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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 11 Nov, 2022
  • 25 min read
प्रारंभिक परीक्षा

पश्मीना शॉल

हाल ही में कस्टम अधिकारियों ने कई निर्यातित वस्तुओं की खेपों में पश्मीना शॉल में 'शहतूश' गार्ड हेयर की उपस्थिति के विषय में शिकायत की जो विशेषकर लुप्तप्राय तिब्बती मृगों से प्राप्त किया जाता है।

पश्मीना:

  • परिचय:
    • पश्मीना एक भौगोलिक संकेतक (GI) प्रमाणित ऊन है जिसकी उत्पत्ति भारत के कश्मीर क्षेत्र में हुई।
      • मूल रूप से कश्मीरी लोग सर्दियों के मौसम में खुद को गर्म रखने के लिये पश्मीना शॉल का इस्तेमाल करते थे।
    • 'पश्मीना' शब्द फारसी शब्द "पश्म" से लिया गया है जिसका अर्थ है बुनाई योग्य फाइबर जो मुख्य रूप से ऊन है।
    • पश्मीना शॉल ऊन की अच्छी गुणवत्ता और शॉल बनाने में लगने वाली कड़ी मेहनत के कारण बहुत महँगे होते हैं।
      • पश्मीना शॉल बुनने में काफी समय लगता है और यह काम के प्रकार पर निर्भर करता है। एक शॉल को पूरा करने में आमतौर पर लगभग 72 घंटे या उससे अधिक समय लगता है।
  • स्रोत:
    • पश्मीना शॉल की बुनाई में उपयोग किया जाने वाला ऊन लद्दाख में पाए जाने वाले पालतू चांगथांगी बकरियों (Capra hircus) से प्राप्त किया जाता है।
  • फाइबर प्रसंस्करण:
    • कच्चे पश्म को लद्दाख के चांगपा जनजाति द्वारा पाली जाने वाली चांगथांगी बकरियों से प्राप्त किया जाता है।
      • चांगपा अर्द्ध-खानाबदोश समुदाय से हैं जो चांगथांग ( लद्दाख और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में फैले हुए हैं) या लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में निवास करते हैं।
      • वर्ष 2001 तक भारत सरकार के आरक्षण कार्यक्रम के तहत चांगपा समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
    • कश्मीरी बुनकरों द्वारा कच्चा पश्म को मध्यस्थों के माध्यम से खरीदा जाता है, जो चांगपा जनजाति और कश्मीरियों के बीच एकमात्र संपर्क कड़ी है, इसके बाद कच्चे पश्म फाइबर को ठीक से साफ किया जाता है।
      • बाद में वे इस फाइबर को सुलझाते हैं और उसकी गुणवत्ता के आधार पर इसे अच्छी तरह से अलग करते हैं।
      • फिर इसे हाथ से काता जाता है और ताने (Warps) में स्थापित किया जाता है एवं हथकरघा पर रखा जाता है।
      • इसके बाद यार्न को हाथ से बुना जाता है और खूबसूरती से शानदार पश्मीना शॉल का निर्माण किया जाता है जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
      • पश्मीना शॉल बुनाई की यह कला कश्मीर में एक परंपरा के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चली आ रही है।
  • महत्त्व:
    • पश्मीना शॉल दुनिया में बेहतरीन और उच्चतम गुणवत्ता वाले ऊन से बने होते हैं।
    • पश्मीना शॉल ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया और यह पूरी दुनिया में सबसे अधिक मांग वाले शॉल में से एक बन गई है।
    • इसकी उच्च मांग ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।
  • चिंताएँ:
    • सीमित उपलब्धता और उच्च कीमतों के कारण निर्माताओं द्वारा पश्मीना में भेड़ के ऊन/अल्ट्रा-फाइन मेरिनो ऊन की मिलावट करना आम बात है।
      • वर्ष 2019 में भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने पश्मीना उत्पादों की शुद्धता को प्रमाणित करने के लिये उनकी पहचान, अंकन और लेबलिंग हेतु भारतीय मानक निर्धारित किया।
  • पश्मीना हेतु GI प्रमाणन मानदंड:
    • शॉल 100% शुद्ध पश्म से बनी होनी चाहिये।
    • रेशों की सूक्ष्मता 16 माइक्रोन तक होनी चाहिये।
    • शॉल को कश्मीर के स्थानीय कारीगरों द्वारा हाथ से बुना जाना चाहिये।
    • धागे को केवल हाथ से काता जाना चाहिये।

शहतूश:

  • शहतूश तिब्बती मृग से प्राप्त महीन अस्तर (Undercoat) फाइबर है, जिसे स्थानीय रूप से 'चिरू' के रूप में जाना जाता है, यह मुख्य रूप से तिब्बत में चांगथांग पठार के उत्तरी भागों में रहने वाली प्रजाति है।
  • चूँकि यह शॉल बहुत गर्मी प्रदान करती है और मुलायम होती है, इसलिये शहतूश शॉल अत्यधिक महँगी वस्तु बन गई है
  • दुर्भाग्यवश इस जानवर के वाणिज्यिक शिकार के कारण इनकी आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट आई है।
    • तिब्बती मृग वर्ष 1979 में जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (CITES) के तहत शामिल था, जिससे शहतूश शॉल और स्कार्फ की बिक्री एवं व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. वे मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में रहते हैं।
  2. वे चांगथांगी (पश्मीना) बकरियों को पालते हैं, जो अच्छी ऊन प्रदान करती हैं।
  3. उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • चांगपा अर्द्ध-खानाबदोश समुदाय हैं जो चांगथांग (लद्दाख और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में फैले हुए) या लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में निवास करते हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वे चांगथांगी (पश्मीना) बकरियों को पालते हैं और बेहतरीन गुणवत्ता के प्रामाणिक कश्मीरी ऊन के कुछ आपूर्तिकर्त्ताओं में से हैं। अत: कथन 2 सही है।
  • वर्ष 2001 तक चांगपा को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था। अत: कथन 3 सही है।

 स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

स्वामित्व योजना रिपोर्ट

हाल ही में मध्य प्रदेश में स्वामित्व (SVAMITVA) योजना और ग्रामीण नियोजन पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान स्वामित्व योजना पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जारी की गई।

  • रिपोर्ट में उन मार्गदर्शक सिद्धांतों का प्रावधान किया गया है जिन्हें राज्य समग्र रूप से स्वामित्व योजना के उद्देश्यों को साकार करने के लिये अपना सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विशेषज्ञ समिति के संदर्भ में:
  • रिपोर्ट की सिफारिशें:
    • योजना के कार्यान्वयन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाली प्रणालियों का निर्माण करना।
    • बैंक से ऋण प्राप्त करने के ‘अधिकारों के रिकॉर्ड' को अपनाने को बढ़ावा देना।
    • संपत्ति कर निर्धारण और संग्रह से संबंधित सूचित निर्णय लेने के लिये विभिन्न विभागों के बीच संबंधों को मज़बूत करना।
    • नए भू-स्थानिक दिशा-निर्देशों के अनुसार सरकारी और निजी एजेंसियों द्वारा स्वामित्व डेटा-सेट को व्यापक रूप से अपनाना
    • RADPFI (ग्रामीण क्षेत्र विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन) दिशा-निर्देशों एवं सटीक ग्राम स्तर-योजना के लिये स्वामित्व डेटा को अपनाना।
    • राज्य, ज़िला और ब्लॉक स्तर पर GIS कौशल क्षमता बढ़ाना

स्वामित्व योजना:

  • परिचय:
  • नोडल मंत्रालय:
    • पंचायती राज मंत्रालय (MoPR)
    • भारतीय सर्वेक्षण विभाग एक प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन एजेंसी है
  • उद्देश्य:
    • ग्रामीण भारत के लिये एक एकीकृत संपत्ति सत्यापन समाधान प्रदान करना
    • ग्रामीण क्षेत्रों में घर के मालिकोंं को 'अधिकारों का रिकॉर्ड' प्रदान करना और संपत्ति कार्ड जारी करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों का सीमांकन ड्रोन सर्वेक्षण प्रौद्योगिकी का उपयोग करके किया जाएगा।
  • विशेषता:
    • ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों का सीमांकन CORS (सतत् संचालन संदर्भ स्टेशन) नेटवर्क का उपयोग करके किया जाएगा जो 5 सेमी. तक की मानचित्रण सटीकता प्रदान करता है।
      • यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले और घर का स्वामित्त्व रखने वाले घर के मालिकों को 'अधिकारों का रिकॉर्ड' प्रदान करेगा।
    • यह वर्ष 2021-2025 के दौरान पूरे देश के लगभग 6.62 लाख गाँवों को कवर करेगा।
  • संपत्ति कार्ड का नामकरण:
    • संपत्ति कार्ड को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जैसे; हरियाणा में ‘टाइटल डीड’ (Title Deed), ‘कर्नाटक में रूरल प्रॉपर्टी ओनरशिप रिकॉर्ड्स’ (Rural Property Ownership Records- RPOR), मध्य प्रदेश में ‘अधिकार अभिलेख’ (Adhikar Abhilekh), महाराष्ट्र में ‘सनद’ (Sannad), उत्तराखंड में ‘स्वामित्व अभिलेख’ (Svamitva Abhilekh) तथा उत्तर प्रदेश में ‘घरौनी’ (Gharauni)।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा

हाल ही में मानवाधिकार परिषद (HRC) का सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) सत्र जिनेवा में आयोजित किया गया था, जहाँ सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) कार्य समूह द्वारा भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड की जाँच की गई थी।

सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR):

  • परिचय:
    • UPR एक अनूठी प्रक्रिया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की आवधिक समीक्षा की जाती है।
    • चूँकि इसकी पहली बैठक अप्रैल 2008 में हुई थी, सभी 193 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों की समीक्षा पहले, दूसरे और तीसरे यूपीआर चक्र के दौरान तीन बार की गई है।
    • इस तंत्र का अंतिम उद्देश्य सभी देशों में मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार करना और जहाँ कहीं भी मानवाधिकार उल्लंघन होते हैं, उन्हें संबोधित करना है। वर्तमान में,इस तरह का कोई अन्य सार्वभौमिक तंत्र मौजूद नहीं है।
    • समीक्षा प्रक्रिया के दौरान राज्यों ने अपनी पिछली समीक्षाओं के दौरान की गई सिफारिशों को लागू करने के लिये उठाए गए विशिष्ट कदमों की रूपरेखा तैयार की और उनके हाल के मानवाधिकारों के विकास पर प्रकाश डाला।
  • भारत के लिये यूपीआर:
    • भारत की समीक्षा के लिये प्रतिवेदक ("ट्रोइका") के रूप में समर्थन देने वाले तीन देश प्रतिनिधि हैं: सूडान, नेपाल और नीदरलैंड।
    • यह समीक्षा यूपीआर के चौथे चक्र की शुरुआत को चिह्नित करती है। भारत की पहली, दूसरी और तीसरी यूपीआर समीक्षा क्रमशः अप्रैल 2008, मई 2012 और मई 2017 में हुई थी।
  • समीक्षा का आधार:
    • राष्ट्रीय रिपोर्ट - समीक्षाधीन राज्य द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी।
    • स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों और समूहों की रिपोर्ट में निहित जानकारी, जिन्हें विशेष प्रक्रियाओं, मानवाधिकार संधि निकायों और अन्य संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं के रूप में जाना जाता है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों, क्षेत्रीय संगठनों और नागरिक समाज समूहों सहित अन्य हितधारकों द्वारा प्रदान की गई जानकारी।

समीक्षा के प्रमुख बिंदु:

  • ग्रीस, नीदरलैंड और वेटिकन सिटी ने भारत सरकार से धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और मानवाधिकार रक्षकों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया।
    • भारत लोकतांत्रिक व्यवस्था में मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और कार्यकर्त्ताओं की भूमिका की सराहना करता है, बशर्तें इन समूहों और व्यक्तियों की गतिविधियाँ देश के कानून के अनुरूप होनी चाहिये।
  • जर्मनी ने भारत में विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ महिलाओं और बालिकाओं के अधिकारों की स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त की।
  • जर्मनी ने यह भी कहा कि विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम को भारत में "संघ की स्वतंत्रता" को "अनुचित रूप से प्रतिबंधित" नहीं करना चाहिये।
    • जर्मन प्रतिनिधि ने भारत से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मज़बूत करने का आह्वान किया और कहा कि दलितों के खिलाफ भेदभाव समाप्त होना चाहिये।
  • नेपाल ने भारत से महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने और बाल विवाह को समाप्त करने के उपायों को मज़बूत करने का आह्वान किया।
  • रूस ने भारत से ऐसी नीतियाँ जारी रखने को कहा जिससे गरीबी उन्मूलन हो साथ ही 'ज़िम्मेदार कॉरपोरेट व्यवहार' का आह्वान किया।
  • भारत ने कहा कि कुछ संगठनों के खिलाफ उनकी अवैध क्रियाओं के कारण कार्रवाई की गई, जिसमें धन के दुर्भावनापूर्ण पुन: अनुमार्गण (Re-Routing) और मौजूदा कानूनी प्रावधानों, विदेशी मुद्रा प्रबंधन नियमों और भारत के कर कानून का जान-बूझकर एवं निरंतर उल्लंघन शामिल हैं।

ंयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद:

  • परिचय:
    • मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण को मज़बूत करने हेतु ज़िम्मेदार है।
  • गठन:
    • इस परिषद का गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया गया था। इसने मानवाधिकार पर पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग का स्थान लिया था।
    • मानवाधिकार हेतु उच्चायुक्त का कार्यालय (OHCHR) मानवाधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करता है।
    • OHCHR का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्य:
    • इसका गठन 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से मिलकर हुआ है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा चुने जाते हैं।
    • परिषद की सदस्यता समान भौगोलिक वितरण पर आधारित है। इसकी सीटों का वितरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है:
      • अफ्रीकी देश: 13 सीटें
      • एशिया-प्रशांत देश: 13 सीटें
      • लैटिन अमेरिकी और कैरेबियन देश: 8 सीटें
      • पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देश: 7 सीटें
      • पूर्वी यूरोपीय देश: 6 सीटें
    • परिषद के सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और लगातार दो कार्यकाल की सेवा के बाद कोई भी सदस्य तत्काल पुन: चुनाव के लिये पात्र नहीं होता है।
  • प्रक्रिया और तंत्र:
    • सलाहकार समिति: यह परिषद के "थिंक टैंक" के रूप में कार्य करता है जो इसे विषयगत मानवाधिकार मुद्दों पर विशेषज्ञता और सलाह प्रदान करता है।
    • शिकायत प्रक्रिया: यह लोगों और संगठनों को  मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मामलों को परिषद के ध्यान में लाने की अनुमति देता है।
    • संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रिया: ये विशेष प्रतिवेदक, विशेष प्रतिनिधियों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और कार्य समूहों से बने होते हैं जो विशिष्ट देशों में विषयगत मुद्दों या मानव अधिकारों की स्थितियों की निगरानी, जाँच करने, सलाह देने और सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करने का कार्य करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 नवंबर, 2022

डिजिलॉकर 

भारत सरकार के प्रामाणिक दस्‍तावेज़ विनिमय प्‍लेटफॉर्म डिजिलॉकर को अब स्‍वास्‍थ्‍य लॉकर के रूप में भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इसके अंतर्गत टीकाकरण रिकॉर्ड, डॉक्‍टर की पर्ची, लैब रिपोर्ट और अस्‍पताल से छुट्टी मिलने का विवरण सहित स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी दस्‍तावेज़ो को सुरक्षित रखने की सुविधा होगी। डिजिलॉकर द्वारा आयुष्‍मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के साथ दूसरे स्‍तर का एकीकरण पूरा होने के बाद यह संभव हो पाया है। इससे पूर्व डिजिलॉकर ने ABDM के साथ पहले स्‍तर का एकीकरण पूरा किया था जिसके तहत आयुष्‍मान भारत स्‍वास्‍थ्‍य अकाउंट को इस प्‍लेटफॉर्म के साथ जोड़ा गया था। आयुष्‍मान भारत स्‍वास्‍थ्‍य अकांउट (ABHA) से लगभग 13 करोड़ उपभोक्‍ता जुड़े हुए हैं। डिजिलॉकर की इस नई प्रणाली से उपभोक्‍ता इसे अपने व्‍यक्तिगत स्‍वास्‍थ्‍य रिकॉर्ड एप के रूप में उपयोग कर पाएँगे। इसके अलावा ABHA धारक अपने स्‍वास्‍थ्‍य रिकॉर्ड को आयुष्‍मान भारत डिजिटल मिशन के साथ भी लिंक कर सकते हैं। उपभोक्‍ता इस एप के माध्‍यम से अपने पुराने स्‍वास्‍थ्‍य रिकॉर्ड स्‍कैन और अपलोड भी कर सकते हैं। साथ ही वे कुछ स्‍वास्‍थ्‍य रिकॉर्ड को ABDM पंजीकृत स्‍वास्‍थ्‍य पेशेवरों के साथ साझा कर सकते हैं।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 

भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के अवसर पर प्रत्येक वर्ष 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। अबुल कलाम आज़ाद विद्वान, शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत वर्ष 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। मौलाना आज़ाद ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) और स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE), भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी एवं वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की स्थापना में भी भूमिका निभाई। पहले राष्ट्रीय शिक्षा दिवस समारोह का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 11 नवंबर, 2008 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में किया था, इसके साथ ही केंद्र सरकार ने 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।

विश्व विज्ञान दिवस

समाज में विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका और वैज्ञानिक मुद्दों पर बहस में आम जनता को संलग्न करने के साथ दैनिक जीवन में विज्ञान की प्रासंगिकता को रेखांकित करने तथा शांति व विकास हेतु प्रत्येक वर्ष 10 नवंबर को विश्व विज्ञान दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2022 के लिये इस दिवस की थीम "सतत विकास के लिये बुनियादी विज्ञान" रखी गई है। सर्वप्रथम 10 नवंबर, 2002 को यूनेस्को (UNESCO) के तत्त्वावधान में दुनिया भर में मनाया गया यह दिवस वर्ष 1999 में बुडापेस्ट में विज्ञान विषय पर आयोजित विश्व सम्मेलन का परिणाम है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को विज्ञान के विकास से अवगत कराने और  पृथ्वी को लेकर हमारी समझ को व्यापक बनाने में विज्ञान की भूमिका  पर प्रकाश डालना है।


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