विदेशी हमले के तहत जैव विविधता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय जीव विज्ञान सर्वेक्षण (Zoological Survey of India - ZSI) विभाग द्वारा पहली बार विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियों की एक संकलित सूची तैयार की है। इस सूची में कुल मिलाकर 157 विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियों की इस सूची के अंतर्गत सूक्ष्मजीवों को भी शामिल किया गया है।
- कुल 157 प्रजातियों में से 58 भूमि और ताजे़ पानी में पाई गईं, जबकि 99 समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाई गईं।
कुछ प्रमुख प्रजातियाँ
- पार्थेनियम हिस्टरोफोरस (Parthenium hysterophorus) जिसे कपास घास के नाम से भी जाना जाता है और लान्टैना कैमैरा (Lantana camara) जैसी कुछ ऐसी प्रमुख विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियाँ हैं जो कृषि और जैव विविधता को नुकसान पहुचाने के लिये जानी जाती हैं।
- वस्तुत: ये विदेशी आक्रमणकारी प्रजातियाँ जैव विविधता और मानव कल्याण के लिये खतरा पैदा करती हैं।
इनकी प्रवृत्ति आक्रमक क्यों होती है?
- विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि विदेशी प्रजातियों को जानबूझकर या गलती से उनके प्राकृतिक क्षेत्रों से बाहर लाया जाता है, तो वे 'आक्रामक' हो जाती हैं और जहाँ उन्हें लाया जाता है वे न केवल वहाँ की देशी प्रजातियों को उस स्थान विशेष से बाहर निकाल देती हैं बल्कि पारिस्थितिक संतुलन को भी अस्त-व्यस्त कर देती हैं।
- भूमि और ताजे़ पानी में पाई जाने वाली 58 आक्रमणकारी प्रजातियों में से 31 प्रजातियाँ ऑर्थ्रोपोड्स (arthropods) की हैं, जबकि 19 मछलियाँ हैं, तीन मॉलस्क (mollusks) और पक्षी, एक सरीसृप और दो स्तनधारी प्राणी (mammals) हैं।
- पैराकोकस मार्जिनैटस (Paracoccus marginatus) अथवा पपीता मीलि बग ऐसी ही एक प्रजाति है जो मैक्सिको और मध्य अमेरिकी क्षेत्र से संबंधित है।
- इस प्रजाति ने असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में पपीते की बड़ी फसल को नष्ट किया है।
- फेनाकोकस सोलनॉप्सिस (Phenacoccus solenopsis) अथवा कपास मीलि बग उत्तरी अमेरिका की मूल प्रजाति है लेकिन इससे दक्कन क्षेत्र में कपास की फसल पर बुरी तरह से प्रभाव पड़ा है।
- आक्रामक मछली की प्रजातियों में, टेरीगॉप्लिचथिस पर्डलीस (Pterygoplichthys pardalis) अथवा अमेज़ॉन सैलीफिन कैटफिश कोलकाता की आर्द्रभूमि में पाई जाने वाली मछलियों की आबादी को नष्ट कर रही है।
- अचातिना फुलिका (Achatina fulica) अथवा अफ्रीकी सेब घोंघा इन सभी विदेशी प्रजातियों में सबसे अधिक आक्रामक माना जाता है। यह एक मॉलस्क है।
- इसे पहली बार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में खोजा गया था। यह और बात है कि आज यह प्रजाति पूरे देश में पाई जाती है और कई देशी प्रजातियों के निवास के लिये खतरा बन गई है।
विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियाँ
- विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियों में सबसे अधिक संख्या जीनस एसाइडिया (Ascidia) (31) की है।
- इसके बाद इस क्रम में आरथ्रोपोड्स (Arthropods) (26), एनालडि्स (Annelids) (16), सीनिडेरियन (Cnidarian) (11), ब्रायोजन (Bryzoans) (6), मोलास्कस (Molluscs) (5), टेनोफोरा (Ctenophora) (3) और एन्टोप्रोकटा (Entoprocta) (1) का स्थान आता है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि टूब्रैसट्रिया कोकसीनी (Tubastrea coccinea ) अथवा ऑरेंज कप-कोरल, यह प्रजाति इंडो-ईस्ट पैसिफिक में पाई जाती है, लेकिन अब यह प्रजाति अंडमान निकोबार द्वीप समूह, कच्छ की खाड़ी, केरल और लक्षद्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है।
यह समस्त विवरण भारत में आक्रमणकारी विदेशी प्रजातियों की स्थिति पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर घोषित किया गया। इस सम्मेलन का आयोजन जेड.एस.आई. और भारत के वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India - BSI) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।