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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 09 Aug, 2024
  • 28 min read
प्रारंभिक परीक्षा

पेरिस ओलंपिक में वज़न-मापन विवाद

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, विनेश फोगाट (भारतीय पहलवान) दूसरी बार वज़न कम करने में विफल रहीं, जिसके कारण वह स्वर्ण पदक मुकाबले में भाग नहीं ले पाईं, जिससे पेरिस ओलंपिक में पदक जीतने की उनकी संभावना समाप्त हो गई। वज़न-मापन के समय उनका वज़न 100 ग्राम अधिक था।

पेरिस ओलंपिक में वज़न-मापन विवाद क्या है?

  • पृष्ठभूमि: पेरिस ओलंपिक में 50 किलोग्राम में स्विच करने से पहले वह हाल ही में 53 किलोग्राम वर्ग में भाग ले रही थीं ।
    • फोगाट का सामान्य वज़न लगभग 55-56 किलोग्राम है, जिसे उन्हें प्रतियोगिता के दिनों में कम कर 50 किलोग्राम तक करना पड़ता है।
    • अपने कठोर प्रशिक्षण के कारण, वह पहले से ही बेहद दुबली हैं और उनके शरीर में बहुत कम वसा बचा है।
  • वज़न घटाने के तरीके: एथलीट आमतौर पर विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं-
    • निर्जलीकरण: पानी का सेवन कम करना और पानी का वज़न कम करने के लिये साॅना या स्वेट सूट का उपयोग करना।
    • आहार प्रतिबंध: कैलोरी का सेवन सीमित करना और कम कार्बोहाइड्रेट वाले आहार का सेवन करना।
    • व्यायाम: कैलोरी बर्न करने और तेज़ी से वज़न कम करने के लिये कठोर व्यायाम करना।

पेरिस ओलंपिक 2024 में वज़न-मापन क्या है?

  • वज़न मापने के UWW नियम: यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के ओलंपिक वज़न मापने के नियमों के अनुसार, पहलवानों को अपनी प्रतियोगिता की सुबह वज़न मापना होता है।
    • एथलीट को सभी प्रतियोगिता के दिनों में श्रेणी सीमा के बराबर या उससे कम वज़न मापना होता है। ओलंपिक कुश्ती प्रतियोगिताएँ दो दिनों में होती हैं, जिसके लिये दोनों दिनों में वज़न मापना होता है।
    • फोगाट ने पहले दिन वज़न माप लिया, लेकिन दूसरे दिन 50 किलोग्राम की सीमा को पूरा करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।
  • वज़न माप में विफल होने के परिणाम: किसी भी दिन वज़न माप में विफल होने वाले एथलीट अयोग्य घोषित कर दिये जाते हैं और उन्हें बिना रैंक के अंतिम स्थान दिया जाता है, जब तक कि उन्हें पहले दिन चोट ना लगी हो ।
  • चोट अपवाद: पहले दिन घायल हुए एथलीट को दूसरे वज़न माप से छूट प्रदान की जाती है और इस तरह के मामले में संबंधित एथलीट के परिणाम को बरकरार रखा जा सकता है। लेकिन यदि उन्हें पहले  दिन के बाद चोट लगती है तो ऐसे मामले में एथलीट का दूसरे वज़न माप में शामिल होना आवश्यक हो जाता है।
  • ओलंपिक कुश्ती के लिये प्रारूप में बदलाव: वर्ष 2017 से पहले, प्रत्येक भार वर्ग में ओलंपिक कुश्ती प्रतियोगिताएँ एक ही दिन में होती थीं, जिसमें एथलीट केवल एक बार वज़न मापते थे। वर्ष 2017 में UWW ने निष्पक्षता और एथलीट सुरक्षा में सुधार के लिये दो दिवसीय प्रारूप में बदलाव किया, जिसके तहत एथलीट्स को प्रतियोगिता के दोनों दिन अपना वज़न दर्ज कराना अनिवार्य कर दिया गया।

पहले दिन वज़न सटीक होने के बाद किसी पहलवान का वज़न किलोग्राम में कैसे बढ़ सकता है?

  • पुनर्जलीकरण और रिकवरी: पहले दिन वज़न करने के बाद, पहलवान तरल पदार्थ, इलेक्ट्रोलाइट्स और कार्बोहाइड्रेट के साथ पुनर्जलीकरण एवं पुनःपूर्ति करते हैं, जिससे खोया हुआ अधिकांश वज़न वापस आ जाता है।
  • वज़न घटाने की अस्थायी प्रकृति: निर्जलीकरण के माध्यम से खोया हुआ वज़न ज्यादातर पानी का वज़न होता है, जो सामान्य जलयोजन और खाने के बाद फिर से प्राप्त हो जाता है, जिससे दूसरे दिन वज़न बढ़ जाता है।
  • प्रदर्शन पर प्रभाव: हालाँकि पुनर्जलीकरण ऊर्जा को बहाल करता है लेकिन वज़न में तीव्रता से होने वाला परिवर्तन प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। यदि इसे सही तरीके से प्रबंधित नहीं किया जाता तो थकान, ऐंठन और कम सहनशीलता जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • रणनीतिक लाभ: कुछ पहलवान प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिये वज़न में कटौती करते हैं और प्रतियोगिता के दिन अधिक वज़न बढा लेते है जिससे कम वज़न वाले प्रतिद्वंदियों के खिलाफ शक्ति और बढ़ जाती है।

नोट: 

  • पेरिस ओलंपिक में, स्वप्निल कुसाले ने पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन स्पर्धा में कांस्य पदक जीता।
  • भारत की पुरुष हॉकी टीम ने स्पेन को हराकर काँस्य पदक जीता और नीरज चोपड़ा ने पेरिस ओलंपिक- 2024 में भाला फेंक में रजत पदक जीता।

और पढ़ें: मनु भाकर ने जीता ओलंपिक काँस्य पदक, वर्ष 2036 ओलंपिक खेलों की मेज़बानी के लिये भारत की महत्त्वाकांक्षा


प्रारंभिक परीक्षा

सुक्रालोज़: मधुमेह रोगियों हेतु एक आशाजनक मधुरक

स्रोत: द हिंदू

भारत में हाल ही में किये गए एक अध्ययन में टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के बीच सुक्रोज़ (टेबल शुगर) के विकल्प के रूप में गैर-पोषक मधुरक सुक्रालोज़ के उपयोग के संभावित लाभों पर प्रकाश डाला गया।

  • यह अध्ययन गैर-मधुमेह रोगियों में वज़न नियंत्रण के लिये गैर-पोषक मधुरक (Non-Nutritive Sweeteners- NNS) के प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल की चेतावनी के विपरीत है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या थे?

  • अध्ययन में हस्तक्षेप और नियंत्रण समूहों के बीच रक्त ग्लूकोज़ नियंत्रण के प्रमुख संकेतक, ग्लूकोज़ या HbA1c के स्तर में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं पाया गया
  • सुक्रालोज़ का उपयोग करने वाले प्रतिभागियों के शरीर के वज़न, कमर की परिधि और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) में मामूली सुधार देखा गया।
  • सुक्रालोज़ का विवेकपूर्ण उपयोग समग्र कैलोरी और चीनी के सेवन को कम करने में मदद कर सकता है, जो मधुमेह के प्रभावी प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • महत्त्व: ये निष्कर्ष भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ मधुरक का प्रयोग आम तौर पर कम होता है। अध्ययन से पता चलता है कि सुक्रालोज़ देश में मधुमेह रोगियों के लिये आहार अनुपालन में सुधार और वज़न प्रबंधन में सहायता कर सकता है।

चीनी तथा चीनी के विकल्प क्या हैं?

  • चीनी: यह फाइबर और स्टार्च के साथ कार्बोहाइड्रेट का एक रूप है। जबकि कार्बोहाइड्रेट हमारे स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, चीनी स्वयं आवश्यक नहीं है।
    • सफेद टेबल शुगर (चीनी), जिसे सुक्रोज़ के रूप में जाना जाता है, सबसे व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला मधुरक है।
    • अन्य प्राकृतिक मधुरक में शामिल हैं: फ्रेक्टोज़, गैलेक्टोज़, ग्लूकोज़, लैक्टोज़, माल्टोज़।
  • चीनी के विकल्प:
    • चीनी के विकल्प चीनी से जुड़ी कैलोरी के बिना मीठा स्वाद देते हैं, कुछ में बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती है।
    • वे आमतौर पर ‘चीनी मुक्त’, ‘कीटो’, ‘कम कार्ब’ या ‘आहार’ के रूप में लेबल किये गए उत्पादों में पाए जाते हैं।
  • चीनी के विकल्प के प्रकार:
    • कृत्रिम मधुरक : इन्हें गैर-पोषक मधुरक  (NNS) के रूप में भी जाना जाता है, इन्हें मुख्य रूप से प्रयोगशालाओं में रसायनों से संश्लेषित किया जाता है, या प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से प्राप्त किया जाता है। ये टेबल शुगर की तुलना में 200 से 700 गुना अधिक मीठे हो सकते हैं।
      • उदाहरण: एसेसल्फेम पोटेशियम (Ace-K), एडवांटेम, एस्पार्टेम, नियोटेम, सैकरीन, सुक्रालोज़ आदि।
    • शुगर एल्कोहल: ये कृत्रिम रूप से चीनी से प्राप्त होते हैं और कई प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में उपयोग किये जाते हैं। ये कृत्रिम मधुरक की तुलना में कम मीठे होते हैं और च्युइंग-गम व हार्ड कैंडी जैसे उत्पादों को बनावट एवं स्वाद प्रदान करते हैं।
      • उदाहरण: एरिथ्रिटोल, आइसोमाल्ट, लैक्टिटोल, माल्टिटोल, सोर्बिटोल और ज़ाइलिटोल आदि।
    • नोवेल मधुरक : ये प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं और कृत्रिम एवं प्राकृतिक दोनों प्रकार के मधुरक के लाभ प्रदान करते हैं। इनमें कैलोरी और मधुरकता कम होती है, जिससे वज़न और रक्त शर्करा में वृद्धि नहीं होती है तथा ये सामान्यतः कम प्रसंस्कृत होते हैं जो उनके प्राकृतिक स्रोतों से काफी मिलते जुलते हैं।
      • उदाहरण: एलुलोज़, मॉन्क फ्रूट, स्टीविया, टैगेटोज़ आदि

मधुमेह क्या है?

  • परिचय:
    • मधुमेह या मधुमेह मेलेटस (DM) एक चिकित्सीय विकार है, जिसमें इंसुलिन का अपर्याप्त उत्पादन या इंसुलिन के प्रति असामान्य अनुक्रिया होती है, जिसके कारण रक्त शर्करा   (ग्लूकोज़) का स्तर बढ़ जाता है।
    • जबकि 70–110 mg/dL रक्त ग्लूकोज़ (उपवास) को सामान्य माना जाता है, 100 से 125 mg/dL के बीच रक्त ग्लूकोज़ स्तर को प्री-डायबिटीज़ माना जाता है तथा 126 mg/dL या इससे अधिक के ग्लूकोज़ स्तर को मधुमेह के रूप में परिभाषित किया गया है।

मधुमेह के प्रकार

टाइप 1 मधुमेह

टाइप 2 मधुमेह

कारण

इसमें अग्नाशय इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है, क्योंकि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्नाशय में इंसुलिन बनाने वाली लैंगरहैंस की द्विपिकाओं पर हमला करती है।

इसमें अग्नाशय कम इंसुलिन बनाता है और शरीर इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है।

व्यापकता

टाइप 1 मधुमेह जिससे लगभग 5-10% लोग प्रभावित हैं, आमतौर पर 30 वर्ष की आयु से पहले विकसित हो जाता है, हालाँकि यह इस उम्र के बाद भी विकसित हो सकता है।

टाइप 2 मधुमेह अधिक आम है, लेकिन यह आमतौर पर 30 वर्ष की आयु के बाद विकसित होता है और उम्र के साथ बढ़ता जाता है।

रोकथाम

इसकी रोकथाम नहीं की जा सकती।

जीवनशैली में बदलाव करके इसकी रोकथाम की जा सकती है।


प्रारंभिक परीक्षा

वनाग्नि के कारण उष्ण-कपासी वर्षा मेघ का विरचन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में हुई तीव्र वनाग्नि से उष्ण-कपासी वर्षा मेघ (पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस बादल: pyroCbs) बन गए, जिनमें भीषण गर्जना और अधिक अग्नि प्रज्ज्वलित करने की क्षमता है।

उष्ण-कपासी वर्षा (पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस) मेघ क्या हैं?

  • परिभाषा: पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस बादल पृथ्वी की सतह से अत्यधिक ऊष्मा द्वारा निर्मित गर्जन वाले बादल हैं। इन्हें अग्निछाया या अग्नि मेघ भी कहा जाता है।
    • ये कपासी वर्षा मेघ (Cumulonimbus Clouds) के समान ही बनते हैं, लेकिन तीव्र ऊष्मा के परिणामस्वरूप जो प्रबल अपड्राफ्ट (मेघ का निर्माण) होता है, वह या तो भीषण वनाग्नि या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण होता है।
  • इसके विरचन के लिये परिस्थितियाँ: 
    • उष्ण-कपासी वर्षा (पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस) मेघ अत्यधिक ऊष्मा (जैसे वनाग्नि) के कारण बनते हैं।
      • प्रत्येक वनाग्नि से ये बादल नहीं बनते, तापमान 800 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा होना चाहिये, जैसा कि वर्ष 2019-2020 में ऑस्ट्रेलिया में लगी वनाग्नि में देखा गया था।
    • आग की तीव्र गर्मी से गर्म वायु तीव्रता से ऊपर की ओर उठती है, जिससे राख, धुआँ और जल वाष्प निकलती है, जो ठंडा होने पर पाइरोक्यूम्यलस बादलों में संघनित हो जाती है। 
    • ये बादल 50,000 फीट तक पहुँच सकते हैं और तड़ित और तीव्र वायु के साथ गरज के साथ वर्षा करते हैं। 
  • प्रभाव और विशेषताएँ: 
    • पाइरो-क्यूमुलो-निम्बस मेघ तड़ित उत्पन्न कर सकते हैं जो कई किलोमीटर दूर नई वनाग्नि को प्रज्वलित कर सकते हैं। 
    • वे आम तौर पर कम वर्षा करते हैं, जिससे वनाग्नि के शमन के बजाय फैलने में मदद मिलती है। 
    • ये बादल तेज़ वायु को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे वनाग्नि का प्रबंधन तेज़ और जटिल हो जाता है।

उष्ण-कपासी वर्षा मेघ घटनाओं की आवृति अधिक बार क्यों हो रही हैं?

  • बढ़ता तापमान और विस्तारित फायर सीज़न: ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ता है और शुष्क अवधि लंबी होती है, जिससे शुष्क परिस्थितियां उत्पन्न  होती हैं, जिससे वनाग्नि की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है तथा उष्ण-कपासी वर्षा मेघ निर्माण के लिये अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं।
  • वनस्पति में वृद्धि और अनावृष्टि की स्थिति: उष्ण तापमान और बदलते वर्षा प्रतिरूप से वनस्पति में वृद्धि होती है, जो वनाग्नि के लिये ईंधन के रूप में कार्य करती है। 
    • इसके अतिरिक्त, लगातार अनावृष्टि के कारण वन और घास के मैदान सूख जाते हैं, जिससे उनमें आग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • चरम मौसम पैटर्न: तीव्र और निरंतर हीट वेव के साथ-साथ परिवर्तित वायु पैटर्न के कारण वनाग्नि की घटना हो सकती है और यह तेज़ी से फैल सकती है, जिससे उष्ण-कपासी वर्षा मेघ बनने की संभावना बढ़ जाती है।
  • मानवीय गतिविधियाँ: निर्वनीकरण, भूमि उपयोग में परिवर्तन और शहरीकरण मानव-जनित आग की संभावना को बढ़ाकर तथा अप्रत्यक्ष रूप से उष्ण-कपासी वर्षा मेघ निर्माण में योगदान देकर वनाग्नि के जोखिम को बढ़ाते हैं।

और पढ़ें: वनाग्नि: एक गंभीर चिंता

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कार्बन मोनोऑक्साइड
  2. मीथेन
  3. ओज़ोन
  4. सल्फर डाइऑक्साइड

उपरोक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वायुमंडल में उत्सर्जित होती हें?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

इटली में पंथ मंदिर की खोज

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

हाल ही में पुरातत्वविदों ने इटली के टस्कनी में सासो पिनजुटो नेक्रोपोलिस में प्राचीन एट्रस्केन सभ्यता से संबंधित 2,700 वर्ष पुराना एट्रस्केन पंथ मंदिर (या ओइकोस) खोजा है।

  • उन्होंने 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर हेलेनिस्टिक काल (323-31 ईसा पूर्व) तक के 120 से अधिक कक्षीय कब्रों की खोज की।

इट्रस्केन सभ्यता:

  • यह मध्य इटली (आठवीं से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में तिबर (Tiber) और आर्नो (Arno) नदियों के बीच तथा एपेनिन पर्वतों (Apennine Mountains) के पश्चिम और दक्षिण में फली-फूली।
  • यह सभ्यता, एक साझा भाषा और संस्कृति से एकजुट शहर-राज्यों का एक संघ था, जिसका उत्तरोत्तर रोमन सभ्यता पर बहुत प्रभाव पड़ा।

एट्रस्केन मंदिर:

  • एट्रस्केन मंदिर (Etruscan temples), जो आमतौर पर आयताकार होते थे, टफैसियस ओपस क्वाड्रेटम नींव (वर्गाकार कटे हुए टफ, एक नरम ज्वालामुखीय चट्टान से बने ठोस आधार) पर बनाए गए थे।
  • महत्त्वपूर्ण दृश्यता और प्रतीकात्मक कारणों से इन्हें अक्सर जमीन से ऊँचाई पर रखा जाता था, ये मंदिर आमतौर पर शवादान स्थलों के पास होते थे, जो उन्हें अंत्येष्टि प्रथाओं से जोड़ते थे।
  • धार्मिक और उत्सव के दृश्यों को दर्शाती उभरी हुई बहुरंगी मिट्टी की पट्टियाँ एक सामान्य सजावटी विशेषता थी।


रैपिड फायर

BIMSTEC मुक्त व्यापार समझौते पर त्वरित क्रियान्वयन

स्रोत: पी.आई.बी.

भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में आयोजित बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (BIMSTEC) व्यापार शिखर सम्मेलन में BIMSTEC मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर त्वरित गति से वार्ता की अपील की।

  • उन्होंने व्यापार वार्ता समिति और व्यापार समुदाय से अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने तथा क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिये एक अधिमान्य/तरज़ीही व्यापार समझौते पर विचार करने का आह्वान किया।
  • भारत का BIMSTEC देशों के साथ कुल व्यापार वर्ष 2023-24 में 44.32 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • थाईलैंड इस ब्लॉक में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, जिसका निर्यात 5.04 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा आयात 9.91 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • बांग्लादेश का स्थान दूसरे स्थान पर था, जिसका निर्यात 11.06 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा आयात 1.84 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिससे भारत के पक्ष में 9.22 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार संतुलन बना।

BIMSTEC मुक्त व्यापार समझौता (FTA):

  • इस पर फरवरी 2004 में हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इसमें सदस्य देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और आर्थिक सहयोग पर FTA पर वार्ता का प्रावधान शामिल है।
  • BIMSTEC देशों ने फ्रेमवर्क समझौते के अनुसार वार्ता को आगे बढ़ाने के लिये व्यापार वार्ता समिति का गठन किया।

और पढ़ें: BIMSTEC


रैपिड फायर

जैसलमेर किला

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

राजस्थान के ऐतिहासिक जैसलमेर किले की दीवारें भारी बारिश के कारण ढह गईं, जिसके कारण इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के बेहतर रखरखाव और संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। उचित रखरखाव के अभाव में दीवारें कमज़ोर होकर ढह गईं।  

  • जैसलमेर किला भारत का एकमात्र ‘सक्रिय/जीवंत’ किला है, जहाँ आज भी कई निवासी रहते हैं, जिससे इस किले का रखरखाव उनकी सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • राजा रावल सिंह द्वारा 1156 ई. में निर्मित इस किले का निर्माण राज्य को आक्रमणों से बचाने के लिये रणनीतिक रूप से किया गया था। यह भारत को मध्य एशिया से जोड़ने वाले सिल्क रूट पर एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
      • सूर्य प्रकाश के कारण रंग बदलने वाले पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह किला सुनहरा दिखाई देता है, जिसके कारण इसे "सोनार किला" या "स्वर्ण किला" नाम दिया गया है।
    • राज महल (रॉयल पैलेस) किले के भीतर सबसे बड़ा महल है, जिसमें अलंकृत बालकनियाँ हैं और इस किले में जटिल नक्काशी की गई है। यह मध्ययुगीन राजस्थानी वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है जिसमें इस्लामी और राजपूत शैली के प्रभावों का एक उल्लेखनीय मिश्रण है।
  • किले के रखरखाव के लिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ज़िम्मेदार है। 
  • चित्तौड़, कुंभलगढ़, रणथंभौर, गागरोन, आमेर और जैसलमेर किलों सहित राजस्थान के पहाड़ी किलों को वर्ष 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था।
    • जैसलमेर किला, चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ व रणथंभौर किलों के साथ प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष (राष्ट्रीय महत्त्व की घोषणा) अधिनियम, 1951 के तहत भारत के राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक के रूप में संरक्षित हैं।

और पढ़ें: MP के 6 नए स्थल और यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल


रैपिड फायर

SIMI पर प्रतिबंध बढ़ा

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

एक न्यायिक अधिकरण ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर लगाए गए प्रतिबंध को पाँच वर्ष के लिये बढ़ा दिया है।

  • इसमें कहा गया है कि संगठन ने इस्लाम के लिये 'जेहाद' के अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ा है और यह भारत में इस्लामी शासन की स्थापना हेतु कार्य करना जारी रखेगा।
  • उक्त अधिकरण का गठन विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA), 1967 के तहत किया गया था।   
    • UAPA का उद्देश्य भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को खतरा पहुँचाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों को रोकना तथा उनका मुकाबला करना है।  
  • UAPA के प्रावधानों के तहत SIMI को "गैरकानूनी संगठन" घोषित करने की सिफारिश 10 राज्य सरकारों ने की है। 
  • SIMI को पहली बार वर्ष 2001 में गैरकानूनी घोषित किया गया था और तब से प्रतिबंध को समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है। 
  • SIMI की स्थापना 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जमात-ए-इस्लामी-हिंद (JEIH) से जुड़े एक युवा समूह के रूप में की गई थी, जो वर्ष 1993 में स्वतंत्र हो गया।

और पढ़ें: गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम का आकलन


रैपिड फायर

कस्तूरी कॉटन भारत पहल

स्रोत : पीआई बी 

कपड़ा मंत्रालय का कस्तूरी कॉटन भारत कार्यक्रम भारतीय कपास की ट्रेसबिलिटी, प्रमाणन और ब्रांडिंग में एक अग्रणी प्रयास है। 

  • यह कॉटन की ट्रेसबिलिटी और प्रमाणन को बढ़ाने के लिये भारत सरकार (कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया), व्यापार निकायों और उद्योगों के बीच एक सहयोग है। 
  • एंड-टू-एंड ट्रेसबिलिटी और लेनदेन प्रमाणन के लिये क्यूआर कोड सत्यापन और ब्लॉकचेन प्लेटफाॅर्म वाली एक माइक्रोसाइट विकसित की गई है। 
  • कार्यक्रम को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर बढ़ावा दिया जाता है, जिसमें राज्य-विशिष्ट के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर धन आवंटित किया जाता है। 
  • लगभग 343 आधुनिकीकृत जिनिंग और प्रेसिंग इकाइयाँ पंजीकृत हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश की 15 इकाइयाँ शामिल हैं। 
    • आंध्र प्रदेश से लगभग 100 गाँठों को कस्तूरी कॉटन भारत ब्रांड के तहत प्रमाणित किया गया है। 
  • भारत में कॉटन (कपास) एक महत्त्वपूर्ण फसल है, जो वैश्विक उत्पादन में 25% का योगदान देती है और अपने आर्थिक मूल्य के लिये इसे "व्हाइट-गोल्ड" के रूप में जाना जाता है। यह गर्म, धूप वाले मौसम और विभिन्न प्रकार की मृदा  में पनपती है, लेकिन जलभराव के प्रति संवेदनशील होती है।

और पढ़ें: कस्तूरी कॉटन द्वारा भारत के कॉटन सेक्टर को बढ़ावा, भारत में कॉटन उत्पादन


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