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एडिटोरियल

  • 30 Sep, 2024
  • 32 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के वायु गुणवत्ता प्रबंधन का सुदृढ़ीकरण

यह संपादकीय "Delhi’s Winter Action Plan for pollution appears unconvincing" पर आधारित है, जो 28/09/2024 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। यह लेख दिल्ली में बार-बार होने वाले वायु प्रदूषण संकट को प्रकट करता है, जो अल्पकालिक समाधानों के बजाय एक व्यापक, वर्ष भर चलने वाली कार्यनीति की आवश्यकता पर बल देता है। यह भारत के व्यापक वायु गुणवत्ता प्रबंधन में प्रणालीगत दोषों को भी प्रकट करता है एवं अधिक सक्रिय और विज्ञान-आधारित हस्तक्षेपों की मांग करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

वायु प्रदूषण संकट, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, इलेक्ट्रिक वाहन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल, FAME-II, SATAT, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान। 

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण का मुद्दा, वायु गुणवत्ता सुधार के लिये सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम

शीत ऋतु आते ही, दिल्ली एक बार फिर अपने वार्षिक वायु प्रदूषण संकट से जूझ रही है, जिसके क्रम में दिल्ली सरकार ड्रोन निगरानी और अंतर-विभागीय टास्क फोर्स जैसे कुछ आशाजनक परिवर्द्धन के साथ शीतकालीन कार्य योजना को कार्यान्वित कर रही है। यद्यपि, शहर के प्रयास विलंबित कार्यान्वयन और अल्पकालिक परिप्रेक्ष्य से ग्रस्त हैं। जबकि योजना पड़ोसी राज्यों में पराली दहन जैसी तात्कालिक चिंताओं को संबोधित करती है, यह लगातार उच्च आधारभूत प्रदूषण स्तरों वाले महानगर के लिये आवश्यक व्यापक वर्ष भर की कार्यनीति में एकीकृत होने में विफल रहती है।

चुनौती दिल्ली से आगे तक विस्तृत है, जो वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये भारत के दृष्टिकोण में प्रणालीगत मुद्दों को प्रकट करती है। केंद्र सरकार के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की राज्यों के बीच प्रभावी मध्यस्थता की कमी के लिये आलोचना की गई है। इसके अतिरिक्त, एयरशेड पद्धति का उपयोग करके लक्षित, भूगोल-आधारित हस्तक्षेपों के लिये विशेषज्ञ सिफारिशों के बावजूद, दिल्ली की योजना में इस दृष्टिकोण के पर्याप्त कार्यान्वयन का अभाव है। चूँकि भारत खतरनाक वायु गुणवत्ता के एक और मौसम का सामना कर रहा है, इसलिये अधिकारियों को इस लगातार सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने के लिये अधिक समुत्थानशील, सक्रिय और वैज्ञानिक रूप से सूचित कार्यनीतियों को अंगीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी चिंता का विषय क्यों बना हुआ है? 

  • प्रदूषण नियंत्रण उपायों का अप्रभावी कार्यान्वयन: अनेक नीतियों और नियमों के बावजूद, भारत प्रदूषण नियंत्रण उपायों के कार्यान्वयन के क्षेत्र में संघर्षरत है। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में शुरू किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक 122 शहरों में पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता को 20-30% तक कम करना था। 
      • यद्यपि, वर्ष 2023 तक केवल 95 शहरों ने PM10 के स्तर में कमी को प्रदर्शित किया है और कई अभी भी लक्ष्य प्राप्ति से बहुत दूर हैं। 
  • मौसमी वृद्धि में योगदान देने वाली स्थायी कृषि पद्धतियाँ: उत्तर भारत में पराली दहन की प्रथा वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता बनी हुई है, विशेष रूप से शीत ऋतु के दौरान। 
    • किसानों को वैकल्पिक समाधान उपलब्ध कराने के प्रयासों के बावजूद,  वर्ष 2022 में अकेले पंजाब में 30,000 से अधिक पराली दहन की घटनाएँ हुईं।
    • पराली दहन के चरम दिनों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में पराली दहन का योगदान लगभग 25% से 30% होता है।
    • यद्यपि विगत् वर्षों की तुलना में पराली दहन की घटनाओं में मामूली कमी आई है, परंतु किसानों के समक्ष आर्थिक बाधाओं तथा व्यवहार्य विकल्पों की कमी के कारण यह प्रथा अभी भी व्यापक रूप से जारी है, जिससे अधिक व्यापक तथा सहायक नीतियों की आवश्यकता प्रकट होती है।
  • तीव्र शहरीकरण और अवसंरचना का विकास: भारत में तीव्र शहरीकरण और अवसंरचना विकास के कारण वायु प्रदूषण के स्तर में निरंतर वृद्धि हो रही है। 
    • वर्ष 2019 लंदन वायुमंडलीय उत्सर्जन सूची (LAEI) के अनुसार, निर्माण गतिविधियों के कारण शहर में लगभग 30% पार्टिकुलेट मैटर (PM10) उत्सर्जन होता है, जबकि 8% महीन पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) उत्सर्जन होता है। 
    • यह अनियंत्रित वृद्धि  तथा अपर्याप्त धूल प्रबंधन पद्धतियाँ, शहरी क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता के निम्नीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
  • शहरी केंद्रों में वाहनों से बढ़ता उत्सर्जन: भारतीय शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत बनी हुई है। 
    • भारत विश्व का सबसे बड़ा ट्रैक्टर उत्पादक, दूसरा सबसे बड़ा बस निर्माता तथा तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक निर्माता है।
      • वित्त वर्ष 23 में भारत का वार्षिक ऑटोमोबाइल उत्पादन 25.9 मिलियन था। 
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, वे अभी भी कुल वाहनों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही प्रदर्शित करते हैं। 
      • स्वच्छ ईंधन और विद्युत गतिशीलता की ओर धीमी गति से स्थित्यंतरण तथा अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना के कारण, वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन शहरी वायु गुणवत्ता प्रबंधन में एक सतत् समस्या बना हुआ है।
  • औद्योगिक उत्सर्जन और सख्त प्रवर्तन का अभाव: औद्योगिक उत्सर्जन भारत में वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता बना हुआ है। 
    • इसके अतिरिक्त, 32 औद्योगिक क्लस्टरों को अति प्रदूषित क्षेत्रों (SPA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • भारत के केवल 5% कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रों में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिये वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित किये गए हैं।
      • इसके अतिरिक्त, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 17 राज्यों में 43 औद्योगिक क्लस्टरों की पहचान गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों (CPA) के रूप में की है। 
    • उद्योगों के लिये मानदंडों के सख्त कार्यान्वयन का अभाव तथा उनमें बार-बार ढील दिये जाने से आर्थिक विकास तथा पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने में चुनौती का सातत्य प्रकट होता है।
  • घर के अंदर वायु प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य प्रभाव: घर के अंदर वायु प्रदूषण को भारत में प्रायः अनदेखा किया जाता है, परंतु गंभीर मुद्दा बना हुआ है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 6.7 मिलियन असामयिक मौतें घर के अंदर वायु प्रदूषण के कारण होती हैं, जिसमें भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। 
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसी सरकारी पहलों के बावजूद, आर्थिक कारकों और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के कारण स्वच्छ ईंधन का निरंतर उपयोग एक चुनौती बना हुआ है।
      • लगभग 5.3 % भारतीय परिवार अभी भी अपनी खाना पकाने की आंशिक या संपूर्ण आवश्यकता के लिये ठोस ईंधन पर निर्भर हैं। 
      • LPG के साथ ठोस ईंधन का उपयोग करने की प्रथा, जिसे ईंधन स्टैकिंग के रूप में जाना जाता है, हानिकारक घरेलू वायु प्रदूषण (HAP) के निरंतर जोखिम को उत्पन्न करती है, यहाँ तक ​​कि उन लोगों के लिये भी जिनके पास LPG कनेक्शन हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन को भारत में वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारक के रूप में तेज़ी से पहचाना जा रहा है। 
    • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दक्षिण एशिया में बढ़ते तापमान और परिवर्तित होते मौसम प्रारूप के कारण वायु प्रदूषण की घटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि होने की संभावना है। 
    • उदाहरण के लिये, उत्तर भारत में अक्तूबर 2023 में असामान्य वर्षा प्रारूप के कारण लंबे समय तक वायु स्थिर रही, जिससे प्रदूषक पाशित हो गए और वायु की गुणवत्ता खराब हो गई। 
    • जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के बीच परस्पर अंतःक्रिया एक दुष्चक्र का निर्माण करती है, जहाँ दोनों एक-दूसरे को और अधिक गंभीर बनाते हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रभावी समाधान के लिये दोनों मुद्दों पर एक साथ ध्यान देना आवश्यक हो जाता है।

वायु गुणवत्ता सुधार के लिये सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम क्या हैं? 

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): जनवरी 2019 में शुरू किये गए NCAP का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक PM10 के स्तर को 40% तक कम करके 131 गैर-प्राप्ति और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार करना है। 
    • सार्वजनिक शिकायत प्रणाली, आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र और अन्य उपायों को कार्यान्वित किया गया है, जिससे वित्त वर्ष 2022-23 तक 131 में से 88 शहरों में सुधार दिखा है।
  • वाहन उत्सर्जन पर नियंत्रण: सरकार ने देश भर में BS-VI ईंधन मानकों को कार्यान्वित किया है और अप्रैल 2020 से BS VI अनुरूप वाहन पेश किये हैं।
    • FAME-II जैसी योजनाएँ इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करती हैं, जबकि SATAT बायोगैस उत्पादन का समर्थन करती है। 
    • वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिये नए एक्सप्रेसवे और राजमार्ग प्रमुख शहरों से गैर-निर्धारित यातायात को अपयोजित करते हैं।
  • औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण: ताप विद्युत संयंत्रों में SO2 और NOx उत्सर्जन के लिये नए मानक कार्यान्वित किये गए हैं। 
    • NCR राज्यों में पेट कोक और फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तथा औद्योगिक इकाइयाँ पीएनजी या बायोमास जैसे स्वच्छ ईंधनों की ओर स्थित्यंतरित हो रही हैं। 
    • 56 औद्योगिक क्षेत्रों के लिये उत्सर्जन मानकों को अधिसूचित किया गया है तथा उच्च प्रदूषणकारी उद्योगों के लिये ऑनलाइन सतत् उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (OCEMS) को अनिवार्य किया गया है।
  • पराली दहन पर नियंत्रण के उपाय: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली दहन को रोकने के लिये फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी हेतु सब्सिडी प्रदान की जाती है।
    • धान की पराली के उपयोग हेतु  पेलेटाइज़ेशन और टोरिफैक्शन संयंत्र स्थापित करने के लिये वित्तीय सहायता की पेशकश की गई है।
    • CPCB द्वारा निगरानी और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा प्रवर्तन से फसल कटाई के मौसम के दौरान पराली दहन की घटनाओं को रोकने में सहायता मिलती है।
  • वायु गुणवत्ता निगरानी और नेटवर्क: राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) वर्ष 2015 में शुरू किया गया था, जिसके तहत देशभर में 1,400 से अधिक वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित किये गए हैं। 
    • बुलेटिन के माध्यम से डेटा प्रसारित किया जाता है और वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान उपलब्ध कराए जाते हैं, विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर के लिये। केंद्रीय नियंत्रण कक्ष वायु गुणवत्ता डेटा और हॉटस्पॉट का वास्तविक समय पदांकन प्रदान करता है।
  • MSW और निर्माण अपशिष्ट का नियंत्रण: निर्माण और विध्वंस (C&D) अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये दिशानिर्देश जारी किये गए हैं और बड़े निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन परिनियोजित करने के निर्देश दिये गए हैं। 
    • नगर निगम के ठोस अपशिष्ट (MSW) के प्रबंधन के प्रयासों में रिक्थ अपशिष्ट का जैविक उपचार और भराव क्षेत्र स्थलों पर आग को रोकना शामिल है, जिससे समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • नियामक कार्रवाई और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP): CPCB ने AQI श्रेणियों के आधार पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) को कार्यान्वित किया है।
    • वर्ष 2022 से प्रभावी GRAP के संशोधित संस्करण में DG सेट के उपयोग को प्रतिबंधित करना, उद्योगों को स्वच्छ ईंधन पर स्थानांतरित करना और धूल नियंत्रण उपाय कार्यान्वित करना जैसे उपाय शामिल हैं। 
    • ये नीतियाँ NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण को रोकने में सहायता करती हैं।

वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रौद्योगिकी-संचालित परियोजनाएँ क्या हैं?

  • बसों में परियायंत्र निस्यंदक इकाइयाँ: एक अध्ययन में, 30 बसों की छतों पर परियायंत्र निस्पंदन इकाइयों को नियोजित किया गया। 
    • ये निष्क्रिय निस्यंदक पर्यावरण से धूल कणों को पाशित करते हैं, जिससे वाहनों की आवाजाही से होने वाला प्रदूषण कम हो जाता है।
    • प्रत्येक इकाई बिना किसी बिजली की आवश्यकता के छह कमरे के वायु निस्यंदकों के बराबर निस्यंदन का कार्य करती हैं।
  • यातायात चौराहों पर WAYU वायु शोधन इकाइयाँ: वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के प्रभाव को कम करने के लिये इन्हें दिल्ली के प्रमुख यातायात चौराहों पर स्थापित किया गया। 
    • ये स्थानीयकृत वायु शोधक प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही लक्षित करते हैं तथा उच्च यातायात वाले क्षेत्रों के लिये समाधान प्रस्तुत करते हैं।
  • वायु प्रदूषण में कमी के लिये आयनीकरण तकनीक: यह तकनीक आयनीकरण के माध्यम से प्रदूषकों को निष्प्रभावी करती है, जिससे लक्षित क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है। यह परिवेश प्रदूषण को कम करने के लिये एक विधि के रूप में आयनीकरण की क्षमता का पता लगाता है।
  • स्मॉग टावर : वायु शोधक के रूप में कार्य करने के लिये बड़े पैमाने पर स्मॉग टावर स्थापित किये गए हैं, जिन्हें विशेष रूप से व्यापक क्षेत्र में कण पदार्थ और अन्य प्रदूषकों को कम करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  • पुराने वाहनों में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों का पुनःसंयोजन: एक प्रमुख परियोजना पुराने वाहनों (जैसे BS III अनुपालक) में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों के पुनःसंयोजन पर केंद्रित थी।
    • इसका उद्देश्य प्रयोग में आने वाले वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना है, जिससे पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने में सहायता मिलेगी।

भारत में वायु गुणवत्ता प्रबंधन को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अंगीकृत किये जा सकते हैं?

  • सख्त औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण का कार्यान्वयन: भारत, चीन के कोयला-आधारित प्रदूषण नियंत्रण उपायों के समान, अधिक सख्त औद्योगिक उत्सर्जन मानदंड अंगीकृत कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के नवीनतम निर्देश के अनुसार, सभी कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रों में दहन गैस निर्गंधकीकरण (FGD) इकाइयों की स्थापना को अनिवार्य करने से SO2 उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है।
    • गुजरात में शुरू की गई योजना की तरह राष्ट्रव्यापी उत्सर्जन व्यापार योजना को कार्यान्वित करने से उद्योगों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अंगीकृत करने के लिये प्रोत्साहन मिल सकता है। 
      • यह दृष्टिकोण, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से सीधे संबंधित वास्तविक समय उत्सर्जन निगरानी प्रणालियों के साथ मिलकर, बेहतर अनुपालन सुनिश्चित कर सकता है और औद्योगिक प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण में त्वरण: वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का त्वरित अंगीकरण महत्त्वपूर्ण है। 
    • भारत का वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य सही दिशा में उठाया गया कदम है। सोलर पार्क योजना की हालिया सफलता बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करता है। 
    • सरलीकृत नियमों और प्रोत्साहनों के माध्यम से छतों पर सौर ऊर्जा स्थापना को प्रोत्साहित करना, जैसा कि गुजरात की सूर्यशक्ति किसान योजना में देखा गया है, इस परिवर्तन को और तीव्र कर सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, ऊर्जा भंडारण समाधान और हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रोत्साहित करने से व्यवधान संबंधी समस्याओं का समाधान हो सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक गहन उपयोग संभव हो सकता है।
  • शहरी हरित आवरण और ऊर्ध्वाधर वनों का संवर्द्धन: चीन के नानज़िग में ऊर्ध्वाधर वन से प्रेरणा लेते हुए, भारतीय शहर समान हरित अवसंरचना परियोजनाओं को अंगीकृत कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, मुंबई की आरे कॉलोनी में शहरी वन बनाने की हाल की पहल इस दिशा में एक कदम है। 
    • सिंगापुर की स्काईराइज़ ग्रीनरी इंसेंटिव स्कीम में देखा गया है कि ऊर्ध्वाधर उद्यानों और छतों पर वृक्षारोपण को सम्मिलित करने वाले अनिवार्य हरित भवन कोड को कार्यान्वित करने से शहरी हरित आवरण में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 
    • बेंगलूरू जैसे शहर, मियावाकी तकनीक का उपयोग करके छोटे-छोटे वन बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिसने छोटे क्षेत्रों में घने शहरी वन बनाने और शहरों में वायु शोधन क्षमता बढ़ाने में सफलता दिखाई है।
  • शहरी परिवहन में क्रांतिकारी परिवर्तन: भारत को वाहनों से होने वाले उत्सर्जन से निपटने के लिये संवहनीय शहरी गतिशीलता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। 
    • दिल्ली की इलेक्ट्रिक वाहन नीति के सफल कार्यान्वयन को अन्य शहरों में भी दोहराया जा सकता है। 
    • वर्ष 2023 में शुरू की जाने वाली कोच्चि की जल मेट्रो प्रणाली की तरह सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना का विस्तार और सुधार निजी वाहनों के लिये कुशल विकल्प प्रदान कर सकता है। 
    • लंदन के अल्ट्रा लो एमिशन जोन के समान प्रमुख शहरों में संकुलन मूल्य निर्धारण कार्यान्वित करने से उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में निजी वाहनों के उपयोग को हतोत्साहित किया जा सकता है।
      • इसके अतिरिक्त, कोपेनहेगन में देखे गए अनुसार, समर्पित साइकिल लेन और पैदल यात्री क्षेत्रों का व्यापक नेटवर्क बनाने से गैर-मोटर चालित परिवहन विकल्पों को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • उन्नत वायु गुणवत्ता निगरानी और प्रबंधन प्रणाली का अंगीकरण: पूरे भारत में एक व्यापक, वास्तविक समय वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को कार्यान्वित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेटवर्क का विस्तार कर 344 शहरों में 804 निगरानी केंद्रों तक विस्तारित किया जाना एक सकारात्मक कदम है, परंतु अधिक विस्तृत आंकड़ों की आवश्यकता है। 
    • कम लागत वाले संवेदक नेटवर्क, उपग्रह डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित पूर्वानुमान मॉडल को एकीकृत करके अधिक सटीक तथा स्थानीयकृत वायु गुणवत्ता जानकारी प्रदान की जा सकती है।
    • चीन के ब्लू मैप ऐप के समान राष्ट्रीय स्तर के वायु गुणवत्ता डेटा प्लेटफॉर्म को कार्यान्वित करने से वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी बढ़ सकती है।
    • पुणे स्थित ग्रीन टेक कंपनी पाई ग्रीन इनोवेशन, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये वाहनों और डीजल जनरेटर हेतु पुनःसंयोजित प्रणाली प्रदान करते हुए  भारत में UNDP की 'क्लियर एयर इनिशिएटिव' के लिये एक समाधान प्रदान करती है।
      • दिल्ली स्थित कंपनी ब्रीथईज़ी, वायु गुणवत्ता परीक्षण, पोर्टेबल और केंद्रीकृत वायु शोधन समाधान तथा घर के अंदर के वातावरण को अनुकूलित करने के लिये हरित परामर्श सेवाएँ प्रदान करती है।
  • संवहनीय प्रथाओं के माध्यम से कृषि उत्सर्जन से निपटना: पराली दहन की समस्या से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। 
    • फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन के लिये कृषि मशीनीकरण को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। 
    • जैव-अपघटक (पूसा डीकंपोजर) और पैलेटाइज़ेशन जैसे नवीन समाधानों की खोज, दहन के स्थान पर लागत प्रभावी विकल्प प्रदान कर सकती है। 
    • इसके अतिरिक्त, पंजाब और हरियाणा में धान के अलावा फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने से पराली उत्पादन में कमी लाई जा सकती है। 
    • कोस्टा रिका में पर्यावरण सेवा कार्यक्रम के लिये भुगतान के समान, संवहनीय पद्धतियों को अंगीकृत करने वाले किसानों के लिये पुरस्कार प्रणाली कार्यान्वित करने से परिवर्तन के लिये आर्थिक प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन न्यूनीकरण कार्यनीतियों का कार्यान्वयन: प्रमुख प्रदूषणकारी क्षेत्रों के लिये लक्षित उत्सर्जन न्यूनीकरण कार्यनीतियों का विकास और कार्यान्वयन आवश्यक है। 
    • विनिर्माण क्षेत्र के लिये, जो कण प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत धूल नियंत्रण उपायों को सख्त रूप से कार्यान्वित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • दिल्ली-एनसीआर में धूल को नियंत्रित करने के लिये कृत्रिम वर्षा का उपयोग करने की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड की हाल की पहल को व्यापक अनुप्रयोग के लिये अन्वेषित किया जा सकता है।
    • ईंट भट्ठा उद्योग में, ज़िग-ज़ैग भट्ठों जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की ओर स्थित्यंतरण को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • परिवहन क्षेत्र के लिये, BS-VI ईंधन मानकों का तीव्र अंगीकरण और वर्ष 2021 में शुरू की गई वाहन स्क्रैपेज़ नीति जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से पुराने वाहनों को हटाने को प्रोत्साहित करना वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है।

निष्कर्ष: 

भारत के अपाती चिरस्थ वायु प्रदूषण संकट से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये, एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है - जो दीर्घकालिक, विज्ञान-आधारित समाधानों, उत्सर्जन मानदंडों के सख्त प्रवर्तन और उद्योगों, परिवहन तथा कृषि में संवहनीय प्रथाओं के प्रोत्साहन को एकीकृत करता है। राज्यों के बीच बेहतर समन्वय एवं स्वच्छ ऊर्जा और शहरी हरित अवसंरचना की ओर स्थित्यंतरण महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। केवल सक्रिय और व्यापक प्रयासों के माध्यम से ही भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा कर सकता है और भविष्य की पीढ़ियों के लिये वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

Q. विभिन्न सरकारी पहलों के बावजूद, भारत में वायु प्रदूषण की समस्या बनी हुई है। भारत में वायु प्रदूषण के प्रबंधन में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और संवहनीय वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये दीर्घकालिक कार्यनीति सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)

  1. कार्बन डाइऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोक्साइड
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मेथैन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है?  (2021)


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