य को जैवविविधता बोर्ड से अनुमति लेनी होगी। बाओबाब पर्णपाती पेड़ हैं जिनकी ऊँचाई 5 से 20 मीटर तक होती है। यह अफ्रीकी मूल का है, लेकिन संभवतः 10वीं और 17वीं शताब्दी के बीच अफ्रीकी सैनिकों द्वारा यहाँ लाए गए थे। इसे 'अफ्रीका में विश्व वृक्ष' के रूप में जाना जाता है। बाओबाब के पेड़ एक हज़ार से अधिक वर्षों तक जीवित रह सकते हैं और भोजन, पशुधन चारा, औषधीय यौगिक और कच्चा माल प्रदान करते हैं।
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हीटवेव

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) के एक अध्ययन में पाया गया कि अप्रैल में होने वाली तीव्र और आर्द्र गर्मी की लहरें जो पूर्वी और उत्तर भारत, बांग्लादेश, लाओस एवं थाईलैंड जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण बहुत अधिक होने की संभावना थी। इस तरह की हीटवेव होने की संभावना कम से कम 30 गुना बढ़ जाती है। ह्यूमिड हीटवेव का विश्लेषण हीट इंडेक्स का उपयोग करके किया जाता है जो बढ़े हुए तापमान और सापेक्ष आर्द्रता के स्तर का एक संयोजन है। इसके द्वारा मानव शरीर पर हीटवेव के प्रभाव की बेहतर समझ प्रदान करता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के मानदंड के अनुसार, जब तक किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिये कम-से-कम 40°C और पहाड़ी क्षेत्रों के लिये कम-से-कम 30°C तक नहीं पहुँच जाता तब तक “लू” पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर है तो सामान्य तापमान से 5°C से 6°C की वृद्धि को हीटवेव स्थिति माना जाता है। इसके अतिरिक्त सामान्य तापमान से 7 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक की वृद्धि को गंभीर “लू” की स्थिति माना जाता है। WWA, जलवायु वैज्ञानिकों का एक वैश्विक संघ है जो मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन द्वारा निभाई गई भूमिका का अध्ययन करता है,जैसे गर्मी की लहरों, सूखा, ठंड, अत्यधिक वर्षा, बाढ़ और तूफान जैसी चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता आदि।

और पढ़ें…जलवायु परिवर्तन, Heatwaves


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