तोखू इमोंग त्योहार
अमूर फाल्कन के अतिरिक्त पक्षियों की अन्य प्रजातियों को शामिल करने के लिये चार दिवसीय पहला प्रलेखन (Documentation) अभ्यास, तोखू इमोंग बर्ड काउंट (TEBC) नगालैंड में आयोजित किया जा रहा है।
- इस त्योहार के लिये नागालैंड के वोखा ज़िले में प्रभुत्त्व रखने वाले नागा समुदाय लोथाओं की फसल कटाई के बाद का समय निर्धारित किया गया है।
तोखू इमोंग त्योहार:
- धर्म, संस्कृति और मनोरंजन के लिये आदर्श माने जाने वाले वोखा ज़िले में, 'तोखू इमोंग' धूमधाम से व्यापक स्तर पर मनाया जाता है।
- प्रतिवर्ष 7 नवंबर से मनाया जाने वाला यह त्योहार 9 दिनों तक चलता है।
- 'तोखू' का अर्थ है घर-घर जाकर प्राकृतिक संसाधनों और भोजन के रूप में टोकन एवं उपहार एकत्र करना तथा 'इमोंग' का अर्थ है उस समय चयनित स्थान पर रुकना।
- इस त्योहार के महत्त्वपूर्ण आकर्षण सामुदायिक गीत, नृत्य, दावत, मस्ती आदि हैं।
- इस त्योहार के माध्यम से यहाँ के लोग दशकों पहले रचित अपने पूर्वजों की कहानियों को फिर से जीते हैं।
- त्योहार के दौरान अनुग्रही चढ़ावा चढ़ाकर आकाश एवं पृथ्वी के देवताओं से आशीर्वाद की कामना की जाती है।
अमूर फाल्कन:
- अमूर फाल्कन दुनिया की सबसे लंबी यात्रा करने वाले शिकारी पक्षी हैं, ये सर्दियों की शुरुआत के साथ अपनी यात्रा शुरू करते हैं।
- ये शिकारी पक्षी दक्षिण-पूर्वी साइबेरिया और उत्तरी चीन में प्रजनन करते हैं तथा मंगोलिया एवं साइबेरिया से भारत और हिंद महासागरीय क्षेत्रों से होते हुए दक्षिणी अफ्रीका तक लाखों की संख्या में प्रवास करते हैंं।
- इसका 22,000 किलोमीटर का प्रवासी मार्ग सभी एवियन प्रजातियों में सबसे लंबा है।
- इसका नाम ‘अमूर नदी’ के नाम पर पड़ा है जो रूस और चीन के मध्य सीमा बनाती है।
- प्रजनन स्थल से दक्षिण अफ्रीका की ओर वार्षिक प्रवास के दौरान अमूर फाल्कन के लिये नगालैंड की दोयांग झील (Doyang Lake) एक ठहराव केंद्र के रूप में जानी जाती है। इस प्रकार नगालैंड को "फाल्कन कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड" के रूप में भी जाना जाता है।
- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट के तहत इन पक्षियों को ‘कम चिंताग्रस्त’ (Least Concerned) के रूप में वर्गीकृत किया गया है लेकिन यह प्रजाति भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है।
स्रोत: द हिंदू
मौना लोआ ज्वालामुखी
प्रिलिम्स के लिये:ज्वालामुखी, रिंग ऑफ फायर मेन्स के लिये:ज्वालामुखी और उसका वितरण |
दुनिया के सबसे बड़े सक्रिय ज्वालामुखी मौना लोआ में निकट भविष्य में विस्फोट हो सकता है।
मौना लोआ:
- मौना लोआ उन पाँच ज्वालामुखियों में से एक है जो मिलकर हवाई द्वीप बनाते हैं।
- यह हवाई द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी द्वीप है।
- यह सबसे ऊँचा नहीं है (सबसे ऊँचा मौना की है) लेकिन सबसे बड़ा है और द्वीपीय भूमि का लगभग आधा हिस्से का निर्माण करता है।
- यह किलाऊआ ज्वालामुखी के ठीक उत्तर में स्थित है, वर्तमान में इसके क्रेटर में विस्फोट हो रहा है।
- किलाऊआ वर्ष 2018 के विस्फोट के लिये प्रसिद्ध है जिसने 700 घरों को नष्ट कर दिया और इसका लावा खेतों एवं समुद्र में फैल गया था।
- मौना लोआ में आखिरी बार 38 साल पहले विस्फोट हुआ था।
अन्य ज्वालामुखी
- जिनमें हाल ही में विस्फोट हुआ:
- भारत में ज्वालामुखी:
- बैरन द्वीप, अंडमान द्वीप समूह (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)
- नारकोंडम, अंडमान द्वीप समूह
- बारातंग, अंडमान द्वीप समूह
- डेक्कन ट्रैप्स, महाराष्ट्र
- धिनोधर हिल्स, गुजरात
- धोसी हिल, हरियाणा
दुनिया भर में फैले ज्वालामुखी:
- ज्वालामुखियों को दुनिया भर में ज़्यादातर प्लेट विवर्तनिकी के किनारों के साथ वितरित किया जाता है, हालाँकि कुछ इंट्रा-प्लेट ज्वालामुखी भी हैं जो मेंटल हॉटस्पॉट्स (जैसे, हवाई) से बनते हैं।
- आइसलैंड जैसे कुछ ज्वालामुखीय क्षेत्रों में हॉटस्पॉट और प्लेट सीमा दोनों होती हैं।
- विश्व में ज्वालामुखी का विस्तार:
- परि-प्रशांत बेल्ट:
- पैसिफिक "रिंग ऑफ फायर" ज्वालामुखियों की एक शृंखला है और यह प्रशांत महासागर के किनारों के आसपास, पृथ्वी के अधिकांश सबडक्शन क्षेत्रों में उच्च भूकंपीय गतिविधि वाले क्षेत्रों में स्थित है।
- पैसिफिक रिंग ऑफ फायर में कुल 452 ज्वालामुखी हैं।
- इसके अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी रूस के कामचटका प्रायद्वीप से लेकर जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया में न्यूज़ीलैंड के द्वीपों तक इसके पश्चिमी किनारे पर स्थित हैं।
- मध्य महाद्वीपीय बेल्ट:
- यह ज्वालामुखी बेल्ट यूरोप, उत्तरी अमेरिका की अल्पाइन पर्वत शृंखला के साथ-साथ एशिया माइनर, काकेशिया, ईरान, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से हिमालय पर्वत शृंखला तक फैली हुई है जिसमें तिब्बत, पामीर, त्यानशान, अल्ताई और चीन म्याँमार तथा पूर्वी साइबेरिया के पहाड़ शामिल हैं।
- इस बेल्ट के अंतर्गत आल्प्स पर्वत, भूमध्य सागर (स्ट्रोमबोली, वेसुवियस, एटना, आदि), एजियन सागर के ज्वालामुखी, माउंट अरारत (तुर्किये), एलबुर्ज, हिंदुकुश और हिमालय के ज्वालामुखी शामिल हैं।
- मध्य अटलांटिक रिज:
- मध्य-अटलांटिक रिज उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी प्लेट को यूरेशियन एवं अफ्रीकी प्लेट से अलग करता है।
- मैग्मा समुद्र तल की दरारों से निकलकर ऊपर की ओर उठता हैं तथा उपरी भागों पर बहने लगते हैं। जैसे ही मैग्मा पानी में मिलता है, यह ठंडा होकर जम जाता है तथा जिन प्लेटों से होकर गुज़रता है वे प्लेट कड़े होते जाते हैं और ये प्लेट आपस में जुड़ते जाते हैं।
- अपसारी सीमा के साथ इस प्रक्रिया ने दुनिया के महासागरों के नीचे मध्य महासागरीय कटकों के रूप में सबसे लंबी स्थलाकृतिक संरचना निर्मित की है।
- इंट्रा-प्लेट ज्वालामुखी:
- विश्व में ज्ञात ज्वालामुखी के 5% (जो प्लेट मार्जिन से निकटता से संबंधित नहीं हैं) इंट्रा-प्लेट, या "हॉट-स्पॉट" ज्वालामुखी के रुप में संदर्भित किये जाते हैं।
- हॉट-स्पॉट एक गहन मेंटल प्लम के ऊर्ध्वाधर गमन से संबंधित होता है जिसका कारण पृथ्वी के मेंटल में अत्यधिक चिपचिपे पदार्थ का धीमी गति से प्रवाहित होना है।
- इसे एकल महासागरीय ज्वालामुखी या हवाई-एम्परर सीमाउंट शृंखला (Hawaiian-Emperor seamount chains) जैसे ज्वालामुखियों की शृंखला द्वारा दर्शाया जा सकता है।
- विश्व में ज्ञात ज्वालामुखी के 5% (जो प्लेट मार्जिन से निकटता से संबंधित नहीं हैं) इंट्रा-प्लेट, या "हॉट-स्पॉट" ज्वालामुखी के रुप में संदर्भित किये जाते हैं।
- परि-प्रशांत बेल्ट:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. परि-प्रशांत क्षेत्र के भू-भौतिकीय अभिलक्षणों का विवेचन कीजिये। (2020) प्रश्न. वर्ष 2021 में घटित ज्वालामुखी विस्फोटों की वैश्विक घटनाओं का उल्लेख करते हुए क्षेत्रीय पर्यावरण पर पड़े उनके प्रभाव को बताइये। (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वांगला नृत्य
राइज़िग सन वाटर फेस्ट-2022 का उद्घाटन समारोह का आयोजन मेघालय के उमियम झील (मानव निर्मित जलाशय) के प्राचीन एवं मनोरम परिवेश में किया गया।
- गारो आदिवासी समुदाय के सदस्य 'दि राइज़िग सन वाटर फेस्ट-2022' के अवसर पर वांगला नृत्य करते हैं।
वांगला नृत्य:
- वांगला को फेस्टिवल ऑफ हंड्रेड ड्रम्स के रूप में भी जाना जाता है और इसे ड्रमों पर बजाए जाने वाले लोकगीतों और भैंस के सींगों से बनी आदिम बाँसुरी की धुन पर विभिन्न प्रकार के नृत्यों के साथ मनाया जाता है।
- यह त्योहार सूर्य भगवान के सम्मान में मनाया जाता है और यह फसल कटाई के मौसम की समाप्ति का प्रतीक है।
- यह उत्सव सर्दियों की शुरुआत से पहले गारो जनजाति के लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रो में मेहनत करते हुए व्यतीत की गई लंबी अवधि के समापन को भी दर्शाता है।
- मेघालय में गारो जनजाति के लिये यह त्योहार उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित एवं प्रोत्साहित करने का एक तरीका है और वे इस प्रकार के समारोहों में अपनी परंपरा का प्रदर्शन करते हैं।
गारो समुदाय:
- गारो, जो खुद को आचिक (A·chiks) कहते हैं, मेघालय की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
- खासी और जयंतिया, मेघालय की अन्य दो प्रमुख जनजातियाँ हैं।
- गारो समुदाय के लोगों का दृढ़ विश्वास है कि उनकी उत्पत्ति तिब्बत में हुई थी। इनकी कई बोलियाँ और सांस्कृतिक समूह हैं। इनमें से प्रत्येक मूल रूप से गारो हिल्स के एक विशेष क्षेत्र एवं बाहरी मैदानी भूमि पर बसे हैं।
- हालाँकि आधुनिक गारो समुदाय की संस्कृति ईसाई धर्म से काफी प्रभावित रही है। इसमें सभी बच्चों को माता-पिता द्वारा समान देखभाल, अधिकार और महत्व दिया जाता है।
- समान कबीले से संबंध रखने के आधार पर गारो विवाह दो महत्त्वपूर्ण कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है जैसे-अंतर्जातीय-विवाह (Exogamy) और आकिम (A·Kim)। इनमें एक ही कबीले के बीच विवाह की अनुमति नहीं होती है।
- आकिम (A·Kim) के कानून के अनुसार यदि किसी पुरुष या महिला ने एक बार शादी कर ली है तो वह अपने पति या पत्नी की मृत्यु के बाद भी दूसरे कबीले के व्यक्ति से दोबारा शादी करने के लिये स्वतंत्र नहीं होगा/होगी।
- गारो दुनिया के कुछ बचे हुए मातृवंशीय समाजों में से एक है।
- गारो व्यक्ति अपनी माता से कबीले की उपाधि लेते हैं। परंपरागत रूप से सबसे छोटी बेटी को माँ से संपत्ति विरासत में मिलती है।
- बेटे युवावस्था में माता-पिता का घर छोड़ देते हैं और गाँव के बैचलर डोरमेट्री (नोकपंते) में प्रशिक्षित होते हैं। पति शादी के बाद पत्नी के घर रहता है। गारो केवल मातृवंशीय समाज है, मातृसत्तात्मक नहीं।
स्रोत: द हिंदू
रिसैट-2
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के RISAT-2 उपग्रह (रडार इमेजिंग सैटेलाइट) द्वारा जकार्ता के पास हिंद महासागर में अनुमानित प्रभाव बिंदु पर पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित पुन: प्रवेश किया गया।
- RISAT-2 भारत का पहला "आई इन द स्काई" उपग्रह है जिसके माध्यम से घुसपैठ और आतंकवाद विरोधी अभियानों के हिस्से के रूप में देश की सीमाओं की निगरानी होती है।
RISAT-2:
- परिचय:
- रिसैट-2 का मुख्य सेंसर (जिसे 'जासूसी' उपग्रह माना जाता है) इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ का एक X -बैंड सिंथेटिक-एपर्चर रडार था।
- रिसैट-1 उपग्रह के लिये स्वदेश में विकसित हो रहे सी-बैंड में देरी होने के कारण वर्ष 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद रिसैट-2 को अधिक तेज़ी से विकसित किया गया था। भारत के पहले समर्पित इस टोही उपग्रह में दिन-रात कार्य करने के साथ-साथ सभी मौसमों में निगरानी करने की क्षमता है।
- इसका उपयोग समुद्र में सैन्य खतरा माने जाने वाले जहाज़ों को ट्रैक करने के लिये भी किया जाता था।
- प्रक्षेपण:
- लगभग 300 किलोग्राम वज़न वाले रिसैट-2 को 20 अप्रैल, 2009 को PSLV-C12 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
- महत्त्व:
- रिसैट-2 ने 13 वर्षों से अधिक समय तक लाभकारी पेलोड डेटा प्रदान किया।
- इसके प्रवेश के बाद से विभिन्न अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये रिसैट-2 की रडार पेलोड सेवाएँ प्रदान की गईं।
- रिसैट-2 अंतरिक्षयान कक्षीय संचालन को कुशल और इष्टतम तरीके से पूरा करने के लिये इसरो की क्षमता का एक स्पष्ट उदाहरण है।
- जैसा कि रिसैट-2 ने 13.5 वर्षों के भीतर फिर से प्रवेश किया, इसने अंतरिक्ष मलबे के लिये सभी आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय शमन दिशा-निर्देशों का पालन किया, जो बाहरी अंतरिक्ष की दीर्घकालिक स्थिरता के प्रति अंतरिक्ष एजेंसी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- रिसैट-2 ने 13 वर्षों से अधिक समय तक लाभकारी पेलोड डेटा प्रदान किया।
इसरो की आगामी परियोजनाएँ:
- गगनयान: भारतीय मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम।
- आदित्य-L1: सूर्य के वातावरण का अध्ययन करने के लिये।
- नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार मिशन: विभिन्न खतरों और वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन का अध्ययन करने के लिये।
- शुक्रयान-1: शुक्र ग्रह के लिये ऑर्बिटर।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव 2022
राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर रायपुर, छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव के तीसरे संस्करण में दुनिया भर के कलाकार भाग लेते हैं।
- भारत और मोज़ाम्बिक, मंगोलिया, टोंगा, रूस, इंडोनेशिया, मालदीव, सर्बिया, न्यूज़ीलैंड एवं मिस्र जैसे देशों से लगभग 1,500 नर्तक इस महोत्सव में शामिल हुए।
राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव:
- राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव छत्तीसगढ़ के भव्य त्योहारों में से एक है जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर के विविध आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
- यह छत्तीसगढ़ के पर्यटन और संस्कृति विभाग के तहत आयोजित किया जाता है।
- इस त्योहार का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को एकजुट करना और सभी को उनकी समृद्ध संस्कृति के बारे में शिक्षित करने का अवसर प्रदान करना है।
- पहला राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव वर्ष 2019 में और दूसरा वर्ष 2021 में आयोजित किया गया था।
भारतीय लोक और जनजातीय नृत्य:
- भारतीय लोक और आदिवासी नृत्य, आपस में खुशी व्यक्त करने के लिये किये जाने वाले साधारण नृत्य हैं।
- लोक और जनजातीय नृत्य का आयोजन ऋतुओं के आगमन, बच्चे के जन्म, शादी और त्योहारों जैसे हर अवसर पर जश्न मनाने के लिये किया जाता है।
- इनमें कुछ नृत्य विशेष रूप से पुरुष और महिलाओं द्वारा अलग-अलग किये जाते हैं, जबकि कुछ प्रदर्शनों में पुरुष और महिलाएँ एक साथ नृत्य करते हैं।
भारत के प्रमुख लोक और जनजातीय नृत्य
- राज्य: लोक/जनजातीय नृत्य
- असम: बगुरुम्बा, बिहू, भोरताल, झुमुरी
- अरुणाचल प्रदेश: बार्डो छमो
- छत्तीसगढ़: राउत नाच
- गोवा: फुगदि
- गुजरात: डांडिया, गरबा, रास
- हिमाचल प्रदेश: नाटी
- हरियाणा: रास लीला
- जम्मू और कश्मीर: दुमहाल
- केरल: चाक्यार कूथु, डफमुट्टु, मार्गमकली, ओप्पना, पद्यानी, थेयम, थिरयट्टम
- कर्नाटक: हुलिवेशा, पाटा कुनिथा
- मध्य प्रदेश: ग्रिडा, माचा, मटकी, फूलपति
- नगालैंड: चांग लो
- मिजोरम: चेराव
- महाराष्ट्र: लावणी, परवी नाच
- पंजाब: भांगड़ा, गिद्दा, किक्कली,
- ओडिशा: छऊ, गोटी पुआ, बाग नाच, दालखाई, ढप, गुमरा, कर्मा नाच, कीसाबादी
- पुद्दुचेरी: गरदी
- राजस्थान: घूमर, कालबेलिया, कच्छी घोड़ी
- तमिलनाडु: पराई अट्टम, कारागट्टम, कोलट्टम, मयिल अट्टम, पम्पू अट्टम, ओयिलट्टम, पुलियाट्टम, पोइकल कुदिराई अट्टम, थेरु कूथु
- त्रिपुरा: होजागिरी
- उत्तर प्रदेश: मयूर नृत्य, चारुकल
- पश्चिम बंगाल: गंभीरा, अलकप, डोमनी
- सिक्किम: सिंघी चाम
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 नवंबर, 2022
देशबंधु चित्तरंजन दास
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता में हुआ था। चित्तरंजन दास को प्यार से 'देशबंधु' कहा जाता था। वे महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री थे। चित्तरंजन दास ने वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए। भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के सिद्धांतों का प्रचार करते हुए उन्होंने पुरे देश का भ्रमण किया। चित्तरंजन दास वर्ष 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त किये गए लेकिन उन्होंने भारतीय शासन विधान के अंतर्गत संवर्द्धित धारासभाओं से अलग रहना ही उचित समझा। संपन्न परिवार से संबंध रखने वाले चित्तरंजन दास ने अपनी समस्त संपत्ति राष्ट्रीय हित में समर्पित कर दी। कलकत्ता के नागरिकों के हित के लिये उन्हें नौकरियों में अधिक जगह देकर हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया। भारतीय समाज के लिये समर्पित, अधिक परिश्रमी तथा जेल जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए चित्तरंजन दास बीमार पड़ गए और 16 जून, 1925 को उनका निधन हो गया।
विश्व सुनामी जागरुकता दिवस
विश्व सुनामी जागरुकता दिवस प्रत्येक वर्ष 5 नवंबर को मनाया जाता है। बार-बार सुनामी के कड़वे अनुभवों के कारण जापान को इस दिवस को शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में इसने सुनामी की पूर्व चेतावनी, सार्वजनिक कार्रवाई के साथ ही भविष्य के प्रभावों को कम करने के लिये आपदा के बाद बेहतर निर्माण जैसे कुछ क्षेत्रों में प्रमुख रूप से विशेषज्ञता हासिल की है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को सुनामी के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिये नामित किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जब सुनामी की चेतावनी लोगों तक पहुँचे तो समुदाय बिना किसी भय के निर्णायक रूप से कार्य करें। 22 दिसंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र ने संकल्प 70/23 के माध्यम से 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरुकता दिवस के रूप में नामित किया। वर्ष 2021 में विश्व सुनामी जागरुकता दिवस "सेंडाई सेवन अभियान" लक्ष्य को बढ़ावा देता है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वर्तमान ढाँचे के कार्यान्वयन के लिये अपने राष्ट्रीय कार्यों के पूरक हेतु पर्याप्त और स्थायी समर्थन के माध्यम से विकासशील देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना है। विश्व सुनामी जागरुकता दिवस 2022 का उद्देश्य शुरुआती चेतावनी प्रणालियों तक पहुँच बढ़ाकर वैश्विक स्तर पर सुनामी के खतरे को कम करना है।