प्रिलिम्स फैक्ट्स (02 May, 2022)



अटल न्यू इंडिया चैलेंज 2.0

अटल इनोवेशन मिशन ने ‘अटल न्यू इंडिया चैलेंज’ (ANIC 2.0) के दूसरे संस्करण के चरण-1 का शुभारंभ किया।

  • ANIC 1.0 को वर्ष 2018 में नवाचारों और प्रौद्योगिकियों को लोगों हेतु प्रासंगिक बनाने के आह्वान के लिये लॉन्च किया गया था।

अटल न्यू इंडिया चैलेंज:

  • परिचय: 
    • अटल न्यू इंडिया चैलेंज अटल इनोवेशन मिशन, नीति आयोग का एक प्रमुख कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रौद्योगिकी आधारित उन नवाचारों की तलाश, चयन, समर्थन करना और उन्हें बढ़ावा देना है जो राष्ट्रीय महत्त्व एवं सामाजिक प्रासंगिकता से संबंधित क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करते हैं।
    • ANIC प्रोटोटाइप चरण में नवाचारों की मांग के साथ 12-18 महीनों के दौरान चयनित स्टार्टअप को व्यावसायीकरण चरण में सहयोग करता है।
  • दृष्टिकोण:
    • मौजूदा प्रौद्योगिकियों के आधार पर उत्पादों का निर्माण कर राष्ट्रीय महत्त्व और सामाजिक प्रासंगिकता (उत्पादन) की समस्याओं को हल करना।
    • भारत के संदर्भ में नए समाधानों, बाज़ार और शुरुआती ग्राहकों (व्यवसायीकरण) को खोजने में मदद करना।
  • उद्देश्य: 
    • भारत के निरंतर विकास और वृद्धि हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, जल एवं स्वच्छता, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, आवास, ऊर्जा, गतिशीलता, अंतरिक्ष आदि महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचारों को प्रोत्साहित करना।  
    • ‘कॉमर्सलाइज़ेसन वैली ऑफ डेथ’ (अनुसंधान और व्यावसायीकरण के बीच अंतर) की पहचान करने के साथ, परीक्षण, पायलटिंग और बाज़ार निर्माण के लिये संसाधनों तक पहुंँच से जुड़े जोखिमों पर नवोन्मेषकों को सहयोग प्रदान करना।
  • ANIC 1.0: 
    • ANIC 1.0 ने एक मुक्त नवाचार चुनौती प्रारूप (Open Innovation Challenge Format) का निर्माण किया था जहाँ सार्वजनिक डोमेन में चुनौती वक्तव्य (Challenge Statements) प्रकाशित किये गए और आवेदन के लिये कॉल किया गया था।
    •  स्टार्टअप विजेता/व्यक्तिगत नवोन्मेषकों को 1 करोड़ रुपए तक की किश्त आधारित अनुदान सहायता और AIM के नवाचार नेटवर्क के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है।
  • ANIC 2.0: 

अटल इनोवेशन मिशन(AIM):

  • AIM देश में नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार की प्रमुख पहल है।
  • इसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने हेतु नए कार्यक्रमों और नीतियों को विकसित करना, विभिन्न हितधारकों के लिये मंच एवं सहयोग के अवसर प्रदान करना, लोगों के मध्य जागरूकता बढ़ाना और देश के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी हेतु एक छत्र/अंब्रेला संरचना (Umbrella Structure) विकसित करना है। 
  • प्रमुख पहलें: 
    • अटल टिंकरिंग प्रयोगशाला: इसके माध्यम से देश के स्कूलों में छात्रों की समस्याओं का समाधान करने हेतु उनका मानसिक विकास करना है।
    • अटल इनक्यूबेशन केंद्र: विश्व स्तरीय स्टार्टअप को बढ़ावा देना और इनक्यूबेटर मॉडल में एक नया आयाम जोड़ना हेतु इनकी स्थापना की गई है।
    • अटल न्यू इंडिया की चुनौतियांँ: उत्पाद नवाचारों को बढ़ावा देना और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों/मंत्रालयों की ज़रूरतों के अनुरूप बनाना। 
    • मेंटर इंडिया अभियान: मिशन की सभी पहलों का समर्थन करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र, कॉरपोरेट्स और संस्थानों के सहयोग से निर्मित एक राष्ट्रीय मेंटर नेटवर्क। 
    • अटल कम्युनिटी इनोवेशन सेंटर: टियर 2 और टियर 3 शहरों सहित देश के असंरक्षित/संरक्षित क्षेत्रों में समुदाय केंद्रित नवाचार एवं विचारों को प्रोत्साहित करना।
    • लघु उद्यमों के लिये अटल अनुसंधान और नवाचार (ARISE): एमएसएमई उद्योग में नवाचार एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करना। 

AIM

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रोजेक्ट एलीफेंट पर चर्चा

चर्चा में क्यों है?

प्रोजेक्ट एलीफेंट की 16वीं संचालन समिति की बैठक में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत में मानव-हाथी संघर्ष (HEC) से निपटने एवं इसके प्रबंधन हेतु प्रमुख हाथी रेंज राज्यों में वन कर्मचारियों का मार्गदर्शन करने हेतु फील्ड मैनुअल लॉन्च किया है।

  • इस मैनुअल को मंत्रालय द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान (WWI) और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWFI) के साथ मिलकर तैयार किया गया है। 
  • इसमें मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिये विस्तृत एवं सर्वोत्तम तरीके शामिल हैं। यह वन अधिकारियों/विभागों और अन्य हितधारकों को मानव-हाथी संघर्ष (आपात स्थिति में और जब संघर्ष की चुनौती उत्पन्न हो) की घटनाओं में कमी करने में मदद और मार्गदर्शन प्रदान के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

हाथियों से संबंधित मुख्य बिंदु: 

  • भारत में हाथियों के वर्तमान आंँकड़े:
    • भारत लगभग 27,000 एशियाई हाथियों का घर है, जो विश्व की हाथी प्रजातियों की सबसे बड़ी आबादी है।
    • हाथी जनगणना 2017 के अनुसार, कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक (6,049) है, इसके बाद असम (5,719) और केरल (3,054) का स्थान है।
  • एशियाई हाथी: 
    • परिचय:
      • एशियाई हाथी की तीन उप-प्रजातियाँ हैं: भारतीय, सुमात्रन तथा श्रीलंकन।
      • भारतीय उप-प्रजाति सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती है।
        • हाथियों के झुंड का नेतृत्व सबसे पुरानी और बड़ी मादा सदस्य (झुंड की माता) द्वारा किया जाता है। इस झुंड में नर हाथी की सभी संतानें (नर और मादा) शामिल होती हैं।
        • हाथियों में सभी स्तनधारियों की सबसे लंबी गर्भकालीन (गर्भावस्था) अवधि होती है, जो 680 दिनों (22 महीने) तक चलती है।
        • 14 से 45 वर्ष के बीच की मादा हाथी लगभग हर चार साल में बच्चे को जन्म दे सकती हैं, जबकि औसत जन्म अंतराल 52 साल की उम्र में पांँच साल और 60 साल की उम्र में छह साल तक बढ़ जाता है।
      • वैश्विक जनसंख्या: अनुमानित 20,000 से 40,000।
    • सुरक्षा की स्थिति:
  • अफ्रीकी हाथी:
    • परिचय:
    • सुरक्षा की स्थिति:
      • IUCN की लाल सूची में स्थान: 
        • अफ्रीकी सवाना हाथी: संकटग्रस्त 
        • अफ्रीकी वन हाथी: अतिसंकटग्रस्त 
      • CITES: परिशिष्ट- II 
  • खतरा:
    • शिकार में वृद्धि
    • प्राकृतिक आवास का नुकसान
    • मानव-हाथी संघर्ष
    • हाथियों को कैद में रखकर प्रतिकूल व्यवहार करना 
    • हाथी पर्यटन के कारण दुरुपयोग 
    • बड़े पैमाने पर खनन और कॉरिडोर का विनाश

संरक्षण के लिये उठाए गए कदम:

  • हाथी के शिकारियों और उनको मारने वालों को गिरफ्तार करने की योजनाएँ तथा कार्यक्रम बनाना।
  • राज्यों में विभिन्न हाथी अभ्यारण्यों की घोषणा और स्थापना। उदाहरण के लिये कर्नाटक में मैसूर और दांडेली हाथी रिज़र्व
  • लैंटाना और यूपेटोरियम नामक घासों (आक्रामक प्रजातियों) की सफाई कर हाथियों को उन्हें खाने से रोकना। 
  • मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये बाड़ों का निर्माण करना।
  • गज यात्रा एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान है जिसमें हाथियों एवं  हाथी गलियारों को सुरक्षित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। 
  • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (माइक) कार्यक्रम वर्ष 2003 में शुरू किया गया, यह एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है जो पूरे अफ्रीका और एशिया में हाथियों की अवैध हत्या से संबंधित प्रवृत्तियों की जानकारी को ट्रैक करता है ताकि क्षेत्र के संरक्षण प्रयासों की प्रभावशीलता की निगरानी की जा सके।
  • हाथी परियोजना: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और हाथियों, उनके आवास तथा गलियारों की सुरक्षा के लिये फरवरी 1992 में शुरू की गई थी। 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय परियोजना के माध्यम से देश के प्रमुख हाथी रेंज राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है
  • यहाँ तक कि महावत (जो लोग सवारी करते हैं और हाथियों की देखभाल करते हैं) तथा उनके परिवार हाथियों के कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नीलगिरि हाथी गलियारे पर मद्रास उच्च न्यायालय (HC) के वर्ष 2011 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें जानवरों के लिये गलियारा बनाने के अधिकार और क्षेत्र में रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि की गई थी। 

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. हाथियों के समूह का नेतृत्व मादा करती है।
  2. गर्भधारण की अधिकतम अवधि 22 महीने हो सकती है।
  3. एक मादा हाथी सामान्य रूप से केवल 40 वर्ष की आयु तक बच्चे को जन्म दे सकती है।
  4. भारतीय राज्यों में सबसे अधिक हाथी जनसंख्या केरल में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और  2  
(b) केवल 2 और 4 
(c) केवल 3  
(d) केवल 1, 3 और 4 

उत्तर: (a) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


स्लॉथ बीयर

हाल ही में ‘पीपुल फॉर एनिमल्स ग्रुप’ (PFA) द्वारा झारखंड के एक गाँव से वन अधिकारियों की सहायता से दो ‘स्लॉथ बीयर’ (Sloth Bear) को बचाया गया।

  • द पीपुल फॉर एनिमल्स मेनका गांधी द्वारा स्थापित एक पशु कल्याण संगठन है।
  • PFA ​​​​को मदारियों ने सूचित किया था। मदारी एक खानाबदोश समुदाय है जो जानवरों का इस्तेमाल  नुक्कड़ नाटकों में करके जीविकोपार्जन करता है।

स्लॉथ बीयर

  • परिचय: स्लॉथ बीयर श्रीलंका, भारत, भूटान और नेपाल में मुख्य रूप से तराई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
    • स्लॉथ बीयर मुख्य रूप से दीमक और चींटियों को खाते हैं तथा भालू की अन्य प्रजातियों के विपरीत वे नियमित रूप से अपने शावकों को अपनी पीठ पर ले जाते हैं। 
    • ये शहद खाने के भी बहुत शौकीन होते हैं, इसलिये इन्हें ‘हनी बीयर’ (Honey Bear) भी कहा जाता है।
    • स्लॉथ बीयर हाइबरनेट (hibernate) अर्थात् शीतनिद्रा की स्थिति में नही जाते हैं।
  • वैज्ञानिक नाम:  मेलूरसस अर्सिनस (Melursus Ursinus)।
  • वास स्थान:  इसे हनी बीयर (Honey Bear) और हिंदी भालू भी कहा जाता है, यह उर्सिडा/उर्सिडी  (Ursidae) परिवार का हिस्सा है। ये भारत और श्रीलंका के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 

Sloth-Bear

  • संरक्षण स्थिति:  
    • IUCN की रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)   
    • CITES: परिशिष्ट-I 
    • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I
  • खतरा: निवास स्थान की हानि, शरीर के अंगों के लिये अवैध शिकार स्लॉथ बीयर की प्रजाति के लिये सबसे बड़ा खतरा है। स्लॉथ बीयर को तमाशा दिखाने या प्रदर्शन में उपयोग के लिये पकड़ लिया जाता है। साथ ही उनके आक्रामक व्यवहार और फसलों को नुकसान पहुँचाने के कारण भी स्लॉथ बीयर का शिकार किया जाता है।  

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित में से जानवरों का कौन सा समूह लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में आता है? (2012)

(A) ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई जंगली गधा
(B) कश्मीर हरिण, चीतल, ब्लू बुल और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
(C) हिम तेंदुए, स्वैम्प डियर, रीसस बंदर और सारस (क्रेन)
(D) शेर-पूंँछ मकाक, नील गाय, हनुमान लंगूर और चीता

उत्तर: (A) 

प्रजाति

वर्तमान स्थिति 

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

अति संकटग्रस्त

कस्तूरी मृग    

संकटग्रस्त

लाल पांडा  

संकटग्रस्त

एशियाई जंगली गधा 

संकट के नज़दीक

कश्मीरी हंगुल 

कम चिंतनीय

चीतल 

कम चिंतनीय

नीलगाय 

कम चिंतनीय

हिम तेंदुआ 

संवेदनशील

रीसस बंदर

कम चिंतनीय

सारस (क्रेन)

संवेदनशील

शेर जैसी पूँछ वाला बंदर

संकटग्रस्त

हनुमान लंगूर

कम चिंतनीय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


एनाबॉलिक स्टेरॉयड्स

भारत के दो ट्रैक-एंड-फील्ड टोक्योओलंपियन प्रतिबंधित एनाबॉलिक स्टेरॉयड का उपयोग करने के लिये डोप परीक्षण में विफल रहे तथा चार साल तक के प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं।

एनाबॉलिक स्टेरॉयड्स:

  • परिचय: 
    • एनाबॉलिक स्टेरॉयड का प्रयोग आमतौर पर बॉडी-बिल्डर द्वारा किया जाता है। 
    • ये अनिवार्य रूप से पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन के प्रयोगशाला-निर्मित संस्करण हैं तथा मांसपेशियों को बढ़ाने में प्रभावी है जैसा कि प्राकृतिक हार्मोन से होता है।
    • यह किसी व्यक्ति में पुरुष विशेषताओं को भी बढ़ाता है, जैसे चेहरे के बाल और भारी आवाज़।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स से अलग: 
    • हालांँकि ये स्टेरॉयड उन स्टेरॉयड से बहुत अलग हैं जिनका सुझाव डॉक्टर द्वारा दिया जाता है जैसे- सूजन, कई ऑटोइम्यून बीमारियों के लिये या कोविड-19 संक्रमण के दौरान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करने के लिये। 
    • इन दवाओं को कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स कहा जाता है, ये लैब-निर्मित अणु होते हैं जो कोर्टिसोल नामक हार्मोन की क्रिया की नकल करते हैं, साथ ही शरीर की तनाव प्रतिक्रिया, चयापचय और सूजन को नियंत्रित करते हैं। 
    • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के विपरीत एनाबॉलिक स्टेरॉयड का सीमित चिकित्सीय उपयोग है। 

निर्धारण के प्रमुख कारण: 

  • एनाबॉलिक स्टेरॉयड की एक बहुत ही सीमित चिकित्सा भूमिका होती है और मुख्य रूप से डॉक्टरों द्वारा गंभीर बीमारी या चोट के बाद रोगियों को वज़न बढ़ाने में मदद के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
  • यह बुजुर्गों को मांसपेशियों के निर्माण के लिये छोटी खुराक के रूप में सेवन के लिये निर्धारित किया जा सकता है और कुछ मामलों में यह एनीमिया के इलाज में भी मदद करता है।
  • डॉक्टर उन पुरुषों को भी इस दवा की सलाह दे ​​सकते हैं जिनमें प्राकृतिक टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होता है। 
  • कुछ डॉक्टर इसका उपयोग पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस (ऐसी स्थिति जब हड्डियाँ समय के साथ खराब हो जाती हैं) के इलाज के लिये करते हैं।

एनाबॉलिक स्टेरॉयड का दुरुपयोग: 

  • एनाबॉलिक स्टेरॉयड का मुख्य रूप से उन लोगों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है जो मांसपेशियों को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।
  • एनाबॉलिक स्टेरॉयड उपयोगकर्त्ताओं से संबंधित वर्ष 2019 के भुवनेश्वर के एक अध्ययन से पता चला है कि 74 प्रतिभागियों में से केवल एक पेशेवर बॉडी बिल्डर था, जिसमें 18.9% छात्र थे, जो यह दर्शाता है कि इसका उपयोग पेशेवर एथलीटों के अलावा अन्य लोग भी करते हैं।
  • हालाँकि भारत में इस दवा का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या का कोई ठोस अनुमान मौजूद नहीं है, जम्मू और कश्मीर के वर्ष 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि 7.1% एथलीटों ने इसका इस्तेमाल किया।

स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • अल्पावधि में एनाबॉलिक स्टेरॉयड का उपयोग करने से मुंहासे की समस्या और बाल झड़ सकते हैं।
  • पदार्थ के विस्तारित दुरुपयोग से गाइनेकोमास्टिया (पुरुषों में स्तनों का विकास) और स्तंभन दोष/नपुंसकता (Erectile Dysfunction) की समस्यां भी उत्पन्न हो सकती  है।
  • महिलाओं में यह चेहरे के बालों के विकास का कारण बन सकता है। यह अत्यधिक क्रोध, पागलपन और निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 मई, 2022

अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस

विश्व भर में प्रतिवर्ष दो बार ‘अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस’ का आयोजन किया जाता है। पहला 2 मई को, जबकि दूसरा 26 सितंबर को। इस दिवस के अवसर पर विभिन्न संग्रहालयों और खगोलीय संस्थानों द्वारा खगोल विज्ञान के संबंध में जागरूकता फैलाने के लिये सेमिनार, कार्यशालाओं और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1973 में उत्तरी कैलिफोर्निया के खगोलीय संघ के अध्यक्ष ‘डौग बर्जर’ ने पहले खगोल विज्ञान दिवस का आयोजन किया था। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य आम जनमानस को खगोल विज्ञान के महत्त्व और संपूर्ण ब्रह्मांड के संबंध में जागरूक करना है तथा उन्हें इसके प्रति रुचि विकसित करने में मदद करना है। खगोल विज्ञान का अध्ययन बीते लगभग 5,000 वर्षों से प्रचलित है और इसे संबद्ध विज्ञान शाखाओं में सबसे पुराना माना जाता है। वर्ष 1608 में टेलीस्कोप के आविष्कार के बाद ब्रह्मांड के रहस्य को जानने में खलोग विज्ञान का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया। समय के साथ-साथ बीते कुछ दशकों में प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है एवं कई सिद्धांत एवं अवलोकन प्रस्तुत किये गए हैं, जिससे खगोल विज्ञान और अधिक प्रगति कर रहा है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस

प्रत्येक वर्ष विश्व भर में 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाया जाता है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य प्रेस और मीडिया की आज़ादी के महत्त्व के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रेस को लोकतंत्र का 'चौथा स्तंभ' माना जाता है। सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने और प्रशासन तक आम लोगों की आवाज़ को पहुँचाने में प्रेस/मीडिया की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। ऐसे में मीडिया की स्वतंत्रता इसके लिये कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। यूनेस्को की जनरल काॅन्फ्रेंस की सिफारिश के बाद दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (3 मई) ‘विंडहोक’ (Windhoek) घोषणा की वर्षगांँठ को चिह्नित करता है। वर्ष 1991 की ‘विंडहोक  घोषणा’ एक मुक्त, स्वतंत्र और बहुलवादी प्रेस के विकास से संबंधित है। इस वर्ष विश्व प्रेस दिवस की थीम ‘इनफाॅॅर्मेशन एज़ ए पब्लिक गुड’ है। यह विषय प्रेस द्वारा प्रचारित महत्त्वपूर्ण सूचना को लोकहित के रूप में देखने पर ज़ोर देती है।

एकीकृत सड़क दुर्घटना डाटाबेस प्रोजेक्ट

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा एक केंद्रीय दुर्घटना डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली (Central Accident Database Management System) शुरू की गई है जो भारत में इस तरह की दुर्घटनाओं को कम करने के उद्देश्य से सड़क दुर्घटनाओं के कारणों का विश्लेषण एवं सुरक्षा उपायों को विकसित करने में मददगार साबित होगी। इस प्रणाली का नाम एकीकृत सड़क दुर्घटना डाटाबेस प्रोजेक्ट (Integrated Road Accident Database-IRAD) है। यह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक पहल है जिसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास (IIT-M) द्वारा विकसित किया गया है। इस प्रणाली को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। इस  परियोजना की कुल लागत 258 करोड़ रुपए है तथा यह विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित है। प्रणाली को फरवरी 2022 में 6 राज्यों के 59 ज़िलों में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है, ये हैं- मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु। हाल ही में इस प्रोजेक्ट को चंडीगढ़ में भी लॉन्च किया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस

प्रत्येक वर्ष विश्व के कई हिस्सों में 1 मई को ‘मई दिवस’ (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस नए समाज के निर्माण में श्रमिक और उनके योगदान के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को स्थापित करने की दिशा में काम करती है। भारत में 1 मई, 1923 को पहली बार चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मज़दूर दिवस का आयोजन किया गया। यह पहल सर्वप्रथम हिंदुस्तान की ‘लेबर किसान पार्टी’ के प्रमुख सिंगारावेलु द्वारा की गई थी। लेबर किसान पार्टी के प्रमुख मलयपुरम सिंगारावेलु चेट्टियार ने इस अवसर पर दो बैठकों का आयोजन किया। इन बैठकों में सिंगारावेलु ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार को भारत में मई दिवस या मज़दूर दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करनी चाहिये। मज़दूर दिवस या मई दिवस को भारत में 'कामगार दिन’, कामगार दिवस और अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय संविधान श्रम अधिकारों की सुरक्षा के लिये कई सुरक्षा उपाय प्रदान करता है। ये सुरक्षा उपाय मौलिक अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत के रूप में हैं।