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एडिटोरियल

  • 28 Mar, 2024
  • 20 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गाज़ा में युद्ध विराम

यह एडिटोरियल 27/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Stop the war” पर आधारित है। इसमें गाज़ा में तत्काल युद्ध विराम के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थन के बारे में चर्चा की गई है। 25 मार्च 2024 को 14-0 से पारित इस प्रस्ताव में फिलिस्तीनी नागरिकों तक सहायता पहुँचाने और हमास के कब्ज़े से शेष बंधकों की रिहाई कराने के लिये युद्धविराम का आह्वान किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

इज़रायल, फिलिस्तीन, मध्य-पूर्व, अरब विश्व, योम किप्पुर युद्ध, अल-अक्सा, गाज़ा पट्टी, येरुशलम, फ़िलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO), होर्मुज़ जलडमरूमध्य, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), वेस्ट बैंक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

भारत और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य पर इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रभाव।

इज़रायल द्वारा गाज़ा पर हमला शुरू करने के साढ़े पाँच माह बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा 25 मार्च 2024 को ‘तत्काल युद्धविराम’ (immediate ceasefire) का आह्वान किया गया। इसके साथ ही, UNSC ने हमास द्वारा बंधक रखे गए इज़रायली नागरिकों की रिहाई का भी आह्वान किया। 

संयुक्त राज्य अमेरिका, जो अब तक गाज़ा में तत्काल युद्ध विराम के संयुक्त राष्ट्र के हर प्रस्ताव को वीटो करता रहा था, इस बार अनुपस्थित रहा, जो संघर्ष के प्रति बाइडेन प्रशासन के दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देता है।

UNSC द्वारा पारित प्रस्ताव क्या था?

  • परिचय:
    • प्रस्ताव में रमज़ान माह के लिये तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया गया जिसका सभी पक्षों द्वारा सम्मान किया जाए ताकि एक स्थायी एवं सतत् युद्धविराम की ओर बढ़ा जा सके। इसमें 7 अक्तूबर 2023 को हमास द्वारा बंधक बनाये गए इज़रायली बंदियों की रिहाई और गाज़ा में अधिक मानवीय सहायता की आवश्यकता एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के पालन पर भी बल दिया गया।

  • प्रस्ताव/संकल्प की प्रकृति:
    • UNSC के सभी प्रस्तावों को अमेरिका द्वारा अनुमोदित संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 25 के अनुसार बाध्यकारी माना जाता है। हालाँकि, अमेरिका ने नवीन प्रस्ताव को गैर-बाध्यकारी बताया है।
      • यदि UNSC के इस प्रस्ताव का पालन नहीं किया जाता है तो वह उल्लंघन को संबोधित करने वाले अनुवर्ती प्रस्ताव पर मतदान कर सकती है और प्रतिबंधों या यहाँ तक कि एक अंतर्राष्ट्रीय बल के प्राधिकरण के रूप में दंडात्मक कार्रवाई कर सकती है।
  • पूर्व के प्रस्ताव:
    • वर्ष 2016 में UNSC ने फिलिस्तीन में इज़रायल की बस्तियों को अवैध और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव 14 वोटों से पारित हुआ था और अमेरिका मतदान से अनुपस्थित रहा था। इज़रायल द्वारा इस प्रस्ताव की उपेक्षा की गई थी।
      • अभी हाल ही में दिसंबर 2023 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक ‘मानवीय युद्धविराम’ का आह्वान करते हुए भारी बहुमत से मतदान किया था। यह एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव था और इज़रायल ने इस पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।
      • इज़रायल अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की जाँच के दायरे में भी है, जहाँ दक्षिण अफ्रीका द्वारा उस पर गाज़ा में नरसंहार (genocide) के कृत्य का आरोप लगाया गया है।

युद्धविराम का आह्वान करने वाले प्रस्ताव के पारित होने में अमेरिका की क्या भूमिका रही?

  • रूस की तुलना में अमेरिका की भूमिका:
    • अमेरिका ने इज़रायल को सैन्य सहायता की आपूर्ति नहीं रोकी है और बलपूर्वक कहा है कि इज़रायल की सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी हुई है। वस्तुतः अमेरिका ने स्पष्ट रूप से और बलपूर्वक कहा है कि उनका वोट उनकी नीति में बदलाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने प्रस्ताव के विरुद्ध अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इस पर मतदान से अनुपस्थित रहा।
      • मतदान से कुछ समय पूर्व आम सहमति बनाने के प्रयास में प्रस्ताव के पाठ से ‘स्थायी’ (permanent) शब्द को हटा दिया गया था।
    • रूस ने ‘स्थायी’ शब्द के उपयोग पर बल देने का प्रयास करते हुए कहा था कि इस शब्द का उपयोग नहीं करने से इज़रायल को रमादान के बाद “किसी भी समय गाज़ा पट्टी में अपना सैन्य अभियान पुनः शुरू करने” की अनुमति मिल सकती है।
  • अमेरिका द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव:
    • UNSC के समक्ष अमेरिका द्वारा भी एक मसौदा प्रस्ताव रखा गया था और सदस्यों ने उस पर मतदान किया। इसे रूस और चीन द्वारा वीटो कर दिया, अल्जीरिया ने इसके विरुद्ध मतदान किया तथा गुयाना अनुपस्थित रहा। ग्यारह सदस्यों ने इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जो वर्तमान प्रस्ताव से पूर्व लाया गया था।
      • अमेरिका के प्रस्ताव में युद्धविराम की मांग नहीं की गई थी, बल्कि “बंधकों की रिहाई के लिये समझौते के एक हिस्से के रूप में तत्काल और सतत् युद्धविराम स्थापित करने के अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों” का समर्थन किया गया था।
  • अमेरिकी प्रस्ताव में हमास की निंदा:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रस्ताव ने UNSC के सदस्य देशों से “हमास के वित्तपोषण को प्रतिबंधित करने सहित आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने” का आग्रह किया। प्रस्ताव में हमास की निंदा भी की गई और कहा गया कि हमास को “कई सदस्य देशों द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है।”
      • अमेरिका के वक्तव्य में आगे कहा गया कि वर्तमान प्रस्ताव हमास की निंदा करने में विफल रहा है, जो प्रस्ताव की भाषा में शामिल होना चाहिये और अमेरिका इसे आवश्यक मानता है।
  • अमेरिका-इज़राइल संबंधों पर प्रभाव:
    • युद्धविराम का आह्वान करने वाले पिछले तीन मसौदा प्रस्तावों पर वीटो करने के बाद नवीन प्रस्ताव पर मतदान से अमेरिका अनुपस्थित रहा है। इसकी प्रतिक्रिया में इज़राइली प्रधानमंत्री ने एक प्रतिनिधिमंडल की वाशिंगटन यात्रा को रद्द कर दिया और असंतोष जताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी पूर्व नीति का त्याग कर दिया है।

नवीन युद्धविराम प्रस्ताव पर इज़राइल की क्या प्रतिक्रिया रही?

  • संघर्ष विराम में बंधकों की रिहाई के शर्त का अभाव:
    • UNSC के सभी सदस्यों (अमेरिका को छोड़कर) ने, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था (जो अब तक युद्धविराम का समर्थन करने के आह्वान का विरोध करता रहा था), प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। युद्धविराम के लिये हमास के कब्जे में मौजूद इज़राइली बंधकों की रिहाई की शर्त को बलपूर्वक शामिल नहीं करने के लिये इज़राइल ने असंतोष व्यक्त करते हुए इस प्रस्ताव की आलोचना की है।
  • राफ़ा पर हमले की योजना:
    • हाल के समय में इज़राइल बार-बार कहता रहा है कि वह सुदूर दक्षिणी शहर राफ़ा (जहाँ लगभग 1.4 मिलियन फ़िलिस्तीनियों ने शरण ले रखी है) पर आक्रमण की योजना रखता है। UNSC के 14 सदस्यों द्वारा तत्काल युद्धविराम का आह्वान करने वाले प्रस्ताव के समर्थन के बाद अब इज़राइल द्वारा राफ़ा पर हमला करना (जो भारी रक्तपात का कारण बन सकता है) अत्यंत अनुपयुक्त सिद्ध होगा।
  • आगे की योजना में दीर्घकालिक समाधान का अभाव:
    • इस युद्ध ने इज़राइल के अलगाव को बढ़ा दिया है, जहाँ अमेरिका और ब्रिटेन सहित अपने निकट सहयोगियों के साथ भी उसके संबंधों में तनाव बढ़ गया है। यदि इज़राइल बिना किसी स्पष्ट परिणाम के युद्ध जारी रखता है तो इससे उसके समक्ष विद्यमान घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियाँ और गंभीर हो जाएँगी, जबकि रक्षाहीन, पस्त, घिरे हुए, बमबारी से ग्रस्त गाज़ा में और अधिक फ़िलिस्तीनी मौत के शिकार होंगे।
      • नवीन प्रस्ताव से इज़राइल को कोई सांत्वना नहीं मिली है और वह इस युद्ध में और अधिक गहराई से फँस सकता है, जबकि निकट या अल्पकालिक भविष्य में कोई अनुकूल परिणाम प्राप्त होता भी नज़र नहीं आ रहा है।
  • अमेरिका की तथाकथित ‘रेड-लाइन’ का अनादर:
    • अमेरिका की कथित ‘रेड लाइन’ (कि इज़राइल को ज़मीनी हमले में शामिल नहीं होना चाहिये) का सम्मान करने के बजाय इज़राइल ने अपनी बयानबाज़ी और तेज़ कर दी है। वस्तुतः अब उसने ‘दो-राज्य समाधान’ (two-state solution) के सिद्धांत को भी नकार दिया है।
    • इस तरह की अतिशयवादी स्थितियाँ—वर्तमान संघर्ष और व्यापक इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे दोनों के संदर्भ में—अस्थिर सिद्ध होंगी। वे इज़राइल के दीर्घकालिक हितों को भी क्षति पहुँचाएँगी।
  • एकतरफा कार्रवाई या निर्णय:
    • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि यह प्रस्ताव इज़राइल पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन हमास पर नहीं, क्योंकि फिलिस्तीनी समूह एक राज्य का दर्जा नहीं रखता है। इस पर इज़राइल राज्य की ओर से अत्यंत तीखी प्रतिक्रिया आई है, जिसने इसे भेदभावपूर्ण और आंशिक समाधान बताया है जो इज़राइलियों की चिंताओं की उपेक्षा करता है। इज़राइल का तर्क है कि इज़राइल ने नहीं बल्कि हमास ने यह युद्ध छेड़ा है।

वर्तमान में इज़राइल के पास कौन-से विकल्प मौजूद हैं?

  • दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य का पालन करना:
    • देश को स्थायी रूप से युद्ध की स्थिति में बनाये रखने के बजाय इज़राइल को UNSC के संदेश को गंभीरता से लेना चाहिये, युद्ध समाप्त करना चाहिये, गाज़ा में तत्काल मानवीय सहायता की अनुमति देनी चाहिये और सभी बंधकों की रिहाई तथा क्षेत्र से अपने सैनिकों की वापसी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों के माध्यम से हमास के साथ वार्ता जारी रखनी चाहिये। 
  • अब्राहम समझौते के मूल्यों का पालन करना:
    • युद्ध शुरू होने से पहले इज़राइल अपने पड़ोस और व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष एक तार्किक स्थिति रखता था—विशेष रूप से अब्राहम समझौते के बाद, जिसने इज़राइल और विभिन्न अरब राज्यों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया था।
      • तेज़ी से अलग-थलग पड़ती जा रही इज़राइल सरकार को अपने मित्र देशों की बात सुननी चाहिये और यह शत्रुता रोकनी चाहिये। अन्यथा इससे केवल इस दृष्टिकोण को ही बल प्राप्त होगा कि इसका प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक हितों को राष्ट्रीय हित से ऊपर रख रहा है।
  • हमास के साथ सहयोग:
    • गाज़ा पर शासन करने वाले और 7 अक्टूबर को इज़राइल पर अभूतपूर्व हमले के साथ युद्ध भड़काने वाले फिलिस्तीनी इस्लामी समूह हमास ने नवीन प्रस्ताव का स्वागत किया है।
      • इसने कहा कि वह “तत्काल बंदी विनिमय प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार है जिससे दोनों पक्षों के बंदियों की रिहाई हो सके।” समूह ने इज़राइली बंधकों की रिहाई को इज़राइली जेलों में बंद फिलीस्तीनियों की रिहाई के साथ सशर्त बना दिया है।
  • अमेरिका के रुख के साथ तालमेल :
    • अमेरिका पर संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल की रक्षा के लिये अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है। हालाँकि गाज़ा में बढ़ती मौतों को लेकर, जहाँ 32,000 से अधिक लोग मारे गए जिनमें महिलाओं एवं बच्चों की बड़ी संख्या शामिल थी, अब वह इजराइल के प्रति आलोचनात्मक होता जा रहा है।
      • अमेरिका ने इज़राइल पर यह दबाव भी बनाया है कि वह गाज़ा में सहायता की आपूर्ति के लिये अधिक प्रयास करे जहाँ पूरी आबादी भारी खाद्य असुरक्षा से गंभीर रूप से पीड़ित है।
  • संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका:
    • दुनिया को वृहत रूप से शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की ज़रूरत है लेकिन इज़राइली सरकार और अन्य संबंधित पक्षों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।
    • इस प्रकार भारत के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के साथ-साथ इज़राइल के साथ भी अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा। भारत ने मध्य-पूर्वी देशों और इज़राइल के साथ लगातार अच्छे संबंध बनाए रखे हैं, जिसका वह प्रभावी ढंग से लाभ उठा सकता है।
      • भारत को वर्ष 2022-24 के लिये मानवाधिकार परिषद में पुनः निर्वाचित किया गया है। भारत को इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे को सुलझाने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु इन बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये।

निष्कर्ष:

हाल के UNSC प्रस्ताव में अमेरिका का अनुपस्थित रहना इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर उसके रुख में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। जबकि आलोचकों का तर्क है कि प्रस्ताव की गैर-बाध्यकारी प्रकृति इसके प्रभाव को कम कर देती है और अमेरिका के इस कदम को चुनाव से पूर्व की एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, यह अमेरिकी प्रशासन और इज़राइल सरकार के बीच बढ़ते तनाव को रेखांकित करता है। राफ़ा में ज़मीनी हमले के विरुद्ध अमेरिका की चेतावनियों पर ध्यान देने से इज़राइल का इनकार उनके बीच बढ़ते मतभेद को उजागर करता है। इज़राइल की अतिशयवादी स्थिति आगे उसके लिये और अलगाव का जोखिम उत्पन्न करती है तथा उसके दीर्घकालिक हितों को खतरा पहुँचाती है। यह परिदृश्य आवश्यक बनाता है कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिये और अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों के लिये इज़राइल इस संघर्ष के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करे।

अभ्यास प्रश्न: इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में तत्काल युद्धविराम के लिये संयुक्त राष्ट्र के हालिया आह्वान के निहितार्थों पर, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के बदलते रुख को देखते हुए, चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न 1. 'आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन-रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।' अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर 'इजराइल विरोधी पूर्वाग्रह' होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये। (2019)

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)


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