SKAO में भारत की पूर्ण सदस्यता
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत विश्व की सबसे बड़ी रेडियो टेलीस्कोप परियोजना, जिसे स्क्वायर किलोमीटर एरे ऑब्ज़र्वेटरी (SKAO) कहा जाता है, का भी हिस्सा होगा।
- देशों को औपचारिक रूप से सदस्य बनने के लिये SKAO सम्मेलन पर हस्ताक्षर करना होगा और उसका अनुसमर्थन करना होगा। 1,250 करोड़ रुपए की वित्तीय मंज़ूरी के साथ परियोजना में शामिल होने के लिये भारत सरकार की मंज़ूरी अनुसमर्थन की दिशा में पहला कदम है।
SKAO क्या है?
- परिचय:
- SKAO एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका लक्ष्य अत्याधुनिक रेडियो दूरबीनों का निर्माण और संचालन करना है। इसका वैश्विक मुख्यालय जोड्रेल बैंक वेधशाला, यूनाइटेड किंगडम में स्थित है।
- इस परियोजना में एक भी दूरबीन नहीं होगी बल्कि हज़ारों एंटेना की एक शृंखला होगी, जिसे दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के रिमोट रेडियो-क्वाईट स्थानों में स्थापित किया जाएगा, जो खगोलीय घटनाओं का निरीक्षण और अध्ययन करने के लिये एक बड़ी इकाई के रूप में कार्य करेगी।
- SKAO के उद्देश्यों में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का अध्ययन भी शामिल है।
- SKAO के निर्माण में भाग लेने वाले कुछ देशों में यूके, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, चीन, फ्राँस, भारत, इटली और जर्मनी शामिल हैं।
- SKAO में भारत की भूमिका:
- भारत ने पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (NCRA) और अन्य संस्थानों के माध्यम से 1990 के दशक में स्थापित महत्त्वाकांक्षी SKAO परियोजना के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- SKAO में भारत का प्राथमिक योगदान दूरबीन प्रबंधक कारक (Telescope Manager Element) के विकास तथा परिसंचालन में निहित है जो एक "तंत्रिका नेटवर्क" (Neural Network) अथवा सॉफ्टवेयर के रूप में कार्य करता है जो टेलीस्कोप के पूर्ण संचालन को नियंत्रित करता है।
नोट: राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केंद्र (National Centre for Radio Astrophysics- NCRA) भारत में एक शोध संस्थान है जो रेडियो खगोल विज्ञान में विशेषज्ञता रखता है। यह पुणे विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है तथा मुंबई में स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) का हिस्सा है।
रेडियो टेलीस्कोप क्या है?
- परिचय: रेडियो टेलीस्कोप एक विशेष प्रकार का एंटीना तथा रिसीवर सिस्टम है जिसका उपयोग खगोलीय पिंडों द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगों का पता लगाने तथा एकत्र करने के लिये किया जाता है।
- रेडियो तरंगें वैद्युत-चुंबकीय (Electromagnetic- EM) तरंगें होती हैं जिनकी तरंगदैर्घ्य 1 मिलीमीटर से 100 किलोमीटर के बीच होती है।
- ऑप्टिकल टेलीस्कोप के विपरीत रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग दिन के साथ-साथ रात में भी किया जा सकता है।
- अनुप्रयोग: रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग खगोलीय परिघटनाओं की एक विस्तृत शृंखला का अध्ययन करने के लिये किया जाता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- तारों तथा आकाशगंगाओं का निर्माण एवं विकास।
- ब्लैक होल तथा अन्य सक्रिय मंदाकिनीय (Galactic) नाभिक।
- अंतरा-तारकीय माध्यम।
- सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमा।
- अलौकिक जीवन की खोज।
- प्रमुख रेडियो टेलीस्कोप:
- विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (भारत)
- जून 2023 में पुणे के समीप स्थित विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (Giant Metrewave Radio Telescope- GMRT) ने अत्याधुनिक खगोलीय अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन करते हुए नैनो-हर्ट्ज़ गुरुत्वीय तरंगों (Nano-Hertz Gravitational Waves) का पहली बार पता लगाने में अहम भूमिका निभाई।
- सारस 3 (भारत)
- अटाकामा लार्ज मिलीमीटर/सबमिलीमीटर एरे (ALMA) (अटाकामा मरुस्थल, चिली)
- फाइव हंड्रेड मीटर एपर्चर स्फेरिकल टेलीस्कोप (FAST) (चीन)
- विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (भारत)
गुरुत्वीय तरंगें क्या हैं?
- परिचय: ये तरंगें बड़े पैमाने पर खगोलीय पिंडों, जैसे कि ब्लैक होल या न्यूट्रॉन स्टार्स के संचलन से उत्पन्न होती हैं और अंतरिक्ष-समय (space time) के माध्यम से बाहर की ओर फैलती हैं।। उदाहरण के लिये जब एक तालाब में कंकड़ गिराया जाता है, तो परिणामी लहरें गुरुत्वीय तरंगों के समान होती हैं, लेकिन पानी के बजाय वे ब्रह्मांड की मूलभूत संरचना के माध्यम से फैलती हैं।
- 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने सामान्य सापेक्षता के अपने सिद्धांत के अंदर गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति की भविष्यवाणी की थी।
- प्रधानता: गुरुत्वीय तरंग अनुसंधान, जैसा कि लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेव ऑब्ज़र्वेटरी (LIGO) का उपयोग कर पहली बार पता लगाने के लिये दिये गए 2017 के नोबेल पुरस्कार से प्रमाणित है, वैज्ञानिक सफलताओं के लिये अपार संभावनाएँ रखता है।
- हाल ही में भारत ने महाराष्ट्र के हिंगोली ज़िले में LIGO के तीसरे नोड के निर्माण को हरी झंडी दी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2008) कथन (A): रेडियो तरंगें चुंबकीय क्षेत्र में मुड़ जाती हैं। कारण (R): रेडियो तरंगें प्रकृति में विद्युत-चुंबकीय होती हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा सही है? (a) A और R दोनों सत्य हैं और R, A की सही व्याख्या है। उत्तर: (a) प्रश्न. पृथ्वी के वायुमंडल में आयनमंडल कहलाने वाली परत रेडियो संचार को सुसाध्य बनाती है। क्यों? (2011) 1- ओज़ोन की उपस्थिति रेडियों तरंगों को पृथ्वी की ओर परावर्तित करती है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
पूर्वोत्तर अफ्रीकी चीता
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अरब देशों में शावकों के अवैध व्यापार के कारण पूर्वोत्तर अफ्रीकी चीता को आनुवंशिक विविधता में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।
पूर्वोत्तर अफ्रीकी चीतों के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- वैज्ञानिक नाम: एसिनोनिक्स जुबेटस सोमेरिंगी (Acinonyx jubatus soemmeringii)
- परिचय:
- यह चीता की एक उप-प्रजाति है जिसे पहली बार वर्ष 1855 में ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी लियोपोल्ड फिट्ज़िंगर द्वारा वैज्ञानिक नाम सिनेलुरस सोमेरिंगी (Cynailurus soemmeringii) के तहत सूडान के बायुडा रेगिस्तान से वियना में टियरगार्टन शॉनब्रुन में लिये गए एक नमूने के आधार पर देखा गया था।
- इसे सूडान चीता के नाम से भी जाना जाता है। यह उप-प्रजाति सहारन चीता आबादी के बजाय दक्षिणी अफ्रीकी चीता आबादी से संबंधित है।
- वितरण:
- ये पूर्वोत्तर अफ्रीका, इथियोपिया और दक्षिण सूडान में पाए जाते हैं।
- ये विस्तृत खुली भूमि, घास के मैदानों, अर्ध-शुष्क क्षेत्रों और अन्य खुले आवासों में रहते हैं, जहाँ शिकार प्रचुर मात्रा में होता है जैसे कि पूर्वी सूडानी सवाना क्षेत्र में।
- आवास:
- उनके आवासों में आम तौर पर विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र शामिल होते हैं, जैसे– सवाना, घास के मैदान और अर्ध-शुष्क स्थान, अक्सर विरल वनस्पति के साथ जो उनकी उच्च गति शिकार रणनीति के लिये सक्षम होते हैं।
- खतरा:
- लाल सागर (Red sea) के पार सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन जैसे अरब देशों में उनकी भारी तस्करी की जाती है।
- निवास स्थान के नुकसान, मानव अतिक्रमण और शिकार के कारण, उनकी संख्या में काफी कमी आई है, मुख्य रूप से संरक्षित क्षेत्रों में केवल कुछ बिखरी हुई आबादी बची है।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: लुप्तप्राय।
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 जनवरी, 2024
रोश की ब्रेकथ्रू एंटीबायोटिक
स्विस स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी रोश (Roche) ने ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया (Gram-Negative Bacteria) को लक्षित करने वाले एक अभूतपूर्व जीवाणुनाशक (Antibiotic), ज़ोसुराबलपिन (Zosurabalpin) की खोज की है।
- इसने दवा-प्रतिरोधी एसिनेटोबैक्टर उपभेदों (Strains), विशेष रूप से कार्बापेनम-प्रतिरोधी एसिनेटोबैक्टर बाउमन्नी (Carbapenem-Resistant A Baumannii- CRAB) के विरुद्ध आशाजनक गतिविधि का प्रदर्शन किया है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा एक महत्त्वपूर्ण रोगजनक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ज़ोसुराबलपिन (Zosurabalpin) की क्रिया बैक्टीरिया की बाहरी झिल्ली के निर्माण को बाधित करती है, विशेष रूप से लिपोपॉलीसेकेराइड के परिवहन तंत्र को लक्षित करती है, जो ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
- बैक्टीरिया को दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है: ग्राम-पॉज़िटिव या ग्राम-नेगेटिव, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे एक विशिष्ट रंग का दाग बनाए रखते हैं या नहीं। ग्राम-पॉज़िटिव बैक्टीरिया बैंगनी रंग का दाग बनाए रखते हैं, जबकि ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया गुलाबी या लाल दिखाई देते हैं।
- ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति में एक पतली पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) परत होती है, यह दो लिपिड झिल्लियों के बीच स्थित होती है, जो उन्हें एक जटिल संरचना प्रदान करती है।
- यह बाहरी झिल्ली एक बाधा के रूप में कार्य करती है, जो उन्हें एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाती है।
- ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति में एक पतली पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) परत होती है, यह दो लिपिड झिल्लियों के बीच स्थित होती है, जो उन्हें एक जटिल संरचना प्रदान करती है।
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व्यापार की शर्त
पिछले डेढ़ दशक में भारतीय कृषि के लिये व्यापार की शर्तों (Terms of Trade- ToT) में राष्ट्रीय आय के आँकड़ों के आधार पर महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है।
- कृषि में ToT सुधार का श्रेय वैश्विक कृषि-वस्तु मूल्य में वृद्धि और नीतिगत हस्तक्षेप, विशेष रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी को दिया जाता है।
- भारतीय कृषि के लिये ToT का तात्पर्य गैर-कृषि वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्ष कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव से है।
- व्यापार की शर्तें कृषि कीमतों और औद्योगिक कीमतों के अनुपात को संदर्भित करती हैं, जिसे मूल्य सूचकांक के रूप में निर्धारित किया जाता है।
- व्यापार की शर्तों में वृद्धि का तात्पर्य औद्योगिक वस्तुओं के मामले में कृषि क्षेत्र के लिये बेहतर क्रय शक्ति से है।
- एक (या 100%) से ऊपर का अनुपात किसानों द्वारा खरीदी और बेची जाने वाली वस्तुओं में अंतर के संदर्भ में अनुकूल मूल्य निर्धारण शक्ति का संकेत देता है।
- एक से नीचे TOT अनुपात विनिमय की प्रतिकूल परिस्थितियों को इंगित करता है।
- क्रय कीमतों में वृद्धि से खाद्य सब्सिडी बिलों में वृद्धि हुई है, जिससे राजकोषीय घाटे और व्यापक आर्थिक प्रबंधन के मुद्दे सामने आए हैं।
मुरादाबाद का पीतल बर्तन उद्योग
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से धार्मिक मूर्तियों, विशेष रूप से भगवान राम की मूर्तियों की मांग में वृद्धि के रूप में हुई है, जिसके परिणामस्वरूप मुरादाबाद के पीतल के बर्तन उद्योग के पुनरुत्थान को प्रोत्साहन मिला है।
- मुरादाबाद की स्थापना वर्ष 1600 में मुगल सम्राट शाहजहाँ के बेटे मुराद ने की थी जिसके परिणामस्वरूप शहर को मुरादाबाद के नाम से जाना जाने लगा।
- मुरादाबाद पीतल सामग्री के लिये प्रसिद्ध है तथा इसने विश्व भर में हस्तशिल्प उद्योग में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।
- पीतल के बर्तन अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, मध्य पूर्व तथा एशिया जैसे देशों में निर्यात किये जाते हैं इसलिये मुरादाबाद को “पीतल नगरी” भी कहा जाता है।
- पीतल, ताँबे तथा जस्ता की एक मिश्र धातु है जो अपनी उल्लेखनीय मज़बूती/कठोरता और व्यावहारिकता के कारण ऐतिहासिक एवं स्थायी महत्त्व रखती है।
- 1980 के दशक में पीतल, लोहा तथा एल्यूमीनियम जैसे विभिन्न धातु की सामग्रियों की शुरुआत के साथ उद्योग में विविधता आई। इस विस्तार से मुरादाबाद के कला उद्योग में इलेक्ट्रोप्लेटिंग, लैकरिंग एवं पाउडर कोटिंग जैसी नई तकनीकें आईं।
- मुरादाबाद मेटल क्राफ्ट (वर्ड मार्क) को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग का दर्जा प्राप्त है।
पैन्सपर्मिया
पैन्सपर्मिया, यह परिकल्पना कि जीवन ग्रहों के पार घूम सकता है, सदियों से चिंतन और वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय रहा है।
- पैन्सपर्मिया, जिसे सबसे पहले ग्रीक दार्शनिक एनाक्सागोरस ने प्रस्तावित किया था, सुझाव देती है कि जीवन में ग्रहों के बीच ‘बीज (seeds)’ के रूप में यात्रा करने की क्षमता है।
- वैज्ञानिक प्रगति के अनुसार, सूक्ष्मजीव अंतरग्रहीय उड़ान की कठोर परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं और एक नए विश्व तक पहुँचने के प्रभाव से बच सकते हैं।
- 19वीं सदी के शोधकर्त्ताओं, जिनमें स्वांते अरहेनियस (Svante Arrhenius) भी शामिल हैं, ने सूर्य से विकिरण दबाव जैसे तंत्र का सुझाव दिया, जो अंतरिक्ष के माध्यम से सूक्ष्मजीवों को आगे बढ़ा सकता है।
- आधुनिक पैन्सपर्मिया सिद्धांत के तीन चरण इस प्रकार हैं: एक ग्रह से प्रस्थान, अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में पारगमन और दूसरे ग्रह पर उतरना।
- पैन्सपर्मिया स्वयं जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है और इसकी वैधता साबित करने में कठिनाई के कारण इसे एक फ्रिंज़ सिद्धांत माना जाता है।