प्रारंभिक परीक्षा
ब्लू इकोनॉमी 2.0
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतरिम बजट की हालिया प्रस्तुति में एक एकीकृत और बहु-क्षेत्रीय रणनीति को नियोजित करते हुए, बहाली, अनुकूलन उपायों, तटीय जलीय कृषि तथा समुद्री कृषि पर केंद्रित एक नई योजना की शुरुआत के माध्यम से ब्लू इकोनॉमी/नीली अर्थव्यवस्था 2.0 को आगे बढ़ाने पर महत्त्वपूर्ण ज़ोर दिया गया।
नीली अर्थव्यवस्था क्या है?
- परिचय:
- नीली अर्थव्यवस्था या ‘ब्लू इकोनॉमी’ अन्वेषण, आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और परिवहन के लिये समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग के साथ ही समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के संरक्षण को संदर्भित करती है।
- भारत में, नीली अर्थव्यवस्था में नौवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन और अपतटीय तेल एवं गैस अन्वेषण सहित कई क्षेत्र शामिल हैं।
- यह सतत् विकास लक्ष्य (SDG 14) में परिलक्षित होता है, जो स्थायी सतत् विकास के लिये महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण तथा उपयोग को दर्शाता है।
- नीली अर्थव्यवस्था की आवश्यकता:
- भारत में 7,500 किमी. लंबी तटरेखा है, साथ ही इसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) 2.2 मिलियन वर्ग किमी. तक विस्तृत हैं। इसके अतिरिक्त भारत 12 प्रमुख बंदरगाहों तथा 200 से अधिक अन्य बंदरगाहों एवं 30 शिपयार्ड और विविध समुद्री सेवा प्रदाताओं का एक व्यापक केंद्र है।
- यह उच्च उत्पादकता और महासागर के स्वास्थ्य के संरक्षण के लिये महासागर विकास रणनीतियों को समृद्ध करने का समर्थन करता है।
- पृथ्वी की सतह का तीन-चौथाई हिस्सा महासागरों से बना है, जिसमें कुल मौजूद जल का 97% हिस्सा है और साथ ही पृथ्वी के 99% जीवन के लिये आवास प्रदान करता है।
- विकास संभावनाएँ:
- विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में वर्तमान में वैश्विक महासागर अर्थव्यवस्था का वार्षिक मूल्य लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। अनुमानों के अनुसार वर्ष 2030 तक दोगुना वृद्धि के साथ इसका मूल्य 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने के आसार हैं।
- समुद्री संपत्ति, जिसे नैसर्गिक पूंजी भी कहा जाता है, का कुल मूल्य 24 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आँका गया है।
- विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में वर्तमान में वैश्विक महासागर अर्थव्यवस्था का वार्षिक मूल्य लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। अनुमानों के अनुसार वर्ष 2030 तक दोगुना वृद्धि के साथ इसका मूल्य 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने के आसार हैं।
नीली अर्थव्यवस्था 2.0 क्या है?
- परिचय:
- इसका उद्देश्य तटीय क्षेत्रों में जलवायु-लचीली गतिविधियों तथा सतत् विकास को बढ़ावा देना है।
- समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों को जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अत्यधिक दोहन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप समुद्री संसाधनों की स्थिरता तथा लचीलेपन की रक्षा के लिये समन्वित कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है।
- घटक:
- जीर्णोद्धार तथा अनुकूलन:
- इस योजना के केंद्र में जीर्णोद्धार और अनुकूलन संबंधी उपाय शामिल हैं जिनका उद्देश्य समुद्री जल के बढ़ते स्तर तथा खराब मौसम की घटनाओं के प्रभावों को कम करने के लिये प्रभावित तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का जीर्णोद्धार/बहाल करना एवं अनुकूलन रणनीतियों को कार्यान्वित करना शामिल है।
- ये प्रयास जैवविविधता के संरक्षण, तटीय समुदायों की सुरक्षा तथा समुद्री आवासों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- तटीय जलकृषि और समुद्रीकृषि का विस्तार:
- नीली अर्थव्यवस्था 2.0 योजना के तहत तटीय जलकृषि और समुद्रीकृषि का विस्तार किया जाएगा जो समुद्री भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए जो वन्य मछली की मांग को कम करेगा।
- सतत् जलीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देकर और उन्हें पर्यटन के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा जैसे अन्य क्षेत्रों के साथ एकीकृत करके समुद्री संसाधनों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हुए तटीय समुदायों के लिये आर्थिक अवसर सृजित करना है।
- एकीकृत एवं बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण:
- नीली अर्थव्यवस्था 2.0 योजना द्वारा अपनाया गया एकीकृत और बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों की परस्पर संबद्धता तथा सरकारी विभागों, उद्योगों एवं नागरिक समाज में समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता को पहचानता है।
- सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देकर तटीय क्षेत्रों में सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हितधारकों के सामूहिक प्रयासों का उपयोग करती है।
- जीर्णोद्धार तथा अनुकूलन:
नीली अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें क्या हैं?
- डीप ओशन मिशन
- सागरमाला परियोजना
- ‘ओ स्मार्ट’ (O-SMART)
- सतत् विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर भारत-नॉर्वे कार्यबल
- ‘नाविक’ (NavIC)
- सतत् विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर भारत-नॉर्वे कार्यबल
- राष्ट्रीय मत्स्य नीति
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ब्लू कार्बन क्या है? (2021) (a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा प्रगृहीत कार्बन उत्तर:(a) मेन्स:प्रश्न. “नीली क्रांति” को परिभाषित करते हुए, भारत में मत्स्यपालन विकास की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018) |
प्रारंभिक परीक्षा
कैमरून ने नागोया प्रोटोकॉल को अपनाया
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की लगभग 11,000 प्रजातियों के साथ समृद्ध जैवविविधता का दावा करने वाले मध्य अफ्रीकी देश कैमरून ने हाल ही में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCBD) के तहत एक समझौते, पहुँच और लाभ साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को अपनाया है।
- नागोया प्रोटोकॉल का उद्देश्य आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे को बढ़ावा देना है।
कैमरून को नागोया प्रोटोकॉल अपनाने की क्या आवश्यकता थी?
- पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण:
- दवाओं के निर्माण अथवा फसल उत्पादन के लिये विभिन्न प्रकार के पौधों, जानवरों और रोगाणुओं में पाए जाने वाले कई आनुवंशिक संसाधनों अथवा आनुवंशिक जानकारी को पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं। पारंपरिक ज्ञान से तात्पर्य उस समझ, आविष्कार तथा तरीकों से है जो स्वदेशी एवं स्थानीय समुदायों ने इन संसाधनों के संबंध में विकसित की है।
- बायोपाइरेसी को रोकना और संसाधनों को समान रूप से साझा करना:
- बायोप्रोस्पेक्टिंग (जैव-संभावना) हेतु दवाओं, भोजन या अन्य उत्पादों के नए स्रोतों के लिये जैविक सामग्री की खोज आनुवंशिक संसाधन तथा पारंपरिक ज्ञान दोनों के लिये लाभदायक हैं। जैवविविधता के सतत् उपयोग और संरक्षण को बायोप्रोस्पेक्टिंग द्वारा भी सहायता प्रदान की जा सकती है। उदाहरण के लिये:
- प्रूनस अफ्रीकाना, जो कि कैमरून का स्थानीय पौधा है, का उपयोग प्रोस्टेट कैंसर की दवाएँ बनाने के लिये किया जाता है, लेकिन विदेशी कंपनियाँ इसका एक किलोग्राम 2.11 अमेरिकी डॉलर में खरीदती हैं और इससे बनी दवाएँ 405 अमेरिकी डॉलर में बेचती हैं।
- कैमरून का बुश मैंगो औषधीय गुणों से भरपूर है। जिसकी पत्तियों, जड़ों एवं छाल का उपयोग दर्दनिवारक के रूप में किया जाता है। इस फल ने यूरोपीय फार्मास्युटिकल और कॉस्मेटिक कंपनियों का ध्यान आकर्षित किया है।
- बायोप्रोस्पेक्टिंग (जैव-संभावना) हेतु दवाओं, भोजन या अन्य उत्पादों के नए स्रोतों के लिये जैविक सामग्री की खोज आनुवंशिक संसाधन तथा पारंपरिक ज्ञान दोनों के लिये लाभदायक हैं। जैवविविधता के सतत् उपयोग और संरक्षण को बायोप्रोस्पेक्टिंग द्वारा भी सहायता प्रदान की जा सकती है। उदाहरण के लिये:
- स्थानीय समुदायों को लाभ पहुँचाना:
- जिन कस्बों में पौधे एकत्रित किये गए थे, उन्हें फर्मों के राजस्व से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
- नागोया प्रोटोकॉल को अपनाने से जैवविविधता पर आधारित नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्वदेशी तथा स्थानीय समुदायों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करने में सहायता प्राप्त होती है।
UNCBD के तहत नागोया प्रोटोकॉल क्या है?
- जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD):
- CBD, जैवविविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
- जैवविविधता का संरक्षण।
- जैवविविधता के घटकों का सतत् उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
- लगभग सभी देशों ने इसकी पुष्टि की है (अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है)।
- भारत ने CBD के प्रावधानों को प्रभावी करने के लिये ‘जैवविविधता अधिनियम 2002’ लागू किया।
- CBD का सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत संचालित होता है।
- जैविक विविधता अभिसमय के तहत पार्टियांँ (देश) नियमित अंतराल पर मिलती हैं और इन बैठकों को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (Conference of Parties- COP) कहा जाता है।
- वर्ष 2000 में जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के रूप में ज्ञात अभिसमय के लिये एक पूरक समझौता अपनाया गया था।
- यह प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप संशोधित जीवित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैविक विविधता की रक्षा करता है।
- CBD, जैवविविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
- नागोया प्रोटोकॉल:
- नागोया प्रोटोकॉल (COP10) को आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत बँटवारा के लिये नागोया, जापान में COP10 में अपनाया गया था।
- यह न केवल CBD द्वारा कवर किये गए आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि CBD द्वारा कवर किये गए आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े पारंपरिक ज्ञान (TK) तथा इसके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर भी लागू होता है।
- आनुवंशिक संसाधनों पर नागोया प्रोटोकॉल के साथ, COP-10 ने जैवविविधता को बचाने के लिये सभी देशों द्वारा कार्रवाई हेतु दस वर्ष की रूपरेखा को भी अपनाया।
- आधिकारिक तौर पर "वर्ष 2011-2020 के लिये जैवविविधता रणनीतिक योजना" के रूप में जाना जाता है, इसने 20 लक्ष्यों का एक सेट प्रदान किया, जिसे सामूहिक रूप से जैवविविधता हेतु आइची लक्ष्य (Aichi Targets for Biodiversity) के रूप में जाना जाता है।
- जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) के दौरान कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (GBF) का अंगीकरण किया गया।
- इस फ्रेमवर्क में वर्ष 2050 तक हासिल करने हेतु चार लक्ष्य तथा वर्ष 2030 के लिये निर्धारित तेईस लक्ष्य शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल उत्तर: (c) प्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)’ का/के क्या महत्त्व है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणीजात के संरक्षण में जैवविविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018) प्रश्न. 'पर्यावरणीय नैतिकता' से क्या तात्पर्य है? इसका अध्ययन करना क्यों आवश्यक है? पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से किसी एक पर्यावरणीय मुद्दे की विवेचना कीजिये। (2015) |
रैपिड फायर
ग्रेप्स-3 एक्सपेरिमेंट
स्रोत: Phys.org
टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (Tata Institute of Fundamental Research- TIFR) द्वारा भारत के ऊटी में संचालित ग्रेप्स-3 (GRAPES-3) एक्सपेरिमेंट ने कॉस्मिक-रे प्रोटॉन स्पेक्ट्रम में एक नई विशेषता की खोज की है।
- इस विशेषता का अवलोकन 50 TeV से 1 पेटा-इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (PeV) से कुछ अधिक तक विस्तार वाले स्पेक्ट्रम को मापते समय लगभग 166 टेरा-इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (TeV) ऊर्जा पर किया गया।
- "GRAPES-3 एक्सपेरिमेंट ने 100 TeV से ऊपर लेकिन कॉस्मिक-रे प्रोटॉन "नी" के नीचे नई विशेषता की खोज की, जो सिंगल पावर-लॉ स्पेक्ट्रम से विचलन का संकेत देता है।"
- अवलोकित विशेषता कॉस्मिक-रे स्रोतों, त्वरण प्रक्रियाओं और आकाशगंगा के भीतर उनके प्रसार के बारे में हमारे ज्ञान के संभावित पुनर्मूल्यांकन का सुझाव देती है।
- सदियों पुरानी खोज के अनुसार, ब्रह्मांडीय/कॉस्मिक किरणें ब्रह्मांड का सबसे ऊर्जावान कण हैं, जो सभी दिशाओं से समान रूप से पृथ्वी पर बमबारी करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन, फोटॉन, म्यूऑन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि तेज़ी से गति करने वाले कणों की बौछार होती है।
- कॉस्मिक किरणें शक्ति के नियम के आधार पर तेज़ी से घटते प्रवाह के साथ एक व्यापक ऊर्जा सीमा (10^8 से 10^20 eV) प्रदर्शित करती हैं।
- सदियों पुरानी खोज के अनुसार, ब्रह्मांडीय/कॉस्मिक किरणें ब्रह्मांड का सबसे ऊर्जावान कण हैं, जो सभी दिशाओं से समान रूप से पृथ्वी पर बमबारी करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन, फोटॉन, म्यूऑन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि तेज़ी से गति करने वाले कणों की बौछार होती है।
रैपिड फायर
माँ कामाख्या दिव्य लोक परियोजना
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने माँ कामाख्या दिव्य लोक परियोजना की आधारशिला रखी।
- इस परियोजना को पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये प्रधानमंत्री की विकास पहल (Prime Minister’s Development Initiative for North Eastern Region: PM-DevINE) योजना के तहत स्वीकृति दी गई है।
- असम के गुवाहाटी में नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित कामाख्या मंदिर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
- यह मंदिर माँ शक्ति के विभिन्न रूपों सुंदरी, त्रिपुरा, तारा, भुवनेश्वरी, बगलामुखी और छिन्नमस्ता को समर्पित है।
- अंबुबाची मेला इस मंदिर के प्रमुख उत्सवों में से एक है। यह त्यौहार देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म के उपलक्ष्य में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है।
रैपिड फायर
2040 के लिये EU का नया जलवायु लक्ष्य
स्रोत: डाउन टू अर्थ
यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने हाल ही में अपना नवीनतम प्रस्तावित 2040 जलवायु लक्ष्य प्रस्तुत किया है, जिसमें वर्ष 1990 के मूलभूत स्तरों की तुलना में वर्ष 2040 तक 90% के शुद्ध उत्सर्जन कटौती लक्ष्य की रूपरेखा दी गई है।
- सितंबर 2020 में निर्धारित यूरोपीय संघ के पिछले लक्ष्य का उद्देश्य वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को वर्ष 1990 के स्तर से 55% कम करना था, जिसे बाद में वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता (Carbon Neutrality) प्राप्त करने की प्रतिबद्धता के साथ यूरोपीय संघ जलवायु कानून में शामिल किया गया था।
- लक्ष्य को पूरा करने के लिये, यूरोपियन कमीशन ने वर्ष 2021 में "फिट फॉर 55" पैकेज जारी किया, जिसने वर्ष 2030 कटौती लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रस्तावों का एक सेट प्रदान किया।
- वर्ष 2024 में प्रस्तुत नवीनतम प्रस्ताव यूरोपीय संघ के जलवायु कानून (EU Climate Law) द्वारा अनिवार्य किया गया एक मध्य अवधि का कदम है, जो दुबई में UNFCCC के पक्षकारों के 28वें सम्मेलन के दौरान आयोजित प्रथम ग्लोबल स्टॉकटेक (Global Stocktake-GST) के छह माह के भीतर ही वर्ष 2040 तक के लिये लक्ष्य विकसित करने की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है।
- यह प्रस्ताव वर्ष 2040 तक कोयले के उपयोग में उल्लेखनीय कमी की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जिसमें प्राकृतिक गैस में तेज़ी से गिरावट आने की उम्मीद है और तेल चरणबद्ध तरीके से समाप्त होने वाला अंतिम घटक होगा। हालाँकि कुछ जीवाश्म ईंधन गैर-ऊर्जा उद्देश्यों तथा लंबी दूरी के परिवहन के लिये उपयोग में बने रहेंगे।
- आलोचकों का तर्क है कि प्रस्तावित लक्ष्य यूरोपीय संघ के ऐतिहासिक उत्सर्जन भार को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में सफल नहीं हैं।
- कार्बन संग्रहण और CO2 को हटाने वाली प्रौद्योगिकियों पर भारी निर्भरता लक्ष्य की महत्त्वाकांक्षा तथा प्रभावशीलता के बारे में चिंता पैदा करती है।
रैपिड फायर
एफिल टावर से हुआ UPI का लॉन्च
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को औपचारिक रूप से पेरिस, फ्राँस में प्रतिष्ठित एफिल टॉवर में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के समय लॉन्च किया गया था।
- यह आयोजन UPI के वैश्वीकरण और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- वर्ष 2016 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (National Payment Corporation of India- NPCI) द्वारा विकसित, UPI एक त्वरित भुगतान प्रणाली है जो कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लीकेशन में एकीकृत करती है, जो विभिन्न बैंकिंग कार्यों, फंड ट्रांसफर और व्यापारी भुगतान को सरल बनाती है।
- NPCI की सहायक कंपनी, NPCI इंटरनेशनल पेमेंट्स और फ्राँस की लाइरा कलेक्ट (Lyra Collect) के बीच साझेदारी से फ्राँस तथा यूरोप में UPI शुरू करने के लिये एक समझौता हुआ है।
और पढ़ें: यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस